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खासम-खास

Submitted by Editorial Team on Tue, 10/04/2022 - 16:13
कूरम में पुनर्निर्मित समथमन मंदिर तालाब। फोटो - indiawaterportal
परम्परागत तालाबों पर अनुपम मिश्र की किताब ‘आज भी खरे हैं तालाब’, पहली बार, वर्ष 1993 में प्रकाशित हुई थी। इस किताब में अनुपम ने समाज से प्राप्त जानकारी के आधार पर भारत के विभिन्न भागों में बने तालाबों के बारे में व्यापक विवरण प्रस्तुत किया है। अर्थात आज भी खरे हैं तालाब में दर्ज विवरण परम्परागत तालाबों पर समाज की राय है। उनका दृष्टिबोध है। उन विवरणों में समाज की भावनायें, आस्था, मान्यतायें, रीति-रिवाज तथा परम्परागत तालाबों के निर्माण से जुड़े कर्मकाण्ड दर्ज हैं। प्रस्तुति और शैली अनुपम की है।

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Submitted by admin on Tue, 12/03/2013 - 15:08
Source:
गांधी मार्ग, नवंबर-दिसंबर 2013
सचमुच घर की लड़ाई। गृह युद्ध। भाई ने भाई को मारा। दूर बैठे देशों ने दोनों को अपने-अपने हथियार बेचे, एक दूसरे को मारने के लिए। नतीजा है कोई एक लाख लोग मारे जा चुके हैं और करीब 20 लाख लोग अपने घरों से उजड़ कर पड़ोसी देशों में शरणार्थी बन कर भटक रहे हैं। सीरिया की इस भारी विपत्ति के पीछे सिर्फ संप्रदायों के सद्भाव की कमी नहीं है। वहां तो पर्यावरण, प्रकृति के प्रति भी सद्भाव की कमी आई और सबका नतीजा निकला यह रक्तपात। हम कुछ सबक सीखेंगे?

वैज्ञानिक हमें बराबर चेतावनी दे रहे हैं कि आने वाले बीस-तीस बरस में हमारे देश के भूजल भंडार का कोई 60 प्रतिशत भाग इस बुरी हालत में नीचे चला जाएगा कि फिर हमारे पास ऊपर से आने वाली बरसात, मानसून की वर्षा के अलावा कुछ बचेगा नहीं। हमारा समाज ऐसी किसी प्राकृतिक विपदा को सहने के लिए और भी ज्यादा मजबूत हो चला है। लेकिन इससे बेफ्रिक तो नहीं ही हुआ जा सकता। धरती गरम हो रही है। मौसम, बरसात का स्वभाव बदल रहा है। इसलिए बिना सोचे समझे भूजल भंडारों के साथ ऐसा जुआ खेलना हमें भारी पड़ सकता है। अपने ही लोगों पर जहरीले रासायनिक हथियारों से हमला करने वाले सीरिया को सबक सिखाना चाहता है अमेरिका। उस पर हमला कर। पर अमेरिका के ही संगी साथी देश उसे इस हमले से रोकने में लगे हैं। लेकिन बाकी दुनिया अभी भी ठीक से समझ नहीं पा रही कि सीरिया के शासक बशर अल-असद ने आखिर अपने लोगों पर यह क्रूर अत्याचार भला क्यों किया है। तुर्की के पुराने उसमानी साम्राज्य के खंडहरों में से कांट-छांट कर बनाया गया था यह सीरिया देश। इसमें रहने वाले अलाविया और सुन्नियों, दुरूजी और ईसाइयों के बीच पिछले कुछ समय से चला आ रहा वैमनस्य निश्चित ही इस युद्ध का एक कारण गिनाया जा सकता है। यह भी कहा जा सकता है कि अभी कुछ ही समय पहले अरब में बदलाव की जो हवा बही थी और जो छूत के रोग की तरह आसपास के कई देशों में फैल चली थी, उसी हवा ने अब सीरिया को भी अपनी चपेट में ले लिया है।
Submitted by admin on Mon, 12/02/2013 - 15:11
Source:
गांधी मार्ग, नवंबर-दिसंबर 2013
भूजल प्रभावित इलाकों में जिंक, मैगनीज, कॉपर, पारा, क्रोमियम, सीसा, निकिल जैसी हानिकारक धातुओं की मात्रा मानक से अधिक मिली है। अभी केवल 350 टन कचरे के निपटान को लेकर प्रक्रिया चल रही है, किंतु उससे कहीं अधिक न दिखने वाला कचरा कारखाने के आसपास पानी और मिट्टी में पाया गया है। उसका निपटान करना भी उतना ही जरूरी है। तीन किलोमीटर के क्षेत्र में किए गए अध्ययन से साफ हो गया है कि यहां घातक और जहरीले रसायन भीतर मिट्टी और पानी में मौजूद हैं। भोपाल गैस त्रासदी को इस दिसंबर में 30 साल हो जाएंगे। इस बड़ी अवधि में मध्य प्रदेश और केन्द्र सरकार मिलकर भी यहां पड़े जहरीले कचरे का निपटान नहीं कर पाई हैं। हर साल बारिश के साथ इसका रिसाव भूमि में होता है और अब आशंका की जा रही है कि यह रिसाव लगभग तीन किलोमीटर के दायरे में फैल गया है। तीन दिसंबर सन् 1984 को भोपाल के यूनियन कार्बाइड कारखाने में हुई गैस त्रासदी के बाद के तीस वर्षों के दौरान यहां कई तरह के अध्ययन हुए हैं। अभी हाल ही में दिल्ली की संस्था सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट द्वारा एक अध्ययन किया गया है। अध्ययन के बाद इस संस्था ने देश भर के विशेषज्ञों के साथ बैठकर इस घातक प्रदूषण से मुक्ति पाने की एक योजना बनाई ताकिवर्तमान और आने वाली पीढ़ियों को इसका ख़ामियाज़ा न भुगतना पड़े। उस भयानक हादसे के बाद किसी संस्था ने पहली बार इस तरह के काम की सामूहिक पहल की है।
Submitted by admin on Sun, 12/01/2013 - 14:05
Source:
1 परिचय
अच्छे स्वास्थ्य हेतु शुद्ध जल एक मूलभूत आवश्यकता है तथा बिहार राज्य के लिए इसके 8.3 करोड़ लोगों को स्वच्छ पानी उपलब्ध कराना आज भी एक समस्या है। पिछले कई सालों से PHED ईमानदारी के साथ लोगों को शुद्ध जल उपलब्ध कराने में लगी है परंतु समस्याएँ लगातार बढ़ ही रहे हैं। भूजल का संक्रमित होना लगातार बढ़ ही रहा है तथा राज्य के विभिन्न जिलों में भूजल में फ्लोराइड की समस्या देखने को मिल रही है। अधिक मात्रा में फ्लोराइड के सेवन से समान्यतः पीने वाले पानी के द्वारा फ्लोरोसिस नाम की बीमारी होती है जो दाँतों तथा हड्डियों को प्रभावित करती है। निर्धारित सीमा से कुछ अधिक फ्लोराइड के सेवन द्वारा दंतीय फ्लोरोसिस तथा अधिक समय तक अत्यधिक मात्रा में फ्लोराइड का सेवन करने पर खतरनाक कंकालीय समस्याएँ उत्पन्न होती है। इसलिए फ्लोरोसिस की रोकथाम के लिए पीने वाले पानी की गुणवत्ता सही होनी चाहिए फ्लोरोसिस के तरीके एवं प्रकार लोगों के द्वारा सेवन की गई फ्लोराइड की मात्रा पर निर्भर करता है, दंतीय फ्लोरोसिस अधिक मात्रा में फ्लोराइड के सेवन के द्वारा कम समय में ही दिखने लगती है, जबकि कंकालीय प्रभाव अत्यधिक फ्लोराइड के सेवन से होता है। चिकित्सा विज्ञान में दंतीय फ्लोरोसिस के लक्षण दाँतों में लाल, पीले, भूरे तथा काले रंग के धब्बे एवं अधिक खतरनाक अवस्था में दाँतों के एनामेल तक नष्ट हो जाते है।

प्रयास

Submitted by Editorial Team on Thu, 12/08/2022 - 13:06
सीतापुर का नैमिषारण्य तीर्थ क्षेत्र, फोटो साभार - उप्र सरकार
श्री नैभिषारण्य धाम तीर्थ परिषद के गठन को प्रदेश मंत्रिमएडल ने स्वीकृति प्रदान की, जिसके अध्यक्ष स्वयं मुख्यमंत्री होंगे। इसके अंतर्गत नैमिषारण्य की होली के अवसर पर चौरासी कोसी 5 दिवसीय परिक्रमा पथ और उस पर स्थापित सम्पूर्ण देश की संह्कृति एवं एकात्मता के वह सभी तीर्थ एवं उनके स्थल केंद्रित हैं। इस सम्पूर्ण नैमिशारण्य क्षेत्र में लोक भारती पिछले 10 वर्ष से कार्य कर रही है। नैमिषाराण्य क्षेत्र के भूगर्भ जल स्रोतो का अध्ययन एवं उनके पुनर्नीवन पर लगातार कार्य चल रहा है। वर्षा नल सरक्षण एवं संम्भरण हेतु तालाबें के पुनर्नीवन अनियान के जवर्गत 119 तालाबों का पृनरुद्धार लोक भारती के प्रयासों से सम्पन्न हुआ है।

नोटिस बोर्ड

Submitted by Shivendra on Tue, 09/06/2022 - 14:16
Source:
चरखा फीचर
'संजॉय घोष मीडिया अवार्ड्स – 2022
कार्य अनुभव के विवरण के साथ संक्षिप्त पाठ्यक्रम जीवन लगभग 800-1000 शब्दों का एक प्रस्ताव, जिसमें उस विशेष विषयगत क्षेत्र को रेखांकित किया गया हो, जिसमें आवेदक काम करना चाहता है. प्रस्ताव में अध्ययन की विशिष्ट भौगोलिक स्थिति, कार्यप्रणाली, चयनित विषय की प्रासंगिकता के साथ-साथ इन लेखों से अपेक्षित प्रभाव के बारे में विवरण शामिल होनी चाहिए. साथ ही, इस बात का उल्लेख होनी चाहिए कि देश के विकास से जुड़ी बहस में इसके योगदान किस प्रकार हो सकता है? कृपया आलेख प्रस्तुत करने वाली भाषा भी निर्दिष्ट करें। लेख अंग्रेजी, हिंदी या उर्दू में ही स्वीकार किए जाएंगे
Submitted by Shivendra on Tue, 08/23/2022 - 17:19
Source:
यूसर्क
जल विज्ञान प्रशिक्षण कार्यशाला
उत्तराखंड विज्ञान शिक्षा एवं अनुसंधान केंद्र द्वारा आज दिनांक 23.08.22 को तीन दिवसीय जल विज्ञान प्रशिक्षण प्रारंभ किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए यूसर्क की निदेशक प्रो.(डॉ.) अनीता रावत ने अपने संबोधन में कहा कि यूसर्क द्वारा जल के महत्व को देखते हुए विगत वर्ष 2021 को संयुक्त राष्ट्र की विश्व पर्यावरण दिवस की थीम "ईको सिस्टम रेस्टोरेशन" के अंर्तगत आयोजित कार्यक्रम के निष्कर्षों के क्रम में जल विज्ञान विषयक लेक्चर सीरीज एवं जल विज्ञान प्रशिक्षण कार्यक्रमों को प्रारंभ किया गया
Submitted by Shivendra on Mon, 07/25/2022 - 15:34
Source:
यूसर्क
जल शिक्षा व्याख्यान श्रृंखला
इस दौरान राष्ट्रीय पर्यावरण  इंजीनियरिंग अनुसंधान संस्था के वरिष्ठ वैज्ञानिक और अपशिष्ट जल विभाग विभाग के प्रमुख डॉक्टर रितेश विजय  सस्टेनेबल  वेस्ट वाटर ट्रीटमेंट फॉर लिक्विड वेस्ट मैनेजमेंट (Sustainable Wastewater Treatment for Liquid Waste Management) विषय  पर विशेषज्ञ तौर पर अपनी राय रखेंगे।

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खासम-खास

तालाब ज्ञान-संस्कृति : नींव से शिखर तक

Submitted by Editorial Team on Tue, 10/04/2022 - 16:13
Author
कृष्ण गोपाल 'व्यास’
talab-gyan-sanskriti-:-ninv-se-shikhar-tak
कूरम में पुनर्निर्मित समथमन मंदिर तालाब। फोटो - indiawaterportal
परम्परागत तालाबों पर अनुपम मिश्र की किताब ‘आज भी खरे हैं तालाब’, पहली बार, वर्ष 1993 में प्रकाशित हुई थी। इस किताब में अनुपम ने समाज से प्राप्त जानकारी के आधार पर भारत के विभिन्न भागों में बने तालाबों के बारे में व्यापक विवरण प्रस्तुत किया है। अर्थात आज भी खरे हैं तालाब में दर्ज विवरण परम्परागत तालाबों पर समाज की राय है। उनका दृष्टिबोध है। उन विवरणों में समाज की भावनायें, आस्था, मान्यतायें, रीति-रिवाज तथा परम्परागत तालाबों के निर्माण से जुड़े कर्मकाण्ड दर्ज हैं। प्रस्तुति और शैली अनुपम की है।

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सीरिया का सबक

Submitted by admin on Tue, 12/03/2013 - 15:08
Author
नयन चन्दा
Source
गांधी मार्ग, नवंबर-दिसंबर 2013
सचमुच घर की लड़ाई। गृह युद्ध। भाई ने भाई को मारा। दूर बैठे देशों ने दोनों को अपने-अपने हथियार बेचे, एक दूसरे को मारने के लिए। नतीजा है कोई एक लाख लोग मारे जा चुके हैं और करीब 20 लाख लोग अपने घरों से उजड़ कर पड़ोसी देशों में शरणार्थी बन कर भटक रहे हैं। सीरिया की इस भारी विपत्ति के पीछे सिर्फ संप्रदायों के सद्भाव की कमी नहीं है। वहां तो पर्यावरण, प्रकृति के प्रति भी सद्भाव की कमी आई और सबका नतीजा निकला यह रक्तपात। हम कुछ सबक सीखेंगे?

वैज्ञानिक हमें बराबर चेतावनी दे रहे हैं कि आने वाले बीस-तीस बरस में हमारे देश के भूजल भंडार का कोई 60 प्रतिशत भाग इस बुरी हालत में नीचे चला जाएगा कि फिर हमारे पास ऊपर से आने वाली बरसात, मानसून की वर्षा के अलावा कुछ बचेगा नहीं। हमारा समाज ऐसी किसी प्राकृतिक विपदा को सहने के लिए और भी ज्यादा मजबूत हो चला है। लेकिन इससे बेफ्रिक तो नहीं ही हुआ जा सकता। धरती गरम हो रही है। मौसम, बरसात का स्वभाव बदल रहा है। इसलिए बिना सोचे समझे भूजल भंडारों के साथ ऐसा जुआ खेलना हमें भारी पड़ सकता है। अपने ही लोगों पर जहरीले रासायनिक हथियारों से हमला करने वाले सीरिया को सबक सिखाना चाहता है अमेरिका। उस पर हमला कर। पर अमेरिका के ही संगी साथी देश उसे इस हमले से रोकने में लगे हैं। लेकिन बाकी दुनिया अभी भी ठीक से समझ नहीं पा रही कि सीरिया के शासक बशर अल-असद ने आखिर अपने लोगों पर यह क्रूर अत्याचार भला क्यों किया है। तुर्की के पुराने उसमानी साम्राज्य के खंडहरों में से कांट-छांट कर बनाया गया था यह सीरिया देश। इसमें रहने वाले अलाविया और सुन्नियों, दुरूजी और ईसाइयों के बीच पिछले कुछ समय से चला आ रहा वैमनस्य निश्चित ही इस युद्ध का एक कारण गिनाया जा सकता है। यह भी कहा जा सकता है कि अभी कुछ ही समय पहले अरब में बदलाव की जो हवा बही थी और जो छूत के रोग की तरह आसपास के कई देशों में फैल चली थी, उसी हवा ने अब सीरिया को भी अपनी चपेट में ले लिया है।

तीस साल बाद

Submitted by admin on Mon, 12/02/2013 - 15:11
Author
नीति दीवान
Source
गांधी मार्ग, नवंबर-दिसंबर 2013
भूजल प्रभावित इलाकों में जिंक, मैगनीज, कॉपर, पारा, क्रोमियम, सीसा, निकिल जैसी हानिकारक धातुओं की मात्रा मानक से अधिक मिली है। अभी केवल 350 टन कचरे के निपटान को लेकर प्रक्रिया चल रही है, किंतु उससे कहीं अधिक न दिखने वाला कचरा कारखाने के आसपास पानी और मिट्टी में पाया गया है। उसका निपटान करना भी उतना ही जरूरी है। तीन किलोमीटर के क्षेत्र में किए गए अध्ययन से साफ हो गया है कि यहां घातक और जहरीले रसायन भीतर मिट्टी और पानी में मौजूद हैं। भोपाल गैस त्रासदी को इस दिसंबर में 30 साल हो जाएंगे। इस बड़ी अवधि में मध्य प्रदेश और केन्द्र सरकार मिलकर भी यहां पड़े जहरीले कचरे का निपटान नहीं कर पाई हैं। हर साल बारिश के साथ इसका रिसाव भूमि में होता है और अब आशंका की जा रही है कि यह रिसाव लगभग तीन किलोमीटर के दायरे में फैल गया है। तीन दिसंबर सन् 1984 को भोपाल के यूनियन कार्बाइड कारखाने में हुई गैस त्रासदी के बाद के तीस वर्षों के दौरान यहां कई तरह के अध्ययन हुए हैं। अभी हाल ही में दिल्ली की संस्था सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट द्वारा एक अध्ययन किया गया है। अध्ययन के बाद इस संस्था ने देश भर के विशेषज्ञों के साथ बैठकर इस घातक प्रदूषण से मुक्ति पाने की एक योजना बनाई ताकिवर्तमान और आने वाली पीढ़ियों को इसका ख़ामियाज़ा न भुगतना पड़े। उस भयानक हादसे के बाद किसी संस्था ने पहली बार इस तरह के काम की सामूहिक पहल की है।

मुंगेर जिले के खैरा गाँव में फ्लोराइड का प्रबंधन (एकीकृत-समेकित तरीका)

Submitted by admin on Sun, 12/01/2013 - 14:05
Author
पवित्र सिंह

1 परिचय


अच्छे स्वास्थ्य हेतु शुद्ध जल एक मूलभूत आवश्यकता है तथा बिहार राज्य के लिए इसके 8.3 करोड़ लोगों को स्वच्छ पानी उपलब्ध कराना आज भी एक समस्या है। पिछले कई सालों से PHED ईमानदारी के साथ लोगों को शुद्ध जल उपलब्ध कराने में लगी है परंतु समस्याएँ लगातार बढ़ ही रहे हैं। भूजल का संक्रमित होना लगातार बढ़ ही रहा है तथा राज्य के विभिन्न जिलों में भूजल में फ्लोराइड की समस्या देखने को मिल रही है। अधिक मात्रा में फ्लोराइड के सेवन से समान्यतः पीने वाले पानी के द्वारा फ्लोरोसिस नाम की बीमारी होती है जो दाँतों तथा हड्डियों को प्रभावित करती है। निर्धारित सीमा से कुछ अधिक फ्लोराइड के सेवन द्वारा दंतीय फ्लोरोसिस तथा अधिक समय तक अत्यधिक मात्रा में फ्लोराइड का सेवन करने पर खतरनाक कंकालीय समस्याएँ उत्पन्न होती है। इसलिए फ्लोरोसिस की रोकथाम के लिए पीने वाले पानी की गुणवत्ता सही होनी चाहिए फ्लोरोसिस के तरीके एवं प्रकार लोगों के द्वारा सेवन की गई फ्लोराइड की मात्रा पर निर्भर करता है, दंतीय फ्लोरोसिस अधिक मात्रा में फ्लोराइड के सेवन के द्वारा कम समय में ही दिखने लगती है, जबकि कंकालीय प्रभाव अत्यधिक फ्लोराइड के सेवन से होता है। चिकित्सा विज्ञान में दंतीय फ्लोरोसिस के लक्षण दाँतों में लाल, पीले, भूरे तथा काले रंग के धब्बे एवं अधिक खतरनाक अवस्था में दाँतों के एनामेल तक नष्ट हो जाते है।

प्रयास

सीतापुर और हरदोई के 36 गांव मिलाकर हो रहा है ‘नैमिषारण्य तीर्थ विकास परिषद’ गठन  

Submitted by Editorial Team on Thu, 12/08/2022 - 13:06
sitapur-aur-hardoi-ke-36-gaon-milaakar-ho-raha-hai-'naimisharany-tirth-vikas-parishad'-gathan
Source
लोकसम्मान पत्रिका, दिसम्बर-2022
सीतापुर का नैमिषारण्य तीर्थ क्षेत्र, फोटो साभार - उप्र सरकार
श्री नैभिषारण्य धाम तीर्थ परिषद के गठन को प्रदेश मंत्रिमएडल ने स्वीकृति प्रदान की, जिसके अध्यक्ष स्वयं मुख्यमंत्री होंगे। इसके अंतर्गत नैमिषारण्य की होली के अवसर पर चौरासी कोसी 5 दिवसीय परिक्रमा पथ और उस पर स्थापित सम्पूर्ण देश की संह्कृति एवं एकात्मता के वह सभी तीर्थ एवं उनके स्थल केंद्रित हैं। इस सम्पूर्ण नैमिशारण्य क्षेत्र में लोक भारती पिछले 10 वर्ष से कार्य कर रही है। नैमिषाराण्य क्षेत्र के भूगर्भ जल स्रोतो का अध्ययन एवं उनके पुनर्नीवन पर लगातार कार्य चल रहा है। वर्षा नल सरक्षण एवं संम्भरण हेतु तालाबें के पुनर्नीवन अनियान के जवर्गत 119 तालाबों का पृनरुद्धार लोक भारती के प्रयासों से सम्पन्न हुआ है।

नोटिस बोर्ड

'संजॉय घोष मीडिया अवार्ड्स – 2022

Submitted by Shivendra on Tue, 09/06/2022 - 14:16
sanjoy-ghosh-media-awards-–-2022
Source
चरखा फीचर
'संजॉय घोष मीडिया अवार्ड्स – 2022
कार्य अनुभव के विवरण के साथ संक्षिप्त पाठ्यक्रम जीवन लगभग 800-1000 शब्दों का एक प्रस्ताव, जिसमें उस विशेष विषयगत क्षेत्र को रेखांकित किया गया हो, जिसमें आवेदक काम करना चाहता है. प्रस्ताव में अध्ययन की विशिष्ट भौगोलिक स्थिति, कार्यप्रणाली, चयनित विषय की प्रासंगिकता के साथ-साथ इन लेखों से अपेक्षित प्रभाव के बारे में विवरण शामिल होनी चाहिए. साथ ही, इस बात का उल्लेख होनी चाहिए कि देश के विकास से जुड़ी बहस में इसके योगदान किस प्रकार हो सकता है? कृपया आलेख प्रस्तुत करने वाली भाषा भी निर्दिष्ट करें। लेख अंग्रेजी, हिंदी या उर्दू में ही स्वीकार किए जाएंगे

​यूसर्क द्वारा तीन दिवसीय जल विज्ञान प्रशिक्षण प्रारंभ

Submitted by Shivendra on Tue, 08/23/2022 - 17:19
USERC-dvara-tin-divasiy-jal-vigyan-prashikshan-prarambh
Source
यूसर्क
जल विज्ञान प्रशिक्षण कार्यशाला
उत्तराखंड विज्ञान शिक्षा एवं अनुसंधान केंद्र द्वारा आज दिनांक 23.08.22 को तीन दिवसीय जल विज्ञान प्रशिक्षण प्रारंभ किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए यूसर्क की निदेशक प्रो.(डॉ.) अनीता रावत ने अपने संबोधन में कहा कि यूसर्क द्वारा जल के महत्व को देखते हुए विगत वर्ष 2021 को संयुक्त राष्ट्र की विश्व पर्यावरण दिवस की थीम "ईको सिस्टम रेस्टोरेशन" के अंर्तगत आयोजित कार्यक्रम के निष्कर्षों के क्रम में जल विज्ञान विषयक लेक्चर सीरीज एवं जल विज्ञान प्रशिक्षण कार्यक्रमों को प्रारंभ किया गया

28 जुलाई को यूसर्क द्वारा आयोजित जल शिक्षा व्याख्यान श्रृंखला पर भाग लेने के लिए पंजीकरण करायें

Submitted by Shivendra on Mon, 07/25/2022 - 15:34
28-july-ko-ayojit-hone-vale-jal-shiksha-vyakhyan-shrinkhala-par-bhag-lene-ke-liye-panjikaran-karayen
Source
यूसर्क
जल शिक्षा व्याख्यान श्रृंखला
इस दौरान राष्ट्रीय पर्यावरण  इंजीनियरिंग अनुसंधान संस्था के वरिष्ठ वैज्ञानिक और अपशिष्ट जल विभाग विभाग के प्रमुख डॉक्टर रितेश विजय  सस्टेनेबल  वेस्ट वाटर ट्रीटमेंट फॉर लिक्विड वेस्ट मैनेजमेंट (Sustainable Wastewater Treatment for Liquid Waste Management) विषय  पर विशेषज्ञ तौर पर अपनी राय रखेंगे।

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