मौजूदा स्थिति में विकास के नाम पर 558 परियोजनाओं से 40,000 मेगावाट बिजली उत्पादन का लक्ष्य रखा गया है। इन बिजली परियोजनाओं के निर्माण के लिए नदियों के किनारों से होकर गुजरने वाले राष्ट्रीय राजमार्गों को चौड़ा ही इसलिए किया जा रहा है ताकि बड़ी-बड़ी भीमकाय मशीनें सुरंग बांधों के निर्माण के लिए पहाड़ों की गोद में पहुंचाई जा सकें। यहाँ तो हर रोज सड़कों का चौड़ीकरण विस्फोटों और जेसीबी मशीनों द्वारा हो रहा है। जिसके कारण नदियों के आर-पार बसे अधिकांश गांव राजमार्गों की ओर धंसते नजर आ रहे हैं। हिमालयी क्षेत्र में बाढ़, भूस्खलन, भूकंप की घटनाएं लगातार बढ़ रही हैं। उत्तराखंड हिमालय से निकलने वाली पवित्र नदियां, भागीरथी, मंदाकिनी, अलकनंदा, भिलंगना, सरयू, पिंडर, रामगंगा आदि के उद्गम से आगे लगभग 150 किमी तक सन् 1978 से लगातार जलप्रलय की घटनाओं की अनदेखी होती रही है। 16-17 जून 2013 को केदारनाथ में हजारों तीर्थ यात्रियों के मरने से पूरा देश उत्तराखंड की ओर नजर रखे हुए है। इस बीच ऐसा लगा कि मानो इससे पहले यहाँ कोई त्रासदी नहीं हुई होगी, जबकि गंगोत्री से उत्तरकाशी तक पिछले 35 वर्षों में बाढ़, भूकंप से लगभग एक हजार से अधिक लोग मारे गए। 1998 में ऊखीमठ और मालपा, 1999 में चमोली आदि कई स्थानों पर नजर डालें तो 600 लोग भूस्खलन की चपेट में आकर मरे हैं। 2010-12 से तो आपदाओं ने उत्तराखंड को अपना घर जैसा बना दिया है। इन सब घटनाओं को यों ही नजरअंदाज करके आपदा के नाम पर प्रभावित समाज की अनदेखी की जा रही है।
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