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अधिसूचना में जहां बड़े बांधों पर पूरी तरह से रोक की बात है वहीं 25 मेगावाट से छोटे बांधों को पूरी तरह से हरी झंडी देने का प्रयास है। अस्सीगंगा में 4 जविप निर्माणाधीन हैं जो 10 मेगावाट से छोटी हैं। जिनमें एशियाई विकास बैंक द्वारा पोषित निमार्णाधीन कल्दीगाड व नाबार्ड द्वारा पोषित अस्सी गंगा चरण एक व दो जविप भी है। उत्तरकाशी में भागीरथीगंगा को मिलने वाली अस्सीगंगा की घाटी पर्यटन की दृष्टि से ना केवल सुंदर है वरन् घाटी के लोगो को स्थायी रोज़गार दिलाने में भी सक्षम है।
पर्यावरण एवं वन मंत्रालय की ताजी अधिसूचना के अनुसार गौमुख से उत्तरकाशी तक भागीरथीगंगा के लगभग 100 किलोमीटर लम्बे 4179.59 वर्ग किलोमीटर के संपूर्ण जल संरक्षण क्षेत्र को भागीरथीगंगा के पर्यावरणीय प्रवाह और परिस्थितिकी को बनाए रखने के लिए पारिस्थितिकीय और पर्यावरणीय दृष्टि से पारिस्थितिकी संवेदनशील क्षेत्र घोषित किया गया है। इसके साथ ही उत्तराखंड में खासकर उत्तरकाशी के इस क्षेत्र में फिर से धरने प्रर्दशन चालू हो गए।पूर्व के जी.डी. अग्रवाल और वर्तमान में स्वामी सानंद के उपवास से आस्था के नाम पर बांध रोकने के प्रयासों पर यह पक्की मोहर है। उत्तराखंड सरकार ने नवंबर 2008 पाला-मनेरी व केन्द्र सरकार ने 2010 में लोहारीनाग-पाला बांध रोका था। यह जानते हुए भी कि केन्द्र की कांग्रेस सरकार और राज्य की बीजेपी सरकार के ही द्वारा यह बांध रुके हैं। स्थानीय स्तर पर बांध समर्थन में आंदोलन करके वोट बटोरने की खूब कोशिशें चली हैं। राजनीतिक दलों ने चाहे वह कांग्रेस हो या बीजेपी पिछले लोकसभा, विधानसभा और नगर निगम चुनावों में इसका भरपूर राजनीतिक फायदा उठाया।
पानी के लिए सामने खड़ी समस्याओं के लिए हम और हमारी सरकारें भी पूरी तरह जिम्मेवार हैं। हमने अपने पूर्वजों के अनुभव और उनके तौर-तरीकों को पिछड़ा बता कर बड़े-छोटे बांध और तटबंध बनाने के नाम पर नदियों के प्रवाह से खिलवाड़ किया और उसमें कारखाने का रासायनिक डाल कर उसे प्रदूषित किया। बाकि बचे झील-तालाबों और कुओं में मिट्टी डाल उस पर दुकानें बना लीं। इन सब कारणों से अब धरती के ऊपरी सतह पर उपलब्ध पानी के ज्यादातर स्रोत सूख रहे हैं। देश की ज्यादातर नदियां सूख रही हैं। इसके कारण खेतों की सिंचाई नहीं हो पा रही है। पीने के पानी की किल्लत देश के शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में लगातार बढ़ रही है। पानी के बढ़ते संकट के कारण सभी के आंखों में पानी उतरने लगा है। पानी का सवाल अकेली दिल्ली या देश के किसी एक राज्य और उसकी राजधानी और उनके जिलों भर का मामला नहीं है, यह देश दुनिया में व्याप गया है। नमक से कहीं ज्यादा जरूरी इस प्राकृतिक साधन पर खतरे मंडरा रहे हैं। इस साधन को सहेजने, संवारने और बरतने वाले आम आदमी का हक इस पर से टूटता जा रहा है और इसे हड़पने वाली कंपनियां दिनोंदिन मालामाल होती जा रही हैं और ऐसे में केवल सरकार है, जिससे उम्मीद की जाती है तो वह भी इसका कारगर हल खोजने के बदले कहीं तमाशबीन तो कहीं शोषकों के खेल में भागीदार बन कर लोगों के संकट को बढ़ा रही है। इन सभी कारणों से आम आदमी का भरोसा टूटा है और उनके आंदोलन शुरू हो गए हैं। इसी के साथ पानी से जुड़े सभी पुराने सरोकार और इस पर आधारित संस्कृति का ताना-बाना भी छिन्न-भिन्न हो गया है, जिसकी भरपाई कभी नहीं हो सकेगी और कभी होगी तो उसमें काफी समय लग जाएगा।
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उद्गम शेष
अधिसूचना में जहां बड़े बांधों पर पूरी तरह से रोक की बात है वहीं 25 मेगावाट से छोटे बांधों को पूरी तरह से हरी झंडी देने का प्रयास है। अस्सीगंगा में 4 जविप निर्माणाधीन हैं जो 10 मेगावाट से छोटी हैं। जिनमें एशियाई विकास बैंक द्वारा पोषित निमार्णाधीन कल्दीगाड व नाबार्ड द्वारा पोषित अस्सी गंगा चरण एक व दो जविप भी है। उत्तरकाशी में भागीरथीगंगा को मिलने वाली अस्सीगंगा की घाटी पर्यटन की दृष्टि से ना केवल सुंदर है वरन् घाटी के लोगो को स्थायी रोज़गार दिलाने में भी सक्षम है।
पर्यावरण एवं वन मंत्रालय की ताजी अधिसूचना के अनुसार गौमुख से उत्तरकाशी तक भागीरथीगंगा के लगभग 100 किलोमीटर लम्बे 4179.59 वर्ग किलोमीटर के संपूर्ण जल संरक्षण क्षेत्र को भागीरथीगंगा के पर्यावरणीय प्रवाह और परिस्थितिकी को बनाए रखने के लिए पारिस्थितिकीय और पर्यावरणीय दृष्टि से पारिस्थितिकी संवेदनशील क्षेत्र घोषित किया गया है। इसके साथ ही उत्तराखंड में खासकर उत्तरकाशी के इस क्षेत्र में फिर से धरने प्रर्दशन चालू हो गए।पूर्व के जी.डी. अग्रवाल और वर्तमान में स्वामी सानंद के उपवास से आस्था के नाम पर बांध रोकने के प्रयासों पर यह पक्की मोहर है। उत्तराखंड सरकार ने नवंबर 2008 पाला-मनेरी व केन्द्र सरकार ने 2010 में लोहारीनाग-पाला बांध रोका था। यह जानते हुए भी कि केन्द्र की कांग्रेस सरकार और राज्य की बीजेपी सरकार के ही द्वारा यह बांध रुके हैं। स्थानीय स्तर पर बांध समर्थन में आंदोलन करके वोट बटोरने की खूब कोशिशें चली हैं। राजनीतिक दलों ने चाहे वह कांग्रेस हो या बीजेपी पिछले लोकसभा, विधानसभा और नगर निगम चुनावों में इसका भरपूर राजनीतिक फायदा उठाया।
जैव विविधता संरक्षण मंत्र : जीओ और जीने दो
जल संकट ने आंखों में उतारा पानी
पानी के लिए सामने खड़ी समस्याओं के लिए हम और हमारी सरकारें भी पूरी तरह जिम्मेवार हैं। हमने अपने पूर्वजों के अनुभव और उनके तौर-तरीकों को पिछड़ा बता कर बड़े-छोटे बांध और तटबंध बनाने के नाम पर नदियों के प्रवाह से खिलवाड़ किया और उसमें कारखाने का रासायनिक डाल कर उसे प्रदूषित किया। बाकि बचे झील-तालाबों और कुओं में मिट्टी डाल उस पर दुकानें बना लीं। इन सब कारणों से अब धरती के ऊपरी सतह पर उपलब्ध पानी के ज्यादातर स्रोत सूख रहे हैं। देश की ज्यादातर नदियां सूख रही हैं। इसके कारण खेतों की सिंचाई नहीं हो पा रही है। पीने के पानी की किल्लत देश के शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में लगातार बढ़ रही है। पानी के बढ़ते संकट के कारण सभी के आंखों में पानी उतरने लगा है। पानी का सवाल अकेली दिल्ली या देश के किसी एक राज्य और उसकी राजधानी और उनके जिलों भर का मामला नहीं है, यह देश दुनिया में व्याप गया है। नमक से कहीं ज्यादा जरूरी इस प्राकृतिक साधन पर खतरे मंडरा रहे हैं। इस साधन को सहेजने, संवारने और बरतने वाले आम आदमी का हक इस पर से टूटता जा रहा है और इसे हड़पने वाली कंपनियां दिनोंदिन मालामाल होती जा रही हैं और ऐसे में केवल सरकार है, जिससे उम्मीद की जाती है तो वह भी इसका कारगर हल खोजने के बदले कहीं तमाशबीन तो कहीं शोषकों के खेल में भागीदार बन कर लोगों के संकट को बढ़ा रही है। इन सभी कारणों से आम आदमी का भरोसा टूटा है और उनके आंदोलन शुरू हो गए हैं। इसी के साथ पानी से जुड़े सभी पुराने सरोकार और इस पर आधारित संस्कृति का ताना-बाना भी छिन्न-भिन्न हो गया है, जिसकी भरपाई कभी नहीं हो सकेगी और कभी होगी तो उसमें काफी समय लग जाएगा।
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सीतापुर और हरदोई के 36 गांव मिलाकर हो रहा है ‘नैमिषारण्य तीर्थ विकास परिषद’ गठन
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'संजॉय घोष मीडिया अवार्ड्स – 2022
यूसर्क द्वारा तीन दिवसीय जल विज्ञान प्रशिक्षण प्रारंभ
28 जुलाई को यूसर्क द्वारा आयोजित जल शिक्षा व्याख्यान श्रृंखला पर भाग लेने के लिए पंजीकरण करायें
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