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खासम-खास

Submitted by Editorial Team on Tue, 10/04/2022 - 16:13
कूरम में पुनर्निर्मित समथमन मंदिर तालाब। फोटो - indiawaterportal
परम्परागत तालाबों पर अनुपम मिश्र की किताब ‘आज भी खरे हैं तालाब’, पहली बार, वर्ष 1993 में प्रकाशित हुई थी। इस किताब में अनुपम ने समाज से प्राप्त जानकारी के आधार पर भारत के विभिन्न भागों में बने तालाबों के बारे में व्यापक विवरण प्रस्तुत किया है। अर्थात आज भी खरे हैं तालाब में दर्ज विवरण परम्परागत तालाबों पर समाज की राय है। उनका दृष्टिबोध है। उन विवरणों में समाज की भावनायें, आस्था, मान्यतायें, रीति-रिवाज तथा परम्परागत तालाबों के निर्माण से जुड़े कर्मकाण्ड दर्ज हैं। प्रस्तुति और शैली अनुपम की है।

Content

Submitted by Hindi on Fri, 12/14/2012 - 10:55
Source:
ग्रीनपीस, 03 दिसम्बर 2012
ग्रीनपीस ने जारी की वैज्ञानिक रिपोर्ट, कहा सिंचाई क्षमता पर पड़ेगा बुरा असर, ऐसी योजनाओं पर तत्काल रोक

विदर्भ देश के सबसे पिछड़े इलाकों में माना जाता है। वहां पर देश के सबसे ज्यादा किसानों ने अत्महत्या की है। सिंचाई के समुचित प्रबंध न होना और मौसम का अनियमित होना विदर्भ के किसानों के दुख का सबसे बड़ा कारण है। पर सरकारों की कंपनी पक्षधर नीतियों ने किसानों के उपलब्ध जल में से ही कंपनियों को देना शुरू कर दिया है। सिंचाई को उपलब्ध होने वाला पानी कंपनियों को देने से किसानों का कृषि संकट बढ़ेगा ही। महाराष्ट्र सरकार के सिंचाई से हटाकर शहरी और औद्योगिक इस्तेमाल के लिए जल आवंटन का रास्ता विदर्भ के लिए खतरनाक साबित होगा। उस पर तुर्रा यह कि 123 थर्मल पॉवर प्लांट लगने हैं और सभी को बेशुमार पानी चाहिए। इस पूरी प्रक्रिया का सिंचाई परियोजनाओं पर बूरा असर पड़ेगा, बता रही है ग्रीनपीस की रिपोर्ट।

मुंबई, 3 दिसम्बर, 2012: ग्रीनपीस ने आज वर्धा व वैनगंगा नदी में जल उपलब्धता व थर्मल पावर प्लांट्स से इन नदियों पर होने वाले प्रभाव पर एक वैज्ञानिक रिपोर्ट (1) जारी करते हुए कहा कि विदर्भ क्षेत्र में चल रहे तापीय बिजली घरों द्वारा पानी की अतिरिक्त मांग करने से आने वाले दिनों में पूरे इलाके में जल संकट बढ़ जायेगा और सिंचाई व अन्य जरूरतों को पूरा करने के लिए पानी मिलना मुश्किल होगा।
Submitted by Hindi on Wed, 12/12/2012 - 14:32
Source:
पानी जीवन, जीविका और प्रकृति चक्र का प्रमुख आधार है जो प्राकृतिक रूप से सर्वत्र उपलब्ध है और सजीव सृष्टि के लिए हवा और धूप की तरह ही प्रकृति ने उसे सबके लिए उपलब्ध कराया है, वह पानी, भारत में बाजार की वस्तु बन चुका है। अब यहां सतही जल और भूमि जल पर मालिकाना हक प्राप्त किया सकता है और उस हक को खरीदा-बेचा जा सकता है। अब की व्यापारी/कंपनी किसी नदी, जलाशय या भूमिजल का हक खरीद सकता है, उसका मालिक बन सकता है और उस हक को बेच सकता है। ग़ुलाम भारत की लूट की कहानी हम जानते ही हैं। अँग्रेज़ व्यापार करने के नाम से आये और भारत को ग़ुलाम बनाकर लूट करते रहे। आज़ादी की लड़ाई ने लोगों के मन में यह उम्मीद जगाई थी कि अंग्रेजों की गुलामी से मुक्ति के बाद यह लूट समाप्त होगी। लेकिन ऐसा हुआ नहीं। भारत आज़ाद हुआ, लेकिन लूट जारी है, उसमें दिन-प्रतिदिन बढ़ोत्तरी ही हो रही है। इस लूट के स्वरूप में कुछ बदलाव हुआ है। लूट के लिए नए-नए रास्ते खोजे जा रहे हैं। श्रम के शोषण, औद्योगिक उत्पादन और सेवा उद्योग के माध्यम से की जानी वाली लूट के साथ-साथ अब देश के नैसर्गिक संसाधनों की खुली लूट भी की जा रही है। कोयला, खनिज, पेट्रोलियम, गैस, पानी, ज़मीन, जैव विविधता, जंगल आदि जैसी प्रकृति की देने को ही अब लूटा जा रहा है। इनमें से कई ऐसे स्रोत हैं, जिसके दोहन से वह हमेशा के लिए समाप्त होंगे।
Submitted by Hindi on Fri, 12/07/2012 - 14:21
Source:
कादम्बिनी, जून 2012
हमारे पूर्वज जानते थे कि तालाबों से जंगल और जमीन का पोषण होता है। भूमि के कटाव एवं नदियों के तल में मिट्टी के जमाव को रोकने में भी तालाब मददगार हैं, लेकिन बड़े बांधों के निर्माण की होड़ ने हमारी उस महान परंपरा को नष्ट कर दिया।
1950 में भारत के कुल सिंचित क्षेत्र की 17 प्रतिशत सिंचाई तालाबों से की जाती थी। ये तालाब सिंचाई के साथ-साथ भू-गर्भ के जलस्तर को भी बनाए रखते थे, इस बात के ठोस प्रमाण उपलब्ध हैं। सूदूर भूतकाल में तो 8 प्रतिशत से अधिक सिंचाई तालाबों से ही होती थी। तालाबों में पाए गए शिलालेख इसके जीते-जागते प्रमाण हैं। इस स्वावलम्बी सिंचाई योजना का अंग्रेजों ने जानबूझकर खत्म करने का जो षड़यंत्र रचा था, उसे स्वतंत्र भारत के योजनाकारों ने बरकरार रखा है और वर्तमान, जनविरोधी,ग्राम-गुलामी की सिंचाई योजना को तेजी से लागू किया है। किसी भी देश की प्रगति या अवनति में वहां की जल संपदा का काफी महत्व होता है। जल की उपलब्धि या प्रभाव के कारण ही बहुत सी सभ्यताएं एवं संस्कृतियां बनती और बिगड़ी हैं। इसलिए हमारे देश की सांस्कृतिक चेतना में जल का काफी ऊंचा स्थान रहा है। हमारे पूर्वज जानते थे कि तालाबों से जंगल व जमीन का पोषण होता है। भूमि के कटाव एवं नदियों के तल में मिट्टी के जमाव को रोकने में भी तालाब मददगार होते हैं। जल के प्रति एक विशेष प्रकार की चेतना और उपयोग करने की समझ उनकी थी। इस चेतना के कारण ही गांव के संगठन की सूझ-बूझ से गांव के सारे पानी को विधिवत उपयोग में लेने के लिए तालाब बनाए जाते थे। इन तालाबों से अकाल के समय भी पानी मिल जाता था। जैसा कि गांवों की व्यवस्था से संबंधित अन्य बातों में होता था, उसी तरह तालाब के निर्माण व रख-रखाव के लिए भी गाँववासी अपनी ग्राम सभा में सर्वसम्मति से कुछ कानून बनाते थे।

प्रयास

Submitted by Editorial Team on Thu, 12/08/2022 - 13:06
सीतापुर का नैमिषारण्य तीर्थ क्षेत्र, फोटो साभार - उप्र सरकार
श्री नैभिषारण्य धाम तीर्थ परिषद के गठन को प्रदेश मंत्रिमएडल ने स्वीकृति प्रदान की, जिसके अध्यक्ष स्वयं मुख्यमंत्री होंगे। इसके अंतर्गत नैमिषारण्य की होली के अवसर पर चौरासी कोसी 5 दिवसीय परिक्रमा पथ और उस पर स्थापित सम्पूर्ण देश की संह्कृति एवं एकात्मता के वह सभी तीर्थ एवं उनके स्थल केंद्रित हैं। इस सम्पूर्ण नैमिशारण्य क्षेत्र में लोक भारती पिछले 10 वर्ष से कार्य कर रही है। नैमिषाराण्य क्षेत्र के भूगर्भ जल स्रोतो का अध्ययन एवं उनके पुनर्नीवन पर लगातार कार्य चल रहा है। वर्षा नल सरक्षण एवं संम्भरण हेतु तालाबें के पुनर्नीवन अनियान के जवर्गत 119 तालाबों का पृनरुद्धार लोक भारती के प्रयासों से सम्पन्न हुआ है।

नोटिस बोर्ड

Submitted by Shivendra on Tue, 09/06/2022 - 14:16
Source:
चरखा फीचर
'संजॉय घोष मीडिया अवार्ड्स – 2022
कार्य अनुभव के विवरण के साथ संक्षिप्त पाठ्यक्रम जीवन लगभग 800-1000 शब्दों का एक प्रस्ताव, जिसमें उस विशेष विषयगत क्षेत्र को रेखांकित किया गया हो, जिसमें आवेदक काम करना चाहता है. प्रस्ताव में अध्ययन की विशिष्ट भौगोलिक स्थिति, कार्यप्रणाली, चयनित विषय की प्रासंगिकता के साथ-साथ इन लेखों से अपेक्षित प्रभाव के बारे में विवरण शामिल होनी चाहिए. साथ ही, इस बात का उल्लेख होनी चाहिए कि देश के विकास से जुड़ी बहस में इसके योगदान किस प्रकार हो सकता है? कृपया आलेख प्रस्तुत करने वाली भाषा भी निर्दिष्ट करें। लेख अंग्रेजी, हिंदी या उर्दू में ही स्वीकार किए जाएंगे
Submitted by Shivendra on Tue, 08/23/2022 - 17:19
Source:
यूसर्क
जल विज्ञान प्रशिक्षण कार्यशाला
उत्तराखंड विज्ञान शिक्षा एवं अनुसंधान केंद्र द्वारा आज दिनांक 23.08.22 को तीन दिवसीय जल विज्ञान प्रशिक्षण प्रारंभ किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए यूसर्क की निदेशक प्रो.(डॉ.) अनीता रावत ने अपने संबोधन में कहा कि यूसर्क द्वारा जल के महत्व को देखते हुए विगत वर्ष 2021 को संयुक्त राष्ट्र की विश्व पर्यावरण दिवस की थीम "ईको सिस्टम रेस्टोरेशन" के अंर्तगत आयोजित कार्यक्रम के निष्कर्षों के क्रम में जल विज्ञान विषयक लेक्चर सीरीज एवं जल विज्ञान प्रशिक्षण कार्यक्रमों को प्रारंभ किया गया
Submitted by Shivendra on Mon, 07/25/2022 - 15:34
Source:
यूसर्क
जल शिक्षा व्याख्यान श्रृंखला
इस दौरान राष्ट्रीय पर्यावरण  इंजीनियरिंग अनुसंधान संस्था के वरिष्ठ वैज्ञानिक और अपशिष्ट जल विभाग विभाग के प्रमुख डॉक्टर रितेश विजय  सस्टेनेबल  वेस्ट वाटर ट्रीटमेंट फॉर लिक्विड वेस्ट मैनेजमेंट (Sustainable Wastewater Treatment for Liquid Waste Management) विषय  पर विशेषज्ञ तौर पर अपनी राय रखेंगे।

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खासम-खास

तालाब ज्ञान-संस्कृति : नींव से शिखर तक

Submitted by Editorial Team on Tue, 10/04/2022 - 16:13
Author
कृष्ण गोपाल 'व्यास’
talab-gyan-sanskriti-:-ninv-se-shikhar-tak
कूरम में पुनर्निर्मित समथमन मंदिर तालाब। फोटो - indiawaterportal
परम्परागत तालाबों पर अनुपम मिश्र की किताब ‘आज भी खरे हैं तालाब’, पहली बार, वर्ष 1993 में प्रकाशित हुई थी। इस किताब में अनुपम ने समाज से प्राप्त जानकारी के आधार पर भारत के विभिन्न भागों में बने तालाबों के बारे में व्यापक विवरण प्रस्तुत किया है। अर्थात आज भी खरे हैं तालाब में दर्ज विवरण परम्परागत तालाबों पर समाज की राय है। उनका दृष्टिबोध है। उन विवरणों में समाज की भावनायें, आस्था, मान्यतायें, रीति-रिवाज तथा परम्परागत तालाबों के निर्माण से जुड़े कर्मकाण्ड दर्ज हैं। प्रस्तुति और शैली अनुपम की है।

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विदर्भ के जल संकट के कारण होंगे थर्मल पॉवर स्टेशन

Submitted by Hindi on Fri, 12/14/2012 - 10:55
Author
ग्रीनपीस इंडिया
Source
ग्रीनपीस, 03 दिसम्बर 2012

ग्रीनपीस ने जारी की वैज्ञानिक रिपोर्ट, कहा सिंचाई क्षमता पर पड़ेगा बुरा असर, ऐसी योजनाओं पर तत्काल रोक


विदर्भ देश के सबसे पिछड़े इलाकों में माना जाता है। वहां पर देश के सबसे ज्यादा किसानों ने अत्महत्या की है। सिंचाई के समुचित प्रबंध न होना और मौसम का अनियमित होना विदर्भ के किसानों के दुख का सबसे बड़ा कारण है। पर सरकारों की कंपनी पक्षधर नीतियों ने किसानों के उपलब्ध जल में से ही कंपनियों को देना शुरू कर दिया है। सिंचाई को उपलब्ध होने वाला पानी कंपनियों को देने से किसानों का कृषि संकट बढ़ेगा ही। महाराष्ट्र सरकार के सिंचाई से हटाकर शहरी और औद्योगिक इस्तेमाल के लिए जल आवंटन का रास्ता विदर्भ के लिए खतरनाक साबित होगा। उस पर तुर्रा यह कि 123 थर्मल पॉवर प्लांट लगने हैं और सभी को बेशुमार पानी चाहिए। इस पूरी प्रक्रिया का सिंचाई परियोजनाओं पर बूरा असर पड़ेगा, बता रही है ग्रीनपीस की रिपोर्ट।

मुंबई, 3 दिसम्बर, 2012: ग्रीनपीस ने आज वर्धा व वैनगंगा नदी में जल उपलब्धता व थर्मल पावर प्लांट्स से इन नदियों पर होने वाले प्रभाव पर एक वैज्ञानिक रिपोर्ट (1) जारी करते हुए कहा कि विदर्भ क्षेत्र में चल रहे तापीय बिजली घरों द्वारा पानी की अतिरिक्त मांग करने से आने वाले दिनों में पूरे इलाके में जल संकट बढ़ जायेगा और सिंचाई व अन्य जरूरतों को पूरा करने के लिए पानी मिलना मुश्किल होगा।

लूट पानी की

Submitted by Hindi on Wed, 12/12/2012 - 14:32
Author
विवेकानंद माथने
पानी जीवन, जीविका और प्रकृति चक्र का प्रमुख आधार है जो प्राकृतिक रूप से सर्वत्र उपलब्ध है और सजीव सृष्टि के लिए हवा और धूप की तरह ही प्रकृति ने उसे सबके लिए उपलब्ध कराया है, वह पानी, भारत में बाजार की वस्तु बन चुका है। अब यहां सतही जल और भूमि जल पर मालिकाना हक प्राप्त किया सकता है और उस हक को खरीदा-बेचा जा सकता है। अब की व्यापारी/कंपनी किसी नदी, जलाशय या भूमिजल का हक खरीद सकता है, उसका मालिक बन सकता है और उस हक को बेच सकता है। ग़ुलाम भारत की लूट की कहानी हम जानते ही हैं। अँग्रेज़ व्यापार करने के नाम से आये और भारत को ग़ुलाम बनाकर लूट करते रहे। आज़ादी की लड़ाई ने लोगों के मन में यह उम्मीद जगाई थी कि अंग्रेजों की गुलामी से मुक्ति के बाद यह लूट समाप्त होगी। लेकिन ऐसा हुआ नहीं। भारत आज़ाद हुआ, लेकिन लूट जारी है, उसमें दिन-प्रतिदिन बढ़ोत्तरी ही हो रही है। इस लूट के स्वरूप में कुछ बदलाव हुआ है। लूट के लिए नए-नए रास्ते खोजे जा रहे हैं। श्रम के शोषण, औद्योगिक उत्पादन और सेवा उद्योग के माध्यम से की जानी वाली लूट के साथ-साथ अब देश के नैसर्गिक संसाधनों की खुली लूट भी की जा रही है। कोयला, खनिज, पेट्रोलियम, गैस, पानी, ज़मीन, जैव विविधता, जंगल आदि जैसी प्रकृति की देने को ही अब लूटा जा रहा है। इनमें से कई ऐसे स्रोत हैं, जिसके दोहन से वह हमेशा के लिए समाप्त होंगे।

बड़े बांध और छोटे तालाब

Submitted by Hindi on Fri, 12/07/2012 - 14:21
Author
राजेंद्र सिंह
Source
कादम्बिनी, जून 2012
हमारे पूर्वज जानते थे कि तालाबों से जंगल और जमीन का पोषण होता है। भूमि के कटाव एवं नदियों के तल में मिट्टी के जमाव को रोकने में भी तालाब मददगार हैं, लेकिन बड़े बांधों के निर्माण की होड़ ने हमारी उस महान परंपरा को नष्ट कर दिया।
1950 में भारत के कुल सिंचित क्षेत्र की 17 प्रतिशत सिंचाई तालाबों से की जाती थी। ये तालाब सिंचाई के साथ-साथ भू-गर्भ के जलस्तर को भी बनाए रखते थे, इस बात के ठोस प्रमाण उपलब्ध हैं। सूदूर भूतकाल में तो 8 प्रतिशत से अधिक सिंचाई तालाबों से ही होती थी। तालाबों में पाए गए शिलालेख इसके जीते-जागते प्रमाण हैं। इस स्वावलम्बी सिंचाई योजना का अंग्रेजों ने जानबूझकर खत्म करने का जो षड़यंत्र रचा था, उसे स्वतंत्र भारत के योजनाकारों ने बरकरार रखा है और वर्तमान, जनविरोधी,ग्राम-गुलामी की सिंचाई योजना को तेजी से लागू किया है। किसी भी देश की प्रगति या अवनति में वहां की जल संपदा का काफी महत्व होता है। जल की उपलब्धि या प्रभाव के कारण ही बहुत सी सभ्यताएं एवं संस्कृतियां बनती और बिगड़ी हैं। इसलिए हमारे देश की सांस्कृतिक चेतना में जल का काफी ऊंचा स्थान रहा है। हमारे पूर्वज जानते थे कि तालाबों से जंगल व जमीन का पोषण होता है। भूमि के कटाव एवं नदियों के तल में मिट्टी के जमाव को रोकने में भी तालाब मददगार होते हैं। जल के प्रति एक विशेष प्रकार की चेतना और उपयोग करने की समझ उनकी थी। इस चेतना के कारण ही गांव के संगठन की सूझ-बूझ से गांव के सारे पानी को विधिवत उपयोग में लेने के लिए तालाब बनाए जाते थे। इन तालाबों से अकाल के समय भी पानी मिल जाता था। जैसा कि गांवों की व्यवस्था से संबंधित अन्य बातों में होता था, उसी तरह तालाब के निर्माण व रख-रखाव के लिए भी गाँववासी अपनी ग्राम सभा में सर्वसम्मति से कुछ कानून बनाते थे।

प्रयास

सीतापुर और हरदोई के 36 गांव मिलाकर हो रहा है ‘नैमिषारण्य तीर्थ विकास परिषद’ गठन  

Submitted by Editorial Team on Thu, 12/08/2022 - 13:06
sitapur-aur-hardoi-ke-36-gaon-milaakar-ho-raha-hai-'naimisharany-tirth-vikas-parishad'-gathan
Source
लोकसम्मान पत्रिका, दिसम्बर-2022
सीतापुर का नैमिषारण्य तीर्थ क्षेत्र, फोटो साभार - उप्र सरकार
श्री नैभिषारण्य धाम तीर्थ परिषद के गठन को प्रदेश मंत्रिमएडल ने स्वीकृति प्रदान की, जिसके अध्यक्ष स्वयं मुख्यमंत्री होंगे। इसके अंतर्गत नैमिषारण्य की होली के अवसर पर चौरासी कोसी 5 दिवसीय परिक्रमा पथ और उस पर स्थापित सम्पूर्ण देश की संह्कृति एवं एकात्मता के वह सभी तीर्थ एवं उनके स्थल केंद्रित हैं। इस सम्पूर्ण नैमिशारण्य क्षेत्र में लोक भारती पिछले 10 वर्ष से कार्य कर रही है। नैमिषाराण्य क्षेत्र के भूगर्भ जल स्रोतो का अध्ययन एवं उनके पुनर्नीवन पर लगातार कार्य चल रहा है। वर्षा नल सरक्षण एवं संम्भरण हेतु तालाबें के पुनर्नीवन अनियान के जवर्गत 119 तालाबों का पृनरुद्धार लोक भारती के प्रयासों से सम्पन्न हुआ है।

नोटिस बोर्ड

'संजॉय घोष मीडिया अवार्ड्स – 2022

Submitted by Shivendra on Tue, 09/06/2022 - 14:16
sanjoy-ghosh-media-awards-–-2022
Source
चरखा फीचर
'संजॉय घोष मीडिया अवार्ड्स – 2022
कार्य अनुभव के विवरण के साथ संक्षिप्त पाठ्यक्रम जीवन लगभग 800-1000 शब्दों का एक प्रस्ताव, जिसमें उस विशेष विषयगत क्षेत्र को रेखांकित किया गया हो, जिसमें आवेदक काम करना चाहता है. प्रस्ताव में अध्ययन की विशिष्ट भौगोलिक स्थिति, कार्यप्रणाली, चयनित विषय की प्रासंगिकता के साथ-साथ इन लेखों से अपेक्षित प्रभाव के बारे में विवरण शामिल होनी चाहिए. साथ ही, इस बात का उल्लेख होनी चाहिए कि देश के विकास से जुड़ी बहस में इसके योगदान किस प्रकार हो सकता है? कृपया आलेख प्रस्तुत करने वाली भाषा भी निर्दिष्ट करें। लेख अंग्रेजी, हिंदी या उर्दू में ही स्वीकार किए जाएंगे

​यूसर्क द्वारा तीन दिवसीय जल विज्ञान प्रशिक्षण प्रारंभ

Submitted by Shivendra on Tue, 08/23/2022 - 17:19
USERC-dvara-tin-divasiy-jal-vigyan-prashikshan-prarambh
Source
यूसर्क
जल विज्ञान प्रशिक्षण कार्यशाला
उत्तराखंड विज्ञान शिक्षा एवं अनुसंधान केंद्र द्वारा आज दिनांक 23.08.22 को तीन दिवसीय जल विज्ञान प्रशिक्षण प्रारंभ किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए यूसर्क की निदेशक प्रो.(डॉ.) अनीता रावत ने अपने संबोधन में कहा कि यूसर्क द्वारा जल के महत्व को देखते हुए विगत वर्ष 2021 को संयुक्त राष्ट्र की विश्व पर्यावरण दिवस की थीम "ईको सिस्टम रेस्टोरेशन" के अंर्तगत आयोजित कार्यक्रम के निष्कर्षों के क्रम में जल विज्ञान विषयक लेक्चर सीरीज एवं जल विज्ञान प्रशिक्षण कार्यक्रमों को प्रारंभ किया गया

28 जुलाई को यूसर्क द्वारा आयोजित जल शिक्षा व्याख्यान श्रृंखला पर भाग लेने के लिए पंजीकरण करायें

Submitted by Shivendra on Mon, 07/25/2022 - 15:34
28-july-ko-ayojit-hone-vale-jal-shiksha-vyakhyan-shrinkhala-par-bhag-lene-ke-liye-panjikaran-karayen
Source
यूसर्क
जल शिक्षा व्याख्यान श्रृंखला
इस दौरान राष्ट्रीय पर्यावरण  इंजीनियरिंग अनुसंधान संस्था के वरिष्ठ वैज्ञानिक और अपशिष्ट जल विभाग विभाग के प्रमुख डॉक्टर रितेश विजय  सस्टेनेबल  वेस्ट वाटर ट्रीटमेंट फॉर लिक्विड वेस्ट मैनेजमेंट (Sustainable Wastewater Treatment for Liquid Waste Management) विषय  पर विशेषज्ञ तौर पर अपनी राय रखेंगे।

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