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खासम-खास

Submitted by Editorial Team on Tue, 10/04/2022 - 16:13
कूरम में पुनर्निर्मित समथमन मंदिर तालाब। फोटो - indiawaterportal
परम्परागत तालाबों पर अनुपम मिश्र की किताब ‘आज भी खरे हैं तालाब’, पहली बार, वर्ष 1993 में प्रकाशित हुई थी। इस किताब में अनुपम ने समाज से प्राप्त जानकारी के आधार पर भारत के विभिन्न भागों में बने तालाबों के बारे में व्यापक विवरण प्रस्तुत किया है। अर्थात आज भी खरे हैं तालाब में दर्ज विवरण परम्परागत तालाबों पर समाज की राय है। उनका दृष्टिबोध है। उन विवरणों में समाज की भावनायें, आस्था, मान्यतायें, रीति-रिवाज तथा परम्परागत तालाबों के निर्माण से जुड़े कर्मकाण्ड दर्ज हैं। प्रस्तुति और शैली अनुपम की है।

Content

Submitted by Hindi on Wed, 09/19/2012 - 13:35
Source:
जनसत्ता (रविवारी), 09 सितंबर 2012
Pindar river
उत्तराखंड में पिंडर नदी लोगों के जीवन और संस्कृति से गहरे जुड़ी हुई है। लेकिन अब इसके वजूद पर खतरा मंडरा रहा है। विकास के नाम पर इस क्षेत्र के जल, जंगल और जमीन को बर्बाद किया जा रहा है। इस नदी की देन और उस पर बनाए जा रहे बांधों से होने वाले नुकसान के बारे में बता रहे हैं अभय मिश्र।

तमाम विरोध को दरकिनार कर केंद्र सरकार देवसारी जलविद्युत परयोजना को हरी झंडी देने की तैयारी कर रही है। इसे बनाने वाली कंपनी सतलुज जल विद्युत निगम ने अपनी तैयारियां पूरी कर ली हैं। इसके बाद नंदकेशरी गांव से पैठाणी तक बनने वाली सत्रह किलोमीटर लंबी सुरंग में पिंडर बहने लगेगी। इस सुरंग की वजह से बत्तीस गांव सीधे तौर पर प्रभावित होंगे और अप्रत्यक्ष रूप से कितने गांवों पर इसका असर होगा इसका कोई आकलन ही नहीं है। पहाड़ों की सबसे बड़ी धार्मिक यात्रा राजजात को रास्ता बताती है पिंडर नदी। हर बारह साल में होने वाली दो सौ अस्सी किलोमीटर की इस दुर्गम यात्रा को पर्वतीय महाकुंभ भी कहा जाता है। मान जाता है कि शिव पार्वती को विवाह के बाद पिंडर घाटी के रास्ते ही विदा करा कर ले गए थे। आज भी हिमालय क्षेत्र की बेटियां यह कामना करती हैं कि उनकी विदाई के रास्ते में पिंडर के दर्शन हों। पिंडर घाटी की खूबसूरती यहां के लोकगीतों में बसती है जिनमें पिंडर को दूध का झरना कहा गया है। पिंडर को काफी ऊंचाई से देखने पर भी इसकी तलहटी पर पड़े पत्थर साफ नजर आते हैं। अलकनंदा और पिंडर के संगम कर्णप्रयाग से दस किलोमीटर दूर मौजूद पिंडर घाटी ही राजजात का मुख्य मार्ग है। पिंडर की इन्हीं खूबसूरत वादियों में सुनाउ तल्ला गांव भी है।
Submitted by Hindi on Sat, 09/15/2012 - 15:47
Source:
महिलाओं की मर्यादा की बात मुंडेरी तक ही सीमित नहीं रही, बल्कि इसकी भनक आसपास के गांवों को भी लग गई और कुछ ही समय में आसपास के कई ग्राम पंचायतों में अगुवा बहिनी बनकर महिलाएं स्वयं के घरों में शौचालय बनवाने के साथ-साथ दूसरे को भी प्रेरित करने का काम करने लगी हैं। शौचालय बनाने के लिए मंदिर में शपथ लेना बाध्यकारी नहीं है, बल्कि यह प्रतीकात्मक है, जिसकी जिस ईश्वर में आस्था है, वह उनकी शपथ ले रहा है। ‘‘गांव की नई नवेली दुल्हन दिन के उजाले में या घर आए मेहमानों के सामने किसी के सामने नहीं निकलती, पर जब शौच के लिए उसे खुले खेत, नदी या तालाब किनारे जाना पड़ता है, तो वह न केवल उसके लिए बल्कि पूरे घर के लिए अपमानजक स्थिति होती है। घर में शौचालय का होना सिर्फ स्वास्थ्य एवं स्वच्छता का मुद्दा नहीं हैं, बल्कि महिलाओं के सम्मान का मामला है।’’ मध्यप्रदेश के शिवपुरी जिले के मुंडेरी गांव की पुष्पा का यह उद्गार कोई भाषण नहीं है, बल्कि उस अभियान की अवधारणा है, जिसका बीजारोपण पिछले साल 2 अक्टूबर को स्थानीय स्तर पर शिवपुरी जिले में किया गया था। इस अवधारणा को मध्यप्रदेश में राज्य स्तर पर अपनाया गया है, जिसे मर्यादा अभियान नाम दिया गया है।
Submitted by Hindi on Fri, 09/14/2012 - 16:26
Source:
सर्वोदय प्रेस सर्विस, सितंबर 2012
सुनो/वर्षों बाद
अनहद नाद/दिशाओं में हो रहा है
शिराओं से बज रही है/एक भूली याद वर्षों बाद ......।

ओंकारेश्वर और इंदिरा सागर बांध के संबंध में वर्ष 1989 में नर्मदा पंचाट के फैसले में यह स्पष्ट कर गया था कि हर भू-धारक विस्थापित परिवार को जमीन के बदले जमीन एवं न्यूनतम 5 एकड़ कृषि योग्य सिंचित भूमि का अधिकार दिया जायेगा। इसके बावजूद पिछले 25 सालों में मध्यप्रदेश सरकार ने एक भी विस्थापित को आज तक जमीन नहीं दी है। लेकिन 17 दिन के जल सत्याग्रह से सत्याग्रहियों ने सरकार को नाकों चने तो चबवा दिए हैं।

दुष्यंत कुमार की ये पंक्तियां 10 सितम्बर 2012 को तब चरितार्थ हो गई जबकि मध्य प्रदेश सरकार ने खंडवा जिले के घोघलगांव में पिछले 17 दिनों से जारी जल सत्याग्रह के परिणामस्वरूप सत्याग्रहियों की मांगे मान लीं तथा विस्थापितों को जमीन के बदले जमीन देने का भी एलान किया। सरकार ने ओंकारेश्वर बांध का जलस्तर घंटों में कम भी कर दिया। यह एक ऐतिहासिक जीत थी। सवाल यह है कि आखिर ऐसी कौन सी मजबूरियां गांव वालों के सामने रहीं कि वे उसी मोटली माई (नर्मदा), जिसे वे पूजते हैं, में स्वयं को गला देने के लिए मजबूर हो गए।

प्रयास

Submitted by Editorial Team on Thu, 12/08/2022 - 13:06
सीतापुर का नैमिषारण्य तीर्थ क्षेत्र, फोटो साभार - उप्र सरकार
श्री नैभिषारण्य धाम तीर्थ परिषद के गठन को प्रदेश मंत्रिमएडल ने स्वीकृति प्रदान की, जिसके अध्यक्ष स्वयं मुख्यमंत्री होंगे। इसके अंतर्गत नैमिषारण्य की होली के अवसर पर चौरासी कोसी 5 दिवसीय परिक्रमा पथ और उस पर स्थापित सम्पूर्ण देश की संह्कृति एवं एकात्मता के वह सभी तीर्थ एवं उनके स्थल केंद्रित हैं। इस सम्पूर्ण नैमिशारण्य क्षेत्र में लोक भारती पिछले 10 वर्ष से कार्य कर रही है। नैमिषाराण्य क्षेत्र के भूगर्भ जल स्रोतो का अध्ययन एवं उनके पुनर्नीवन पर लगातार कार्य चल रहा है। वर्षा नल सरक्षण एवं संम्भरण हेतु तालाबें के पुनर्नीवन अनियान के जवर्गत 119 तालाबों का पृनरुद्धार लोक भारती के प्रयासों से सम्पन्न हुआ है।

नोटिस बोर्ड

Submitted by Shivendra on Tue, 09/06/2022 - 14:16
Source:
चरखा फीचर
'संजॉय घोष मीडिया अवार्ड्स – 2022
कार्य अनुभव के विवरण के साथ संक्षिप्त पाठ्यक्रम जीवन लगभग 800-1000 शब्दों का एक प्रस्ताव, जिसमें उस विशेष विषयगत क्षेत्र को रेखांकित किया गया हो, जिसमें आवेदक काम करना चाहता है. प्रस्ताव में अध्ययन की विशिष्ट भौगोलिक स्थिति, कार्यप्रणाली, चयनित विषय की प्रासंगिकता के साथ-साथ इन लेखों से अपेक्षित प्रभाव के बारे में विवरण शामिल होनी चाहिए. साथ ही, इस बात का उल्लेख होनी चाहिए कि देश के विकास से जुड़ी बहस में इसके योगदान किस प्रकार हो सकता है? कृपया आलेख प्रस्तुत करने वाली भाषा भी निर्दिष्ट करें। लेख अंग्रेजी, हिंदी या उर्दू में ही स्वीकार किए जाएंगे
Submitted by Shivendra on Tue, 08/23/2022 - 17:19
Source:
यूसर्क
जल विज्ञान प्रशिक्षण कार्यशाला
उत्तराखंड विज्ञान शिक्षा एवं अनुसंधान केंद्र द्वारा आज दिनांक 23.08.22 को तीन दिवसीय जल विज्ञान प्रशिक्षण प्रारंभ किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए यूसर्क की निदेशक प्रो.(डॉ.) अनीता रावत ने अपने संबोधन में कहा कि यूसर्क द्वारा जल के महत्व को देखते हुए विगत वर्ष 2021 को संयुक्त राष्ट्र की विश्व पर्यावरण दिवस की थीम "ईको सिस्टम रेस्टोरेशन" के अंर्तगत आयोजित कार्यक्रम के निष्कर्षों के क्रम में जल विज्ञान विषयक लेक्चर सीरीज एवं जल विज्ञान प्रशिक्षण कार्यक्रमों को प्रारंभ किया गया
Submitted by Shivendra on Mon, 07/25/2022 - 15:34
Source:
यूसर्क
जल शिक्षा व्याख्यान श्रृंखला
इस दौरान राष्ट्रीय पर्यावरण  इंजीनियरिंग अनुसंधान संस्था के वरिष्ठ वैज्ञानिक और अपशिष्ट जल विभाग विभाग के प्रमुख डॉक्टर रितेश विजय  सस्टेनेबल  वेस्ट वाटर ट्रीटमेंट फॉर लिक्विड वेस्ट मैनेजमेंट (Sustainable Wastewater Treatment for Liquid Waste Management) विषय  पर विशेषज्ञ तौर पर अपनी राय रखेंगे।

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खासम-खास

तालाब ज्ञान-संस्कृति : नींव से शिखर तक

Submitted by Editorial Team on Tue, 10/04/2022 - 16:13
Author
कृष्ण गोपाल 'व्यास’
talab-gyan-sanskriti-:-ninv-se-shikhar-tak
कूरम में पुनर्निर्मित समथमन मंदिर तालाब। फोटो - indiawaterportal
परम्परागत तालाबों पर अनुपम मिश्र की किताब ‘आज भी खरे हैं तालाब’, पहली बार, वर्ष 1993 में प्रकाशित हुई थी। इस किताब में अनुपम ने समाज से प्राप्त जानकारी के आधार पर भारत के विभिन्न भागों में बने तालाबों के बारे में व्यापक विवरण प्रस्तुत किया है। अर्थात आज भी खरे हैं तालाब में दर्ज विवरण परम्परागत तालाबों पर समाज की राय है। उनका दृष्टिबोध है। उन विवरणों में समाज की भावनायें, आस्था, मान्यतायें, रीति-रिवाज तथा परम्परागत तालाबों के निर्माण से जुड़े कर्मकाण्ड दर्ज हैं। प्रस्तुति और शैली अनुपम की है।

Content

विकास की धारा में गुम होती पिंडर नदी

Submitted by Hindi on Wed, 09/19/2012 - 13:35
Author
अभय मिश्र
Source
जनसत्ता (रविवारी), 09 सितंबर 2012
Pindar river
उत्तराखंड में पिंडर नदी लोगों के जीवन और संस्कृति से गहरे जुड़ी हुई है। लेकिन अब इसके वजूद पर खतरा मंडरा रहा है। विकास के नाम पर इस क्षेत्र के जल, जंगल और जमीन को बर्बाद किया जा रहा है। इस नदी की देन और उस पर बनाए जा रहे बांधों से होने वाले नुकसान के बारे में बता रहे हैं अभय मिश्र।

तमाम विरोध को दरकिनार कर केंद्र सरकार देवसारी जलविद्युत परयोजना को हरी झंडी देने की तैयारी कर रही है। इसे बनाने वाली कंपनी सतलुज जल विद्युत निगम ने अपनी तैयारियां पूरी कर ली हैं। इसके बाद नंदकेशरी गांव से पैठाणी तक बनने वाली सत्रह किलोमीटर लंबी सुरंग में पिंडर बहने लगेगी। इस सुरंग की वजह से बत्तीस गांव सीधे तौर पर प्रभावित होंगे और अप्रत्यक्ष रूप से कितने गांवों पर इसका असर होगा इसका कोई आकलन ही नहीं है। पहाड़ों की सबसे बड़ी धार्मिक यात्रा राजजात को रास्ता बताती है पिंडर नदी। हर बारह साल में होने वाली दो सौ अस्सी किलोमीटर की इस दुर्गम यात्रा को पर्वतीय महाकुंभ भी कहा जाता है। मान जाता है कि शिव पार्वती को विवाह के बाद पिंडर घाटी के रास्ते ही विदा करा कर ले गए थे। आज भी हिमालय क्षेत्र की बेटियां यह कामना करती हैं कि उनकी विदाई के रास्ते में पिंडर के दर्शन हों। पिंडर घाटी की खूबसूरती यहां के लोकगीतों में बसती है जिनमें पिंडर को दूध का झरना कहा गया है। पिंडर को काफी ऊंचाई से देखने पर भी इसकी तलहटी पर पड़े पत्थर साफ नजर आते हैं। अलकनंदा और पिंडर के संगम कर्णप्रयाग से दस किलोमीटर दूर मौजूद पिंडर घाटी ही राजजात का मुख्य मार्ग है। पिंडर की इन्हीं खूबसूरत वादियों में सुनाउ तल्ला गांव भी है।

मर्यादा बचाने को घर-घर में हो शौचालय

Submitted by Hindi on Sat, 09/15/2012 - 15:47
Author
राजु कुमार
महिलाओं की मर्यादा की बात मुंडेरी तक ही सीमित नहीं रही, बल्कि इसकी भनक आसपास के गांवों को भी लग गई और कुछ ही समय में आसपास के कई ग्राम पंचायतों में अगुवा बहिनी बनकर महिलाएं स्वयं के घरों में शौचालय बनवाने के साथ-साथ दूसरे को भी प्रेरित करने का काम करने लगी हैं। शौचालय बनाने के लिए मंदिर में शपथ लेना बाध्यकारी नहीं है, बल्कि यह प्रतीकात्मक है, जिसकी जिस ईश्वर में आस्था है, वह उनकी शपथ ले रहा है। ‘‘गांव की नई नवेली दुल्हन दिन के उजाले में या घर आए मेहमानों के सामने किसी के सामने नहीं निकलती, पर जब शौच के लिए उसे खुले खेत, नदी या तालाब किनारे जाना पड़ता है, तो वह न केवल उसके लिए बल्कि पूरे घर के लिए अपमानजक स्थिति होती है। घर में शौचालय का होना सिर्फ स्वास्थ्य एवं स्वच्छता का मुद्दा नहीं हैं, बल्कि महिलाओं के सम्मान का मामला है।’’ मध्यप्रदेश के शिवपुरी जिले के मुंडेरी गांव की पुष्पा का यह उद्गार कोई भाषण नहीं है, बल्कि उस अभियान की अवधारणा है, जिसका बीजारोपण पिछले साल 2 अक्टूबर को स्थानीय स्तर पर शिवपुरी जिले में किया गया था। इस अवधारणा को मध्यप्रदेश में राज्य स्तर पर अपनाया गया है, जिसे मर्यादा अभियान नाम दिया गया है।

पानी में गलते विस्थापितों की जीत

Submitted by Hindi on Fri, 09/14/2012 - 16:26
Author
प्रशांत कुमार दुबे
Source
सर्वोदय प्रेस सर्विस, सितंबर 2012
सुनो/वर्षों बाद
अनहद नाद/दिशाओं में हो रहा है
शिराओं से बज रही है/एक भूली याद वर्षों बाद ......।


ओंकारेश्वर और इंदिरा सागर बांध के संबंध में वर्ष 1989 में नर्मदा पंचाट के फैसले में यह स्पष्ट कर गया था कि हर भू-धारक विस्थापित परिवार को जमीन के बदले जमीन एवं न्यूनतम 5 एकड़ कृषि योग्य सिंचित भूमि का अधिकार दिया जायेगा। इसके बावजूद पिछले 25 सालों में मध्यप्रदेश सरकार ने एक भी विस्थापित को आज तक जमीन नहीं दी है। लेकिन 17 दिन के जल सत्याग्रह से सत्याग्रहियों ने सरकार को नाकों चने तो चबवा दिए हैं।

दुष्यंत कुमार की ये पंक्तियां 10 सितम्बर 2012 को तब चरितार्थ हो गई जबकि मध्य प्रदेश सरकार ने खंडवा जिले के घोघलगांव में पिछले 17 दिनों से जारी जल सत्याग्रह के परिणामस्वरूप सत्याग्रहियों की मांगे मान लीं तथा विस्थापितों को जमीन के बदले जमीन देने का भी एलान किया। सरकार ने ओंकारेश्वर बांध का जलस्तर घंटों में कम भी कर दिया। यह एक ऐतिहासिक जीत थी। सवाल यह है कि आखिर ऐसी कौन सी मजबूरियां गांव वालों के सामने रहीं कि वे उसी मोटली माई (नर्मदा), जिसे वे पूजते हैं, में स्वयं को गला देने के लिए मजबूर हो गए।

प्रयास

सीतापुर और हरदोई के 36 गांव मिलाकर हो रहा है ‘नैमिषारण्य तीर्थ विकास परिषद’ गठन  

Submitted by Editorial Team on Thu, 12/08/2022 - 13:06
sitapur-aur-hardoi-ke-36-gaon-milaakar-ho-raha-hai-'naimisharany-tirth-vikas-parishad'-gathan
Source
लोकसम्मान पत्रिका, दिसम्बर-2022
सीतापुर का नैमिषारण्य तीर्थ क्षेत्र, फोटो साभार - उप्र सरकार
श्री नैभिषारण्य धाम तीर्थ परिषद के गठन को प्रदेश मंत्रिमएडल ने स्वीकृति प्रदान की, जिसके अध्यक्ष स्वयं मुख्यमंत्री होंगे। इसके अंतर्गत नैमिषारण्य की होली के अवसर पर चौरासी कोसी 5 दिवसीय परिक्रमा पथ और उस पर स्थापित सम्पूर्ण देश की संह्कृति एवं एकात्मता के वह सभी तीर्थ एवं उनके स्थल केंद्रित हैं। इस सम्पूर्ण नैमिशारण्य क्षेत्र में लोक भारती पिछले 10 वर्ष से कार्य कर रही है। नैमिषाराण्य क्षेत्र के भूगर्भ जल स्रोतो का अध्ययन एवं उनके पुनर्नीवन पर लगातार कार्य चल रहा है। वर्षा नल सरक्षण एवं संम्भरण हेतु तालाबें के पुनर्नीवन अनियान के जवर्गत 119 तालाबों का पृनरुद्धार लोक भारती के प्रयासों से सम्पन्न हुआ है।

नोटिस बोर्ड

'संजॉय घोष मीडिया अवार्ड्स – 2022

Submitted by Shivendra on Tue, 09/06/2022 - 14:16
sanjoy-ghosh-media-awards-–-2022
Source
चरखा फीचर
'संजॉय घोष मीडिया अवार्ड्स – 2022
कार्य अनुभव के विवरण के साथ संक्षिप्त पाठ्यक्रम जीवन लगभग 800-1000 शब्दों का एक प्रस्ताव, जिसमें उस विशेष विषयगत क्षेत्र को रेखांकित किया गया हो, जिसमें आवेदक काम करना चाहता है. प्रस्ताव में अध्ययन की विशिष्ट भौगोलिक स्थिति, कार्यप्रणाली, चयनित विषय की प्रासंगिकता के साथ-साथ इन लेखों से अपेक्षित प्रभाव के बारे में विवरण शामिल होनी चाहिए. साथ ही, इस बात का उल्लेख होनी चाहिए कि देश के विकास से जुड़ी बहस में इसके योगदान किस प्रकार हो सकता है? कृपया आलेख प्रस्तुत करने वाली भाषा भी निर्दिष्ट करें। लेख अंग्रेजी, हिंदी या उर्दू में ही स्वीकार किए जाएंगे

​यूसर्क द्वारा तीन दिवसीय जल विज्ञान प्रशिक्षण प्रारंभ

Submitted by Shivendra on Tue, 08/23/2022 - 17:19
USERC-dvara-tin-divasiy-jal-vigyan-prashikshan-prarambh
Source
यूसर्क
जल विज्ञान प्रशिक्षण कार्यशाला
उत्तराखंड विज्ञान शिक्षा एवं अनुसंधान केंद्र द्वारा आज दिनांक 23.08.22 को तीन दिवसीय जल विज्ञान प्रशिक्षण प्रारंभ किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए यूसर्क की निदेशक प्रो.(डॉ.) अनीता रावत ने अपने संबोधन में कहा कि यूसर्क द्वारा जल के महत्व को देखते हुए विगत वर्ष 2021 को संयुक्त राष्ट्र की विश्व पर्यावरण दिवस की थीम "ईको सिस्टम रेस्टोरेशन" के अंर्तगत आयोजित कार्यक्रम के निष्कर्षों के क्रम में जल विज्ञान विषयक लेक्चर सीरीज एवं जल विज्ञान प्रशिक्षण कार्यक्रमों को प्रारंभ किया गया

28 जुलाई को यूसर्क द्वारा आयोजित जल शिक्षा व्याख्यान श्रृंखला पर भाग लेने के लिए पंजीकरण करायें

Submitted by Shivendra on Mon, 07/25/2022 - 15:34
28-july-ko-ayojit-hone-vale-jal-shiksha-vyakhyan-shrinkhala-par-bhag-lene-ke-liye-panjikaran-karayen
Source
यूसर्क
जल शिक्षा व्याख्यान श्रृंखला
इस दौरान राष्ट्रीय पर्यावरण  इंजीनियरिंग अनुसंधान संस्था के वरिष्ठ वैज्ञानिक और अपशिष्ट जल विभाग विभाग के प्रमुख डॉक्टर रितेश विजय  सस्टेनेबल  वेस्ट वाटर ट्रीटमेंट फॉर लिक्विड वेस्ट मैनेजमेंट (Sustainable Wastewater Treatment for Liquid Waste Management) विषय  पर विशेषज्ञ तौर पर अपनी राय रखेंगे।

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