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जिस पानी को पहले लोग अमृत समझते थे वहीं पानी आज उनके लिए जहर बन गया है। हाल ही में यूनिसेफ की मदद से उत्तर प्रदेश सरकार ने एक सर्वे करवाया, जिसमें उत्तर प्रदेश के 51 जिलों का भूजल “आर्सेनिक” प्रदूषित पाया गया है।
आजकल बाढ़ प्राकृतिक होने की बजाय मानव निर्मित ज्यादा दिखाई देने लगी है। बाढ़ से बचने के लिए हमें नदियों के जल-भराव, भंडारण, पानी को रोकने और सहेजने के परंपरागत ढांचों को फिर से खड़ा करना होगा। पर्यावरण संरक्षण के साथ-साथ पेड़ों को कटने से बचाना तथा नए पेड़ लगाना होगा। यही पेड़ पानी को स्पंज की
वैज्ञानिक दृष्टि से देखें तो स्पष्ट है कि वृक्ष की पूजा कर वहीं बैठ कर भोजन करना, यह शुद्ध वायु-प्राप्ति का एक तरीका है। गांवों में महिलाएँ चूल्हे-चौके या खेती-बाड़ी के कार्यों में लगी रहती हैं। शुद्ध वायु प्रत्येक के लिये आवश्यक होती है।
भारत के मध्य भाग में स्थित मालवा की अपनी अलग महिमा रही है। कल-कल करती वर्ष भर प्रवाहमान नदियां, हरे-भरे भू-भाग, माटी की सौंधी सुगंध, सर्व शुद्धता- इन सबसे प्रसन्न होकर लोकनायक कबीर ने अपने अनुभूतिजन्य विचार प्रस्तुत करते हुए कहा था-देश मालव गहन गम्भीर, पग-पग रोटी डग-डग नीर
कबीर की यह अनुभूति शाश्वत सत्य को प्रकट करती है। वास्तव में यहां के शुद्ध पर्यावरण में मालवा-वासियों एवं पर्यावरण के बीच अटूट रिश्ते की स्पष्ट छाप दिखाई देती है। यह सब मालवा के ग्रामीणों द्वारा पर्यावरण शुद्धता के लिये अपनाई जा रही विधियों का प्रतिफल है। आज पर्यावरण शुद्धता की इन विधियों एवं उनके वैज्ञानिक दृष्टिकोण से अध्ययन की महती आवश्यकता प्रतीत हो रही है।
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अमृत से जहर बना यूपी का पानी
बांधों से आई बाढ़ की आफत
मालवा के ग्रामीण क्षेत्रों में पर्यावरण-शुद्धता की विधियों का वैज्ञानिक दृष्टिकोण से महत्व
वैज्ञानिक दृष्टि से देखें तो स्पष्ट है कि वृक्ष की पूजा कर वहीं बैठ कर भोजन करना, यह शुद्ध वायु-प्राप्ति का एक तरीका है। गांवों में महिलाएँ चूल्हे-चौके या खेती-बाड़ी के कार्यों में लगी रहती हैं। शुद्ध वायु प्रत्येक के लिये आवश्यक होती है।
भारत के मध्य भाग में स्थित मालवा की अपनी अलग महिमा रही है। कल-कल करती वर्ष भर प्रवाहमान नदियां, हरे-भरे भू-भाग, माटी की सौंधी सुगंध, सर्व शुद्धता- इन सबसे प्रसन्न होकर लोकनायक कबीर ने अपने अनुभूतिजन्य विचार प्रस्तुत करते हुए कहा था-देश मालव गहन गम्भीर, पग-पग रोटी डग-डग नीर
कबीर की यह अनुभूति शाश्वत सत्य को प्रकट करती है। वास्तव में यहां के शुद्ध पर्यावरण में मालवा-वासियों एवं पर्यावरण के बीच अटूट रिश्ते की स्पष्ट छाप दिखाई देती है। यह सब मालवा के ग्रामीणों द्वारा पर्यावरण शुद्धता के लिये अपनाई जा रही विधियों का प्रतिफल है। आज पर्यावरण शुद्धता की इन विधियों एवं उनके वैज्ञानिक दृष्टिकोण से अध्ययन की महती आवश्यकता प्रतीत हो रही है।
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सीतापुर और हरदोई के 36 गांव मिलाकर हो रहा है ‘नैमिषारण्य तीर्थ विकास परिषद’ गठन
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'संजॉय घोष मीडिया अवार्ड्स – 2022
यूसर्क द्वारा तीन दिवसीय जल विज्ञान प्रशिक्षण प्रारंभ
28 जुलाई को यूसर्क द्वारा आयोजित जल शिक्षा व्याख्यान श्रृंखला पर भाग लेने के लिए पंजीकरण करायें
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