तालाब ज्ञान-संस्कृति : नींव से शिखर तक

देश के कुल क्षेत्रफल के 23.81 फीसदी हिस्से पर जंगल हैं। वहीं, भारत सरकार का आंकड़ा कहता है कि हाल के वर्षों में 367 वर्ग किलोमीटर जंगल का सफाया कर दिया गया है। यह कुचक्र गंगोत्री से लेकर गंगासागर तक के पूरे इलाके में चल रहा है। कहीं कारण प्राकतिक है तो कहीं मानव निर्मित। अगर कुछेक राज्यों को छोड़ दें तो कमोबेश इस हरियाली को बनाए रखने के लिए प्रति उदासीनता एक जैसी ही नजर आती है।
पर्यावरण से पृथ्वी का गहरा नाता है। इस रिश्ते की डोर को सबसे मजबूती से जिसने बांधे रखा है वे पेड़ हैं। लेकिन दरख्तों की बेहिसाब कटाई और कंक्रीट के जंगलों के बीच आज अगर हम छांव को तरसते हैं तो हैरानी नहीं होनी चाहिए क्योंकि इन हालातों के जनक भी हम ही हैं। प्रदेश में पेड़ लगाने का अभियान छेड़ने वाली समाजवादी पार्टी सरकार भी अब हरियाली को लेकर चिंतित दिखाई पड़ रही है। इसलिए बीते दिनों के आदेश में उन्होंने बेवजह पेड़ काटने और कटवाने वालों पर सख्त कार्रवाई के निर्देश दिए हैं। पर सरकार के इस आदेश पर अमल करने वाले महकमे की पड़ताल करें तो साफ होता है कि उसके पास सरकारी आदेश को जमीन पर उतारने के लिए कोई नीति और नीयत नहीं है। यही वजह है कि जब वन महकमे के हुक्मरानों से पेड़-पौधे लगाने के बाबत बातचीत की जाती है तब उनके दावे इतने बढ़-चढ़कर होते हैं कि उस पर सहसा विश्वास कर पाना आसान नहीं होता।देश के कुल क्षेत्रफल के 23.81 फीसदी हिस्से पर जंगल हैं। वहीं, भारत सरकार का आंकड़ा कहता है कि हाल के वर्षों में 367 वर्ग किलोमीटर जंगल का सफाया कर दिया गया है। यह कुचक्र गंगोत्री से लेकर गंगासागर तक के पूरे इलाके में चल रहा है। कहीं कारण प्राकतिक है तो कहीं मानव निर्मित। अगर कुछेक राज्यों को छोड़ दें तो कमोबेश इस हरियाली को बनाए रखने के लिए प्रति उदासीनता एक जैसी ही नजर आती है।
पर्यावरण से पृथ्वी का गहरा नाता है। इस रिश्ते की डोर को सबसे मजबूती से जिसने बांधे रखा है वे पेड़ हैं। लेकिन दरख्तों की बेहिसाब कटाई और कंक्रीट के जंगलों के बीच आज अगर हम छांव को तरसते हैं तो हैरानी नहीं होनी चाहिए क्योंकि इन हालातों के जनक भी हम ही हैं। प्रदेश में पेड़ लगाने का अभियान छेड़ने वाली समाजवादी पार्टी सरकार भी अब हरियाली को लेकर चिंतित दिखाई पड़ रही है। इसलिए बीते दिनों के आदेश में उन्होंने बेवजह पेड़ काटने और कटवाने वालों पर सख्त कार्रवाई के निर्देश दिए हैं। पर सरकार के इस आदेश पर अमल करने वाले महकमे की पड़ताल करें तो साफ होता है कि उसके पास सरकारी आदेश को जमीन पर उतारने के लिए कोई नीति और नीयत नहीं है। यही वजह है कि जब वन महकमे के हुक्मरानों से पेड़-पौधे लगाने के बाबत बातचीत की जाती है तब उनके दावे इतने बढ़-चढ़कर होते हैं कि उस पर सहसा विश्वास कर पाना आसान नहीं होता।
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