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तरुण भारत संघ द्वारा प्रकाशित यह पुस्तक की लेखिका का मानना है कि नदी जोड़ परियोजना भारत सरकार के नेताओं, बड़े प्रशासनिक अधिकारियों और अंतरराष्ट्रीय ताकतों की स्वार्थ-सिद्धि तथा भूगोल के विनाश का साधन बनने जा रहे हैं।
नदी जोड़ परियोजना परिचय
नदी जोड़ परियोजना भारत की नदियों को आपस में जोड़ने की परियोजना है। इसके अंतर्गत जहां बाढ़ आती हो, वहां का पानी....वहां की नदियों पर बांध बनाकर नहरों द्वारा सूखे क्षेत्रों की उन नदियों में ले जाया जायेगा, जिनमें पानी कम होगा।नदी स्रोत के आधार पर इस परियोजना को दो भागों में बांटा गया है – हिमालयी और प्रायद्वीपीय। कुल 44 नदियों पर 30 जोड़ों का निर्माण प्रस्तावित है:
प्रस्तावित नदी जोड़
(क) हिमालयी भाग
1. ब्रह्मपुत्र-गंगा (मनास-शंखोश-तीस्ता-गंगा)
2. कोसी-घाघरा
3. गंडक-गंगा
4. घाघरा-यमुना
5. शारदा-यमुना
6. यमुना-राजस्थान
7. राजस्थान-साबरमती
8. चुनार-सोन बैराज
9. सोन बांध-गंगा की दक्षिणी सहायक नदियां
10. गंगा दामोदर-स्वर्णरेखा
11. स्वर्णरेखा-महानदी
12. कोसी-मेची
13. फरक्का-सुंदरवन
14. ब्रह्मपुत्र-गंगा (जोगीघोपा-तीस्ता-फरक्का)
(ख) प्रायद्वीपीय भाग
15. महानदी (मनिभद्र)-गोदावरी
16. गोदावरी (इचमपल्ली निचला बांध)- कृष्णा (नागार्जुन सागर छोर तालाब)
17. गोदावरी (इचमपल्ली)-कृष्णा (विजयवाड़ा)
18. गोदावरी (पोलावरम) – कृष्णा (विजयवाड़ा)
19. कृष्णा (अलमाटी) – पेन्नार
20. कृष्णा (श्रीसीलम) – पेन्नार
21. कृष्णा (नागार्जुन सागर) – पेन्नार (सोमासिला)
22. पेन्नार (सोमासिला) – कावेरी (ग्रैंड एनीकट)
23. कावेरी (कट्टालाई) – वैगाई – गुण्डर
24. केन- बेतवा
25. पार्वती-कालीसिंध-चम्बल
26. पार-ताप्ती-नर्मदा
27. दमनगंगा-पिंजाल
28. बेडती-वरदा
29. नेत्रवती-हेमवती
30. पम्बा-अचनकोबिल-वैप्पार
यह पूरी परियोजना बांध, नहर व सुरंगों पर आधारित है। परियोजना के तहत पूरे देश को 20 नदी घाटियों में बांटा गया है। इनमें से 12 प्रमुख नदी घाटियों का क्षेत्र 20,000 किमी. से ज्यादा है। नियोजन एवं विकास के उद्देश्य से शेष मध्यम व छोटी नदी प्रणालियों को आठ नदी घाटियों में समेकित किया गया है। इसके तहत कम से कम 400 बांध बनाने होंगे। नदी जोड़ परियोजना का अनुमानित खर्च रुपये 56,000 करोड़ है। सुरेश प्रभु की अध्यक्षता वाले कार्यदल ने अपने शुरुआती अध्ययन में ही इस आंकड़े के बढ़कर 100 हजार करोड़ होने की आशंका संभावना व्यक्त की थी।
सरकार ने इस परियोजना के ढेरों लाभ भी गिनाये हैं। उनकी चर्चा हम अगले पृष्ठों पर करेंगे। फिलहाल नदी जोड़ परियोजना को लागू करने से पहले सरकार को जनहित में जिन निर्देशों का पालन करना चाहिए, उनका उल्लेख जरूरी है।
संयुक्त राष्ट्र संघ दिशा-निर्देश और नदी जोड़ :
अक्टूबर, 2005 के प्रथम सप्ताह में केन्या (अफ्रीका) में संयुक्त राष्ट्र बांध एवं विकास कार्यक्रम के अंतर्गत बांध एवं विकास मंच का चतुर्थ सम्मेलन आयोजित किया गया था। इसमें किसी भी बांध एवं विकास परियोजना को शुरू करने से पहले कुछ निर्देशों पर ध्यान खींचा गया था। कहा गया है कि परियोजना शुरू होने से पहले इन तथ्यों के बारे में स्पष्टता होनी चाहिए। ऐसे कुछ महत्वपूर्ण दिशा-निर्देश निम्न हैं:
1. परियोजना की क्या एवं क्यों आवश्यकता है?
2. ऐसी पूर्व परियोजनाओं के लाभदायक परिणामों की सूची का प्रकाशन।
3. नदियों की वर्तमान अवस्था एवं उन पर निर्भर आजीविका।
4. पर्यावरणीय, आर्थिक एवं सामाजिक पक्षों पर विस्तृत विचार।
5. प्रभावित आदिवासियों, स्थानीय निवासियों, महिलाओं एवं असुरक्षित समूहों की समस्याओं का निवारण।
6. विस्थापितों की समस्या का समुचित समाधन।
7. अंतर्राष्ट्रीय/राष्ट्रीय/कानूनी/नियामक ढांचों से संबंधित अंतर्राष्ट्रीय विवादों को सुलझाने की संतोषजनक प्रक्रिया व संभावनाएं।
8. बांध एवं विकास कार्यक्रमों के आयोजकों के अधिकार एवं कार्यक्रमों के खतरे।
9. सरकारी तंत्र की भागीदारी व उत्तरदायित्व।
10. गैर सरकारी संस्थाओं की पहरेदारी।
11. परियोजना संबंधी पूरी सूचना को लाभार्थियों, स्थानीय लोगों, जनप्रतिनिधियों तथा कार्यदल तक पहुंचाना, ताकि स्पष्ट व शीघ्र निर्णय की प्रक्रिया विकसित हो सके।
12. समस्त सूचना व जानकारी का संबद्ध प्रादेशिक भाषाओं में अनुवाद।
13. लाभार्थियों एवं कार्यदलों में परस्पर संवाद कायम रखना।
14. स्वीकृति व असहमति के क्षेत्रों को परिभाषित करना तथा उनका उल्लेख करना।
15. भ्रष्टाचार निरोधक कार्यप्रणाली विकसित करना।
16. नदी बेसिन में भागीदारी संबंधी राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय नीति का ध्यान रखना। बेसिन के संदर्भ में शांतिपूर्ण समझौते सुनिश्चित करना व विवादों को सुलझाने के लिए अनुकूल वातावरण का निर्माण करना।
17. स्वतंत्र समीक्षा के लिए संस्था या ढांचा खड़ा करना।
18. परियोजना से संबंधित सूचना व संसाधनों का अंतर्क्षेत्रिय व अंतर्राज्यीय आदान-प्रदान। विशिष्ट उत्सवों या घटनाओं के समय भी ऐसी जानकारी को संबंधितजनों तक पहुंचाना।
19. परियोजना पर सामुदायिक व वैश्विक दृष्टिकोण को समझना ।
इस पुस्तक का विषय क्रम निम्नवत हैं:-
1. इतिहास
2. प्रस्तावित लाभ और उनका सच
3. खतरे
4. सोचने की बात
5. विकल्प
6. केन-बेतवा अध्ययन
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पर जाएंमहाराष्ट्र अकेला ऐसा राज्य है जो कृषि के मुकाबले उद्योगों को पानी उपलब्ध कराने को ज्यादा प्राथमिकता देता है। इसलिए सिंचाई योजनाएं बनती हैं तो उनका पानी शहरों में उद्योगों की जरूरतों पर खर्च कर दिया जाता है। अमरावती जिले में ही, जो सबसे ज्यादा सूखाग्रस्त इलाका है, प्रधानमंत्री राहत योजना के तहत अपर वर्धा सिंचाई प्रोजेक्ट बनाया गया, लेकिन जब यह बनकर तैयार हुआ तो राज्य सरकार ने निर्णय लिया कि इसका पानी सोफिया थर्मल पावर प्रोजेक्ट को दे दिया जाए।
फिर से एक बार सूखे के दिन हैं। इसमें नया कुछ भी नहीं है। हर साल दिसंबर और जून के महीनों में हम सूखे से जूझते हैं फिर कुछ महीने बाढ़ से। यह हर साल का क्रमिक चक्र बन चुका है। लेकिन इसका कारण प्रकृति नहीं है जिसके लिए हम उसे दोष दें। ये सूखा और बाढ़ हम मनुष्यों के ही कर्मों का नतीजा है। हमारी लापरवाहियों का, जिनके कारण हम पानी और जमीन की सही देखभाल नहीं करते। हमारी लापरवाही के कारण ही ये प्राकृतिक आपदाएं पिछले कुछ सालों में विकराल रूप लेती रही हैं। इस सालों में महाराष्ट्र का एक बड़ा हिस्सा सूखे की चपेट में आया है जिसके कारण बड़े पैमाने पर किसानों की फसलें चौपट हुई हैं और वे आत्महत्या के लिए विवश हुए हैं। किसानों की मदद के नाम पर मुख्यमंत्री और पैसा चाहते हैं और विपक्ष इस पर अपनी सियासत करता है।जिस तरह प्रकृति में विविधता है उसी तरह फसलों में भी दिखाई देती है। कहीं गरम, कहीं ठंडा, कहीं कम गरम और ज्यादा ठंडा। रबी की फसलों में इतनी विविधता नहीं है लेकिन खरीफ की फसलें विविधतापूर्ण हैं। बारहनाजा परिवार में तरह-तरह के रंग-रूप, स्वाद और पौष्टिकता से परिपूर्ण अनाज, दालें, मसाले और सब्जियां
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पुस्तक : क्यों नहीं नदी जोड़?
तरुण भारत संघ द्वारा प्रकाशित यह पुस्तक की लेखिका का मानना है कि नदी जोड़ परियोजना भारत सरकार के नेताओं, बड़े प्रशासनिक अधिकारियों और अंतरराष्ट्रीय ताकतों की स्वार्थ-सिद्धि तथा भूगोल के विनाश का साधन बनने जा रहे हैं।
नदी जोड़ परियोजना परिचय
नदी जोड़ परियोजना भारत की नदियों को आपस में जोड़ने की परियोजना है। इसके अंतर्गत जहां बाढ़ आती हो, वहां का पानी....वहां की नदियों पर बांध बनाकर नहरों द्वारा सूखे क्षेत्रों की उन नदियों में ले जाया जायेगा, जिनमें पानी कम होगा।नदी स्रोत के आधार पर इस परियोजना को दो भागों में बांटा गया है – हिमालयी और प्रायद्वीपीय। कुल 44 नदियों पर 30 जोड़ों का निर्माण प्रस्तावित है:
प्रस्तावित नदी जोड़
(क) हिमालयी भाग
1. ब्रह्मपुत्र-गंगा (मनास-शंखोश-तीस्ता-गंगा)
2. कोसी-घाघरा
3. गंडक-गंगा
4. घाघरा-यमुना
5. शारदा-यमुना
6. यमुना-राजस्थान
7. राजस्थान-साबरमती
8. चुनार-सोन बैराज
9. सोन बांध-गंगा की दक्षिणी सहायक नदियां
10. गंगा दामोदर-स्वर्णरेखा
11. स्वर्णरेखा-महानदी
12. कोसी-मेची
13. फरक्का-सुंदरवन
14. ब्रह्मपुत्र-गंगा (जोगीघोपा-तीस्ता-फरक्का)
(ख) प्रायद्वीपीय भाग
15. महानदी (मनिभद्र)-गोदावरी
16. गोदावरी (इचमपल्ली निचला बांध)- कृष्णा (नागार्जुन सागर छोर तालाब)
17. गोदावरी (इचमपल्ली)-कृष्णा (विजयवाड़ा)
18. गोदावरी (पोलावरम) – कृष्णा (विजयवाड़ा)
19. कृष्णा (अलमाटी) – पेन्नार
20. कृष्णा (श्रीसीलम) – पेन्नार
21. कृष्णा (नागार्जुन सागर) – पेन्नार (सोमासिला)
22. पेन्नार (सोमासिला) – कावेरी (ग्रैंड एनीकट)
23. कावेरी (कट्टालाई) – वैगाई – गुण्डर
24. केन- बेतवा
25. पार्वती-कालीसिंध-चम्बल
26. पार-ताप्ती-नर्मदा
27. दमनगंगा-पिंजाल
28. बेडती-वरदा
29. नेत्रवती-हेमवती
30. पम्बा-अचनकोबिल-वैप्पार
यह पूरी परियोजना बांध, नहर व सुरंगों पर आधारित है। परियोजना के तहत पूरे देश को 20 नदी घाटियों में बांटा गया है। इनमें से 12 प्रमुख नदी घाटियों का क्षेत्र 20,000 किमी. से ज्यादा है। नियोजन एवं विकास के उद्देश्य से शेष मध्यम व छोटी नदी प्रणालियों को आठ नदी घाटियों में समेकित किया गया है। इसके तहत कम से कम 400 बांध बनाने होंगे। नदी जोड़ परियोजना का अनुमानित खर्च रुपये 56,000 करोड़ है। सुरेश प्रभु की अध्यक्षता वाले कार्यदल ने अपने शुरुआती अध्ययन में ही इस आंकड़े के बढ़कर 100 हजार करोड़ होने की आशंका संभावना व्यक्त की थी।
सरकार ने इस परियोजना के ढेरों लाभ भी गिनाये हैं। उनकी चर्चा हम अगले पृष्ठों पर करेंगे। फिलहाल नदी जोड़ परियोजना को लागू करने से पहले सरकार को जनहित में जिन निर्देशों का पालन करना चाहिए, उनका उल्लेख जरूरी है।
संयुक्त राष्ट्र संघ दिशा-निर्देश और नदी जोड़ :
अक्टूबर, 2005 के प्रथम सप्ताह में केन्या (अफ्रीका) में संयुक्त राष्ट्र बांध एवं विकास कार्यक्रम के अंतर्गत बांध एवं विकास मंच का चतुर्थ सम्मेलन आयोजित किया गया था। इसमें किसी भी बांध एवं विकास परियोजना को शुरू करने से पहले कुछ निर्देशों पर ध्यान खींचा गया था। कहा गया है कि परियोजना शुरू होने से पहले इन तथ्यों के बारे में स्पष्टता होनी चाहिए। ऐसे कुछ महत्वपूर्ण दिशा-निर्देश निम्न हैं:
1. परियोजना की क्या एवं क्यों आवश्यकता है?
2. ऐसी पूर्व परियोजनाओं के लाभदायक परिणामों की सूची का प्रकाशन।
3. नदियों की वर्तमान अवस्था एवं उन पर निर्भर आजीविका।
4. पर्यावरणीय, आर्थिक एवं सामाजिक पक्षों पर विस्तृत विचार।
5. प्रभावित आदिवासियों, स्थानीय निवासियों, महिलाओं एवं असुरक्षित समूहों की समस्याओं का निवारण।
6. विस्थापितों की समस्या का समुचित समाधन।
7. अंतर्राष्ट्रीय/राष्ट्रीय/कानूनी/नियामक ढांचों से संबंधित अंतर्राष्ट्रीय विवादों को सुलझाने की संतोषजनक प्रक्रिया व संभावनाएं।
8. बांध एवं विकास कार्यक्रमों के आयोजकों के अधिकार एवं कार्यक्रमों के खतरे।
9. सरकारी तंत्र की भागीदारी व उत्तरदायित्व।
10. गैर सरकारी संस्थाओं की पहरेदारी।
11. परियोजना संबंधी पूरी सूचना को लाभार्थियों, स्थानीय लोगों, जनप्रतिनिधियों तथा कार्यदल तक पहुंचाना, ताकि स्पष्ट व शीघ्र निर्णय की प्रक्रिया विकसित हो सके।
12. समस्त सूचना व जानकारी का संबद्ध प्रादेशिक भाषाओं में अनुवाद।
13. लाभार्थियों एवं कार्यदलों में परस्पर संवाद कायम रखना।
14. स्वीकृति व असहमति के क्षेत्रों को परिभाषित करना तथा उनका उल्लेख करना।
15. भ्रष्टाचार निरोधक कार्यप्रणाली विकसित करना।
16. नदी बेसिन में भागीदारी संबंधी राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय नीति का ध्यान रखना। बेसिन के संदर्भ में शांतिपूर्ण समझौते सुनिश्चित करना व विवादों को सुलझाने के लिए अनुकूल वातावरण का निर्माण करना।
17. स्वतंत्र समीक्षा के लिए संस्था या ढांचा खड़ा करना।
18. परियोजना से संबंधित सूचना व संसाधनों का अंतर्क्षेत्रिय व अंतर्राज्यीय आदान-प्रदान। विशिष्ट उत्सवों या घटनाओं के समय भी ऐसी जानकारी को संबंधितजनों तक पहुंचाना।
19. परियोजना पर सामुदायिक व वैश्विक दृष्टिकोण को समझना ।
इस पुस्तक का विषय क्रम निम्नवत हैं:-
1. इतिहास
2. प्रस्तावित लाभ और उनका सच
3. खतरे
4. सोचने की बात
5. विकल्प
6. केन-बेतवा अध्ययन
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सूखे के छह कारण
महाराष्ट्र अकेला ऐसा राज्य है जो कृषि के मुकाबले उद्योगों को पानी उपलब्ध कराने को ज्यादा प्राथमिकता देता है। इसलिए सिंचाई योजनाएं बनती हैं तो उनका पानी शहरों में उद्योगों की जरूरतों पर खर्च कर दिया जाता है। अमरावती जिले में ही, जो सबसे ज्यादा सूखाग्रस्त इलाका है, प्रधानमंत्री राहत योजना के तहत अपर वर्धा सिंचाई प्रोजेक्ट बनाया गया, लेकिन जब यह बनकर तैयार हुआ तो राज्य सरकार ने निर्णय लिया कि इसका पानी सोफिया थर्मल पावर प्रोजेक्ट को दे दिया जाए।
फिर से एक बार सूखे के दिन हैं। इसमें नया कुछ भी नहीं है। हर साल दिसंबर और जून के महीनों में हम सूखे से जूझते हैं फिर कुछ महीने बाढ़ से। यह हर साल का क्रमिक चक्र बन चुका है। लेकिन इसका कारण प्रकृति नहीं है जिसके लिए हम उसे दोष दें। ये सूखा और बाढ़ हम मनुष्यों के ही कर्मों का नतीजा है। हमारी लापरवाहियों का, जिनके कारण हम पानी और जमीन की सही देखभाल नहीं करते। हमारी लापरवाही के कारण ही ये प्राकृतिक आपदाएं पिछले कुछ सालों में विकराल रूप लेती रही हैं। इस सालों में महाराष्ट्र का एक बड़ा हिस्सा सूखे की चपेट में आया है जिसके कारण बड़े पैमाने पर किसानों की फसलें चौपट हुई हैं और वे आत्महत्या के लिए विवश हुए हैं। किसानों की मदद के नाम पर मुख्यमंत्री और पैसा चाहते हैं और विपक्ष इस पर अपनी सियासत करता है।सिर्फ फसल नहीं, कृषि संस्कृति है बारहनाजा
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