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खासम-खास

Submitted by Editorial Team on Tue, 10/04/2022 - 16:13
कूरम में पुनर्निर्मित समथमन मंदिर तालाब। फोटो - indiawaterportal
परम्परागत तालाबों पर अनुपम मिश्र की किताब ‘आज भी खरे हैं तालाब’, पहली बार, वर्ष 1993 में प्रकाशित हुई थी। इस किताब में अनुपम ने समाज से प्राप्त जानकारी के आधार पर भारत के विभिन्न भागों में बने तालाबों के बारे में व्यापक विवरण प्रस्तुत किया है। अर्थात आज भी खरे हैं तालाब में दर्ज विवरण परम्परागत तालाबों पर समाज की राय है। उनका दृष्टिबोध है। उन विवरणों में समाज की भावनायें, आस्था, मान्यतायें, रीति-रिवाज तथा परम्परागत तालाबों के निर्माण से जुड़े कर्मकाण्ड दर्ज हैं। प्रस्तुति और शैली अनुपम की है।

Content

Submitted by Hindi on Fri, 08/03/2012 - 15:27
Source:
Ken-Betwa River Linking Project
क्यों नहीं नदी जोड़? शीला डागा की पुस्तक है। इस पुस्तक में नदी जोड़, इससे पैदा होने वाले विवाद, पानी की लूट, समाज, संस्कृति की टूटन और विकल्प के सभी पहलूओं को समेटा गया है। पर्यावरणीय खतरे व आर्थिक असमानता को बढ़ाने का नाम है नदी जोड़ परियोजना।

तरुण भारत संघ द्वारा प्रकाशित यह पुस्तक की लेखिका का मानना है कि नदी जोड़ परियोजना भारत सरकार के नेताओं, बड़े प्रशासनिक अधिकारियों और अंतरराष्ट्रीय ताकतों की स्वार्थ-सिद्धि तथा भूगोल के विनाश का साधन बनने जा रहे हैं।

नदी जोड़ परियोजना परिचय
नदी जोड़ परियोजना भारत की नदियों को आपस में जोड़ने की परियोजना है। इसके अंतर्गत जहां बाढ़ आती हो, वहां का पानी....वहां की नदियों पर बांध बनाकर नहरों द्वारा सूखे क्षेत्रों की उन नदियों में ले जाया जायेगा, जिनमें पानी कम होगा।नदी स्रोत के आधार पर इस परियोजना को दो भागों में बांटा गया है – हिमालयी और प्रायद्वीपीय। कुल 44 नदियों पर 30 जोड़ों का निर्माण प्रस्तावित है:

प्रस्तावित नदी जोड़
(क) हिमालयी भाग
1. ब्रह्मपुत्र-गंगा (मनास-शंखोश-तीस्ता-गंगा)
2. कोसी-घाघरा
3. गंडक-गंगा
4. घाघरा-यमुना
5. शारदा-यमुना
6. यमुना-राजस्थान
7. राजस्थान-साबरमती
8. चुनार-सोन बैराज
9. सोन बांध-गंगा की दक्षिणी सहायक नदियां
10. गंगा दामोदर-स्वर्णरेखा
11. स्वर्णरेखा-महानदी
12. कोसी-मेची
13. फरक्का-सुंदरवन
14. ब्रह्मपुत्र-गंगा (जोगीघोपा-तीस्ता-फरक्का)

(ख) प्रायद्वीपीय भाग
15. महानदी (मनिभद्र)-गोदावरी
16. गोदावरी (इचमपल्ली निचला बांध)- कृष्णा (नागार्जुन सागर छोर तालाब)
17. गोदावरी (इचमपल्ली)-कृष्णा (विजयवाड़ा)
18. गोदावरी (पोलावरम) – कृष्णा (विजयवाड़ा)
19. कृष्णा (अलमाटी) – पेन्नार
20. कृष्णा (श्रीसीलम) – पेन्नार
21. कृष्णा (नागार्जुन सागर) – पेन्नार (सोमासिला)
22. पेन्नार (सोमासिला) – कावेरी (ग्रैंड एनीकट)
23. कावेरी (कट्टालाई) – वैगाई – गुण्डर
24. केन- बेतवा
25. पार्वती-कालीसिंध-चम्बल
26. पार-ताप्ती-नर्मदा
27. दमनगंगा-पिंजाल
28. बेडती-वरदा
29. नेत्रवती-हेमवती
30. पम्बा-अचनकोबिल-वैप्पार

यह पूरी परियोजना बांध, नहर व सुरंगों पर आधारित है। परियोजना के तहत पूरे देश को 20 नदी घाटियों में बांटा गया है। इनमें से 12 प्रमुख नदी घाटियों का क्षेत्र 20,000 किमी. से ज्यादा है। नियोजन एवं विकास के उद्देश्य से शेष मध्यम व छोटी नदी प्रणालियों को आठ नदी घाटियों में समेकित किया गया है। इसके तहत कम से कम 400 बांध बनाने होंगे। नदी जोड़ परियोजना का अनुमानित खर्च रुपये 56,000 करोड़ है। सुरेश प्रभु की अध्यक्षता वाले कार्यदल ने अपने शुरुआती अध्ययन में ही इस आंकड़े के बढ़कर 100 हजार करोड़ होने की आशंका संभावना व्यक्त की थी।

सरकार ने इस परियोजना के ढेरों लाभ भी गिनाये हैं। उनकी चर्चा हम अगले पृष्ठों पर करेंगे। फिलहाल नदी जोड़ परियोजना को लागू करने से पहले सरकार को जनहित में जिन निर्देशों का पालन करना चाहिए, उनका उल्लेख जरूरी है।

संयुक्त राष्ट्र संघ दिशा-निर्देश और नदी जोड़ :
अक्टूबर, 2005 के प्रथम सप्ताह में केन्या (अफ्रीका) में संयुक्त राष्ट्र बांध एवं विकास कार्यक्रम के अंतर्गत बांध एवं विकास मंच का चतुर्थ सम्मेलन आयोजित किया गया था। इसमें किसी भी बांध एवं विकास परियोजना को शुरू करने से पहले कुछ निर्देशों पर ध्यान खींचा गया था। कहा गया है कि परियोजना शुरू होने से पहले इन तथ्यों के बारे में स्पष्टता होनी चाहिए। ऐसे कुछ महत्वपूर्ण दिशा-निर्देश निम्न हैं:

1. परियोजना की क्या एवं क्यों आवश्यकता है?
2. ऐसी पूर्व परियोजनाओं के लाभदायक परिणामों की सूची का प्रकाशन।
3. नदियों की वर्तमान अवस्था एवं उन पर निर्भर आजीविका।
4. पर्यावरणीय, आर्थिक एवं सामाजिक पक्षों पर विस्तृत विचार।
5. प्रभावित आदिवासियों, स्थानीय निवासियों, महिलाओं एवं असुरक्षित समूहों की समस्याओं का निवारण।
6. विस्थापितों की समस्या का समुचित समाधन।
7. अंतर्राष्ट्रीय/राष्ट्रीय/कानूनी/नियामक ढांचों से संबंधित अंतर्राष्ट्रीय विवादों को सुलझाने की संतोषजनक प्रक्रिया व संभावनाएं।
8. बांध एवं विकास कार्यक्रमों के आयोजकों के अधिकार एवं कार्यक्रमों के खतरे।
9. सरकारी तंत्र की भागीदारी व उत्तरदायित्व।
10. गैर सरकारी संस्थाओं की पहरेदारी।
11. परियोजना संबंधी पूरी सूचना को लाभार्थियों, स्थानीय लोगों, जनप्रतिनिधियों तथा कार्यदल तक पहुंचाना, ताकि स्पष्ट व शीघ्र निर्णय की प्रक्रिया विकसित हो सके।
12. समस्त सूचना व जानकारी का संबद्ध प्रादेशिक भाषाओं में अनुवाद।
13. लाभार्थियों एवं कार्यदलों में परस्पर संवाद कायम रखना।
14. स्वीकृति व असहमति के क्षेत्रों को परिभाषित करना तथा उनका उल्लेख करना।
15. भ्रष्टाचार निरोधक कार्यप्रणाली विकसित करना।
16. नदी बेसिन में भागीदारी संबंधी राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय नीति का ध्यान रखना। बेसिन के संदर्भ में शांतिपूर्ण समझौते सुनिश्चित करना व विवादों को सुलझाने के लिए अनुकूल वातावरण का निर्माण करना।
17. स्वतंत्र समीक्षा के लिए संस्था या ढांचा खड़ा करना।
18. परियोजना से संबंधित सूचना व संसाधनों का अंतर्क्षेत्रिय व अंतर्राज्यीय आदान-प्रदान। विशिष्ट उत्सवों या घटनाओं के समय भी ऐसी जानकारी को संबंधितजनों तक पहुंचाना।
19. परियोजना पर सामुदायिक व वैश्विक दृष्टिकोण को समझना ।

इस पुस्तक का विषय क्रम निम्नवत हैं:-
1. इतिहास
2. प्रस्तावित लाभ और उनका सच
3. खतरे
4. सोचने की बात
5. विकल्प
6. केन-बेतवा अध्ययन

पूरी पुस्तक पढ़ने के लिए अटैंचमेंट से डाउनलोड करें।

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Submitted by Hindi on Mon, 07/23/2012 - 10:54
Source:
कादम्बिनी, जून 2012

महाराष्ट्र अकेला ऐसा राज्य है जो कृषि के मुकाबले उद्योगों को पानी उपलब्ध कराने को ज्यादा प्राथमिकता देता है। इसलिए सिंचाई योजनाएं बनती हैं तो उनका पानी शहरों में उद्योगों की जरूरतों पर खर्च कर दिया जाता है। अमरावती जिले में ही, जो सबसे ज्यादा सूखाग्रस्त इलाका है, प्रधानमंत्री राहत योजना के तहत अपर वर्धा सिंचाई प्रोजेक्ट बनाया गया, लेकिन जब यह बनकर तैयार हुआ तो राज्य सरकार ने निर्णय लिया कि इसका पानी सोफिया थर्मल पावर प्रोजेक्ट को दे दिया जाए।

फिर से एक बार सूखे के दिन हैं। इसमें नया कुछ भी नहीं है। हर साल दिसंबर और जून के महीनों में हम सूखे से जूझते हैं फिर कुछ महीने बाढ़ से। यह हर साल का क्रमिक चक्र बन चुका है। लेकिन इसका कारण प्रकृति नहीं है जिसके लिए हम उसे दोष दें। ये सूखा और बाढ़ हम मनुष्यों के ही कर्मों का नतीजा है। हमारी लापरवाहियों का, जिनके कारण हम पानी और जमीन की सही देखभाल नहीं करते। हमारी लापरवाही के कारण ही ये प्राकृतिक आपदाएं पिछले कुछ सालों में विकराल रूप लेती रही हैं। इस सालों में महाराष्ट्र का एक बड़ा हिस्सा सूखे की चपेट में आया है जिसके कारण बड़े पैमाने पर किसानों की फसलें चौपट हुई हैं और वे आत्महत्या के लिए विवश हुए हैं। किसानों की मदद के नाम पर मुख्यमंत्री और पैसा चाहते हैं और विपक्ष इस पर अपनी सियासत करता है।
Submitted by Hindi on Mon, 07/23/2012 - 09:47
Source:
vijay jardhari

जिस तरह प्रकृति में विविधता है उसी तरह फसलों में भी दिखाई देती है। कहीं गरम, कहीं ठंडा, कहीं कम गरम और ज्यादा ठंडा। रबी की फसलों में इतनी विविधता नहीं है लेकिन खरीफ की फसलें विविधतापूर्ण हैं। बारहनाजा परिवार में तरह-तरह के रंग-रूप, स्वाद और पौष्टिकता से परिपूर्ण अनाज, दालें, मसाले और सब्जियां

प्रयास

Submitted by Editorial Team on Thu, 12/08/2022 - 13:06
सीतापुर का नैमिषारण्य तीर्थ क्षेत्र, फोटो साभार - उप्र सरकार
श्री नैभिषारण्य धाम तीर्थ परिषद के गठन को प्रदेश मंत्रिमएडल ने स्वीकृति प्रदान की, जिसके अध्यक्ष स्वयं मुख्यमंत्री होंगे। इसके अंतर्गत नैमिषारण्य की होली के अवसर पर चौरासी कोसी 5 दिवसीय परिक्रमा पथ और उस पर स्थापित सम्पूर्ण देश की संह्कृति एवं एकात्मता के वह सभी तीर्थ एवं उनके स्थल केंद्रित हैं। इस सम्पूर्ण नैमिशारण्य क्षेत्र में लोक भारती पिछले 10 वर्ष से कार्य कर रही है। नैमिषाराण्य क्षेत्र के भूगर्भ जल स्रोतो का अध्ययन एवं उनके पुनर्नीवन पर लगातार कार्य चल रहा है। वर्षा नल सरक्षण एवं संम्भरण हेतु तालाबें के पुनर्नीवन अनियान के जवर्गत 119 तालाबों का पृनरुद्धार लोक भारती के प्रयासों से सम्पन्न हुआ है।

नोटिस बोर्ड

Submitted by Shivendra on Tue, 09/06/2022 - 14:16
Source:
चरखा फीचर
'संजॉय घोष मीडिया अवार्ड्स – 2022
कार्य अनुभव के विवरण के साथ संक्षिप्त पाठ्यक्रम जीवन लगभग 800-1000 शब्दों का एक प्रस्ताव, जिसमें उस विशेष विषयगत क्षेत्र को रेखांकित किया गया हो, जिसमें आवेदक काम करना चाहता है. प्रस्ताव में अध्ययन की विशिष्ट भौगोलिक स्थिति, कार्यप्रणाली, चयनित विषय की प्रासंगिकता के साथ-साथ इन लेखों से अपेक्षित प्रभाव के बारे में विवरण शामिल होनी चाहिए. साथ ही, इस बात का उल्लेख होनी चाहिए कि देश के विकास से जुड़ी बहस में इसके योगदान किस प्रकार हो सकता है? कृपया आलेख प्रस्तुत करने वाली भाषा भी निर्दिष्ट करें। लेख अंग्रेजी, हिंदी या उर्दू में ही स्वीकार किए जाएंगे
Submitted by Shivendra on Tue, 08/23/2022 - 17:19
Source:
यूसर्क
जल विज्ञान प्रशिक्षण कार्यशाला
उत्तराखंड विज्ञान शिक्षा एवं अनुसंधान केंद्र द्वारा आज दिनांक 23.08.22 को तीन दिवसीय जल विज्ञान प्रशिक्षण प्रारंभ किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए यूसर्क की निदेशक प्रो.(डॉ.) अनीता रावत ने अपने संबोधन में कहा कि यूसर्क द्वारा जल के महत्व को देखते हुए विगत वर्ष 2021 को संयुक्त राष्ट्र की विश्व पर्यावरण दिवस की थीम "ईको सिस्टम रेस्टोरेशन" के अंर्तगत आयोजित कार्यक्रम के निष्कर्षों के क्रम में जल विज्ञान विषयक लेक्चर सीरीज एवं जल विज्ञान प्रशिक्षण कार्यक्रमों को प्रारंभ किया गया
Submitted by Shivendra on Mon, 07/25/2022 - 15:34
Source:
यूसर्क
जल शिक्षा व्याख्यान श्रृंखला
इस दौरान राष्ट्रीय पर्यावरण  इंजीनियरिंग अनुसंधान संस्था के वरिष्ठ वैज्ञानिक और अपशिष्ट जल विभाग विभाग के प्रमुख डॉक्टर रितेश विजय  सस्टेनेबल  वेस्ट वाटर ट्रीटमेंट फॉर लिक्विड वेस्ट मैनेजमेंट (Sustainable Wastewater Treatment for Liquid Waste Management) विषय  पर विशेषज्ञ तौर पर अपनी राय रखेंगे।

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खासम-खास

तालाब ज्ञान-संस्कृति : नींव से शिखर तक

Submitted by Editorial Team on Tue, 10/04/2022 - 16:13
Author
कृष्ण गोपाल 'व्यास’
talab-gyan-sanskriti-:-ninv-se-shikhar-tak
कूरम में पुनर्निर्मित समथमन मंदिर तालाब। फोटो - indiawaterportal
परम्परागत तालाबों पर अनुपम मिश्र की किताब ‘आज भी खरे हैं तालाब’, पहली बार, वर्ष 1993 में प्रकाशित हुई थी। इस किताब में अनुपम ने समाज से प्राप्त जानकारी के आधार पर भारत के विभिन्न भागों में बने तालाबों के बारे में व्यापक विवरण प्रस्तुत किया है। अर्थात आज भी खरे हैं तालाब में दर्ज विवरण परम्परागत तालाबों पर समाज की राय है। उनका दृष्टिबोध है। उन विवरणों में समाज की भावनायें, आस्था, मान्यतायें, रीति-रिवाज तथा परम्परागत तालाबों के निर्माण से जुड़े कर्मकाण्ड दर्ज हैं। प्रस्तुति और शैली अनुपम की है।

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पुस्तक : क्यों नहीं नदी जोड़?

Submitted by Hindi on Fri, 08/03/2012 - 15:27
Author
डॉ. शीला डागा
Ken-Betwa River Linking Project
क्यों नहीं नदी जोड़? शीला डागा की पुस्तक है। इस पुस्तक में नदी जोड़, इससे पैदा होने वाले विवाद, पानी की लूट, समाज, संस्कृति की टूटन और विकल्प के सभी पहलूओं को समेटा गया है। पर्यावरणीय खतरे व आर्थिक असमानता को बढ़ाने का नाम है नदी जोड़ परियोजना।

तरुण भारत संघ द्वारा प्रकाशित यह पुस्तक की लेखिका का मानना है कि नदी जोड़ परियोजना भारत सरकार के नेताओं, बड़े प्रशासनिक अधिकारियों और अंतरराष्ट्रीय ताकतों की स्वार्थ-सिद्धि तथा भूगोल के विनाश का साधन बनने जा रहे हैं।

नदी जोड़ परियोजना परिचय


नदी जोड़ परियोजना भारत की नदियों को आपस में जोड़ने की परियोजना है। इसके अंतर्गत जहां बाढ़ आती हो, वहां का पानी....वहां की नदियों पर बांध बनाकर नहरों द्वारा सूखे क्षेत्रों की उन नदियों में ले जाया जायेगा, जिनमें पानी कम होगा।नदी स्रोत के आधार पर इस परियोजना को दो भागों में बांटा गया है – हिमालयी और प्रायद्वीपीय। कुल 44 नदियों पर 30 जोड़ों का निर्माण प्रस्तावित है:

प्रस्तावित नदी जोड़


(क) हिमालयी भाग
1. ब्रह्मपुत्र-गंगा (मनास-शंखोश-तीस्ता-गंगा)
2. कोसी-घाघरा
3. गंडक-गंगा
4. घाघरा-यमुना
5. शारदा-यमुना
6. यमुना-राजस्थान
7. राजस्थान-साबरमती
8. चुनार-सोन बैराज
9. सोन बांध-गंगा की दक्षिणी सहायक नदियां
10. गंगा दामोदर-स्वर्णरेखा
11. स्वर्णरेखा-महानदी
12. कोसी-मेची
13. फरक्का-सुंदरवन
14. ब्रह्मपुत्र-गंगा (जोगीघोपा-तीस्ता-फरक्का)

(ख) प्रायद्वीपीय भाग
15. महानदी (मनिभद्र)-गोदावरी
16. गोदावरी (इचमपल्ली निचला बांध)- कृष्णा (नागार्जुन सागर छोर तालाब)
17. गोदावरी (इचमपल्ली)-कृष्णा (विजयवाड़ा)
18. गोदावरी (पोलावरम) – कृष्णा (विजयवाड़ा)
19. कृष्णा (अलमाटी) – पेन्नार
20. कृष्णा (श्रीसीलम) – पेन्नार
21. कृष्णा (नागार्जुन सागर) – पेन्नार (सोमासिला)
22. पेन्नार (सोमासिला) – कावेरी (ग्रैंड एनीकट)
23. कावेरी (कट्टालाई) – वैगाई – गुण्डर
24. केन- बेतवा
25. पार्वती-कालीसिंध-चम्बल
26. पार-ताप्ती-नर्मदा
27. दमनगंगा-पिंजाल
28. बेडती-वरदा
29. नेत्रवती-हेमवती
30. पम्बा-अचनकोबिल-वैप्पार

यह पूरी परियोजना बांध, नहर व सुरंगों पर आधारित है। परियोजना के तहत पूरे देश को 20 नदी घाटियों में बांटा गया है। इनमें से 12 प्रमुख नदी घाटियों का क्षेत्र 20,000 किमी. से ज्यादा है। नियोजन एवं विकास के उद्देश्य से शेष मध्यम व छोटी नदी प्रणालियों को आठ नदी घाटियों में समेकित किया गया है। इसके तहत कम से कम 400 बांध बनाने होंगे। नदी जोड़ परियोजना का अनुमानित खर्च रुपये 56,000 करोड़ है। सुरेश प्रभु की अध्यक्षता वाले कार्यदल ने अपने शुरुआती अध्ययन में ही इस आंकड़े के बढ़कर 100 हजार करोड़ होने की आशंका संभावना व्यक्त की थी।

सरकार ने इस परियोजना के ढेरों लाभ भी गिनाये हैं। उनकी चर्चा हम अगले पृष्ठों पर करेंगे। फिलहाल नदी जोड़ परियोजना को लागू करने से पहले सरकार को जनहित में जिन निर्देशों का पालन करना चाहिए, उनका उल्लेख जरूरी है।

संयुक्त राष्ट्र संघ दिशा-निर्देश और नदी जोड़ :


अक्टूबर, 2005 के प्रथम सप्ताह में केन्या (अफ्रीका) में संयुक्त राष्ट्र बांध एवं विकास कार्यक्रम के अंतर्गत बांध एवं विकास मंच का चतुर्थ सम्मेलन आयोजित किया गया था। इसमें किसी भी बांध एवं विकास परियोजना को शुरू करने से पहले कुछ निर्देशों पर ध्यान खींचा गया था। कहा गया है कि परियोजना शुरू होने से पहले इन तथ्यों के बारे में स्पष्टता होनी चाहिए। ऐसे कुछ महत्वपूर्ण दिशा-निर्देश निम्न हैं:

1. परियोजना की क्या एवं क्यों आवश्यकता है?
2. ऐसी पूर्व परियोजनाओं के लाभदायक परिणामों की सूची का प्रकाशन।
3. नदियों की वर्तमान अवस्था एवं उन पर निर्भर आजीविका।
4. पर्यावरणीय, आर्थिक एवं सामाजिक पक्षों पर विस्तृत विचार।
5. प्रभावित आदिवासियों, स्थानीय निवासियों, महिलाओं एवं असुरक्षित समूहों की समस्याओं का निवारण।
6. विस्थापितों की समस्या का समुचित समाधन।
7. अंतर्राष्ट्रीय/राष्ट्रीय/कानूनी/नियामक ढांचों से संबंधित अंतर्राष्ट्रीय विवादों को सुलझाने की संतोषजनक प्रक्रिया व संभावनाएं।
8. बांध एवं विकास कार्यक्रमों के आयोजकों के अधिकार एवं कार्यक्रमों के खतरे।
9. सरकारी तंत्र की भागीदारी व उत्तरदायित्व।
10. गैर सरकारी संस्थाओं की पहरेदारी।
11. परियोजना संबंधी पूरी सूचना को लाभार्थियों, स्थानीय लोगों, जनप्रतिनिधियों तथा कार्यदल तक पहुंचाना, ताकि स्पष्ट व शीघ्र निर्णय की प्रक्रिया विकसित हो सके।
12. समस्त सूचना व जानकारी का संबद्ध प्रादेशिक भाषाओं में अनुवाद।
13. लाभार्थियों एवं कार्यदलों में परस्पर संवाद कायम रखना।
14. स्वीकृति व असहमति के क्षेत्रों को परिभाषित करना तथा उनका उल्लेख करना।
15. भ्रष्टाचार निरोधक कार्यप्रणाली विकसित करना।
16. नदी बेसिन में भागीदारी संबंधी राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय नीति का ध्यान रखना। बेसिन के संदर्भ में शांतिपूर्ण समझौते सुनिश्चित करना व विवादों को सुलझाने के लिए अनुकूल वातावरण का निर्माण करना।
17. स्वतंत्र समीक्षा के लिए संस्था या ढांचा खड़ा करना।
18. परियोजना से संबंधित सूचना व संसाधनों का अंतर्क्षेत्रिय व अंतर्राज्यीय आदान-प्रदान। विशिष्ट उत्सवों या घटनाओं के समय भी ऐसी जानकारी को संबंधितजनों तक पहुंचाना।
19. परियोजना पर सामुदायिक व वैश्विक दृष्टिकोण को समझना ।

इस पुस्तक का विषय क्रम निम्नवत हैं:-


1. इतिहास
2. प्रस्तावित लाभ और उनका सच
3. खतरे
4. सोचने की बात
5. विकल्प
6. केन-बेतवा अध्ययन

पूरी पुस्तक पढ़ने के लिए अटैंचमेंट से डाउनलोड करें।

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सूखे के छह कारण

Submitted by Hindi on Mon, 07/23/2012 - 10:54
Author
सुनीता नारायण
Source
कादम्बिनी, जून 2012

महाराष्ट्र अकेला ऐसा राज्य है जो कृषि के मुकाबले उद्योगों को पानी उपलब्ध कराने को ज्यादा प्राथमिकता देता है। इसलिए सिंचाई योजनाएं बनती हैं तो उनका पानी शहरों में उद्योगों की जरूरतों पर खर्च कर दिया जाता है। अमरावती जिले में ही, जो सबसे ज्यादा सूखाग्रस्त इलाका है, प्रधानमंत्री राहत योजना के तहत अपर वर्धा सिंचाई प्रोजेक्ट बनाया गया, लेकिन जब यह बनकर तैयार हुआ तो राज्य सरकार ने निर्णय लिया कि इसका पानी सोफिया थर्मल पावर प्रोजेक्ट को दे दिया जाए।

फिर से एक बार सूखे के दिन हैं। इसमें नया कुछ भी नहीं है। हर साल दिसंबर और जून के महीनों में हम सूखे से जूझते हैं फिर कुछ महीने बाढ़ से। यह हर साल का क्रमिक चक्र बन चुका है। लेकिन इसका कारण प्रकृति नहीं है जिसके लिए हम उसे दोष दें। ये सूखा और बाढ़ हम मनुष्यों के ही कर्मों का नतीजा है। हमारी लापरवाहियों का, जिनके कारण हम पानी और जमीन की सही देखभाल नहीं करते। हमारी लापरवाही के कारण ही ये प्राकृतिक आपदाएं पिछले कुछ सालों में विकराल रूप लेती रही हैं। इस सालों में महाराष्ट्र का एक बड़ा हिस्सा सूखे की चपेट में आया है जिसके कारण बड़े पैमाने पर किसानों की फसलें चौपट हुई हैं और वे आत्महत्या के लिए विवश हुए हैं। किसानों की मदद के नाम पर मुख्यमंत्री और पैसा चाहते हैं और विपक्ष इस पर अपनी सियासत करता है।

सिर्फ फसल नहीं, कृषि संस्कृति है बारहनाजा

Submitted by Hindi on Mon, 07/23/2012 - 09:47
Author
बाबा मायाराम
vijay jardhari

जिस तरह प्रकृति में विविधता है उसी तरह फसलों में भी दिखाई देती है। कहीं गरम, कहीं ठंडा, कहीं कम गरम और ज्यादा ठंडा। रबी की फसलों में इतनी विविधता नहीं है लेकिन खरीफ की फसलें विविधतापूर्ण हैं। बारहनाजा परिवार में तरह-तरह के रंग-रूप, स्वाद और पौष्टिकता से परिपूर्ण अनाज, दालें, मसाले और सब्जियां

प्रयास

सीतापुर और हरदोई के 36 गांव मिलाकर हो रहा है ‘नैमिषारण्य तीर्थ विकास परिषद’ गठन  

Submitted by Editorial Team on Thu, 12/08/2022 - 13:06
sitapur-aur-hardoi-ke-36-gaon-milaakar-ho-raha-hai-'naimisharany-tirth-vikas-parishad'-gathan
Source
लोकसम्मान पत्रिका, दिसम्बर-2022
सीतापुर का नैमिषारण्य तीर्थ क्षेत्र, फोटो साभार - उप्र सरकार
श्री नैभिषारण्य धाम तीर्थ परिषद के गठन को प्रदेश मंत्रिमएडल ने स्वीकृति प्रदान की, जिसके अध्यक्ष स्वयं मुख्यमंत्री होंगे। इसके अंतर्गत नैमिषारण्य की होली के अवसर पर चौरासी कोसी 5 दिवसीय परिक्रमा पथ और उस पर स्थापित सम्पूर्ण देश की संह्कृति एवं एकात्मता के वह सभी तीर्थ एवं उनके स्थल केंद्रित हैं। इस सम्पूर्ण नैमिशारण्य क्षेत्र में लोक भारती पिछले 10 वर्ष से कार्य कर रही है। नैमिषाराण्य क्षेत्र के भूगर्भ जल स्रोतो का अध्ययन एवं उनके पुनर्नीवन पर लगातार कार्य चल रहा है। वर्षा नल सरक्षण एवं संम्भरण हेतु तालाबें के पुनर्नीवन अनियान के जवर्गत 119 तालाबों का पृनरुद्धार लोक भारती के प्रयासों से सम्पन्न हुआ है।

नोटिस बोर्ड

'संजॉय घोष मीडिया अवार्ड्स – 2022

Submitted by Shivendra on Tue, 09/06/2022 - 14:16
sanjoy-ghosh-media-awards-–-2022
Source
चरखा फीचर
'संजॉय घोष मीडिया अवार्ड्स – 2022
कार्य अनुभव के विवरण के साथ संक्षिप्त पाठ्यक्रम जीवन लगभग 800-1000 शब्दों का एक प्रस्ताव, जिसमें उस विशेष विषयगत क्षेत्र को रेखांकित किया गया हो, जिसमें आवेदक काम करना चाहता है. प्रस्ताव में अध्ययन की विशिष्ट भौगोलिक स्थिति, कार्यप्रणाली, चयनित विषय की प्रासंगिकता के साथ-साथ इन लेखों से अपेक्षित प्रभाव के बारे में विवरण शामिल होनी चाहिए. साथ ही, इस बात का उल्लेख होनी चाहिए कि देश के विकास से जुड़ी बहस में इसके योगदान किस प्रकार हो सकता है? कृपया आलेख प्रस्तुत करने वाली भाषा भी निर्दिष्ट करें। लेख अंग्रेजी, हिंदी या उर्दू में ही स्वीकार किए जाएंगे

​यूसर्क द्वारा तीन दिवसीय जल विज्ञान प्रशिक्षण प्रारंभ

Submitted by Shivendra on Tue, 08/23/2022 - 17:19
USERC-dvara-tin-divasiy-jal-vigyan-prashikshan-prarambh
Source
यूसर्क
जल विज्ञान प्रशिक्षण कार्यशाला
उत्तराखंड विज्ञान शिक्षा एवं अनुसंधान केंद्र द्वारा आज दिनांक 23.08.22 को तीन दिवसीय जल विज्ञान प्रशिक्षण प्रारंभ किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए यूसर्क की निदेशक प्रो.(डॉ.) अनीता रावत ने अपने संबोधन में कहा कि यूसर्क द्वारा जल के महत्व को देखते हुए विगत वर्ष 2021 को संयुक्त राष्ट्र की विश्व पर्यावरण दिवस की थीम "ईको सिस्टम रेस्टोरेशन" के अंर्तगत आयोजित कार्यक्रम के निष्कर्षों के क्रम में जल विज्ञान विषयक लेक्चर सीरीज एवं जल विज्ञान प्रशिक्षण कार्यक्रमों को प्रारंभ किया गया

28 जुलाई को यूसर्क द्वारा आयोजित जल शिक्षा व्याख्यान श्रृंखला पर भाग लेने के लिए पंजीकरण करायें

Submitted by Shivendra on Mon, 07/25/2022 - 15:34
28-july-ko-ayojit-hone-vale-jal-shiksha-vyakhyan-shrinkhala-par-bhag-lene-ke-liye-panjikaran-karayen
Source
यूसर्क
जल शिक्षा व्याख्यान श्रृंखला
इस दौरान राष्ट्रीय पर्यावरण  इंजीनियरिंग अनुसंधान संस्था के वरिष्ठ वैज्ञानिक और अपशिष्ट जल विभाग विभाग के प्रमुख डॉक्टर रितेश विजय  सस्टेनेबल  वेस्ट वाटर ट्रीटमेंट फॉर लिक्विड वेस्ट मैनेजमेंट (Sustainable Wastewater Treatment for Liquid Waste Management) विषय  पर विशेषज्ञ तौर पर अपनी राय रखेंगे।

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