तालाब ज्ञान-संस्कृति : नींव से शिखर तक

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पर जाएंमहाराष्ट्र अकेला ऐसा राज्य है जो कृषि के मुकाबले उद्योगों को पानी उपलब्ध कराने को ज्यादा प्राथमिकता देता है। इसलिए सिंचाई योजनाएं बनती हैं तो उनका पानी शहरों में उद्योगों की जरूरतों पर खर्च कर दिया जाता है। अमरावती जिले में ही, जो सबसे ज्यादा सूखाग्रस्त इलाका है, प्रधानमंत्री राहत योजना के तहत अपर वर्धा सिंचाई प्रोजेक्ट बनाया गया, लेकिन जब यह बनकर तैयार हुआ तो राज्य सरकार ने निर्णय लिया कि इसका पानी सोफिया थर्मल पावर प्रोजेक्ट को दे दिया जाए।
फिर से एक बार सूखे के दिन हैं। इसमें नया कुछ भी नहीं है। हर साल दिसंबर और जून के महीनों में हम सूखे से जूझते हैं फिर कुछ महीने बाढ़ से। यह हर साल का क्रमिक चक्र बन चुका है। लेकिन इसका कारण प्रकृति नहीं है जिसके लिए हम उसे दोष दें। ये सूखा और बाढ़ हम मनुष्यों के ही कर्मों का नतीजा है। हमारी लापरवाहियों का, जिनके कारण हम पानी और जमीन की सही देखभाल नहीं करते। हमारी लापरवाही के कारण ही ये प्राकृतिक आपदाएं पिछले कुछ सालों में विकराल रूप लेती रही हैं। इस सालों में महाराष्ट्र का एक बड़ा हिस्सा सूखे की चपेट में आया है जिसके कारण बड़े पैमाने पर किसानों की फसलें चौपट हुई हैं और वे आत्महत्या के लिए विवश हुए हैं। किसानों की मदद के नाम पर मुख्यमंत्री और पैसा चाहते हैं और विपक्ष इस पर अपनी सियासत करता है।जिस तरह प्रकृति में विविधता है उसी तरह फसलों में भी दिखाई देती है। कहीं गरम, कहीं ठंडा, कहीं कम गरम और ज्यादा ठंडा। रबी की फसलों में इतनी विविधता नहीं है लेकिन खरीफ की फसलें विविधतापूर्ण हैं। बारहनाजा परिवार में तरह-तरह के रंग-रूप, स्वाद और पौष्टिकता से परिपूर्ण अनाज, दालें, मसाले और सब्जियां
महाराष्ट्र अकेला ऐसा राज्य है जो कृषि के मुकाबले उद्योगों को पानी उपलब्ध कराने को ज्यादा प्राथमिकता देता है। इसलिए सिंचाई योजनाएं बनती हैं तो उनका पानी शहरों में उद्योगों की जरूरतों पर खर्च कर दिया जाता है। अमरावती जिले में ही, जो सबसे ज्यादा सूखाग्रस्त इलाका है, प्रधानमंत्री राहत योजना के तहत अपर वर्धा सिंचाई प्रोजेक्ट बनाया गया, लेकिन जब यह बनकर तैयार हुआ तो राज्य सरकार ने निर्णय लिया कि इसका पानी सोफिया थर्मल पावर प्रोजेक्ट को दे दिया जाए।
फिर से एक बार सूखे के दिन हैं। इसमें नया कुछ भी नहीं है। हर साल दिसंबर और जून के महीनों में हम सूखे से जूझते हैं फिर कुछ महीने बाढ़ से। यह हर साल का क्रमिक चक्र बन चुका है। लेकिन इसका कारण प्रकृति नहीं है जिसके लिए हम उसे दोष दें। ये सूखा और बाढ़ हम मनुष्यों के ही कर्मों का नतीजा है। हमारी लापरवाहियों का, जिनके कारण हम पानी और जमीन की सही देखभाल नहीं करते। हमारी लापरवाही के कारण ही ये प्राकृतिक आपदाएं पिछले कुछ सालों में विकराल रूप लेती रही हैं। इस सालों में महाराष्ट्र का एक बड़ा हिस्सा सूखे की चपेट में आया है जिसके कारण बड़े पैमाने पर किसानों की फसलें चौपट हुई हैं और वे आत्महत्या के लिए विवश हुए हैं। किसानों की मदद के नाम पर मुख्यमंत्री और पैसा चाहते हैं और विपक्ष इस पर अपनी सियासत करता है।
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