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विकास के बारे में अलग-अलग दृष्टिकोण हो सकते हैं और हर एक को अपनी बात कहने का जनतांत्रिक अधिकार है। इसलिए जीडी अग्रवाल, राजेंद्र सिंह और उनके साथियों, भरत झुनझुनवाला और श्रीमती झुनझुनवाला के साथ पिछले दिनों जो बदसलूकी हुई, वह सर्वथा निंदनीय है। यह हमला कुछ लोगों ने नियोजित तरीके से किया था। राजनीतिक पार्टियों का नजरिया बहुत सारे मामलों में एक जैसा हो गया है, पर विभिन्न समुदायों ने अभी अपनी तरह से सोचना नहीं छोड़ा है।
पिछले दो-तीन सालों से जिस तरह की गतिविधियां गंगा के बारे में चलाई जा रही हैं, वे आशा नहीं जगातीं। यह बात अलग है कि उन गतिविधियों को संचालित करने वाले कोई ऐरे-गैरे लोग नहीं हैं। साफ है कि वे बहुत माने-जाने लोग हैं। उनकी प्रतिष्ठा है। कई तो ऐसे हैं जो न केवल प्रतिष्ठित हैं, बल्कि पदस्थापित भी हैं। ऐसे लोगों के प्रयास से गंगा को बचाने का जो भी काम चलेगा, उसे सफल होना चाहिए। यही आशा की जाती है।
इसमें कोई संदेह न पहले था न आज है कि गंगा का हमारे जीवन में कितना गहरा असर है। धार्मिक ग्रंथों में गंगा का जो वर्णन है, वह उसके प्रभाव को बढ़ाता है और बनाए रखता है। न जाने कब से यह परंपरा बनी हुई है। इतना तो साफ है कि गंगोत्री से गंगासागर तक दूरी चाहे जितनी हो और गंगा चाहे जहां की भी हो, उसकी एक-एक बूंद पवित्र मानी जाती है। इसी तरह गंगा के किनारे जो थोड़ा क्षण भी गुजार लेता है, वह इस रूप में स्वयं को धन्य पाता है कि गंगा के प्रवाह में वह न केवल भागीरथ को देखता है बल्कि उन पुरखों को भी देखता है, जो उसके अपने हैं। गंगा का प्रवाह ही ऐसा है। गंगा की पवित्रता उसके प्रवाह में है। वह प्रवाह परंपरा का है और उस क्षण का है, जिस क्षण का व्यक्ति साक्षी बनता है।बाढ़ में अतिरिक्त पानी को लेकर समझने की बात यह है कि उत्तर बिहार से होकर जितना पानी गुजरता है, उसमें मात्र 19 प्रतिशत ही स्थानीय बारिश का परिणाम होता है। शेष 81 प्रतिशत भारत के दूसरे राज्यों तथा नेपाल से आता है। गंगा में बहने वाले कुल पानी का मात्र तीन प्रतिशत ही बिहार में बरसी बारिश का होता ह
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बांधों का दुराग्रह कहीं का न छोड़ेगा
विकास के बारे में अलग-अलग दृष्टिकोण हो सकते हैं और हर एक को अपनी बात कहने का जनतांत्रिक अधिकार है। इसलिए जीडी अग्रवाल, राजेंद्र सिंह और उनके साथियों, भरत झुनझुनवाला और श्रीमती झुनझुनवाला के साथ पिछले दिनों जो बदसलूकी हुई, वह सर्वथा निंदनीय है। यह हमला कुछ लोगों ने नियोजित तरीके से किया था। राजनीतिक पार्टियों का नजरिया बहुत सारे मामलों में एक जैसा हो गया है, पर विभिन्न समुदायों ने अभी अपनी तरह से सोचना नहीं छोड़ा है।
गंगा : साधु-संतों से कुछ अपेक्षाएं भी हैं
पिछले दो-तीन सालों से जिस तरह की गतिविधियां गंगा के बारे में चलाई जा रही हैं, वे आशा नहीं जगातीं। यह बात अलग है कि उन गतिविधियों को संचालित करने वाले कोई ऐरे-गैरे लोग नहीं हैं। साफ है कि वे बहुत माने-जाने लोग हैं। उनकी प्रतिष्ठा है। कई तो ऐसे हैं जो न केवल प्रतिष्ठित हैं, बल्कि पदस्थापित भी हैं। ऐसे लोगों के प्रयास से गंगा को बचाने का जो भी काम चलेगा, उसे सफल होना चाहिए। यही आशा की जाती है।
इसमें कोई संदेह न पहले था न आज है कि गंगा का हमारे जीवन में कितना गहरा असर है। धार्मिक ग्रंथों में गंगा का जो वर्णन है, वह उसके प्रभाव को बढ़ाता है और बनाए रखता है। न जाने कब से यह परंपरा बनी हुई है। इतना तो साफ है कि गंगोत्री से गंगासागर तक दूरी चाहे जितनी हो और गंगा चाहे जहां की भी हो, उसकी एक-एक बूंद पवित्र मानी जाती है। इसी तरह गंगा के किनारे जो थोड़ा क्षण भी गुजार लेता है, वह इस रूप में स्वयं को धन्य पाता है कि गंगा के प्रवाह में वह न केवल भागीरथ को देखता है बल्कि उन पुरखों को भी देखता है, जो उसके अपने हैं। गंगा का प्रवाह ही ऐसा है। गंगा की पवित्रता उसके प्रवाह में है। वह प्रवाह परंपरा का है और उस क्षण का है, जिस क्षण का व्यक्ति साक्षी बनता है।बिहार को बहुत मंहगा पड़ेगा नदी जोड़
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सीतापुर और हरदोई के 36 गांव मिलाकर हो रहा है ‘नैमिषारण्य तीर्थ विकास परिषद’ गठन
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'संजॉय घोष मीडिया अवार्ड्स – 2022
यूसर्क द्वारा तीन दिवसीय जल विज्ञान प्रशिक्षण प्रारंभ
28 जुलाई को यूसर्क द्वारा आयोजित जल शिक्षा व्याख्यान श्रृंखला पर भाग लेने के लिए पंजीकरण करायें
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