तालाब ज्ञान-संस्कृति : नींव से शिखर तक

वैज्ञानिक शोधों से सिद्ध हुआ है कि आर.ओ. पद्धति से भारी धातुएं जैसे आर्सेनिक, क्रोमियम, लोहा आदि की तरह यूरेनियम को दूर भी नहीं किया जा सकता है। पंजाब सरकार ने कई गांवों में आर.ओ. सिस्टम लगाये हैं जहां गरीबों को न्यूनतम मूल्य पर पीने का पानी दिया जाता है। पर पशु तो वही पानी पीते हैं जो तीन सौ फुट नीचे से खींचा जाता है। पशुओं के दूध में दूषित पानी का असर लोगों तक भी पहुंचता रहता है। पंजाब के ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में आर.ओ. सिस्टम से साफ किया पानी पीना समृद्ध और पढ़ा-लिखा होने की निशानी है। क्या यही है हमारा पंजाब?
रासायनिक खेती, नदियों और भूजल स्तर जैसे पर्यावरणीय विषयों पर लिखना किसी अंधेरे में चीख की तरह लगता है। टी.वी. और समाचारपत्रों में बढ़ता तापमान प्रतिदिन हेडलाइन्स बनता है। उसके साथ ही पंखों, कूलरों और एयरकंडीशनर के विज्ञापन भी बढ़ जाते हैं और उनकी बिक्री भी। परन्तु ओजोन-परत और घटता वन क्षेत्र हमारी चिन्ता का विषय नहीं बनता। शहरों और गांवों में नित नई खुलती दवाई की दुकानें अब हमें नहीं डरातीं। सिने अभिनेता आमिर खान ने 24 जून के ‘सत्यमेव जयते’ कार्यक्रम में रासायनिक खेती के ‘अभिशापों’ और जैविक खेती के ‘वरदानों’ को देश के सम्मुख रखा। लेकिन अभी तक समाज और सरकार की ऐसी कोई प्रतिक्रिया सामने नहीं आई है कि कोई रासायनिक खेती के दुष्परिणामों से चितिंत हो। पंजाब को आधुनिक कृषि का मॉडल मानकर उसका अनुकरण करने से पूरे देश में भी रासायनिक और यांत्रिक खेती के दोष फैल गए हैं। किसी भी राज्य के आन्तरिक, आर्थिक, सामाजिक और भौगोलिक चरित्र को समझे बिना उसका अनुगमन करना खतरनाक सिद्ध हो सकता है।दुर्भाग्य तो यह है कि उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा सिंचाई के लिए लिया जाने वाला यह गंगाजल, दिल्ली में विदेशी कंपनियों द्वारा पीने के लिए बेचा जा रहा है। साथ ही पवित्र गंगाजल कार और शौचालय साफ करने के काम आ रहा है। बाणगंगा और काली नदी जैसी सहायक नदियों के द्वारा उत्तर प्रदेश की चीनी, कागज और अन्य मिलों के साथ घरेलू मल-मूत्र गंगा नदी में डाल कर पूरी नदी की हत्या कर देते हैं। रही-सही कसर कानपुर के छब्बीस हजार से भी अधिक छोटे-बड़े उद्योग पूरी कर देते हैं, जिनमें करीब चार सौ चमड़ा शोधन कारखाने भी शामिल हैं।
गंगा का नाम लेने मात्र से पवित्रता का बोध होता है। यह देश की एकता और अखंडता का माध्यम और भारत की जीवन रेखा के अतिरिक्त और बहुत कुछ है। गंगा जीवनदायिनी और मोक्षदायिनी दोनों है। आज भी लगभग तीस करोड़ लोगों की जीविका का माध्यम है। मगर पिछली डेढ़ सदी से गंगा पर हमले पर हमले किए जा रहे हैं और हमें जरा भी अपराध-बोध नहीं है। एक समय में हमारी आस्था इतनी प्रबल थी कि फिरंगी सरकार को भी झुकना पड़ा था। अंग्रेजी हुकूमत ने गंगा के साथ आगे और छेड़छाड़ न करने का वचन दिया था। उसने बहुत हद तक उसका पालन करते हुए हरिद्वार में भागीरथ बिंदु से अविरल प्रवाह छोड़ कर गंगा की अविरलता बनाए रखी। देश आजाद तो हुआ, पर अंग्रेजों की सांस्कृतिक संतानें भारत में ही थीं और उन्होंने भारत की संस्कृति की प्राण, मां गंगा पर हमले करने शुरू किए।वैज्ञानिक शोधों से सिद्ध हुआ है कि आर.ओ. पद्धति से भारी धातुएं जैसे आर्सेनिक, क्रोमियम, लोहा आदि की तरह यूरेनियम को दूर भी नहीं किया जा सकता है। पंजाब सरकार ने कई गांवों में आर.ओ. सिस्टम लगाये हैं जहां गरीबों को न्यूनतम मूल्य पर पीने का पानी दिया जाता है। पर पशु तो वही पानी पीते हैं जो तीन सौ फुट नीचे से खींचा जाता है। पशुओं के दूध में दूषित पानी का असर लोगों तक भी पहुंचता रहता है। पंजाब के ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में आर.ओ. सिस्टम से साफ किया पानी पीना समृद्ध और पढ़ा-लिखा होने की निशानी है। क्या यही है हमारा पंजाब?
रासायनिक खेती, नदियों और भूजल स्तर जैसे पर्यावरणीय विषयों पर लिखना किसी अंधेरे में चीख की तरह लगता है। टी.वी. और समाचारपत्रों में बढ़ता तापमान प्रतिदिन हेडलाइन्स बनता है। उसके साथ ही पंखों, कूलरों और एयरकंडीशनर के विज्ञापन भी बढ़ जाते हैं और उनकी बिक्री भी। परन्तु ओजोन-परत और घटता वन क्षेत्र हमारी चिन्ता का विषय नहीं बनता। शहरों और गांवों में नित नई खुलती दवाई की दुकानें अब हमें नहीं डरातीं। सिने अभिनेता आमिर खान ने 24 जून के ‘सत्यमेव जयते’ कार्यक्रम में रासायनिक खेती के ‘अभिशापों’ और जैविक खेती के ‘वरदानों’ को देश के सम्मुख रखा। लेकिन अभी तक समाज और सरकार की ऐसी कोई प्रतिक्रिया सामने नहीं आई है कि कोई रासायनिक खेती के दुष्परिणामों से चितिंत हो। पंजाब को आधुनिक कृषि का मॉडल मानकर उसका अनुकरण करने से पूरे देश में भी रासायनिक और यांत्रिक खेती के दोष फैल गए हैं। किसी भी राज्य के आन्तरिक, आर्थिक, सामाजिक और भौगोलिक चरित्र को समझे बिना उसका अनुगमन करना खतरनाक सिद्ध हो सकता है।दुर्भाग्य तो यह है कि उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा सिंचाई के लिए लिया जाने वाला यह गंगाजल, दिल्ली में विदेशी कंपनियों द्वारा पीने के लिए बेचा जा रहा है। साथ ही पवित्र गंगाजल कार और शौचालय साफ करने के काम आ रहा है। बाणगंगा और काली नदी जैसी सहायक नदियों के द्वारा उत्तर प्रदेश की चीनी, कागज और अन्य मिलों के साथ घरेलू मल-मूत्र गंगा नदी में डाल कर पूरी नदी की हत्या कर देते हैं। रही-सही कसर कानपुर के छब्बीस हजार से भी अधिक छोटे-बड़े उद्योग पूरी कर देते हैं, जिनमें करीब चार सौ चमड़ा शोधन कारखाने भी शामिल हैं।
गंगा का नाम लेने मात्र से पवित्रता का बोध होता है। यह देश की एकता और अखंडता का माध्यम और भारत की जीवन रेखा के अतिरिक्त और बहुत कुछ है। गंगा जीवनदायिनी और मोक्षदायिनी दोनों है। आज भी लगभग तीस करोड़ लोगों की जीविका का माध्यम है। मगर पिछली डेढ़ सदी से गंगा पर हमले पर हमले किए जा रहे हैं और हमें जरा भी अपराध-बोध नहीं है। एक समय में हमारी आस्था इतनी प्रबल थी कि फिरंगी सरकार को भी झुकना पड़ा था। अंग्रेजी हुकूमत ने गंगा के साथ आगे और छेड़छाड़ न करने का वचन दिया था। उसने बहुत हद तक उसका पालन करते हुए हरिद्वार में भागीरथ बिंदु से अविरल प्रवाह छोड़ कर गंगा की अविरलता बनाए रखी। देश आजाद तो हुआ, पर अंग्रेजों की सांस्कृतिक संतानें भारत में ही थीं और उन्होंने भारत की संस्कृति की प्राण, मां गंगा पर हमले करने शुरू किए।
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