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खासम-खास

Submitted by Editorial Team on Tue, 10/04/2022 - 16:13
कूरम में पुनर्निर्मित समथमन मंदिर तालाब। फोटो - indiawaterportal
परम्परागत तालाबों पर अनुपम मिश्र की किताब ‘आज भी खरे हैं तालाब’, पहली बार, वर्ष 1993 में प्रकाशित हुई थी। इस किताब में अनुपम ने समाज से प्राप्त जानकारी के आधार पर भारत के विभिन्न भागों में बने तालाबों के बारे में व्यापक विवरण प्रस्तुत किया है। अर्थात आज भी खरे हैं तालाब में दर्ज विवरण परम्परागत तालाबों पर समाज की राय है। उनका दृष्टिबोध है। उन विवरणों में समाज की भावनायें, आस्था, मान्यतायें, रीति-रिवाज तथा परम्परागत तालाबों के निर्माण से जुड़े कर्मकाण्ड दर्ज हैं। प्रस्तुति और शैली अनुपम की है।

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Submitted by Hindi on Mon, 07/16/2012 - 10:48
Source:
ahar pyne
जलापूर्ति पर निर्णय का अधिकार किसका? प्राकृतिक संसाधनों का मालिक कौन? सरकार प्राकृतिक संसाधनों की ठीक से देखभाल न करे, तो जनता क्या करे? दिल्ली-खण्डवा जलापूर्ति निजीकरण ने बहस के ये तीन मुद्दे ताजा कर दिए हैं।
Submitted by Hindi on Fri, 07/13/2012 - 16:53
Source:
सर्वोदय प्रेस सर्विस, जुलाई 2012
Pesticide spraying

वैज्ञानिक शोधों से सिद्ध हुआ है कि आर.ओ. पद्धति से भारी धातुएं जैसे आर्सेनिक, क्रोमियम, लोहा आदि की तरह यूरेनियम को दूर भी नहीं किया जा सकता है। पंजाब सरकार ने कई गांवों में आर.ओ. सिस्टम लगाये हैं जहां गरीबों को न्यूनतम मूल्य पर पीने का पानी दिया जाता है। पर पशु तो वही पानी पीते हैं जो तीन सौ फुट नीचे से खींचा जाता है। पशुओं के दूध में दूषित पानी का असर लोगों तक भी पहुंचता रहता है। पंजाब के ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में आर.ओ. सिस्टम से साफ किया पानी पीना समृद्ध और पढ़ा-लिखा होने की निशानी है। क्या यही है हमारा पंजाब?

रासायनिक खेती, नदियों और भूजल स्तर जैसे पर्यावरणीय विषयों पर लिखना किसी अंधेरे में चीख की तरह लगता है। टी.वी. और समाचारपत्रों में बढ़ता तापमान प्रतिदिन हेडलाइन्स बनता है। उसके साथ ही पंखों, कूलरों और एयरकंडीशनर के विज्ञापन भी बढ़ जाते हैं और उनकी बिक्री भी। परन्तु ओजोन-परत और घटता वन क्षेत्र हमारी चिन्ता का विषय नहीं बनता। शहरों और गांवों में नित नई खुलती दवाई की दुकानें अब हमें नहीं डरातीं। सिने अभिनेता आमिर खान ने 24 जून के ‘सत्यमेव जयते’ कार्यक्रम में रासायनिक खेती के ‘अभिशापों’ और जैविक खेती के ‘वरदानों’ को देश के सम्मुख रखा। लेकिन अभी तक समाज और सरकार की ऐसी कोई प्रतिक्रिया सामने नहीं आई है कि कोई रासायनिक खेती के दुष्परिणामों से चितिंत हो। पंजाब को आधुनिक कृषि का मॉडल मानकर उसका अनुकरण करने से पूरे देश में भी रासायनिक और यांत्रिक खेती के दोष फैल गए हैं। किसी भी राज्य के आन्तरिक, आर्थिक, सामाजिक और भौगोलिक चरित्र को समझे बिना उसका अनुगमन करना खतरनाक सिद्ध हो सकता है।

सौन्दर्य प्रसाधन की वस्तुओं और ताकत की दवाईयों की तरह पंजाब की खेती भी एक झूठा विज्ञापन है। पंजाब में व्यास नदी के ऊपर का क्षेत्र जो पाकिस्तान की सीमा के पास है मांझा कहलाता है। व्यास नदी और सतलुज नदी के बीच का क्षेत्र दोआब कहलाता है। पंजाब के दक्षिण-पश्चिम का क्षेत्र मलवा या मालवा कहलाता है। यहां के फिरोजपुर, फरीदकोट, मुक्तसर, बठिंडा, मांसा और संगरुर जिले रासायनिक खेती और प्रदूषित जल से सर्वाधिक प्रभावित हैं। अब यह रोग पटियाला और अमृतसर की ओर फैल रहा है। वैसे पूरा पंजाब ही रसायनों से अटा पड़ा है।

गठन के समय पंजाब में 12 जिले थे, जिनकी संख्या अब बढ़कर 22 हो गई है। दोआब क्षेत्र में विदेशों में रहने वाले भारतीयों (एनआरआई) की संख्या सबसे अधिक है और यहीं रसायनों और कीटनाशकों के उपयोग को सर्वाधिक प्रोत्साहन भी मिला है। एनआरआई द्वारा विदेशों से भेजे गये धन से आई समृद्धि को भी पंजाब में खेती से आयी समृद्धि समझने की भूल भी होती है। यहां ठेके पर खेती की नई परम्परा में बड़े किसान छोटे-छोटे किसानों की जमीन ठेके पर लेते हैं खेती की बढ़ती लागत भी इसके लिए जिम्मेदार है। जमीन के मालिक अपनी ही जमीन पर मजदूरी करने को बाध्य हैं। एक आश्चर्यजनक सत्य ही जानकारी हुई कि यहां जानबूझकर आलू की फसल बड़े पैमाने पर लेकर इसके दाम गिरा दिये जाते हैं। आलू से नकली ग्रीस बनाने का धंधा बड़े पैमाने पर होता है। आलूओं को गलाकर उसमें मोबिल-आईल के मिश्रण से नकली ग्रीस बनता है। मैं अभी पंजाब की यात्रा पर था। पंजाब के ग्रामीण क्षेत्रों का नया स्वरूप देखकर दुख ही होता है। यहां ग्रामीण क्षेत्रों में मुश्किल से 2 घंटे खेतों को बिजली उपलब्ध होती है।

मेरी यात्रा तीन रिश्तेदारों की मृत्यु से होने वाले भोगों और अंतिम-अरदास से जुड़ी थी। इनमें दो की मृत्यु खेती के पर्यावरणीय खतरों से घटित हुई थी। बरनाला शहर में एक लोकप्रिय शिक्षिका रिश्तेदार की मृत्यु कैंसर से हुई थी। बरनाला शहर में ठाठ गुरुद्वारे में 18 जून को सम्पन्न अंतिम अरदास में पंजाब और हरियाणा के अकाली, कांग्रेस, कम्युनिस्ट पार्टी, स्थानीय दलों के प्रतिनिधियों के साथ-साथ लेखक संघ के प्रतिनिधि भी श्रद्धांजलि सभा में उपस्थित थे। प्रारंभ में ही श्रद्धांजलि सभा के तेज तर्रार संचालक ने रासायनिक खेती और जल प्रदूषण से होने वाली मौतों का विवरण दिया। कार्यक्रम के संचालक ने कहा ‘‘हम इसी तरह हर दूसरे-तीसरे दिन किसी न किसी की कैंसर से हुई मृत्यु पर एकत्रित होते है। हम स्वर्गवासी को श्रद्धांजलि देकर अपने-अपने घर चले आते हैं, पर खेती और पानी के प्रदूषण पर चर्चा भी नहीं करते हैं।’’

इसके बाद अकाली दल के एक क्षेत्रीय बडे़ नेता ने अपने उद्बोधन में डपटते हुए कहा ‘‘यह अवसर ‘राजनीति’ करने का नहीं है। हमें मृत्यु के अवसर पर मृत-आत्मा के गुणों और कामों के बारे में ही बोलना चाहिए।’’ इसके बाद उन्हीं के आदेशानुसार सभा चलती रही। वर्तमान एवं पूर्व विधायक और सांसद अपनी-अपनी बात कह चलते बने। सभी ने मृतका को गौरवान्वित किया लेकिन जीवन शर्मिन्दा सा बैठा रहा। गुरुद्वारे के हॉल में लंगर चल रहा था और सभी आर.ओ. के कन्टेनरों से पानी पी रहे थे। रिवर्स-आस्मोसिस (आर.ओ.) के पानी के साथ चलता लंगर आधुनिक पंजाब का एक दृश्य बना रहा था। पंजाब के ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में आर.ओ. सिस्टम से साफ किया पानी पीना समृद्ध और पढ़ा-लिखा होने की निशानी है। क्या यही है हमारा पंजाब?

वैज्ञानिक शोधों से सिद्ध हुआ है कि आर.ओ. पद्धति से भारी धातुएं जैसे आर्सेनिक, क्रोमियम, लोहा आदि की तरह यूरेनियम को दूर भी नहीं किया जा सकता है। पंजाब सरकार ने कई गांवों में आर.ओ. सिस्टम लगाये हैं जहां गरीबों को न्यूनतम मूल्य पर पीने का पानी दिया जाता है। पर पशु तो वही पानी पीते हैं जो तीन सौ फुट नीचे से खींचा जाता है। पशुओं के दूध में दूषित पानी का असर लोगों तक भी पहुंचता रहता है। फरीदकोट के बाबा फरीद मंदबुद्धि बच्चों के संस्थान में भरती होने वाले बच्चों के शरीर में ये धातुएं और यूरेनियम पाये गये हैं। मां के दूध के साथ प्रदूषित पानी बच्चों तक पहुंच रहा है। सतलुज नदी लुधियाना जैसे महानगर के औद्योगिक क्षेत्र से होकर मालवा में पहुंचती हुई जल प्रदूषण के कारण काली पड़ जाती है।

पंजाब के कई जिलों विशेषकर जालंधर और लुधियाना के आसपास के कई गांवों के खेतों में कई-कई फुट गहरे खेत मिलते हैं। बढ़ते शहरीकरण और आधुनिक गांवों में पक्के मकानों के लिए करोड़ों की संख्या में ईंटों की आवश्यकता होती है। जमीनें बहुत महंगी होने के कारण चिमनी-भट्टे तो एक निर्धारित स्थान पर हैं। पर ईंट बनाने के लिए मिट्टी खेतों से प्राप्त की जाती है। यहीं पंजाब के ईंट-उद्योग की परम्परा है। खेतों की एक बित्ता (करीब 12 इंच) गहरी एक एकड़ में फैली मिट्टी 3 वर्ष के लिए एक लाख रु. में बिकती है। अधिकांश खेत तीन से चार फीट गहरे कटे मिलते हैं। इस प्रकार ऊँचे-नीचे खेतों से सिंचाई की समस्या भी उत्पन्न होती है। अधिकांश छोटे किसान अपने खेत ईंट बनाने के लिए ठेके पर दे देते हैं। किसानों को यह समझाया जाता है कि तीन-चार फीट गहरी मिट्टी हटा लेने से नयी और अधिक उपजाऊ मिट्टी मिलती है जिससे फसल अधिक होती है। जबकि प्रमाण इसके विरुद्ध हैं।

बरनाला से टैक्सी द्वारा अमृतसर की ओर जाते हुए जीरा नामक कस्बे में सैकड़ों ट्रैक्टर सड़क मार्ग पर दोनों तरफ खड़े थे। ये ट्रैक्टर किश्त न चुका पाने के कारण और लागत बढ़ने से खेती महंगी होने के कारण बिकने और नीलाम होने के लिए खड़े थे। किसान अपने पशु और ट्रैक्टर बेचकर कर्ज चुकाने को बाध्य हैं। इस वर्ष जून माह तक वर्षा न होने से धान की बोनी उतनी ही जमीन पर हो सकी है जितनी 2 घंटे में प्राप्त बिजली से खेत पानी से भरे जा सकते हैं। पंजाब की कृषि के अनुभव से लगता है कि पंजाब के किसान किसी बड़े संकट की तरफ बढ़ रहे हैं। पंजाब की आधुनिक कृषि-क्रान्ति के इस असफल मॉडल से हम सीख सकते हैं कि झूठ पर आधारित व्यवस्था अधिक दिन नहीं चल पाती है। पंजाबी संस्कृति का उद्घोष वाक्य ‘सत् श्री अकाल’ अर्थात सत्य की विजय हर समय (काल) में होती है। प्रश्न है पंजाब के किसानों को और कितनी अग्नि- परीक्षाएं देनी होगीं?

Submitted by Hindi on Thu, 07/12/2012 - 17:21
Source:
जनसत्ता, 12 जुलाई 2012
अंग्रेजों ने भी गंगा की अविरलता का सम्मान किया लेकिन दुर्भाग्य है कि आज की सरकारें गंगा जैसी नदी को भी नाला बनाने पर तुली है। उसके शरीर से एक-एक बूंद निचोड़ लेना चाहते हैं। कानपुर जैसे शहरों में चमड़ा फैक्ट्रियों का पानी गंगाजल को गंदाजल ही बना देता है। अपने उद्गम प्रदेश में हर-हर बहने वाली गंगा अब सुरंगों और बांधों में कैद हो रही है। उद्गम के कैचमेंट में खनन, सुरंगों के बनने से हजारों लाखों पेड़ काटे जा रहे हैं जिससे हिमालय की कच्ची मिट्टी गाद बनकर गंगाजल को गंधला बना रही है। शहरों के कचरे, नैसर्गिक बहाव का कम होना और सरकारों की लापरवाही और बेइमानी गंगा पूर्णाहुति के जिम्मेदार हैं बता रहे हैं स्वामी आनंदस्वरूप।

दुर्भाग्य तो यह है कि उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा सिंचाई के लिए लिया जाने वाला यह गंगाजल, दिल्ली में विदेशी कंपनियों द्वारा पीने के लिए बेचा जा रहा है। साथ ही पवित्र गंगाजल कार और शौचालय साफ करने के काम आ रहा है। बाणगंगा और काली नदी जैसी सहायक नदियों के द्वारा उत्तर प्रदेश की चीनी, कागज और अन्य मिलों के साथ घरेलू मल-मूत्र गंगा नदी में डाल कर पूरी नदी की हत्या कर देते हैं। रही-सही कसर कानपुर के छब्बीस हजार से भी अधिक छोटे-बड़े उद्योग पूरी कर देते हैं, जिनमें करीब चार सौ चमड़ा शोधन कारखाने भी शामिल हैं।

गंगा का नाम लेने मात्र से पवित्रता का बोध होता है। यह देश की एकता और अखंडता का माध्यम और भारत की जीवन रेखा के अतिरिक्त और बहुत कुछ है। गंगा जीवनदायिनी और मोक्षदायिनी दोनों है। आज भी लगभग तीस करोड़ लोगों की जीविका का माध्यम है। मगर पिछली डेढ़ सदी से गंगा पर हमले पर हमले किए जा रहे हैं और हमें जरा भी अपराध-बोध नहीं है। एक समय में हमारी आस्था इतनी प्रबल थी कि फिरंगी सरकार को भी झुकना पड़ा था। अंग्रेजी हुकूमत ने गंगा के साथ आगे और छेड़छाड़ न करने का वचन दिया था। उसने बहुत हद तक उसका पालन करते हुए हरिद्वार में भागीरथ बिंदु से अविरल प्रवाह छोड़ कर गंगा की अविरलता बनाए रखी। देश आजाद तो हुआ, पर अंग्रेजों की सांस्कृतिक संतानें भारत में ही थीं और उन्होंने भारत की संस्कृति की प्राण, मां गंगा पर हमले करने शुरू किए।

प्रयास

Submitted by Editorial Team on Thu, 12/08/2022 - 13:06
सीतापुर का नैमिषारण्य तीर्थ क्षेत्र, फोटो साभार - उप्र सरकार
श्री नैभिषारण्य धाम तीर्थ परिषद के गठन को प्रदेश मंत्रिमएडल ने स्वीकृति प्रदान की, जिसके अध्यक्ष स्वयं मुख्यमंत्री होंगे। इसके अंतर्गत नैमिषारण्य की होली के अवसर पर चौरासी कोसी 5 दिवसीय परिक्रमा पथ और उस पर स्थापित सम्पूर्ण देश की संह्कृति एवं एकात्मता के वह सभी तीर्थ एवं उनके स्थल केंद्रित हैं। इस सम्पूर्ण नैमिशारण्य क्षेत्र में लोक भारती पिछले 10 वर्ष से कार्य कर रही है। नैमिषाराण्य क्षेत्र के भूगर्भ जल स्रोतो का अध्ययन एवं उनके पुनर्नीवन पर लगातार कार्य चल रहा है। वर्षा नल सरक्षण एवं संम्भरण हेतु तालाबें के पुनर्नीवन अनियान के जवर्गत 119 तालाबों का पृनरुद्धार लोक भारती के प्रयासों से सम्पन्न हुआ है।

नोटिस बोर्ड

Submitted by Shivendra on Tue, 09/06/2022 - 14:16
Source:
चरखा फीचर
'संजॉय घोष मीडिया अवार्ड्स – 2022
कार्य अनुभव के विवरण के साथ संक्षिप्त पाठ्यक्रम जीवन लगभग 800-1000 शब्दों का एक प्रस्ताव, जिसमें उस विशेष विषयगत क्षेत्र को रेखांकित किया गया हो, जिसमें आवेदक काम करना चाहता है. प्रस्ताव में अध्ययन की विशिष्ट भौगोलिक स्थिति, कार्यप्रणाली, चयनित विषय की प्रासंगिकता के साथ-साथ इन लेखों से अपेक्षित प्रभाव के बारे में विवरण शामिल होनी चाहिए. साथ ही, इस बात का उल्लेख होनी चाहिए कि देश के विकास से जुड़ी बहस में इसके योगदान किस प्रकार हो सकता है? कृपया आलेख प्रस्तुत करने वाली भाषा भी निर्दिष्ट करें। लेख अंग्रेजी, हिंदी या उर्दू में ही स्वीकार किए जाएंगे
Submitted by Shivendra on Tue, 08/23/2022 - 17:19
Source:
यूसर्क
जल विज्ञान प्रशिक्षण कार्यशाला
उत्तराखंड विज्ञान शिक्षा एवं अनुसंधान केंद्र द्वारा आज दिनांक 23.08.22 को तीन दिवसीय जल विज्ञान प्रशिक्षण प्रारंभ किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए यूसर्क की निदेशक प्रो.(डॉ.) अनीता रावत ने अपने संबोधन में कहा कि यूसर्क द्वारा जल के महत्व को देखते हुए विगत वर्ष 2021 को संयुक्त राष्ट्र की विश्व पर्यावरण दिवस की थीम "ईको सिस्टम रेस्टोरेशन" के अंर्तगत आयोजित कार्यक्रम के निष्कर्षों के क्रम में जल विज्ञान विषयक लेक्चर सीरीज एवं जल विज्ञान प्रशिक्षण कार्यक्रमों को प्रारंभ किया गया
Submitted by Shivendra on Mon, 07/25/2022 - 15:34
Source:
यूसर्क
जल शिक्षा व्याख्यान श्रृंखला
इस दौरान राष्ट्रीय पर्यावरण  इंजीनियरिंग अनुसंधान संस्था के वरिष्ठ वैज्ञानिक और अपशिष्ट जल विभाग विभाग के प्रमुख डॉक्टर रितेश विजय  सस्टेनेबल  वेस्ट वाटर ट्रीटमेंट फॉर लिक्विड वेस्ट मैनेजमेंट (Sustainable Wastewater Treatment for Liquid Waste Management) विषय  पर विशेषज्ञ तौर पर अपनी राय रखेंगे।

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खासम-खास

तालाब ज्ञान-संस्कृति : नींव से शिखर तक

Submitted by Editorial Team on Tue, 10/04/2022 - 16:13
Author
कृष्ण गोपाल 'व्यास’
talab-gyan-sanskriti-:-ninv-se-shikhar-tak
कूरम में पुनर्निर्मित समथमन मंदिर तालाब। फोटो - indiawaterportal
परम्परागत तालाबों पर अनुपम मिश्र की किताब ‘आज भी खरे हैं तालाब’, पहली बार, वर्ष 1993 में प्रकाशित हुई थी। इस किताब में अनुपम ने समाज से प्राप्त जानकारी के आधार पर भारत के विभिन्न भागों में बने तालाबों के बारे में व्यापक विवरण प्रस्तुत किया है। अर्थात आज भी खरे हैं तालाब में दर्ज विवरण परम्परागत तालाबों पर समाज की राय है। उनका दृष्टिबोध है। उन विवरणों में समाज की भावनायें, आस्था, मान्यतायें, रीति-रिवाज तथा परम्परागत तालाबों के निर्माण से जुड़े कर्मकाण्ड दर्ज हैं। प्रस्तुति और शैली अनुपम की है।

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नई बहस के घेरे में जलाधिकार

Submitted by Hindi on Mon, 07/16/2012 - 10:48
Author
अरुण तिवारी
ahar pyne
जलापूर्ति पर निर्णय का अधिकार किसका? प्राकृतिक संसाधनों का मालिक कौन? सरकार प्राकृतिक संसाधनों की ठीक से देखभाल न करे, तो जनता क्या करे? दिल्ली-खण्डवा जलापूर्ति निजीकरण ने बहस के ये तीन मुद्दे ताजा कर दिए हैं।

उपजाऊ मिट्टी खाते शहर

Submitted by Hindi on Fri, 07/13/2012 - 16:53
Author
डॉ. कश्मीर उप्पल
Source
सर्वोदय प्रेस सर्विस, जुलाई 2012
Pesticide spraying

वैज्ञानिक शोधों से सिद्ध हुआ है कि आर.ओ. पद्धति से भारी धातुएं जैसे आर्सेनिक, क्रोमियम, लोहा आदि की तरह यूरेनियम को दूर भी नहीं किया जा सकता है। पंजाब सरकार ने कई गांवों में आर.ओ. सिस्टम लगाये हैं जहां गरीबों को न्यूनतम मूल्य पर पीने का पानी दिया जाता है। पर पशु तो वही पानी पीते हैं जो तीन सौ फुट नीचे से खींचा जाता है। पशुओं के दूध में दूषित पानी का असर लोगों तक भी पहुंचता रहता है। पंजाब के ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में आर.ओ. सिस्टम से साफ किया पानी पीना समृद्ध और पढ़ा-लिखा होने की निशानी है। क्या यही है हमारा पंजाब?

रासायनिक खेती, नदियों और भूजल स्तर जैसे पर्यावरणीय विषयों पर लिखना किसी अंधेरे में चीख की तरह लगता है। टी.वी. और समाचारपत्रों में बढ़ता तापमान प्रतिदिन हेडलाइन्स बनता है। उसके साथ ही पंखों, कूलरों और एयरकंडीशनर के विज्ञापन भी बढ़ जाते हैं और उनकी बिक्री भी। परन्तु ओजोन-परत और घटता वन क्षेत्र हमारी चिन्ता का विषय नहीं बनता। शहरों और गांवों में नित नई खुलती दवाई की दुकानें अब हमें नहीं डरातीं। सिने अभिनेता आमिर खान ने 24 जून के ‘सत्यमेव जयते’ कार्यक्रम में रासायनिक खेती के ‘अभिशापों’ और जैविक खेती के ‘वरदानों’ को देश के सम्मुख रखा। लेकिन अभी तक समाज और सरकार की ऐसी कोई प्रतिक्रिया सामने नहीं आई है कि कोई रासायनिक खेती के दुष्परिणामों से चितिंत हो। पंजाब को आधुनिक कृषि का मॉडल मानकर उसका अनुकरण करने से पूरे देश में भी रासायनिक और यांत्रिक खेती के दोष फैल गए हैं। किसी भी राज्य के आन्तरिक, आर्थिक, सामाजिक और भौगोलिक चरित्र को समझे बिना उसका अनुगमन करना खतरनाक सिद्ध हो सकता है।

सौन्दर्य प्रसाधन की वस्तुओं और ताकत की दवाईयों की तरह पंजाब की खेती भी एक झूठा विज्ञापन है। पंजाब में व्यास नदी के ऊपर का क्षेत्र जो पाकिस्तान की सीमा के पास है मांझा कहलाता है। व्यास नदी और सतलुज नदी के बीच का क्षेत्र दोआब कहलाता है। पंजाब के दक्षिण-पश्चिम का क्षेत्र मलवा या मालवा कहलाता है। यहां के फिरोजपुर, फरीदकोट, मुक्तसर, बठिंडा, मांसा और संगरुर जिले रासायनिक खेती और प्रदूषित जल से सर्वाधिक प्रभावित हैं। अब यह रोग पटियाला और अमृतसर की ओर फैल रहा है। वैसे पूरा पंजाब ही रसायनों से अटा पड़ा है।

गठन के समय पंजाब में 12 जिले थे, जिनकी संख्या अब बढ़कर 22 हो गई है। दोआब क्षेत्र में विदेशों में रहने वाले भारतीयों (एनआरआई) की संख्या सबसे अधिक है और यहीं रसायनों और कीटनाशकों के उपयोग को सर्वाधिक प्रोत्साहन भी मिला है। एनआरआई द्वारा विदेशों से भेजे गये धन से आई समृद्धि को भी पंजाब में खेती से आयी समृद्धि समझने की भूल भी होती है। यहां ठेके पर खेती की नई परम्परा में बड़े किसान छोटे-छोटे किसानों की जमीन ठेके पर लेते हैं खेती की बढ़ती लागत भी इसके लिए जिम्मेदार है। जमीन के मालिक अपनी ही जमीन पर मजदूरी करने को बाध्य हैं। एक आश्चर्यजनक सत्य ही जानकारी हुई कि यहां जानबूझकर आलू की फसल बड़े पैमाने पर लेकर इसके दाम गिरा दिये जाते हैं। आलू से नकली ग्रीस बनाने का धंधा बड़े पैमाने पर होता है। आलूओं को गलाकर उसमें मोबिल-आईल के मिश्रण से नकली ग्रीस बनता है। मैं अभी पंजाब की यात्रा पर था। पंजाब के ग्रामीण क्षेत्रों का नया स्वरूप देखकर दुख ही होता है। यहां ग्रामीण क्षेत्रों में मुश्किल से 2 घंटे खेतों को बिजली उपलब्ध होती है।

मेरी यात्रा तीन रिश्तेदारों की मृत्यु से होने वाले भोगों और अंतिम-अरदास से जुड़ी थी। इनमें दो की मृत्यु खेती के पर्यावरणीय खतरों से घटित हुई थी। बरनाला शहर में एक लोकप्रिय शिक्षिका रिश्तेदार की मृत्यु कैंसर से हुई थी। बरनाला शहर में ठाठ गुरुद्वारे में 18 जून को सम्पन्न अंतिम अरदास में पंजाब और हरियाणा के अकाली, कांग्रेस, कम्युनिस्ट पार्टी, स्थानीय दलों के प्रतिनिधियों के साथ-साथ लेखक संघ के प्रतिनिधि भी श्रद्धांजलि सभा में उपस्थित थे। प्रारंभ में ही श्रद्धांजलि सभा के तेज तर्रार संचालक ने रासायनिक खेती और जल प्रदूषण से होने वाली मौतों का विवरण दिया। कार्यक्रम के संचालक ने कहा ‘‘हम इसी तरह हर दूसरे-तीसरे दिन किसी न किसी की कैंसर से हुई मृत्यु पर एकत्रित होते है। हम स्वर्गवासी को श्रद्धांजलि देकर अपने-अपने घर चले आते हैं, पर खेती और पानी के प्रदूषण पर चर्चा भी नहीं करते हैं।’’

इसके बाद अकाली दल के एक क्षेत्रीय बडे़ नेता ने अपने उद्बोधन में डपटते हुए कहा ‘‘यह अवसर ‘राजनीति’ करने का नहीं है। हमें मृत्यु के अवसर पर मृत-आत्मा के गुणों और कामों के बारे में ही बोलना चाहिए।’’ इसके बाद उन्हीं के आदेशानुसार सभा चलती रही। वर्तमान एवं पूर्व विधायक और सांसद अपनी-अपनी बात कह चलते बने। सभी ने मृतका को गौरवान्वित किया लेकिन जीवन शर्मिन्दा सा बैठा रहा। गुरुद्वारे के हॉल में लंगर चल रहा था और सभी आर.ओ. के कन्टेनरों से पानी पी रहे थे। रिवर्स-आस्मोसिस (आर.ओ.) के पानी के साथ चलता लंगर आधुनिक पंजाब का एक दृश्य बना रहा था। पंजाब के ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में आर.ओ. सिस्टम से साफ किया पानी पीना समृद्ध और पढ़ा-लिखा होने की निशानी है। क्या यही है हमारा पंजाब?

वैज्ञानिक शोधों से सिद्ध हुआ है कि आर.ओ. पद्धति से भारी धातुएं जैसे आर्सेनिक, क्रोमियम, लोहा आदि की तरह यूरेनियम को दूर भी नहीं किया जा सकता है। पंजाब सरकार ने कई गांवों में आर.ओ. सिस्टम लगाये हैं जहां गरीबों को न्यूनतम मूल्य पर पीने का पानी दिया जाता है। पर पशु तो वही पानी पीते हैं जो तीन सौ फुट नीचे से खींचा जाता है। पशुओं के दूध में दूषित पानी का असर लोगों तक भी पहुंचता रहता है। फरीदकोट के बाबा फरीद मंदबुद्धि बच्चों के संस्थान में भरती होने वाले बच्चों के शरीर में ये धातुएं और यूरेनियम पाये गये हैं। मां के दूध के साथ प्रदूषित पानी बच्चों तक पहुंच रहा है। सतलुज नदी लुधियाना जैसे महानगर के औद्योगिक क्षेत्र से होकर मालवा में पहुंचती हुई जल प्रदूषण के कारण काली पड़ जाती है।

पंजाब के कई जिलों विशेषकर जालंधर और लुधियाना के आसपास के कई गांवों के खेतों में कई-कई फुट गहरे खेत मिलते हैं। बढ़ते शहरीकरण और आधुनिक गांवों में पक्के मकानों के लिए करोड़ों की संख्या में ईंटों की आवश्यकता होती है। जमीनें बहुत महंगी होने के कारण चिमनी-भट्टे तो एक निर्धारित स्थान पर हैं। पर ईंट बनाने के लिए मिट्टी खेतों से प्राप्त की जाती है। यहीं पंजाब के ईंट-उद्योग की परम्परा है। खेतों की एक बित्ता (करीब 12 इंच) गहरी एक एकड़ में फैली मिट्टी 3 वर्ष के लिए एक लाख रु. में बिकती है। अधिकांश खेत तीन से चार फीट गहरे कटे मिलते हैं। इस प्रकार ऊँचे-नीचे खेतों से सिंचाई की समस्या भी उत्पन्न होती है। अधिकांश छोटे किसान अपने खेत ईंट बनाने के लिए ठेके पर दे देते हैं। किसानों को यह समझाया जाता है कि तीन-चार फीट गहरी मिट्टी हटा लेने से नयी और अधिक उपजाऊ मिट्टी मिलती है जिससे फसल अधिक होती है। जबकि प्रमाण इसके विरुद्ध हैं।

बरनाला से टैक्सी द्वारा अमृतसर की ओर जाते हुए जीरा नामक कस्बे में सैकड़ों ट्रैक्टर सड़क मार्ग पर दोनों तरफ खड़े थे। ये ट्रैक्टर किश्त न चुका पाने के कारण और लागत बढ़ने से खेती महंगी होने के कारण बिकने और नीलाम होने के लिए खड़े थे। किसान अपने पशु और ट्रैक्टर बेचकर कर्ज चुकाने को बाध्य हैं। इस वर्ष जून माह तक वर्षा न होने से धान की बोनी उतनी ही जमीन पर हो सकी है जितनी 2 घंटे में प्राप्त बिजली से खेत पानी से भरे जा सकते हैं। पंजाब की कृषि के अनुभव से लगता है कि पंजाब के किसान किसी बड़े संकट की तरफ बढ़ रहे हैं। पंजाब की आधुनिक कृषि-क्रान्ति के इस असफल मॉडल से हम सीख सकते हैं कि झूठ पर आधारित व्यवस्था अधिक दिन नहीं चल पाती है। पंजाबी संस्कृति का उद्घोष वाक्य ‘सत् श्री अकाल’ अर्थात सत्य की विजय हर समय (काल) में होती है। प्रश्न है पंजाब के किसानों को और कितनी अग्नि- परीक्षाएं देनी होगीं?

जय हो गंगा माई, बेटे हुए कसाई

Submitted by Hindi on Thu, 07/12/2012 - 17:21
Author
स्वामी आनंदस्वरूप
Source
जनसत्ता, 12 जुलाई 2012
अंग्रेजों ने भी गंगा की अविरलता का सम्मान किया लेकिन दुर्भाग्य है कि आज की सरकारें गंगा जैसी नदी को भी नाला बनाने पर तुली है। उसके शरीर से एक-एक बूंद निचोड़ लेना चाहते हैं। कानपुर जैसे शहरों में चमड़ा फैक्ट्रियों का पानी गंगाजल को गंदाजल ही बना देता है। अपने उद्गम प्रदेश में हर-हर बहने वाली गंगा अब सुरंगों और बांधों में कैद हो रही है। उद्गम के कैचमेंट में खनन, सुरंगों के बनने से हजारों लाखों पेड़ काटे जा रहे हैं जिससे हिमालय की कच्ची मिट्टी गाद बनकर गंगाजल को गंधला बना रही है। शहरों के कचरे, नैसर्गिक बहाव का कम होना और सरकारों की लापरवाही और बेइमानी गंगा पूर्णाहुति के जिम्मेदार हैं बता रहे हैं स्वामी आनंदस्वरूप।

दुर्भाग्य तो यह है कि उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा सिंचाई के लिए लिया जाने वाला यह गंगाजल, दिल्ली में विदेशी कंपनियों द्वारा पीने के लिए बेचा जा रहा है। साथ ही पवित्र गंगाजल कार और शौचालय साफ करने के काम आ रहा है। बाणगंगा और काली नदी जैसी सहायक नदियों के द्वारा उत्तर प्रदेश की चीनी, कागज और अन्य मिलों के साथ घरेलू मल-मूत्र गंगा नदी में डाल कर पूरी नदी की हत्या कर देते हैं। रही-सही कसर कानपुर के छब्बीस हजार से भी अधिक छोटे-बड़े उद्योग पूरी कर देते हैं, जिनमें करीब चार सौ चमड़ा शोधन कारखाने भी शामिल हैं।

गंगा का नाम लेने मात्र से पवित्रता का बोध होता है। यह देश की एकता और अखंडता का माध्यम और भारत की जीवन रेखा के अतिरिक्त और बहुत कुछ है। गंगा जीवनदायिनी और मोक्षदायिनी दोनों है। आज भी लगभग तीस करोड़ लोगों की जीविका का माध्यम है। मगर पिछली डेढ़ सदी से गंगा पर हमले पर हमले किए जा रहे हैं और हमें जरा भी अपराध-बोध नहीं है। एक समय में हमारी आस्था इतनी प्रबल थी कि फिरंगी सरकार को भी झुकना पड़ा था। अंग्रेजी हुकूमत ने गंगा के साथ आगे और छेड़छाड़ न करने का वचन दिया था। उसने बहुत हद तक उसका पालन करते हुए हरिद्वार में भागीरथ बिंदु से अविरल प्रवाह छोड़ कर गंगा की अविरलता बनाए रखी। देश आजाद तो हुआ, पर अंग्रेजों की सांस्कृतिक संतानें भारत में ही थीं और उन्होंने भारत की संस्कृति की प्राण, मां गंगा पर हमले करने शुरू किए।

प्रयास

सीतापुर और हरदोई के 36 गांव मिलाकर हो रहा है ‘नैमिषारण्य तीर्थ विकास परिषद’ गठन  

Submitted by Editorial Team on Thu, 12/08/2022 - 13:06
sitapur-aur-hardoi-ke-36-gaon-milaakar-ho-raha-hai-'naimisharany-tirth-vikas-parishad'-gathan
Source
लोकसम्मान पत्रिका, दिसम्बर-2022
सीतापुर का नैमिषारण्य तीर्थ क्षेत्र, फोटो साभार - उप्र सरकार
श्री नैभिषारण्य धाम तीर्थ परिषद के गठन को प्रदेश मंत्रिमएडल ने स्वीकृति प्रदान की, जिसके अध्यक्ष स्वयं मुख्यमंत्री होंगे। इसके अंतर्गत नैमिषारण्य की होली के अवसर पर चौरासी कोसी 5 दिवसीय परिक्रमा पथ और उस पर स्थापित सम्पूर्ण देश की संह्कृति एवं एकात्मता के वह सभी तीर्थ एवं उनके स्थल केंद्रित हैं। इस सम्पूर्ण नैमिशारण्य क्षेत्र में लोक भारती पिछले 10 वर्ष से कार्य कर रही है। नैमिषाराण्य क्षेत्र के भूगर्भ जल स्रोतो का अध्ययन एवं उनके पुनर्नीवन पर लगातार कार्य चल रहा है। वर्षा नल सरक्षण एवं संम्भरण हेतु तालाबें के पुनर्नीवन अनियान के जवर्गत 119 तालाबों का पृनरुद्धार लोक भारती के प्रयासों से सम्पन्न हुआ है।

नोटिस बोर्ड

'संजॉय घोष मीडिया अवार्ड्स – 2022

Submitted by Shivendra on Tue, 09/06/2022 - 14:16
sanjoy-ghosh-media-awards-–-2022
Source
चरखा फीचर
'संजॉय घोष मीडिया अवार्ड्स – 2022
कार्य अनुभव के विवरण के साथ संक्षिप्त पाठ्यक्रम जीवन लगभग 800-1000 शब्दों का एक प्रस्ताव, जिसमें उस विशेष विषयगत क्षेत्र को रेखांकित किया गया हो, जिसमें आवेदक काम करना चाहता है. प्रस्ताव में अध्ययन की विशिष्ट भौगोलिक स्थिति, कार्यप्रणाली, चयनित विषय की प्रासंगिकता के साथ-साथ इन लेखों से अपेक्षित प्रभाव के बारे में विवरण शामिल होनी चाहिए. साथ ही, इस बात का उल्लेख होनी चाहिए कि देश के विकास से जुड़ी बहस में इसके योगदान किस प्रकार हो सकता है? कृपया आलेख प्रस्तुत करने वाली भाषा भी निर्दिष्ट करें। लेख अंग्रेजी, हिंदी या उर्दू में ही स्वीकार किए जाएंगे

​यूसर्क द्वारा तीन दिवसीय जल विज्ञान प्रशिक्षण प्रारंभ

Submitted by Shivendra on Tue, 08/23/2022 - 17:19
USERC-dvara-tin-divasiy-jal-vigyan-prashikshan-prarambh
Source
यूसर्क
जल विज्ञान प्रशिक्षण कार्यशाला
उत्तराखंड विज्ञान शिक्षा एवं अनुसंधान केंद्र द्वारा आज दिनांक 23.08.22 को तीन दिवसीय जल विज्ञान प्रशिक्षण प्रारंभ किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए यूसर्क की निदेशक प्रो.(डॉ.) अनीता रावत ने अपने संबोधन में कहा कि यूसर्क द्वारा जल के महत्व को देखते हुए विगत वर्ष 2021 को संयुक्त राष्ट्र की विश्व पर्यावरण दिवस की थीम "ईको सिस्टम रेस्टोरेशन" के अंर्तगत आयोजित कार्यक्रम के निष्कर्षों के क्रम में जल विज्ञान विषयक लेक्चर सीरीज एवं जल विज्ञान प्रशिक्षण कार्यक्रमों को प्रारंभ किया गया

28 जुलाई को यूसर्क द्वारा आयोजित जल शिक्षा व्याख्यान श्रृंखला पर भाग लेने के लिए पंजीकरण करायें

Submitted by Shivendra on Mon, 07/25/2022 - 15:34
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Source
यूसर्क
जल शिक्षा व्याख्यान श्रृंखला
इस दौरान राष्ट्रीय पर्यावरण  इंजीनियरिंग अनुसंधान संस्था के वरिष्ठ वैज्ञानिक और अपशिष्ट जल विभाग विभाग के प्रमुख डॉक्टर रितेश विजय  सस्टेनेबल  वेस्ट वाटर ट्रीटमेंट फॉर लिक्विड वेस्ट मैनेजमेंट (Sustainable Wastewater Treatment for Liquid Waste Management) विषय  पर विशेषज्ञ तौर पर अपनी राय रखेंगे।

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