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खासम-खास

Submitted by Editorial Team on Tue, 10/04/2022 - 16:13
कूरम में पुनर्निर्मित समथमन मंदिर तालाब। फोटो - indiawaterportal
परम्परागत तालाबों पर अनुपम मिश्र की किताब ‘आज भी खरे हैं तालाब’, पहली बार, वर्ष 1993 में प्रकाशित हुई थी। इस किताब में अनुपम ने समाज से प्राप्त जानकारी के आधार पर भारत के विभिन्न भागों में बने तालाबों के बारे में व्यापक विवरण प्रस्तुत किया है। अर्थात आज भी खरे हैं तालाब में दर्ज विवरण परम्परागत तालाबों पर समाज की राय है। उनका दृष्टिबोध है। उन विवरणों में समाज की भावनायें, आस्था, मान्यतायें, रीति-रिवाज तथा परम्परागत तालाबों के निर्माण से जुड़े कर्मकाण्ड दर्ज हैं। प्रस्तुति और शैली अनुपम की है।

Content

Submitted by Hindi on Fri, 07/06/2012 - 15:55
Source:
तहलका, 13 जून 2012
लगभग 40 करोड़ लोगों को अपने पानी से सिंचने वाली गंगा विलुप्त होना तय माना जा रहा है। जैसे राष्ट्रीय पक्षी मोर और राष्ट्रीय पशु शेर धीरे-धीरे खत्म हो चुके हैं वैसे ही गंगा भी खत्म होने के कगार पर है। गंगा का राष्ट्रीय नदी होना ही उसके लिए खतरा है। क्योंकि जबसे गंगा को राष्ट्रीय नदी का सम्मान मिला है तब से कुछ ज्यादा ही गंगा को नुकसान पहुंचाया जा रहा है। अब गंगा शहरों का सीवर तथा कचरा ढोने वाली मालगाड़ी हो गई है। बांध, बैराज, खनन तथा शहरों से निकला कचरा गंगा के प्रवाह में ज्यादा खतरनाक साबित हो रहे हैं। गंगा पर हो रहे अतिक्रमण के बारे में बताती निराला की रिपोर्ट।

गंगा, दुनिया की उन 10 बड़ी नदियों में है जिनके अस्तित्व पर खतरा मंडरा रहा है। इस पर बनते बांधों, इससे निकलती नहरों, इसमें घुलती जहरीली गंदगी और इसमें होते खनन को देखते हुए यह सुनकर हैरानी नहीं होती। गंगा के बेसिन में बसने वाले करीब 40 करोड़ लोग प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से इस पर निर्भर हैं। गंगा के पूरी तरह से खत्म होने में भले ही अभी कुछ समय हो लेकिन उस पर आश्रित करोड़ों जिंदगियां खत्म होती दिखने लगी हैं।

‘25 साल पहले गंगा की सफाई के नाम पर हमारे इलाके में वाटर ट्रीटमेंट प्लांट लगा। शहर के गंदे नालों का पानी आया तो पहले-पहल तो खेतों में क्रांति हो गई। फसल चार से दस गुना तक बढ़ी। लेकिन अब तो हम अपनी फसल खुद इस्तेमाल करने से बचते हैं। लोग भी अब हमारे खेत की सब्जियां नहीं लेते, क्योंकि वे देखने में तो बड़ी और सुंदर लगती हैं मगर उनमें कोई स्वाद नहीं होता। दो घंटे में कीड़े पड़ जाते हैं उनमें। वही हाल गेहूं-चावल का भी है। चावल या रोटी बनाकर अगर फौरन नहीं खाई तो थोड़ी देर बाद ही उसमें बास आने लगती है। अब तो हम लोगों ने फूलों की खेती पर ध्यान देना शुरू कर दिया है। फूल भगवान पर चढ़ेंगे। उनको तो कोई शिकायत नहीं होगी।’
Submitted by Hindi on Thu, 07/05/2012 - 16:49
Source:
जनसत्ता रविवारी, 24 जून 2012

हरियाणा जहां अपने कारखानों के जहरीले कचरे को दिल्ली भेज रहा है वहीं दिल्ली भी उत्तर प्रदेश को अपने गंदे नालों और सीवर का बदबूदार मैला पानी ही सप्लाई कर रही है। दिल्ली में यमुना की सफाई के नाम पर अब तक साढ़े तीन हजार करोड़ रुपए खर्च हो चुके हैं। ढाई हजार करोड़ रुपए अभी और खर्च होने हैं। दिल्ली में यमुना में अठारह बड़े नाले गिरते हैं, जिनमें नजफगढ़ का नाला सबसे बड़ा और सबसे अधिक प्रदूषित है। इस नाले में शहरी इलाकों के अड़तीस और ग्रामीण इलाकों के तीन नाले गिरते हैं।

यमुना से कृष्ण का अटूट नाता रहा है और इसकी पवित्रता को बरकरार रखने के लिए उन्होंने कालिया नाग को खत्म किया था। लेकिन द्वापर में प्रदूषित होने से बची यमुना कलयुग में जहर उगलते कारखानों और गंदे नालों की वजह से मैली हो गई है। यमुना की निर्मलता और स्वच्छता को बनाए रखने के दावे तो किए जा रहे हैं, लेकिन इस पर कायदे से अब तक अमल नहीं हो पाया है। अपने उद्गम से लेकर प्रयाग तक बहने वाली इस नदी की थोड़ी-बहुत सफाई बरसात के दिनों में इंद्र देव की कृपा से जरूर हो जाती है। लेकिन यमुनोत्री से निकली इस यमुना की व्यथा बेहद त्रासद है। अतीत में यमुना को भी पवित्रता और प्राचीन महत्ता के मामले में गंगा के बराबर ही अहमियत मिलती थी। पश्चिम हिमालय से निकल कर उत्तर प्रदेश और हरियाणा की सीमाओं की विभाजन रेखा बनी यह नदी पंचानवे मील का सफर तय कर उत्तरी सहारनपुर के मैदानी इलाके में पहुंचती हैं।
Submitted by Hindi on Wed, 07/04/2012 - 11:12
Source:
चरखा फीचर्स

सोलह वर्ष बाद आज भी हमें इस प्रश्न का उत्तर नहीं मिल पाया है कि माजुली को बचाने के लिए दूसरा कोई उपाय क्या है? संजय लिखते हैं ‘‘हमें लोगों के इस हौसले और शक्ति का पूरा एहसास है जिसे ब्रह्मपुत्र ने सुरक्षित रखा है।’’ माजुली के अस्तित्व के लिए संघर्श कर रहे लोगों के लिए यह पंक्तियां आज भी उनका हौसला बढ़ाती हैं। क्योंकि अहसास जगाने वाला माजुली का वह हीरो उनके दिलों में अब भी जिंदा है।

इस वर्ष ब्रह्मपुत्र नदी में आई बाढ़ ने जैसी तबाही मचाई है वैसी कल्पना कभी असमवासियों ने नहीं की थी। पानी के विकराल रूप ने सबसे ज्यादा माजुली द्वीप पर बसे 1.6 लाख वासियों को प्रभावित किया है। जो जिंदगी और मौत के दरम्यान खुद को बचाने की कशमकश में घिरे हुए हैं। सबके मन मस्तिष्क में बस एक ही प्रश्न घूम रहा है ‘यदि ऐसा होता तो क्या होता? और इन प्रश्नों में सबसे महत्वपूर्ण प्रश्न यह है कि ‘यदि आज संजय जीवित होते तो क्या होता? परंतु संजय के जीवित रहने की आशा तो 15 वर्ष पहले ही (4 जुलाई) को उस समय समाप्त हो गई जब उल्फा विद्रोहियों ने उनका अपहरण करके उसी माजुली द्वीप में कत्ल कर दिया जिसे तबाही से बचाने के लिए वह दिन रात संघर्ष कर रहे थे।

प्रयास

Submitted by Editorial Team on Thu, 12/08/2022 - 13:06
सीतापुर का नैमिषारण्य तीर्थ क्षेत्र, फोटो साभार - उप्र सरकार
श्री नैभिषारण्य धाम तीर्थ परिषद के गठन को प्रदेश मंत्रिमएडल ने स्वीकृति प्रदान की, जिसके अध्यक्ष स्वयं मुख्यमंत्री होंगे। इसके अंतर्गत नैमिषारण्य की होली के अवसर पर चौरासी कोसी 5 दिवसीय परिक्रमा पथ और उस पर स्थापित सम्पूर्ण देश की संह्कृति एवं एकात्मता के वह सभी तीर्थ एवं उनके स्थल केंद्रित हैं। इस सम्पूर्ण नैमिशारण्य क्षेत्र में लोक भारती पिछले 10 वर्ष से कार्य कर रही है। नैमिषाराण्य क्षेत्र के भूगर्भ जल स्रोतो का अध्ययन एवं उनके पुनर्नीवन पर लगातार कार्य चल रहा है। वर्षा नल सरक्षण एवं संम्भरण हेतु तालाबें के पुनर्नीवन अनियान के जवर्गत 119 तालाबों का पृनरुद्धार लोक भारती के प्रयासों से सम्पन्न हुआ है।

नोटिस बोर्ड

Submitted by Shivendra on Tue, 09/06/2022 - 14:16
Source:
चरखा फीचर
'संजॉय घोष मीडिया अवार्ड्स – 2022
कार्य अनुभव के विवरण के साथ संक्षिप्त पाठ्यक्रम जीवन लगभग 800-1000 शब्दों का एक प्रस्ताव, जिसमें उस विशेष विषयगत क्षेत्र को रेखांकित किया गया हो, जिसमें आवेदक काम करना चाहता है. प्रस्ताव में अध्ययन की विशिष्ट भौगोलिक स्थिति, कार्यप्रणाली, चयनित विषय की प्रासंगिकता के साथ-साथ इन लेखों से अपेक्षित प्रभाव के बारे में विवरण शामिल होनी चाहिए. साथ ही, इस बात का उल्लेख होनी चाहिए कि देश के विकास से जुड़ी बहस में इसके योगदान किस प्रकार हो सकता है? कृपया आलेख प्रस्तुत करने वाली भाषा भी निर्दिष्ट करें। लेख अंग्रेजी, हिंदी या उर्दू में ही स्वीकार किए जाएंगे
Submitted by Shivendra on Tue, 08/23/2022 - 17:19
Source:
यूसर्क
जल विज्ञान प्रशिक्षण कार्यशाला
उत्तराखंड विज्ञान शिक्षा एवं अनुसंधान केंद्र द्वारा आज दिनांक 23.08.22 को तीन दिवसीय जल विज्ञान प्रशिक्षण प्रारंभ किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए यूसर्क की निदेशक प्रो.(डॉ.) अनीता रावत ने अपने संबोधन में कहा कि यूसर्क द्वारा जल के महत्व को देखते हुए विगत वर्ष 2021 को संयुक्त राष्ट्र की विश्व पर्यावरण दिवस की थीम "ईको सिस्टम रेस्टोरेशन" के अंर्तगत आयोजित कार्यक्रम के निष्कर्षों के क्रम में जल विज्ञान विषयक लेक्चर सीरीज एवं जल विज्ञान प्रशिक्षण कार्यक्रमों को प्रारंभ किया गया
Submitted by Shivendra on Mon, 07/25/2022 - 15:34
Source:
यूसर्क
जल शिक्षा व्याख्यान श्रृंखला
इस दौरान राष्ट्रीय पर्यावरण  इंजीनियरिंग अनुसंधान संस्था के वरिष्ठ वैज्ञानिक और अपशिष्ट जल विभाग विभाग के प्रमुख डॉक्टर रितेश विजय  सस्टेनेबल  वेस्ट वाटर ट्रीटमेंट फॉर लिक्विड वेस्ट मैनेजमेंट (Sustainable Wastewater Treatment for Liquid Waste Management) विषय  पर विशेषज्ञ तौर पर अपनी राय रखेंगे।

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खासम-खास

तालाब ज्ञान-संस्कृति : नींव से शिखर तक

Submitted by Editorial Team on Tue, 10/04/2022 - 16:13
Author
कृष्ण गोपाल 'व्यास’
talab-gyan-sanskriti-:-ninv-se-shikhar-tak
कूरम में पुनर्निर्मित समथमन मंदिर तालाब। फोटो - indiawaterportal
परम्परागत तालाबों पर अनुपम मिश्र की किताब ‘आज भी खरे हैं तालाब’, पहली बार, वर्ष 1993 में प्रकाशित हुई थी। इस किताब में अनुपम ने समाज से प्राप्त जानकारी के आधार पर भारत के विभिन्न भागों में बने तालाबों के बारे में व्यापक विवरण प्रस्तुत किया है। अर्थात आज भी खरे हैं तालाब में दर्ज विवरण परम्परागत तालाबों पर समाज की राय है। उनका दृष्टिबोध है। उन विवरणों में समाज की भावनायें, आस्था, मान्यतायें, रीति-रिवाज तथा परम्परागत तालाबों के निर्माण से जुड़े कर्मकाण्ड दर्ज हैं। प्रस्तुति और शैली अनुपम की है।

Content

मरती गंगा

Submitted by Hindi on Fri, 07/06/2012 - 15:55
Author
निराला
Source
तहलका, 13 जून 2012
लगभग 40 करोड़ लोगों को अपने पानी से सिंचने वाली गंगा विलुप्त होना तय माना जा रहा है। जैसे राष्ट्रीय पक्षी मोर और राष्ट्रीय पशु शेर धीरे-धीरे खत्म हो चुके हैं वैसे ही गंगा भी खत्म होने के कगार पर है। गंगा का राष्ट्रीय नदी होना ही उसके लिए खतरा है। क्योंकि जबसे गंगा को राष्ट्रीय नदी का सम्मान मिला है तब से कुछ ज्यादा ही गंगा को नुकसान पहुंचाया जा रहा है। अब गंगा शहरों का सीवर तथा कचरा ढोने वाली मालगाड़ी हो गई है। बांध, बैराज, खनन तथा शहरों से निकला कचरा गंगा के प्रवाह में ज्यादा खतरनाक साबित हो रहे हैं। गंगा पर हो रहे अतिक्रमण के बारे में बताती निराला की रिपोर्ट।

गंगा, दुनिया की उन 10 बड़ी नदियों में है जिनके अस्तित्व पर खतरा मंडरा रहा है। इस पर बनते बांधों, इससे निकलती नहरों, इसमें घुलती जहरीली गंदगी और इसमें होते खनन को देखते हुए यह सुनकर हैरानी नहीं होती। गंगा के बेसिन में बसने वाले करीब 40 करोड़ लोग प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से इस पर निर्भर हैं। गंगा के पूरी तरह से खत्म होने में भले ही अभी कुछ समय हो लेकिन उस पर आश्रित करोड़ों जिंदगियां खत्म होती दिखने लगी हैं।

‘25 साल पहले गंगा की सफाई के नाम पर हमारे इलाके में वाटर ट्रीटमेंट प्लांट लगा। शहर के गंदे नालों का पानी आया तो पहले-पहल तो खेतों में क्रांति हो गई। फसल चार से दस गुना तक बढ़ी। लेकिन अब तो हम अपनी फसल खुद इस्तेमाल करने से बचते हैं। लोग भी अब हमारे खेत की सब्जियां नहीं लेते, क्योंकि वे देखने में तो बड़ी और सुंदर लगती हैं मगर उनमें कोई स्वाद नहीं होता। दो घंटे में कीड़े पड़ जाते हैं उनमें। वही हाल गेहूं-चावल का भी है। चावल या रोटी बनाकर अगर फौरन नहीं खाई तो थोड़ी देर बाद ही उसमें बास आने लगती है। अब तो हम लोगों ने फूलों की खेती पर ध्यान देना शुरू कर दिया है। फूल भगवान पर चढ़ेंगे। उनको तो कोई शिकायत नहीं होगी।’

यमुना भी एक नदी थी

Submitted by Hindi on Thu, 07/05/2012 - 16:49
Author
हरिकृष्ण यादव
Source
जनसत्ता रविवारी, 24 जून 2012

हरियाणा जहां अपने कारखानों के जहरीले कचरे को दिल्ली भेज रहा है वहीं दिल्ली भी उत्तर प्रदेश को अपने गंदे नालों और सीवर का बदबूदार मैला पानी ही सप्लाई कर रही है। दिल्ली में यमुना की सफाई के नाम पर अब तक साढ़े तीन हजार करोड़ रुपए खर्च हो चुके हैं। ढाई हजार करोड़ रुपए अभी और खर्च होने हैं। दिल्ली में यमुना में अठारह बड़े नाले गिरते हैं, जिनमें नजफगढ़ का नाला सबसे बड़ा और सबसे अधिक प्रदूषित है। इस नाले में शहरी इलाकों के अड़तीस और ग्रामीण इलाकों के तीन नाले गिरते हैं।

यमुना से कृष्ण का अटूट नाता रहा है और इसकी पवित्रता को बरकरार रखने के लिए उन्होंने कालिया नाग को खत्म किया था। लेकिन द्वापर में प्रदूषित होने से बची यमुना कलयुग में जहर उगलते कारखानों और गंदे नालों की वजह से मैली हो गई है। यमुना की निर्मलता और स्वच्छता को बनाए रखने के दावे तो किए जा रहे हैं, लेकिन इस पर कायदे से अब तक अमल नहीं हो पाया है। अपने उद्गम से लेकर प्रयाग तक बहने वाली इस नदी की थोड़ी-बहुत सफाई बरसात के दिनों में इंद्र देव की कृपा से जरूर हो जाती है। लेकिन यमुनोत्री से निकली इस यमुना की व्यथा बेहद त्रासद है। अतीत में यमुना को भी पवित्रता और प्राचीन महत्ता के मामले में गंगा के बराबर ही अहमियत मिलती थी। पश्चिम हिमालय से निकल कर उत्तर प्रदेश और हरियाणा की सीमाओं की विभाजन रेखा बनी यह नदी पंचानवे मील का सफर तय कर उत्तरी सहारनपुर के मैदानी इलाके में पहुंचती हैं।

माजुली का हीरो जिंदा है

Submitted by Hindi on Wed, 07/04/2012 - 11:12
Author
अंशु मेश्क
Source
चरखा फीचर्स

सोलह वर्ष बाद आज भी हमें इस प्रश्न का उत्तर नहीं मिल पाया है कि माजुली को बचाने के लिए दूसरा कोई उपाय क्या है? संजय लिखते हैं ‘‘हमें लोगों के इस हौसले और शक्ति का पूरा एहसास है जिसे ब्रह्मपुत्र ने सुरक्षित रखा है।’’ माजुली के अस्तित्व के लिए संघर्श कर रहे लोगों के लिए यह पंक्तियां आज भी उनका हौसला बढ़ाती हैं। क्योंकि अहसास जगाने वाला माजुली का वह हीरो उनके दिलों में अब भी जिंदा है।

इस वर्ष ब्रह्मपुत्र नदी में आई बाढ़ ने जैसी तबाही मचाई है वैसी कल्पना कभी असमवासियों ने नहीं की थी। पानी के विकराल रूप ने सबसे ज्यादा माजुली द्वीप पर बसे 1.6 लाख वासियों को प्रभावित किया है। जो जिंदगी और मौत के दरम्यान खुद को बचाने की कशमकश में घिरे हुए हैं। सबके मन मस्तिष्क में बस एक ही प्रश्न घूम रहा है ‘यदि ऐसा होता तो क्या होता? और इन प्रश्नों में सबसे महत्वपूर्ण प्रश्न यह है कि ‘यदि आज संजय जीवित होते तो क्या होता? परंतु संजय के जीवित रहने की आशा तो 15 वर्ष पहले ही (4 जुलाई) को उस समय समाप्त हो गई जब उल्फा विद्रोहियों ने उनका अपहरण करके उसी माजुली द्वीप में कत्ल कर दिया जिसे तबाही से बचाने के लिए वह दिन रात संघर्ष कर रहे थे।

प्रयास

सीतापुर और हरदोई के 36 गांव मिलाकर हो रहा है ‘नैमिषारण्य तीर्थ विकास परिषद’ गठन  

Submitted by Editorial Team on Thu, 12/08/2022 - 13:06
sitapur-aur-hardoi-ke-36-gaon-milaakar-ho-raha-hai-'naimisharany-tirth-vikas-parishad'-gathan
Source
लोकसम्मान पत्रिका, दिसम्बर-2022
सीतापुर का नैमिषारण्य तीर्थ क्षेत्र, फोटो साभार - उप्र सरकार
श्री नैभिषारण्य धाम तीर्थ परिषद के गठन को प्रदेश मंत्रिमएडल ने स्वीकृति प्रदान की, जिसके अध्यक्ष स्वयं मुख्यमंत्री होंगे। इसके अंतर्गत नैमिषारण्य की होली के अवसर पर चौरासी कोसी 5 दिवसीय परिक्रमा पथ और उस पर स्थापित सम्पूर्ण देश की संह्कृति एवं एकात्मता के वह सभी तीर्थ एवं उनके स्थल केंद्रित हैं। इस सम्पूर्ण नैमिशारण्य क्षेत्र में लोक भारती पिछले 10 वर्ष से कार्य कर रही है। नैमिषाराण्य क्षेत्र के भूगर्भ जल स्रोतो का अध्ययन एवं उनके पुनर्नीवन पर लगातार कार्य चल रहा है। वर्षा नल सरक्षण एवं संम्भरण हेतु तालाबें के पुनर्नीवन अनियान के जवर्गत 119 तालाबों का पृनरुद्धार लोक भारती के प्रयासों से सम्पन्न हुआ है।

नोटिस बोर्ड

'संजॉय घोष मीडिया अवार्ड्स – 2022

Submitted by Shivendra on Tue, 09/06/2022 - 14:16
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Source
चरखा फीचर
'संजॉय घोष मीडिया अवार्ड्स – 2022
कार्य अनुभव के विवरण के साथ संक्षिप्त पाठ्यक्रम जीवन लगभग 800-1000 शब्दों का एक प्रस्ताव, जिसमें उस विशेष विषयगत क्षेत्र को रेखांकित किया गया हो, जिसमें आवेदक काम करना चाहता है. प्रस्ताव में अध्ययन की विशिष्ट भौगोलिक स्थिति, कार्यप्रणाली, चयनित विषय की प्रासंगिकता के साथ-साथ इन लेखों से अपेक्षित प्रभाव के बारे में विवरण शामिल होनी चाहिए. साथ ही, इस बात का उल्लेख होनी चाहिए कि देश के विकास से जुड़ी बहस में इसके योगदान किस प्रकार हो सकता है? कृपया आलेख प्रस्तुत करने वाली भाषा भी निर्दिष्ट करें। लेख अंग्रेजी, हिंदी या उर्दू में ही स्वीकार किए जाएंगे

​यूसर्क द्वारा तीन दिवसीय जल विज्ञान प्रशिक्षण प्रारंभ

Submitted by Shivendra on Tue, 08/23/2022 - 17:19
USERC-dvara-tin-divasiy-jal-vigyan-prashikshan-prarambh
Source
यूसर्क
जल विज्ञान प्रशिक्षण कार्यशाला
उत्तराखंड विज्ञान शिक्षा एवं अनुसंधान केंद्र द्वारा आज दिनांक 23.08.22 को तीन दिवसीय जल विज्ञान प्रशिक्षण प्रारंभ किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए यूसर्क की निदेशक प्रो.(डॉ.) अनीता रावत ने अपने संबोधन में कहा कि यूसर्क द्वारा जल के महत्व को देखते हुए विगत वर्ष 2021 को संयुक्त राष्ट्र की विश्व पर्यावरण दिवस की थीम "ईको सिस्टम रेस्टोरेशन" के अंर्तगत आयोजित कार्यक्रम के निष्कर्षों के क्रम में जल विज्ञान विषयक लेक्चर सीरीज एवं जल विज्ञान प्रशिक्षण कार्यक्रमों को प्रारंभ किया गया

28 जुलाई को यूसर्क द्वारा आयोजित जल शिक्षा व्याख्यान श्रृंखला पर भाग लेने के लिए पंजीकरण करायें

Submitted by Shivendra on Mon, 07/25/2022 - 15:34
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Source
यूसर्क
जल शिक्षा व्याख्यान श्रृंखला
इस दौरान राष्ट्रीय पर्यावरण  इंजीनियरिंग अनुसंधान संस्था के वरिष्ठ वैज्ञानिक और अपशिष्ट जल विभाग विभाग के प्रमुख डॉक्टर रितेश विजय  सस्टेनेबल  वेस्ट वाटर ट्रीटमेंट फॉर लिक्विड वेस्ट मैनेजमेंट (Sustainable Wastewater Treatment for Liquid Waste Management) विषय  पर विशेषज्ञ तौर पर अपनी राय रखेंगे।

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