तालाब ज्ञान-संस्कृति : नींव से शिखर तक

हमारी नदी प्रणालियों के विनाश का नया अध्याय 1980 के दशक में नई उदार आर्थिक नीतियों के अपनाने के साथ शुरू हुआ। सच्चाई को छुपाने के लिये 1986 में गंगा एक्शन प्लान –1 शुरू किया गया था। विदेशी कंपनियों की कमाई तो हुई पर गंगा स्वच्छता अभियान पूरी तरह विफल हो गया और जानकार मानते हैं कि गंगा नदी की दुर्दशा पहले से ज्यादा बदतर हो गई। शासन असली मुद्दों से लोगों का ध्यान भटकाने में जरूर कामयाब रहा और स्वछता अभियान की आड़ में नदी प्रणाली को एक-एक करके नष्ट कर दिया गया था। इस पृष्ठ भूमि में हमें राष्ट्रीय गंगा नदी बेसिन प्राधिकरण की आड़ में असली खेल को समझना होगा
भारत में अनादिकाल से ही गंगा जीवनदायिनी और मोक्ष दायिनी रही है, भारतीय संस्कृति, सभ्यता और अस्मिता की प्रतिक रही हैं। गंगा जी की अविरल और निर्मल सतत् धारा के बिना भारतीय संस्कृति की कल्पना नहीं की जा सकती। गंगा जी को सम्पूर्णता में देखने और समझने की आवश्यकता है। गंगा केवल धरती की सतह पर ही नहीं है, ये सतत् तौर पर हमारे भीतर भी प्रवाहमान हैं, यह भूमिगत जल धाराओं, बादलों और शायद आकाशगंगा में भी सतत् प्रवाहमान है। समुद्र तटीय क्षेत्रों के आसपास ताजे पानी की धाराओं के गठन और नदी का सागर में मिलन, फिर वाष्पीकरण द्वारा बादलों का निर्माण और भारतीय भूखंड में मानसून ये सब घटनायें एक दूसरे से अभिन्न तौर पर जुड़ी हैं। इन सब प्रक्रियाओं को समग्रता से समझाना होगा। मनुष्य के हस्तक्षेप ने जाने–अनजाने, लोभ –लिप्सा के वशीभूत एक से अधिक तरीकों से इस पुरे चक्र को नष्ट और बाधित किया है।हमारी नदी प्रणालियों के विनाश का नया अध्याय 1980 के दशक में नई उदार आर्थिक नीतियों के अपनाने के साथ शुरू हुआ। सच्चाई को छुपाने के लिये 1986 में गंगा एक्शन प्लान –1 शुरू किया गया था। विदेशी कंपनियों की कमाई तो हुई पर गंगा स्वच्छता अभियान पूरी तरह विफल हो गया और जानकार मानते हैं कि गंगा नदी की दुर्दशा पहले से ज्यादा बदतर हो गई। शासन असली मुद्दों से लोगों का ध्यान भटकाने में जरूर कामयाब रहा और स्वछता अभियान की आड़ में नदी प्रणाली को एक-एक करके नष्ट कर दिया गया था। इस पृष्ठ भूमि में हमें राष्ट्रीय गंगा नदी बेसिन प्राधिकरण की आड़ में असली खेल को समझना होगा
भारत में अनादिकाल से ही गंगा जीवनदायिनी और मोक्ष दायिनी रही है, भारतीय संस्कृति, सभ्यता और अस्मिता की प्रतिक रही हैं। गंगा जी की अविरल और निर्मल सतत् धारा के बिना भारतीय संस्कृति की कल्पना नहीं की जा सकती। गंगा जी को सम्पूर्णता में देखने और समझने की आवश्यकता है। गंगा केवल धरती की सतह पर ही नहीं है, ये सतत् तौर पर हमारे भीतर भी प्रवाहमान हैं, यह भूमिगत जल धाराओं, बादलों और शायद आकाशगंगा में भी सतत् प्रवाहमान है। समुद्र तटीय क्षेत्रों के आसपास ताजे पानी की धाराओं के गठन और नदी का सागर में मिलन, फिर वाष्पीकरण द्वारा बादलों का निर्माण और भारतीय भूखंड में मानसून ये सब घटनायें एक दूसरे से अभिन्न तौर पर जुड़ी हैं। इन सब प्रक्रियाओं को समग्रता से समझाना होगा। मनुष्य के हस्तक्षेप ने जाने–अनजाने, लोभ –लिप्सा के वशीभूत एक से अधिक तरीकों से इस पुरे चक्र को नष्ट और बाधित किया है।
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