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गंगाजल वर्षों तक किसी भी बर्तन में सुरक्षित रखा जा सकता है। इसलिए गंगा जल का विशेष महत्व है। क्योंकि वह अमृत तुल्य है अद्वितीय कोटि का है, जिसका वर्णन महाभारत एवं अन्य कई पौराणिक ग्रन्थों में किया गया है। पश्चिमी वैज्ञानिकों ने भी गंगा के जल की इस अद्भुत विशेषता को सिद्ध किया है। डॉ. एफ.सी. हैरिसन के अनुसार गंगा जल में एक अनोखा गुण है, जिसकी सन्तोषजनक व्याख्या मुश्किल है। इसमें हैजे के जीवाणु की तीन से पाँच घंटे में मृत्यु हो जाती है। जबकि कई नदियों में यही जीवाणु तेजी से फैलती हैं। फ्रांस के एक डॉक्टर हेरेल यील्डेड ने भी अपने अनुसंधान के दौरान ऐसा ही पाया।
प्राचीन काल से ही भारत भूमि को स्वर्ग बनाती और यहां की सभ्यता और संस्कृति का पोषण करती गंगा नदी इस धरती की अलौकिक शोभा है। पवित्र तीर्थों की जननी तथा ज्ञान-विज्ञान की रक्षक इस नदी के बारे में पं. जवाहर लाल नेहरू ने लिखा है, “गगा तो विशेषकर भारत की नदी है, जनता की प्रिय है, जिससे लिपटी हैं भारत की जातीय स्मृतियां, उसकी आशाएँ और उसके भय उसके विजयगान, उसकी विजय और पराजय। गंगा तो भारत की प्राचीन सभ्यता का प्रतीक रही है, निशान रही है। सदा बदलती, सदा बहती, फिर भी वही गंगा की गंगा”। पूरे विश्व में ऐसी कोई नदी नहीं जिसे इतना आदर मिला हो। इसे यहां केवल जल का स्रोत नहीं वरन् देवी मानकर पूजा जाता है। कोई भी विशेष धार्मिक अनुष्ठान गंगा-जल के बिना पूरा नहीं होता। दुर्भाग्य से आज गंगा पहले जैसी नहीं रही। आज इसका पावन जल प्रदूषण की चपेट में है।गंगा को प्रदूषण मुक्त करने और कुंभ क्षेत्र को प्रदूषण से मुक्त करने की मांग को लेकर अनशन कर रहे मातृसदन के स्वामी निगमानंद की 2011 में मौत तक हो चुकी है। इतना ही नहीं, मातृसदन के परमाध्यक्ष स्वामी शिवानंद भी नवंबर 2011 में गंगा को खनन मुक्त करने की मांग को लेकर लंबा अनशन कर चुके हैं। इन अनशनों को भी राज्य सरकार ने दबाने की पूरी कोशिश की। यहां तक शिवानंद के अनशन के दौरान तो सरकार में मंत्री दिवाकर भट्ट ने उनके खिलाफ मोर्चा तक खोल दिया था। अब गंगा की अविरलता को लेकर अनशन कर रहे स्वामी सानंद भी स्थानीय क्षेत्रिय दलों के निशाने पर आ गए हैं।
गंगा की अविरलता के लिए और गंगा पर बन रहे बांधों के विरोध में 9 फरवरी से हरिद्वार के कनखल स्थित मातृसदन में चल रहा स्वामी ज्ञान स्वरूप सानंद का अनशन इस बार जोर पकड़ने के बजाय असफल साबित हो रहा है। वर्ष 2008 के बाद गंगा की अविरलता और बांधों के विरोध में लगातार हो रहे अनेक आंदोलनों के दौरान ऐसा पहली बार हो रहा है जब संत समाज और उत्तराखंड के क्षेत्रीय दल ऐसे किसी आंदोलन के विरोध में एक साथ खड़े हो गए हैं। जगतगुरु स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती से दीक्षा ग्रहण करने के बाद प्रोफेसर से स्वामी ज्ञान स्वरूप सानंद बने जी.डी. अग्रवाल 9 फरवरी से मातृसदन में अनशन कर रहे हैं। अग्रवाल आईआईटी, कानपुर में प्रोफेसर रह चुके हैं लेकिन अब इन्होंने संन्यास ग्रहण कर खुद को गंगा को समर्पित कर दिया है। इससे पहले भी स्वामी ज्ञान स्वरूप सानंद गंगा पर बन रही परियोजनाओं के खिलाफ हरिद्वार के मातृसदन और उत्तरकाशी में गंगा तट पर अनशन कर चुके हैं।कृष्णी नदी गांव के पूर्व दिशा में बहती है। जब हवा चलती है तो नदी के सड़े हुए पानी से सांस लेना भी दूभर हो जाता है। यह नदी गांव के लिए मच्छर बनाने की फैक्ट्री बन चुकी है। भूगर्भ जल कुछ समय बाद ही पीला हो जाता है। महिलाओं के गहने काले पड़ जाते हैं। इस गांव के लड़के शादी के लिए भी मोहताज हो चुके हैं। अन्य गांव के लोग इस गांव में अपनी लड़कियों की शादी नहीं करते। गांव के लोगों का अधिकांश धन स्वच्छ पानी के लिए व बिमारियों के लिए खर्च करते हैं। गांव वालों ने शासन एवं प्रशासन स्तर पर नदी के किनारे लगे उद्योगों को हटाने के लिए काफी प्रयास किये। लेकिन कोई सुखद परिणाम नहीं निकला।
आज भारत सहित दुनिया के अधिकतर देशों में जल प्रदूषण एक गंभीर समस्या बना हुआ है। यह प्रदूषण सतह पर बहने वाले पानी तथा भूजल दोनों में समान रूप से फैल रहा है। जिसका कारण औद्योगिक विकास तथा बदलती जीवन शैली है। प्रदूषित होता जल मानव समाज के साथ-साथ पूरे वातावरण को भी दूषित कर रहा है। स्वच्छ पानी पीना मनुष्य का मानवाधिकार है। परन्तु मानवाधिकारों का हनन किस प्रकार हो रहा है यह हिण्डन नदी के किनारे बसे गाँवों में आसानी से देखा जा सकता है। हिण्डन व उसकी सहायक नदियों के ऊपर गहन शोध कार्य किया गया था। इस दौरान पहले तो हिण्डन व उसकी सहायक नदियों में बहने वाले पानी का परीक्षण कराया गया तथा उसके पश्चात इन नदियों के किनारों के बारह गांवों का स्वास्थ्य संबंधी अध्ययन किया गया तथा आठ गांवों के भूजल का परिक्षण भी कराया गया।Pagination
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सभ्यता और संस्कृति की पोषक-गंगा
गंगाजल वर्षों तक किसी भी बर्तन में सुरक्षित रखा जा सकता है। इसलिए गंगा जल का विशेष महत्व है। क्योंकि वह अमृत तुल्य है अद्वितीय कोटि का है, जिसका वर्णन महाभारत एवं अन्य कई पौराणिक ग्रन्थों में किया गया है। पश्चिमी वैज्ञानिकों ने भी गंगा के जल की इस अद्भुत विशेषता को सिद्ध किया है। डॉ. एफ.सी. हैरिसन के अनुसार गंगा जल में एक अनोखा गुण है, जिसकी सन्तोषजनक व्याख्या मुश्किल है। इसमें हैजे के जीवाणु की तीन से पाँच घंटे में मृत्यु हो जाती है। जबकि कई नदियों में यही जीवाणु तेजी से फैलती हैं। फ्रांस के एक डॉक्टर हेरेल यील्डेड ने भी अपने अनुसंधान के दौरान ऐसा ही पाया।
प्राचीन काल से ही भारत भूमि को स्वर्ग बनाती और यहां की सभ्यता और संस्कृति का पोषण करती गंगा नदी इस धरती की अलौकिक शोभा है। पवित्र तीर्थों की जननी तथा ज्ञान-विज्ञान की रक्षक इस नदी के बारे में पं. जवाहर लाल नेहरू ने लिखा है, “गगा तो विशेषकर भारत की नदी है, जनता की प्रिय है, जिससे लिपटी हैं भारत की जातीय स्मृतियां, उसकी आशाएँ और उसके भय उसके विजयगान, उसकी विजय और पराजय। गंगा तो भारत की प्राचीन सभ्यता का प्रतीक रही है, निशान रही है। सदा बदलती, सदा बहती, फिर भी वही गंगा की गंगा”। पूरे विश्व में ऐसी कोई नदी नहीं जिसे इतना आदर मिला हो। इसे यहां केवल जल का स्रोत नहीं वरन् देवी मानकर पूजा जाता है। कोई भी विशेष धार्मिक अनुष्ठान गंगा-जल के बिना पूरा नहीं होता। दुर्भाग्य से आज गंगा पहले जैसी नहीं रही। आज इसका पावन जल प्रदूषण की चपेट में है।गंगा रक्षा के लिए अकेला पड़ा ‘गंगापुत्र’
गंगा को प्रदूषण मुक्त करने और कुंभ क्षेत्र को प्रदूषण से मुक्त करने की मांग को लेकर अनशन कर रहे मातृसदन के स्वामी निगमानंद की 2011 में मौत तक हो चुकी है। इतना ही नहीं, मातृसदन के परमाध्यक्ष स्वामी शिवानंद भी नवंबर 2011 में गंगा को खनन मुक्त करने की मांग को लेकर लंबा अनशन कर चुके हैं। इन अनशनों को भी राज्य सरकार ने दबाने की पूरी कोशिश की। यहां तक शिवानंद के अनशन के दौरान तो सरकार में मंत्री दिवाकर भट्ट ने उनके खिलाफ मोर्चा तक खोल दिया था। अब गंगा की अविरलता को लेकर अनशन कर रहे स्वामी सानंद भी स्थानीय क्षेत्रिय दलों के निशाने पर आ गए हैं।
गंगा की अविरलता के लिए और गंगा पर बन रहे बांधों के विरोध में 9 फरवरी से हरिद्वार के कनखल स्थित मातृसदन में चल रहा स्वामी ज्ञान स्वरूप सानंद का अनशन इस बार जोर पकड़ने के बजाय असफल साबित हो रहा है। वर्ष 2008 के बाद गंगा की अविरलता और बांधों के विरोध में लगातार हो रहे अनेक आंदोलनों के दौरान ऐसा पहली बार हो रहा है जब संत समाज और उत्तराखंड के क्षेत्रीय दल ऐसे किसी आंदोलन के विरोध में एक साथ खड़े हो गए हैं। जगतगुरु स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती से दीक्षा ग्रहण करने के बाद प्रोफेसर से स्वामी ज्ञान स्वरूप सानंद बने जी.डी. अग्रवाल 9 फरवरी से मातृसदन में अनशन कर रहे हैं। अग्रवाल आईआईटी, कानपुर में प्रोफेसर रह चुके हैं लेकिन अब इन्होंने संन्यास ग्रहण कर खुद को गंगा को समर्पित कर दिया है। इससे पहले भी स्वामी ज्ञान स्वरूप सानंद गंगा पर बन रही परियोजनाओं के खिलाफ हरिद्वार के मातृसदन और उत्तरकाशी में गंगा तट पर अनशन कर चुके हैं।नदी के जल जनित रोगों से होता नारकीय जीवन
कृष्णी नदी गांव के पूर्व दिशा में बहती है। जब हवा चलती है तो नदी के सड़े हुए पानी से सांस लेना भी दूभर हो जाता है। यह नदी गांव के लिए मच्छर बनाने की फैक्ट्री बन चुकी है। भूगर्भ जल कुछ समय बाद ही पीला हो जाता है। महिलाओं के गहने काले पड़ जाते हैं। इस गांव के लड़के शादी के लिए भी मोहताज हो चुके हैं। अन्य गांव के लोग इस गांव में अपनी लड़कियों की शादी नहीं करते। गांव के लोगों का अधिकांश धन स्वच्छ पानी के लिए व बिमारियों के लिए खर्च करते हैं। गांव वालों ने शासन एवं प्रशासन स्तर पर नदी के किनारे लगे उद्योगों को हटाने के लिए काफी प्रयास किये। लेकिन कोई सुखद परिणाम नहीं निकला।
आज भारत सहित दुनिया के अधिकतर देशों में जल प्रदूषण एक गंभीर समस्या बना हुआ है। यह प्रदूषण सतह पर बहने वाले पानी तथा भूजल दोनों में समान रूप से फैल रहा है। जिसका कारण औद्योगिक विकास तथा बदलती जीवन शैली है। प्रदूषित होता जल मानव समाज के साथ-साथ पूरे वातावरण को भी दूषित कर रहा है। स्वच्छ पानी पीना मनुष्य का मानवाधिकार है। परन्तु मानवाधिकारों का हनन किस प्रकार हो रहा है यह हिण्डन नदी के किनारे बसे गाँवों में आसानी से देखा जा सकता है। हिण्डन व उसकी सहायक नदियों के ऊपर गहन शोध कार्य किया गया था। इस दौरान पहले तो हिण्डन व उसकी सहायक नदियों में बहने वाले पानी का परीक्षण कराया गया तथा उसके पश्चात इन नदियों के किनारों के बारह गांवों का स्वास्थ्य संबंधी अध्ययन किया गया तथा आठ गांवों के भूजल का परिक्षण भी कराया गया।Pagination
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सीतापुर और हरदोई के 36 गांव मिलाकर हो रहा है ‘नैमिषारण्य तीर्थ विकास परिषद’ गठन
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'संजॉय घोष मीडिया अवार्ड्स – 2022
यूसर्क द्वारा तीन दिवसीय जल विज्ञान प्रशिक्षण प्रारंभ
28 जुलाई को यूसर्क द्वारा आयोजित जल शिक्षा व्याख्यान श्रृंखला पर भाग लेने के लिए पंजीकरण करायें
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