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भारत में कुडनकुलम की चर्चा इन दिनों खूब है। कुडनकुलम की चर्चा के पीछे का राज हमारी ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने का तर्क है। हमारे पूर्व राष्ट्रपति और देश के सम्मानित वैज्ञानिक एपीजे अब्दुल कलाम तक ने कहा है कि कुडनकुलम की परमाणु ऊर्जा परियोजना का विरोध बंद कर देना चाहिए क्योंकि वह हमारी ऊर्जा जरूरतों के लिए जरूरी है। अपनी ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने के लिए भारी भरकम और खतरों से भरी ऊर्जा परियोजनाएं लगाना क्या इतना जरूरी है? शायद नहीं। ऊर्जा की हमारी जरूरतें हमारे अपने साधनों से भी पूरी हो सकती हैं। कम से कम ग्रीनपीस की एक रिपोर्ट तो हमें उम्मीद की वही किरण दिखा रही है।
एपीजे अब्दुल कलाम ज्यादा दूर न जाकर उसी तमिलनाडु के ओदांथुराई पंचायत को देखें तो उन्हें कुडनकुलम के परमाणु ऊर्जा संयत्र के बारे में बयान देने की जरूरत नहीं पड़ेगी। ग्यारह गावों की इस पंचायत ने अपनी ऊर्जा जरूरतों को जिस तरह पूरा किया है वह न केवल कलाम को जवाब है बल्कि पूरे देश में ऊर्जा के भविष्य का सुनहरा मॉडल भी है। सोलर, बायोगैस और पवन ऊर्जा के समुचित प्रयोग से उन्होंने अपनी 350 किलोवाट की ऊर्जा जरूरतों को आसानी से पूरा कर लिया है। इसके लिए उन्हें किसी बाहरी कंपनी को भारी भरकम बिल भी अदा नहीं करना पड़ता। केवल ओदांथुराई पंचायत ही नहीं बल्कि ऐसी दस कहानियों को जोड़कर ग्रीनपीस ने एक दस्तावेज ही तैयार कर दिया है। ग्रीनपीस का एक विभाग अक्षय ऊर्जा पर काम कर रहा है जिसके मुखिया रमापति कुमार है। विभाग देश में ऊर्जा व्यवस्था का ऑडिट कर रहा है। इसी कड़ी में उसने देशभर में ऐसे ऊर्जा प्रयोगों का एक संकलन तैयार किया है जिसमें वैकल्पिक ऊर्जा स्रोतों से ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने की कहानियां। इन कहानियों में बिहार के प्रयोग भी शामिल हैं तो लेह लद्दाख की भी ऊर्जा गाथाएं हैं।बिहार के गांवों के भ्रमण के सिलसिले में नीतीश कुमार ने भागलपुर जिले के धरहरा गांव में यह पाया कि वहां जब भी किसी लड़की का जन्म होता है तो लोगो उसकी याद में फल देने वाला एक वृक्ष अवश्य लगाते हैं। वहां यह देखकर उनके मन में यह विचार आया कि क्यों नहीं पूरे बिहार में नए वृक्षों का जाल बिछा दिया जाए। नीतीश कुमार का यह प्रयास निश्चय ही सराहनीय है। परंतु आवश्यकता इस बात की है कि केवल वृक्ष ही नहीं लगाए जाएं उसके साथ चापाकल भी लगाए जाएं जैसा कि निर्मला देशपांडे का विचार था।
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने निस्संदेह बिहार को एक स्वच्छ प्रशासन दिया है। इस दिशा में उन्होंने कई अभिनव प्रयोग किए हैं। माफिया सरगनाओं को जेल में डाल दिया है। लड़कियों की शिक्षा को प्रोत्साहित करने के लिए स्कूल में जाने वाली हर लड़की को मुफ्त साइकिल दी है। लड़कियों के स्कूलों में शौचालय का प्रबंध किया है। पूरे बिहार में सड़कों का जाल बिछा दिया है। बिहार में तो उद्योगों का जाल भी बिछ जाता यदि वहां बिजली की उपलब्धता होती। कोयले की सारी खदान झारखंड के हिस्से में चली गईं। दुर्भाग्यवश इन खदानों से बिहार के बिजलीघरों को कोयला नहीं मिल रहा है। इसी कारण वहां पर्याप्त बिजली का उत्पादन नहीं हो रहा है। पीछे मुड़कर देखने से ऐसा लगता है कि बिहार का बंटवारा ही गलत था। राजनेताओं ने अपने स्वार्थ के लिए इस फूलते-फलते राज्य को दो भागों में बांट दिया और आज की तारीख में दोनों राज्य गरीबी के शिकार हैं। बात केवल कोयला खदानों और बिजलीघरों की ही नहीं है। बिहार के तीन-चौथाई जंगल झारखंड में रह गए। वहां भी ठेकेदार माफिया ने जंगलों का बुरी तरह दोहन किया है।Pagination
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अक्षय ऊर्जा की ओर दस कदम
भारत में कुडनकुलम की चर्चा इन दिनों खूब है। कुडनकुलम की चर्चा के पीछे का राज हमारी ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने का तर्क है। हमारे पूर्व राष्ट्रपति और देश के सम्मानित वैज्ञानिक एपीजे अब्दुल कलाम तक ने कहा है कि कुडनकुलम की परमाणु ऊर्जा परियोजना का विरोध बंद कर देना चाहिए क्योंकि वह हमारी ऊर्जा जरूरतों के लिए जरूरी है। अपनी ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने के लिए भारी भरकम और खतरों से भरी ऊर्जा परियोजनाएं लगाना क्या इतना जरूरी है? शायद नहीं। ऊर्जा की हमारी जरूरतें हमारे अपने साधनों से भी पूरी हो सकती हैं। कम से कम ग्रीनपीस की एक रिपोर्ट तो हमें उम्मीद की वही किरण दिखा रही है।
एपीजे अब्दुल कलाम ज्यादा दूर न जाकर उसी तमिलनाडु के ओदांथुराई पंचायत को देखें तो उन्हें कुडनकुलम के परमाणु ऊर्जा संयत्र के बारे में बयान देने की जरूरत नहीं पड़ेगी। ग्यारह गावों की इस पंचायत ने अपनी ऊर्जा जरूरतों को जिस तरह पूरा किया है वह न केवल कलाम को जवाब है बल्कि पूरे देश में ऊर्जा के भविष्य का सुनहरा मॉडल भी है। सोलर, बायोगैस और पवन ऊर्जा के समुचित प्रयोग से उन्होंने अपनी 350 किलोवाट की ऊर्जा जरूरतों को आसानी से पूरा कर लिया है। इसके लिए उन्हें किसी बाहरी कंपनी को भारी भरकम बिल भी अदा नहीं करना पड़ता। केवल ओदांथुराई पंचायत ही नहीं बल्कि ऐसी दस कहानियों को जोड़कर ग्रीनपीस ने एक दस्तावेज ही तैयार कर दिया है। ग्रीनपीस का एक विभाग अक्षय ऊर्जा पर काम कर रहा है जिसके मुखिया रमापति कुमार है। विभाग देश में ऊर्जा व्यवस्था का ऑडिट कर रहा है। इसी कड़ी में उसने देशभर में ऐसे ऊर्जा प्रयोगों का एक संकलन तैयार किया है जिसमें वैकल्पिक ऊर्जा स्रोतों से ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने की कहानियां। इन कहानियों में बिहार के प्रयोग भी शामिल हैं तो लेह लद्दाख की भी ऊर्जा गाथाएं हैं।एक पौधा और एक कुआं
बिहार के गांवों के भ्रमण के सिलसिले में नीतीश कुमार ने भागलपुर जिले के धरहरा गांव में यह पाया कि वहां जब भी किसी लड़की का जन्म होता है तो लोगो उसकी याद में फल देने वाला एक वृक्ष अवश्य लगाते हैं। वहां यह देखकर उनके मन में यह विचार आया कि क्यों नहीं पूरे बिहार में नए वृक्षों का जाल बिछा दिया जाए। नीतीश कुमार का यह प्रयास निश्चय ही सराहनीय है। परंतु आवश्यकता इस बात की है कि केवल वृक्ष ही नहीं लगाए जाएं उसके साथ चापाकल भी लगाए जाएं जैसा कि निर्मला देशपांडे का विचार था।
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने निस्संदेह बिहार को एक स्वच्छ प्रशासन दिया है। इस दिशा में उन्होंने कई अभिनव प्रयोग किए हैं। माफिया सरगनाओं को जेल में डाल दिया है। लड़कियों की शिक्षा को प्रोत्साहित करने के लिए स्कूल में जाने वाली हर लड़की को मुफ्त साइकिल दी है। लड़कियों के स्कूलों में शौचालय का प्रबंध किया है। पूरे बिहार में सड़कों का जाल बिछा दिया है। बिहार में तो उद्योगों का जाल भी बिछ जाता यदि वहां बिजली की उपलब्धता होती। कोयले की सारी खदान झारखंड के हिस्से में चली गईं। दुर्भाग्यवश इन खदानों से बिहार के बिजलीघरों को कोयला नहीं मिल रहा है। इसी कारण वहां पर्याप्त बिजली का उत्पादन नहीं हो रहा है। पीछे मुड़कर देखने से ऐसा लगता है कि बिहार का बंटवारा ही गलत था। राजनेताओं ने अपने स्वार्थ के लिए इस फूलते-फलते राज्य को दो भागों में बांट दिया और आज की तारीख में दोनों राज्य गरीबी के शिकार हैं। बात केवल कोयला खदानों और बिजलीघरों की ही नहीं है। बिहार के तीन-चौथाई जंगल झारखंड में रह गए। वहां भी ठेकेदार माफिया ने जंगलों का बुरी तरह दोहन किया है।Pagination
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सीतापुर और हरदोई के 36 गांव मिलाकर हो रहा है ‘नैमिषारण्य तीर्थ विकास परिषद’ गठन
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'संजॉय घोष मीडिया अवार्ड्स – 2022
यूसर्क द्वारा तीन दिवसीय जल विज्ञान प्रशिक्षण प्रारंभ
28 जुलाई को यूसर्क द्वारा आयोजित जल शिक्षा व्याख्यान श्रृंखला पर भाग लेने के लिए पंजीकरण करायें
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