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उत्तरप्रदेश के गोरखपुर जिले में बहने वाली ‘अमि’ (अमृत) नदी में उद्योगों और नजदीकी शहरों ने इतना ‘जहर’ प्रवाहित कर दिया है कि आसपास बसे लोगों का सांस लेना तक दूभर हो गया है। देश में एक के बाद एक नदियां अपना अस्तित्व खोती जा रही हैं। अधिकांश मछुआरे एवं किसान ‘अमि’ से लाभान्वित होते थे। धान इस इलाके की मुख्य फसल है और गेहूं एवं जौ भी यहां बोई जाती है। परंतु प्रदूषण की वजह से उपज एक तिहाई रह गई है। बोई और रोहू जैसी ताजे पानी की मछलियां अब दिखलाई ही नहीं देतीं। कई हजार मछुआरे या तो शहरी क्षेत्रों में दिहाड़ी मजदूरी कर रहे हैं या शराब बेच रहे हैं।
इंद्रपाल सिंह भावुक होकर बचपन में ‘अमि’ नदी से मीठा पानी पीने की याद करते हैं। गांव के बुजुर्ग बताते हैं नदी को अपना यह नाम ‘आम’ और अमृत से मिला है। उत्तरप्रदेश के गोरखपुर जिले के अदिलापार गांव के प्रधान पाल सिंह का कहना है कि 136 कि.मी. लंबी यह नदी अब मुसीबत बन गई है। गोरखपुर औद्योगिक विकास क्षेत्र (गिडा) से निकलने वाले अनउपचारित गंदे पानी के एक नाले ने इस नदी को गंदे पानी की एक इकाई में बदलकर रख दिया है। नदी के निचले बहाव की ओर निवास कर रहे 100 से अधिक परिवारों के निवासी अक्सर सर्दी जुकाम, रहस्यमय बुखार, मितली आने और उच्च रक्तचाप की शिकायत करते हैं। रात में गंदे पानी से उठने वाली बदबू से उनका सांस लेना तक दूभर हो गया है। निवासियों का कहना है कि सूर्यास्त के बाद प्रवाह का स्तर आधा मीटर तक बढ़ जाता है।स्नान व कल्पवास लोगों को जुटाने के माध्यम थे। उन्हें चलन में लाने का यही माध्यम था। कालांतर में नये माध्यम बने। नई संकीर्णतायें भी उभरी। आज मकर सक्रान्ति सिर्फ नदियों में पाप धोने और कचरा बहाने का मौका होकर रह गया है। मानो नदी कोई वाशिंग मशीन हो और संगम एक मलशोधन संयंत्र स्थली। साधू समाज ने भी
जिस क्षण से जीवनवर्धक सूर्य, जीवनसहांरक शनि की राशि में प्रवेश कर उसके नकरात्मक प्रभाव को रोकता है। वह पल ही मकर संक्रान्ति का शुभ संदेश लेकर आता है। तीसरा वैज्ञानिक संदर्भ संगम का तट, नदी का स्नान और सूर्य अर्घ्य के रिश्ते को लेकर है। हम जानते हैं कि नदियां सिर्फ पानी नहीं होती। हर नदी की अपन
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अमृत का जहर हो जाना
उत्तरप्रदेश के गोरखपुर जिले में बहने वाली ‘अमि’ (अमृत) नदी में उद्योगों और नजदीकी शहरों ने इतना ‘जहर’ प्रवाहित कर दिया है कि आसपास बसे लोगों का सांस लेना तक दूभर हो गया है। देश में एक के बाद एक नदियां अपना अस्तित्व खोती जा रही हैं। अधिकांश मछुआरे एवं किसान ‘अमि’ से लाभान्वित होते थे। धान इस इलाके की मुख्य फसल है और गेहूं एवं जौ भी यहां बोई जाती है। परंतु प्रदूषण की वजह से उपज एक तिहाई रह गई है। बोई और रोहू जैसी ताजे पानी की मछलियां अब दिखलाई ही नहीं देतीं। कई हजार मछुआरे या तो शहरी क्षेत्रों में दिहाड़ी मजदूरी कर रहे हैं या शराब बेच रहे हैं।
इंद्रपाल सिंह भावुक होकर बचपन में ‘अमि’ नदी से मीठा पानी पीने की याद करते हैं। गांव के बुजुर्ग बताते हैं नदी को अपना यह नाम ‘आम’ और अमृत से मिला है। उत्तरप्रदेश के गोरखपुर जिले के अदिलापार गांव के प्रधान पाल सिंह का कहना है कि 136 कि.मी. लंबी यह नदी अब मुसीबत बन गई है। गोरखपुर औद्योगिक विकास क्षेत्र (गिडा) से निकलने वाले अनउपचारित गंदे पानी के एक नाले ने इस नदी को गंदे पानी की एक इकाई में बदलकर रख दिया है। नदी के निचले बहाव की ओर निवास कर रहे 100 से अधिक परिवारों के निवासी अक्सर सर्दी जुकाम, रहस्यमय बुखार, मितली आने और उच्च रक्तचाप की शिकायत करते हैं। रात में गंदे पानी से उठने वाली बदबू से उनका सांस लेना तक दूभर हो गया है। निवासियों का कहना है कि सूर्यास्त के बाद प्रवाह का स्तर आधा मीटर तक बढ़ जाता है।नदी मेलों के सामाजिक सरोकार
सिर्फ स्नान नहीं, विज्ञान है मकर सक्रान्ति
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सीतापुर और हरदोई के 36 गांव मिलाकर हो रहा है ‘नैमिषारण्य तीर्थ विकास परिषद’ गठन
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'संजॉय घोष मीडिया अवार्ड्स – 2022
यूसर्क द्वारा तीन दिवसीय जल विज्ञान प्रशिक्षण प्रारंभ
28 जुलाई को यूसर्क द्वारा आयोजित जल शिक्षा व्याख्यान श्रृंखला पर भाग लेने के लिए पंजीकरण करायें
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