तालाब ज्ञान-संस्कृति : नींव से शिखर तक

महान गुरु गुरुनानक जी ने जिस नदी के किनारे बैठकर तप किया था, वह ही सूखने के कगार पर है। पंचनद का दंभ टूट चुका है। अपनी प्यास की चिंता छोड़कर कभी गधों को पानी पिलाने वाला प्रदेश अपने पानी को संभालने में असमर्थ साबित हो रहा है। जरूरत पंजाब को कम पानी की खेती व बागवानी की ओर लौटाने की है। पनबिजली
चंबल नदी की पवित्रता बरकरार रहने की वजह है धार्मिक आस्था। अगर धार्मिक दृष्टि से नदी को अपवित्र न कहा गया होता, तो शायद मनुष्य ने इस जलस्रोत को भी कब का अपवित्र कर दिया होता। कई पवित्र नदियां इस दुर्दशा का शिकार हो चुकी हैं। इसका उदाहरण है गंगा नदी, जिस पर भारतीय सभ्यता का विकास हुआ है। पर इस नदी की पवित्रता के साथ जिस तरह का खिलवाड़ हुआ है, उससे गंगा कई जगहों पर लुप्तप्राय हो गयी है। बनारस में अस्सी घाट पर गंगा में प्रदूषण और सभ्यता के क्षरण का नमूना देखा जा सकता है। इसी तरह चंबल नदी के साथ बहने वाली यमुना नदी तो मानवीय प्रदूषण की पराकाष्ठा है।
चंबल नदी की पवित्रता बरकरार रहने की वजह है धार्मिक आस्था। अगर धार्मिक दृष्टि से नदी को अपवित्र न कहा गया होता, तो शायद मनुष्य ने इस जलस्रोत को भी कब का अपवित्र कर दिया होता। चंबल अभिशप्त नदी है। हजारों वर्षों में इस नदी के किनारे किसी सभ्यता का उदय नहीं हुआ। कोई भी बड़ा शहर इस नदी के किनारे नहीं बसा। इसके बीहड़ अपराध व अराजकता के लिए जाने जाते थे। मान सिंह, माधो सिंह, मोहर सिंह, तहसीलदार सिंह जैसे कई नाम हैं, जो आतंक का पर्याय थे। हाल के दिनों में फूलन देवी, लालाराम जैसे कई गिरोह सरदार इन बीहड़ों में पनाह लेते रहे हैं। जाहिर है इस नदी के बीहड़ों में जिस संस्कृति का जन्म हुआ, वह थी-दस्यु संस्कृति। यानी जंगल का कानून। शक्तिशाली का भोजन कमजोर है। लगभग 80 और 90 के दशक तक इस क्षेत्र के सार्वजनिक जीवन का यह मूलमंत्र था। शायद ही कोई राजनीतिक दल व राजनेता ऐसा होगा, जिसका दस्यु गिरोह से संपर्क न हो। हिंदू धर्मशास्त्र के अनुसार भी चंबल नदी का अपवित्र माना जाना इस क्षेत्र के विकास में बाधक रहा।चंबल नदी की पवित्रता बरकरार रहने की वजह है धार्मिक आस्था। अगर धार्मिक दृष्टि से नदी को अपवित्र न कहा गया होता, तो शायद मनुष्य ने इस जलस्रोत को भी कब का अपवित्र कर दिया होता। कई पवित्र नदियां इस दुर्दशा का शिकार हो चुकी हैं। इसका उदाहरण है गंगा नदी, जिस पर भारतीय सभ्यता का विकास हुआ है। पर इस नदी की पवित्रता के साथ जिस तरह का खिलवाड़ हुआ है, उससे गंगा कई जगहों पर लुप्तप्राय हो गयी है। बनारस में अस्सी घाट पर गंगा में प्रदूषण और सभ्यता के क्षरण का नमूना देखा जा सकता है। इसी तरह चंबल नदी के साथ बहने वाली यमुना नदी तो मानवीय प्रदूषण की पराकाष्ठा है।
चंबल नदी की पवित्रता बरकरार रहने की वजह है धार्मिक आस्था। अगर धार्मिक दृष्टि से नदी को अपवित्र न कहा गया होता, तो शायद मनुष्य ने इस जलस्रोत को भी कब का अपवित्र कर दिया होता। चंबल अभिशप्त नदी है। हजारों वर्षों में इस नदी के किनारे किसी सभ्यता का उदय नहीं हुआ। कोई भी बड़ा शहर इस नदी के किनारे नहीं बसा। इसके बीहड़ अपराध व अराजकता के लिए जाने जाते थे। मान सिंह, माधो सिंह, मोहर सिंह, तहसीलदार सिंह जैसे कई नाम हैं, जो आतंक का पर्याय थे। हाल के दिनों में फूलन देवी, लालाराम जैसे कई गिरोह सरदार इन बीहड़ों में पनाह लेते रहे हैं। जाहिर है इस नदी के बीहड़ों में जिस संस्कृति का जन्म हुआ, वह थी-दस्यु संस्कृति। यानी जंगल का कानून। शक्तिशाली का भोजन कमजोर है। लगभग 80 और 90 के दशक तक इस क्षेत्र के सार्वजनिक जीवन का यह मूलमंत्र था। शायद ही कोई राजनीतिक दल व राजनेता ऐसा होगा, जिसका दस्यु गिरोह से संपर्क न हो। हिंदू धर्मशास्त्र के अनुसार भी चंबल नदी का अपवित्र माना जाना इस क्षेत्र के विकास में बाधक रहा।
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