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डरबन शिखर वार्ता ने सभी महत्त्वपूर्ण पहलुओं पर चर्चा कई वर्षों के लिए टाल दी है। सारे परिणाम भविष्य, संभावनाओं और अंतर्राष्ट्रीय राजनीतिक संबंधों पर निर्भर हैं। अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (आईईए) के अनुसार अक्षय ऊर्जा में निवेश न किए जाने से जलवायु संकट से निपटने की कीमत साढ़े चार गुनी बढ़ जाती है। विश्व के नेता जब तक इस संकट से निपटने के लिए दृढ़ इच्छाशक्ति और अनुकूल राजनीतिक वातावरण नहीं बना पाते हैं तब तक यह निष्क्रियता संसार को महंगी पड़ेगी।
डरबन में जलवायु संकट पर अपने निश्चित समय से छत्तीस घंटे देर तक चली अंतर्राष्ट्रीय शिखर वार्ता की सबसे खास बात यह थी कि किसी भी महत्त्वपूर्ण पहलू पर समझौता हुए बिना इसके परिणाम को एक बड़ी कामयाबी की तरह पेश किया गया। बकौल आयोजक और विकसित देश, समझौता अत्यधिक सफल रहा। मंत्री मशाबेन, जो कि वार्ता की अध्यक्ष थीं, ने पिछली अध्यक्ष मैक्सिको की पैट्रीशिया एस्पिनोजा को भी पछाड़ दिया। वार्ता में क्योतो करार की दूसरी और बाध्यकारी अवधि पर समझौता हुआ, हरित जलवायु कोष (ग्रीन क्लाइमेट फंड) की शुरुआत की घोषणा की गई और सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण एक नई कानूनी व्यवस्था की घोषणा थी, जिसके तहत विकसित और विकासशील देश मिलकर जलवायु परिवर्तन के संकट से जूझने में बराबर की साझेदारी करेंगे। इससे अच्छा और क्या हो सकता था लेकिन क्या यह समझौता सही मायने में विश्व को पर्यावरणीय संताप से बचा पाएगा?गंगा नदी के तट पर स्थित हरिद्वार में हो रहे महाकुंभ में तो हर रोज लाखों लोग डुबकी लगा रहे हैं। लेकिन चिंता की बात यह है कि लोगों की जीवन रेखा रही गंगा की जीवन रेखा तो कम होती जा रही है। भगीरथ ने अपने प्रयासों से गंगा को पृथ्वी पर अवतरित तो कर दिया लेकिन इसकी पवित्रता को बचाने की जिम्मेदारी केवल सरकारों की ही नहीं वरन् हम सब की होती है। अगर गंगा का अस्तित्व नहीं रहा तो उनका क्या होगा जो गंगा की बदौलत ही जी रहे हैं। जिनकी सुख-समृद्वि और अनवरत चलने वाली जीवन की धारा इसी पर टिकी है।
जो स्वयं एक इतिहास हो, जो किसी देश की परम्परा, पुराण, कला, संस्कृति व जीवन से जुड़ी हो, जिसे विशिष्ठ नदी होने का गौरव हासिल हो, जिससे देश की जनता ही नहीं विदेशी भी प्यार करते हों, जो देश की समृद्धि से जुड़ी हो, जो लोगों की आशा-निराशा, हार-जीत, यश गौरव से जुड़ी हो, जिसने किसी देश की विविधता भरी संस्कृति का पोषण किया हो, जो सभी नदियों का नेतृत्व करती हो, जिसे माँ का दर्जा मिला हो, जिसने चट्टानों और हिमघाटियों से निकल कर मैदानों को सजाया-संवारा हो, जिसने लोगों की प्यास बुझाई, खेतों में ही नहीं घरों में भी हरियाली लहराई हो, यहां उसी मुक्तिदायिनी, जीवनदायिनी गंगा की बात हो रही है।गंगा भारत वर्षे भातृरूपेण संस्थिता/नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः
जैसे गुणगान करते-करते नहीं थकते।
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डरबन से क्या हासिल हुआ
डरबन शिखर वार्ता ने सभी महत्त्वपूर्ण पहलुओं पर चर्चा कई वर्षों के लिए टाल दी है। सारे परिणाम भविष्य, संभावनाओं और अंतर्राष्ट्रीय राजनीतिक संबंधों पर निर्भर हैं। अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (आईईए) के अनुसार अक्षय ऊर्जा में निवेश न किए जाने से जलवायु संकट से निपटने की कीमत साढ़े चार गुनी बढ़ जाती है। विश्व के नेता जब तक इस संकट से निपटने के लिए दृढ़ इच्छाशक्ति और अनुकूल राजनीतिक वातावरण नहीं बना पाते हैं तब तक यह निष्क्रियता संसार को महंगी पड़ेगी।
डरबन में जलवायु संकट पर अपने निश्चित समय से छत्तीस घंटे देर तक चली अंतर्राष्ट्रीय शिखर वार्ता की सबसे खास बात यह थी कि किसी भी महत्त्वपूर्ण पहलू पर समझौता हुए बिना इसके परिणाम को एक बड़ी कामयाबी की तरह पेश किया गया। बकौल आयोजक और विकसित देश, समझौता अत्यधिक सफल रहा। मंत्री मशाबेन, जो कि वार्ता की अध्यक्ष थीं, ने पिछली अध्यक्ष मैक्सिको की पैट्रीशिया एस्पिनोजा को भी पछाड़ दिया। वार्ता में क्योतो करार की दूसरी और बाध्यकारी अवधि पर समझौता हुआ, हरित जलवायु कोष (ग्रीन क्लाइमेट फंड) की शुरुआत की घोषणा की गई और सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण एक नई कानूनी व्यवस्था की घोषणा थी, जिसके तहत विकसित और विकासशील देश मिलकर जलवायु परिवर्तन के संकट से जूझने में बराबर की साझेदारी करेंगे। इससे अच्छा और क्या हो सकता था लेकिन क्या यह समझौता सही मायने में विश्व को पर्यावरणीय संताप से बचा पाएगा?गंगा: गंगोत्री से गंगासागर तक मैली ही मैली
गंगा नदी के तट पर स्थित हरिद्वार में हो रहे महाकुंभ में तो हर रोज लाखों लोग डुबकी लगा रहे हैं। लेकिन चिंता की बात यह है कि लोगों की जीवन रेखा रही गंगा की जीवन रेखा तो कम होती जा रही है। भगीरथ ने अपने प्रयासों से गंगा को पृथ्वी पर अवतरित तो कर दिया लेकिन इसकी पवित्रता को बचाने की जिम्मेदारी केवल सरकारों की ही नहीं वरन् हम सब की होती है। अगर गंगा का अस्तित्व नहीं रहा तो उनका क्या होगा जो गंगा की बदौलत ही जी रहे हैं। जिनकी सुख-समृद्वि और अनवरत चलने वाली जीवन की धारा इसी पर टिकी है।
जो स्वयं एक इतिहास हो, जो किसी देश की परम्परा, पुराण, कला, संस्कृति व जीवन से जुड़ी हो, जिसे विशिष्ठ नदी होने का गौरव हासिल हो, जिससे देश की जनता ही नहीं विदेशी भी प्यार करते हों, जो देश की समृद्धि से जुड़ी हो, जो लोगों की आशा-निराशा, हार-जीत, यश गौरव से जुड़ी हो, जिसने किसी देश की विविधता भरी संस्कृति का पोषण किया हो, जो सभी नदियों का नेतृत्व करती हो, जिसे माँ का दर्जा मिला हो, जिसने चट्टानों और हिमघाटियों से निकल कर मैदानों को सजाया-संवारा हो, जिसने लोगों की प्यास बुझाई, खेतों में ही नहीं घरों में भी हरियाली लहराई हो, यहां उसी मुक्तिदायिनी, जीवनदायिनी गंगा की बात हो रही है।गंगा भारत वर्षे भातृरूपेण संस्थिता/नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः
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सीतापुर और हरदोई के 36 गांव मिलाकर हो रहा है ‘नैमिषारण्य तीर्थ विकास परिषद’ गठन
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'संजॉय घोष मीडिया अवार्ड्स – 2022
यूसर्क द्वारा तीन दिवसीय जल विज्ञान प्रशिक्षण प्रारंभ
28 जुलाई को यूसर्क द्वारा आयोजित जल शिक्षा व्याख्यान श्रृंखला पर भाग लेने के लिए पंजीकरण करायें
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