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खासम-खास

Submitted by Editorial Team on Tue, 10/04/2022 - 16:13
कूरम में पुनर्निर्मित समथमन मंदिर तालाब। फोटो - indiawaterportal
परम्परागत तालाबों पर अनुपम मिश्र की किताब ‘आज भी खरे हैं तालाब’, पहली बार, वर्ष 1993 में प्रकाशित हुई थी। इस किताब में अनुपम ने समाज से प्राप्त जानकारी के आधार पर भारत के विभिन्न भागों में बने तालाबों के बारे में व्यापक विवरण प्रस्तुत किया है। अर्थात आज भी खरे हैं तालाब में दर्ज विवरण परम्परागत तालाबों पर समाज की राय है। उनका दृष्टिबोध है। उन विवरणों में समाज की भावनायें, आस्था, मान्यतायें, रीति-रिवाज तथा परम्परागत तालाबों के निर्माण से जुड़े कर्मकाण्ड दर्ज हैं। प्रस्तुति और शैली अनुपम की है।

Content

Submitted by admin on Mon, 11/21/2011 - 12:21
Source:
सोपान स्टेप, नवम्बर 2011

पेड़ों की अंधाधुंध कटाई मिट्टी खिसकने की प्रमुख वजह है। बरसात के मौसम में पहली बारिश होते ही यह मिट्टी अपने साथ आसपास के इलाके को समेटते हुए नीचे गिरने लगती है। जिससे इलाके को बंजर बनना और पहाड़ियां खिसकना शुरू होती हैं, विनाश की एक अलग किस्म की कहानी है। प्रकृति की गोद में बसे खूबसूरत राज्य सिक्किम में भूकंप से बड़े पैमाने पर होने वाला विनाश प्रकृति से बढ़ती छेड़छाड़ और खतरे की चेतावनियों की अनदेखी का नतीजा है। इस राज्य में इतनी तीव्रता का भूकंप भले 18 सितंबर को पहली बार आया, भूविज्ञानिकों ने इसकी चेतावनी कोई 10 साल पहले ही दे दी थी।

प्रकृति की गोद में बसे खूबसूरत राज्य सिक्किम में भूकंप से बड़े पैमाने पर होने वाला विनाश प्रकृति से बढ़ती छेड़छाड़ और खतरे की चेतावनियों की अनदेखी का नतीजा है। इस राज्य में इतनी तीव्रता का भूकंप भले 18 सितंबर को पहली बार आया, भूविज्ञानिकों ने इसकी चेतावनी कोई 10 साल पहले ही दे दी थी।प्रोफेसर रोजर बिलहाम, विनोद के. गौड़ और पीटर मोलनार नामक भूविज्ञानिकों ने वर्ष 2001 में ‘जर्नल साइंस’ में ‘हिमालय सेशमिक हाजार्ड’ शीर्षक अपने शोधपत्र में कहा था कि इस बात के एकाधिक संकेत मिले हैं कि हिमालय के इस इलाके में एक बड़ा भूकंप कभी भी आ सकता है। उससे लाखों लोगों का जीवन खतरे में पड़ सकता है। उन्होंने कहा था कि हिमालय के छह क्षेत्रों में रिक्टर स्केल पर आठ या उससे ज्यादा के भूकंप आने का अंदेशा है।

दार्जिलिंग-सिक्किम रेंज भी इनमें शामिल है। इस बात का प्रबल अंदेशा है कि हिमालय के जिन इलाकों में बीते
Submitted by admin on Mon, 11/21/2011 - 11:35
Source:

पलायन की चपेट में चकरघिन्नी होते लोगों को यह जानकारी चौंका सकती है कि एक जमाने में हुनरमंद पलायन करने वालों को पूजा भी जाता था. अपने-अपने इलाकों की मौजूदा बदहाली के बवंडर में फंसकर दाल-रोटी कमाने के लिए सैकडों मील दूर, अनजान इलाकों में जाने वाले आज भले ही शोषित, गरीब और बेचारे कहे-माने जाते हों, लेकिन एक समय था जब उन्हें उनकी श्रेष्ठ कलाओं, तकनीक के कारण सम्मान दिया जाता था.

महाकौशल, गोंडवाना और बुंदेलखंड समेत देश के कोने-कोने में बने तालाब, नदियों के घाट, मंदिर इसी की बानगी हैं. सुदूर आंध्रप्रदेश के कारीगर पत्थर के काम करने की अपनी खासियत के चलते इन इलाकों में न्यौते जाते थे. काम के दौरान उनके रहने, खाने जैसी जरूरतों की जिम्मेदारी समाज या घरधनी उठाता था और काम खत्म हो जाने के बाद उनकी सम्मानपूर्वक विदाई की जाती थी. गोंड रानी दुर्गावती के जमाने में बने जबलपुर और उसके आसपास के बड़े तालाब, नदियों पर बनाए गए घाट इन पलायनकर्ताओं की कला के नमूने हैं.

गुजरात से ओडीशा तक फैली जसमाओढन की कथा किसने नहीं सुनी होगी? इस पर अनेक कहानियां, नाटक लिखे,
Submitted by Hindi on Wed, 11/16/2011 - 08:30
Source:
लाइव हिंदुस्तान, 07 मई 2011

कुछ साल पहले यहां बोटिंग भी शुरू हुई थी। तालाब के बीच में एक कैफेटेरिया भी खुला था, लेकिन कालांतर में सब बंद हो गया। बड़ा तालाब से रांची पहाड़ी मंदिर तक रोप वे बनाकर पर्यटकों को आकर्षित करने की एक अच्छी योजना बनी थी। लेकिन यह योजना सरजमीं पर उतर नहीं पायी। बड़ा तालाब आज भी एक अदद उद्धारकर्ता की बाट जो रहा है।

किसी जमाने में रांची का बड़ा तालाब अपने सौंदर्य के लिए विख्यात था। इसका गुणगान अंग्रेज शासक तक करते थे। शुरुआती दिनों में तालाब के चारों तरफ ऊंचे-ऊंचे इटैलियन पेड़ों की छाया लैंप पोस्टों की रोशनी में तालाब के सतह पर आकर्षक छटा बिखेरते थे। तालाब के चारों ओर रोशनी के लिए लैंप पोस्ट लगे हुए थे। इसे साहेब बांध भी कहा जाता है। रांची के प्रथम डिप्टी कमिश्नर राबर्ट ओस्ले ने जेल से आदिवासी कैदियों को जेल से लाकर तालाब को 1842 में खुदवाया था। इस तालाब से आदिवासियों की भावना जुड़ी हुई है। तालाब खुदायी में आदिवासी मजदूरों को मेहनताना भी नहीं दिया था। पालकोट के राजा से राबर्ट ओस्ले ने तालाब के लिए जबरन जमीन कब्जा किया था।

प्रयास

Submitted by Editorial Team on Thu, 12/08/2022 - 13:06
सीतापुर का नैमिषारण्य तीर्थ क्षेत्र, फोटो साभार - उप्र सरकार
श्री नैभिषारण्य धाम तीर्थ परिषद के गठन को प्रदेश मंत्रिमएडल ने स्वीकृति प्रदान की, जिसके अध्यक्ष स्वयं मुख्यमंत्री होंगे। इसके अंतर्गत नैमिषारण्य की होली के अवसर पर चौरासी कोसी 5 दिवसीय परिक्रमा पथ और उस पर स्थापित सम्पूर्ण देश की संह्कृति एवं एकात्मता के वह सभी तीर्थ एवं उनके स्थल केंद्रित हैं। इस सम्पूर्ण नैमिशारण्य क्षेत्र में लोक भारती पिछले 10 वर्ष से कार्य कर रही है। नैमिषाराण्य क्षेत्र के भूगर्भ जल स्रोतो का अध्ययन एवं उनके पुनर्नीवन पर लगातार कार्य चल रहा है। वर्षा नल सरक्षण एवं संम्भरण हेतु तालाबें के पुनर्नीवन अनियान के जवर्गत 119 तालाबों का पृनरुद्धार लोक भारती के प्रयासों से सम्पन्न हुआ है।

नोटिस बोर्ड

Submitted by Shivendra on Tue, 09/06/2022 - 14:16
Source:
चरखा फीचर
'संजॉय घोष मीडिया अवार्ड्स – 2022
कार्य अनुभव के विवरण के साथ संक्षिप्त पाठ्यक्रम जीवन लगभग 800-1000 शब्दों का एक प्रस्ताव, जिसमें उस विशेष विषयगत क्षेत्र को रेखांकित किया गया हो, जिसमें आवेदक काम करना चाहता है. प्रस्ताव में अध्ययन की विशिष्ट भौगोलिक स्थिति, कार्यप्रणाली, चयनित विषय की प्रासंगिकता के साथ-साथ इन लेखों से अपेक्षित प्रभाव के बारे में विवरण शामिल होनी चाहिए. साथ ही, इस बात का उल्लेख होनी चाहिए कि देश के विकास से जुड़ी बहस में इसके योगदान किस प्रकार हो सकता है? कृपया आलेख प्रस्तुत करने वाली भाषा भी निर्दिष्ट करें। लेख अंग्रेजी, हिंदी या उर्दू में ही स्वीकार किए जाएंगे
Submitted by Shivendra on Tue, 08/23/2022 - 17:19
Source:
यूसर्क
जल विज्ञान प्रशिक्षण कार्यशाला
उत्तराखंड विज्ञान शिक्षा एवं अनुसंधान केंद्र द्वारा आज दिनांक 23.08.22 को तीन दिवसीय जल विज्ञान प्रशिक्षण प्रारंभ किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए यूसर्क की निदेशक प्रो.(डॉ.) अनीता रावत ने अपने संबोधन में कहा कि यूसर्क द्वारा जल के महत्व को देखते हुए विगत वर्ष 2021 को संयुक्त राष्ट्र की विश्व पर्यावरण दिवस की थीम "ईको सिस्टम रेस्टोरेशन" के अंर्तगत आयोजित कार्यक्रम के निष्कर्षों के क्रम में जल विज्ञान विषयक लेक्चर सीरीज एवं जल विज्ञान प्रशिक्षण कार्यक्रमों को प्रारंभ किया गया
Submitted by Shivendra on Mon, 07/25/2022 - 15:34
Source:
यूसर्क
जल शिक्षा व्याख्यान श्रृंखला
इस दौरान राष्ट्रीय पर्यावरण  इंजीनियरिंग अनुसंधान संस्था के वरिष्ठ वैज्ञानिक और अपशिष्ट जल विभाग विभाग के प्रमुख डॉक्टर रितेश विजय  सस्टेनेबल  वेस्ट वाटर ट्रीटमेंट फॉर लिक्विड वेस्ट मैनेजमेंट (Sustainable Wastewater Treatment for Liquid Waste Management) विषय  पर विशेषज्ञ तौर पर अपनी राय रखेंगे।

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खासम-खास

तालाब ज्ञान-संस्कृति : नींव से शिखर तक

Submitted by Editorial Team on Tue, 10/04/2022 - 16:13
Author
कृष्ण गोपाल 'व्यास’
talab-gyan-sanskriti-:-ninv-se-shikhar-tak
कूरम में पुनर्निर्मित समथमन मंदिर तालाब। फोटो - indiawaterportal
परम्परागत तालाबों पर अनुपम मिश्र की किताब ‘आज भी खरे हैं तालाब’, पहली बार, वर्ष 1993 में प्रकाशित हुई थी। इस किताब में अनुपम ने समाज से प्राप्त जानकारी के आधार पर भारत के विभिन्न भागों में बने तालाबों के बारे में व्यापक विवरण प्रस्तुत किया है। अर्थात आज भी खरे हैं तालाब में दर्ज विवरण परम्परागत तालाबों पर समाज की राय है। उनका दृष्टिबोध है। उन विवरणों में समाज की भावनायें, आस्था, मान्यतायें, रीति-रिवाज तथा परम्परागत तालाबों के निर्माण से जुड़े कर्मकाण्ड दर्ज हैं। प्रस्तुति और शैली अनुपम की है।

Content

प्रकृति से बढ़ती छेड़छाड़ का नतीजा है विनाश

Submitted by admin on Mon, 11/21/2011 - 12:21
Author
रीता तिवारी
Source
सोपान स्टेप, नवम्बर 2011

पेड़ों की अंधाधुंध कटाई मिट्टी खिसकने की प्रमुख वजह है। बरसात के मौसम में पहली बारिश होते ही यह मिट्टी अपने साथ आसपास के इलाके को समेटते हुए नीचे गिरने लगती है। जिससे इलाके को बंजर बनना और पहाड़ियां खिसकना शुरू होती हैं, विनाश की एक अलग किस्म की कहानी है। प्रकृति की गोद में बसे खूबसूरत राज्य सिक्किम में भूकंप से बड़े पैमाने पर होने वाला विनाश प्रकृति से बढ़ती छेड़छाड़ और खतरे की चेतावनियों की अनदेखी का नतीजा है। इस राज्य में इतनी तीव्रता का भूकंप भले 18 सितंबर को पहली बार आया, भूविज्ञानिकों ने इसकी चेतावनी कोई 10 साल पहले ही दे दी थी।

प्रकृति की गोद में बसे खूबसूरत राज्य सिक्किम में भूकंप से बड़े पैमाने पर होने वाला विनाश प्रकृति से बढ़ती छेड़छाड़ और खतरे की चेतावनियों की अनदेखी का नतीजा है। इस राज्य में इतनी तीव्रता का भूकंप भले 18 सितंबर को पहली बार आया, भूविज्ञानिकों ने इसकी चेतावनी कोई 10 साल पहले ही दे दी थी।प्रोफेसर रोजर बिलहाम, विनोद के. गौड़ और पीटर मोलनार नामक भूविज्ञानिकों ने वर्ष 2001 में ‘जर्नल साइंस’ में ‘हिमालय सेशमिक हाजार्ड’ शीर्षक अपने शोधपत्र में कहा था कि इस बात के एकाधिक संकेत मिले हैं कि हिमालय के इस इलाके में एक बड़ा भूकंप कभी भी आ सकता है। उससे लाखों लोगों का जीवन खतरे में पड़ सकता है। उन्होंने कहा था कि हिमालय के छह क्षेत्रों में रिक्टर स्केल पर आठ या उससे ज्यादा के भूकंप आने का अंदेशा है।

दार्जिलिंग-सिक्किम रेंज भी इनमें शामिल है। इस बात का प्रबल अंदेशा है कि हिमालय के जिन इलाकों में बीते

पूजे जाते थे पलायन करने वाले

Submitted by admin on Mon, 11/21/2011 - 11:35
Author
राकेश दीवान

पलायन की चपेट में चकरघिन्नी होते लोगों को यह जानकारी चौंका सकती है कि एक जमाने में हुनरमंद पलायन करने वालों को पूजा भी जाता था. अपने-अपने इलाकों की मौजूदा बदहाली के बवंडर में फंसकर दाल-रोटी कमाने के लिए सैकडों मील दूर, अनजान इलाकों में जाने वाले आज भले ही शोषित, गरीब और बेचारे कहे-माने जाते हों, लेकिन एक समय था जब उन्हें उनकी श्रेष्ठ कलाओं, तकनीक के कारण सम्मान दिया जाता था.

महाकौशल, गोंडवाना और बुंदेलखंड समेत देश के कोने-कोने में बने तालाब, नदियों के घाट, मंदिर इसी की बानगी हैं. सुदूर आंध्रप्रदेश के कारीगर पत्थर के काम करने की अपनी खासियत के चलते इन इलाकों में न्यौते जाते थे. काम के दौरान उनके रहने, खाने जैसी जरूरतों की जिम्मेदारी समाज या घरधनी उठाता था और काम खत्म हो जाने के बाद उनकी सम्मानपूर्वक विदाई की जाती थी. गोंड रानी दुर्गावती के जमाने में बने जबलपुर और उसके आसपास के बड़े तालाब, नदियों पर बनाए गए घाट इन पलायनकर्ताओं की कला के नमूने हैं.

गुजरात से ओडीशा तक फैली जसमाओढन की कथा किसने नहीं सुनी होगी? इस पर अनेक कहानियां, नाटक लिखे,

साहेब बांध के बड़ा तालाब बनने की कहानी

Submitted by Hindi on Wed, 11/16/2011 - 08:30
Author
आशुतोष सिंह
Source
लाइव हिंदुस्तान, 07 मई 2011

कुछ साल पहले यहां बोटिंग भी शुरू हुई थी। तालाब के बीच में एक कैफेटेरिया भी खुला था, लेकिन कालांतर में सब बंद हो गया। बड़ा तालाब से रांची पहाड़ी मंदिर तक रोप वे बनाकर पर्यटकों को आकर्षित करने की एक अच्छी योजना बनी थी। लेकिन यह योजना सरजमीं पर उतर नहीं पायी। बड़ा तालाब आज भी एक अदद उद्धारकर्ता की बाट जो रहा है।

किसी जमाने में रांची का बड़ा तालाब अपने सौंदर्य के लिए विख्यात था। इसका गुणगान अंग्रेज शासक तक करते थे। शुरुआती दिनों में तालाब के चारों तरफ ऊंचे-ऊंचे इटैलियन पेड़ों की छाया लैंप पोस्टों की रोशनी में तालाब के सतह पर आकर्षक छटा बिखेरते थे। तालाब के चारों ओर रोशनी के लिए लैंप पोस्ट लगे हुए थे। इसे साहेब बांध भी कहा जाता है। रांची के प्रथम डिप्टी कमिश्नर राबर्ट ओस्ले ने जेल से आदिवासी कैदियों को जेल से लाकर तालाब को 1842 में खुदवाया था। इस तालाब से आदिवासियों की भावना जुड़ी हुई है। तालाब खुदायी में आदिवासी मजदूरों को मेहनताना भी नहीं दिया था। पालकोट के राजा से राबर्ट ओस्ले ने तालाब के लिए जबरन जमीन कब्जा किया था।

प्रयास

सीतापुर और हरदोई के 36 गांव मिलाकर हो रहा है ‘नैमिषारण्य तीर्थ विकास परिषद’ गठन  

Submitted by Editorial Team on Thu, 12/08/2022 - 13:06
sitapur-aur-hardoi-ke-36-gaon-milaakar-ho-raha-hai-'naimisharany-tirth-vikas-parishad'-gathan
Source
लोकसम्मान पत्रिका, दिसम्बर-2022
सीतापुर का नैमिषारण्य तीर्थ क्षेत्र, फोटो साभार - उप्र सरकार
श्री नैभिषारण्य धाम तीर्थ परिषद के गठन को प्रदेश मंत्रिमएडल ने स्वीकृति प्रदान की, जिसके अध्यक्ष स्वयं मुख्यमंत्री होंगे। इसके अंतर्गत नैमिषारण्य की होली के अवसर पर चौरासी कोसी 5 दिवसीय परिक्रमा पथ और उस पर स्थापित सम्पूर्ण देश की संह्कृति एवं एकात्मता के वह सभी तीर्थ एवं उनके स्थल केंद्रित हैं। इस सम्पूर्ण नैमिशारण्य क्षेत्र में लोक भारती पिछले 10 वर्ष से कार्य कर रही है। नैमिषाराण्य क्षेत्र के भूगर्भ जल स्रोतो का अध्ययन एवं उनके पुनर्नीवन पर लगातार कार्य चल रहा है। वर्षा नल सरक्षण एवं संम्भरण हेतु तालाबें के पुनर्नीवन अनियान के जवर्गत 119 तालाबों का पृनरुद्धार लोक भारती के प्रयासों से सम्पन्न हुआ है।

नोटिस बोर्ड

'संजॉय घोष मीडिया अवार्ड्स – 2022

Submitted by Shivendra on Tue, 09/06/2022 - 14:16
sanjoy-ghosh-media-awards-–-2022
Source
चरखा फीचर
'संजॉय घोष मीडिया अवार्ड्स – 2022
कार्य अनुभव के विवरण के साथ संक्षिप्त पाठ्यक्रम जीवन लगभग 800-1000 शब्दों का एक प्रस्ताव, जिसमें उस विशेष विषयगत क्षेत्र को रेखांकित किया गया हो, जिसमें आवेदक काम करना चाहता है. प्रस्ताव में अध्ययन की विशिष्ट भौगोलिक स्थिति, कार्यप्रणाली, चयनित विषय की प्रासंगिकता के साथ-साथ इन लेखों से अपेक्षित प्रभाव के बारे में विवरण शामिल होनी चाहिए. साथ ही, इस बात का उल्लेख होनी चाहिए कि देश के विकास से जुड़ी बहस में इसके योगदान किस प्रकार हो सकता है? कृपया आलेख प्रस्तुत करने वाली भाषा भी निर्दिष्ट करें। लेख अंग्रेजी, हिंदी या उर्दू में ही स्वीकार किए जाएंगे

​यूसर्क द्वारा तीन दिवसीय जल विज्ञान प्रशिक्षण प्रारंभ

Submitted by Shivendra on Tue, 08/23/2022 - 17:19
USERC-dvara-tin-divasiy-jal-vigyan-prashikshan-prarambh
Source
यूसर्क
जल विज्ञान प्रशिक्षण कार्यशाला
उत्तराखंड विज्ञान शिक्षा एवं अनुसंधान केंद्र द्वारा आज दिनांक 23.08.22 को तीन दिवसीय जल विज्ञान प्रशिक्षण प्रारंभ किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए यूसर्क की निदेशक प्रो.(डॉ.) अनीता रावत ने अपने संबोधन में कहा कि यूसर्क द्वारा जल के महत्व को देखते हुए विगत वर्ष 2021 को संयुक्त राष्ट्र की विश्व पर्यावरण दिवस की थीम "ईको सिस्टम रेस्टोरेशन" के अंर्तगत आयोजित कार्यक्रम के निष्कर्षों के क्रम में जल विज्ञान विषयक लेक्चर सीरीज एवं जल विज्ञान प्रशिक्षण कार्यक्रमों को प्रारंभ किया गया

28 जुलाई को यूसर्क द्वारा आयोजित जल शिक्षा व्याख्यान श्रृंखला पर भाग लेने के लिए पंजीकरण करायें

Submitted by Shivendra on Mon, 07/25/2022 - 15:34
28-july-ko-ayojit-hone-vale-jal-shiksha-vyakhyan-shrinkhala-par-bhag-lene-ke-liye-panjikaran-karayen
Source
यूसर्क
जल शिक्षा व्याख्यान श्रृंखला
इस दौरान राष्ट्रीय पर्यावरण  इंजीनियरिंग अनुसंधान संस्था के वरिष्ठ वैज्ञानिक और अपशिष्ट जल विभाग विभाग के प्रमुख डॉक्टर रितेश विजय  सस्टेनेबल  वेस्ट वाटर ट्रीटमेंट फॉर लिक्विड वेस्ट मैनेजमेंट (Sustainable Wastewater Treatment for Liquid Waste Management) विषय  पर विशेषज्ञ तौर पर अपनी राय रखेंगे।

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