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आज भी खरे हैं तालाब (मराठी)अपनी पुस्तक “आज भी खरे हैं तालाब” में श्री अनुपम जी ने समूचे भारत के तालाबों, जल-संचयन पद्धतियों, जल-प्रबन्धन, झीलों तथा पानी की अनेक भव्य परंपराओं की समझ, दर्शन और शोध को लिपिबद्ध किया है।
भारत की यह पारम्परिक जल संरचनाएं, आज भी हजारों गाँवों और कस्बों के लिये जीवनरेखा के समान हैं। अनुपम जी का यह कार्य, देश भर में काली छाया की तरह फ़ैल रहे भीषण जलसंकट से निपटने और समस्या को अच्छी तरह समझने में एक “गाइड” का काम करता है। अनुपम जी ने पर्यावरण और जल-प्रबन्धन के क्षेत्र में वर्षों तक काम किया है और वर्तमान में वे गाँधी शान्ति प्रतिष्ठान, नई दिल्ली के साथ कार्य कर रहे हैं। उनकी पुस्तकें, खासकर “आज भी खरे हैं तालाब” तथा “राजस्थान की रजत बूंदें”, पानी के विषय पर प्रकाशित पुस्तकों में मील के पत्थर के समान हैं, और आज भी इन पुस्तकों की विषयवस्तु से कई समाजसेवियों, वाटर हार्वेस्टिंग के इच्छुकों और जल तकनीकी के क्षेत्र में कार्य कर रहे लोगों को प्रेरणा और सहायता मिलती
केवल पाईप बिछाने और नल की टोंटी लगा देने से पानी नहीं आता। उस समय तो शायद नहीं लेकिन आजादी के बाद यह बात समझ में आने लगी। तब तक कई शहरों के तालाब उपेक्षा की गाद से पट चुके थे और वहां नये मोहल्ले, बाजार, स्टेडियम खड़े हो गये थे। पर पानी अपना रास्ता नहीं भूलता। तालाब हथिया कर बनाए गये मोहल्लों में वर्षा के दिनों में पानी भर जाता है और वर्षा बीती नहीं कि शहरों में जल संकट छाने लगता है। शहरों को पानी चाहिए पर पानी दे सकने वाले तालाब नहीं चाहिए।
गांव में तकनीकी भी बसती है यह बात सुनकर समझ पाना उन लोगों के लिए थोड़ा मुश्किल होता है जो तकनीकी को महज मशीन तक सीमित मानते हैं लेकिन तकनीकी क्या वास्तव में सिर्फ मशीन तक सीमित है? यह बड़ा सवाल है जिसके फेर में हमारी बुद्धि फेर दी गई है। मशीन, कल पुर्जे, औजार से भी आगे अच्छी सोच सच्ची तकनीकी होती है। अच्छी सोच से सृष्टिहित का जो लिखित और अलिखित शास्त्र विकसित किया जाता है उसके विस्तार के लिए जो कुछ इस्तेमाल होता है वह तकनीकी होती है। इस तकनीकी को समझने के लिए कलपुर्जे के शहरों से आगे गांवों की ओर जाना होता है। भारत के गांवों में वह शास्त्र और तकनीकी दोनों ही लंबे समय से विद्यमान थे, लेकिन कलपुर्जों की कालिख ने उस सोच को दकियानूसी घोषित कर दिया और ऐसी तकनीकों का इस्तेमाल करने वाले लोग अनपढ़, असभ्य और अप्रशिक्षित घोषित कर दिये गये।
તળાવ ઉપર હજુ પણ છે (ગુજરાતી)તેમના પુસ્તક 'તળાવ ઉપર હજુ પણ છે' ભારત તરફ, શ્રી અનુપમ જી તળાવો, પાણી - પાક સિસ્ટમો, પાણી - ઘણા ભવ્ય પરંપરા ની સમજણ વ્યવસ્થા તળાવો, અને પાણી, તત્વજ્ઞાન અને સંશોધન દસ્તાવેજીકૃત છે.
ભારત પરંપરાગત જળાશયોમાં, આજે ગામો અને નગરો હજારો જીવાદોરી સમાન છે. આ અનન્ય જીવંત ક્રિયા છે, જે સમગ્ર દેશમાં ફેલાય શેડો જેવા ગંભીર જળ કટોકટી સાથે વ્યવહાર કરવામાં આવે છે અને સમસ્યાને 'માર્ગદર્શન' કામ કરે છે સમજો. અનન્ય વસવાટ કરો છો પર્યાવરણ અને પાણી - વર્ષ માટે વ્યવસ્થાપન ક્ષેત્રમાં કામ કર્યું છે અને હાલમાં ગાંધી પીસ ફાઉન્ડેશન, નવી દિલ્હી સાથે કામ કરે છે.
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आज भी खरे हैं तालाब (मराठी)
अपनी पुस्तक “आज भी खरे हैं तालाब” में श्री अनुपम जी ने समूचे भारत के तालाबों, जल-संचयन पद्धतियों, जल-प्रबन्धन, झीलों तथा पानी की अनेक भव्य परंपराओं की समझ, दर्शन और शोध को लिपिबद्ध किया है।
भारत की यह पारम्परिक जल संरचनाएं, आज भी हजारों गाँवों और कस्बों के लिये जीवनरेखा के समान हैं। अनुपम जी का यह कार्य, देश भर में काली छाया की तरह फ़ैल रहे भीषण जलसंकट से निपटने और समस्या को अच्छी तरह समझने में एक “गाइड” का काम करता है। अनुपम जी ने पर्यावरण और जल-प्रबन्धन के क्षेत्र में वर्षों तक काम किया है और वर्तमान में वे गाँधी शान्ति प्रतिष्ठान, नई दिल्ली के साथ कार्य कर रहे हैं। उनकी पुस्तकें, खासकर “आज भी खरे हैं तालाब” तथा “राजस्थान की रजत बूंदें”, पानी के विषय पर प्रकाशित पुस्तकों में मील के पत्थर के समान हैं, और आज भी इन पुस्तकों की विषयवस्तु से कई समाजसेवियों, वाटर हार्वेस्टिंग के इच्छुकों और जल तकनीकी के क्षेत्र में कार्य कर रहे लोगों को प्रेरणा और सहायता मिलती
अनपढ़, असभ्य और अप्रशिक्षित
केवल पाईप बिछाने और नल की टोंटी लगा देने से पानी नहीं आता। उस समय तो शायद नहीं लेकिन आजादी के बाद यह बात समझ में आने लगी। तब तक कई शहरों के तालाब उपेक्षा की गाद से पट चुके थे और वहां नये मोहल्ले, बाजार, स्टेडियम खड़े हो गये थे। पर पानी अपना रास्ता नहीं भूलता। तालाब हथिया कर बनाए गये मोहल्लों में वर्षा के दिनों में पानी भर जाता है और वर्षा बीती नहीं कि शहरों में जल संकट छाने लगता है। शहरों को पानी चाहिए पर पानी दे सकने वाले तालाब नहीं चाहिए।
गांव में तकनीकी भी बसती है यह बात सुनकर समझ पाना उन लोगों के लिए थोड़ा मुश्किल होता है जो तकनीकी को महज मशीन तक सीमित मानते हैं लेकिन तकनीकी क्या वास्तव में सिर्फ मशीन तक सीमित है? यह बड़ा सवाल है जिसके फेर में हमारी बुद्धि फेर दी गई है। मशीन, कल पुर्जे, औजार से भी आगे अच्छी सोच सच्ची तकनीकी होती है। अच्छी सोच से सृष्टिहित का जो लिखित और अलिखित शास्त्र विकसित किया जाता है उसके विस्तार के लिए जो कुछ इस्तेमाल होता है वह तकनीकी होती है। इस तकनीकी को समझने के लिए कलपुर्जे के शहरों से आगे गांवों की ओर जाना होता है। भारत के गांवों में वह शास्त्र और तकनीकी दोनों ही लंबे समय से विद्यमान थे, लेकिन कलपुर्जों की कालिख ने उस सोच को दकियानूसी घोषित कर दिया और ऐसी तकनीकों का इस्तेमाल करने वाले लोग अनपढ़, असभ्य और अप्रशिक्षित घोषित कर दिये गये।
હજુ સુધી તળાવ છે
તેમના પુસ્તક 'તળાવ ઉપર હજુ પણ છે' ભારત તરફ, શ્રી અનુપમ જી તળાવો, પાણી - પાક સિસ્ટમો, પાણી - ઘણા ભવ્ય પરંપરા ની સમજણ વ્યવસ્થા તળાવો, અને પાણી, તત્વજ્ઞાન અને સંશોધન દસ્તાવેજીકૃત છે.
ભારત પરંપરાગત જળાશયોમાં, આજે ગામો અને નગરો હજારો જીવાદોરી સમાન છે. આ અનન્ય જીવંત ક્રિયા છે, જે સમગ્ર દેશમાં ફેલાય શેડો જેવા ગંભીર જળ કટોકટી સાથે વ્યવહાર કરવામાં આવે છે અને સમસ્યાને 'માર્ગદર્શન' કામ કરે છે સમજો. અનન્ય વસવાટ કરો છો પર્યાવરણ અને પાણી - વર્ષ માટે વ્યવસ્થાપન ક્ષેત્રમાં કામ કર્યું છે અને હાલમાં ગાંધી પીસ ફાઉન્ડેશન, નવી દિલ્હી સાથે કામ કરે છે.
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सीतापुर और हरदोई के 36 गांव मिलाकर हो रहा है ‘नैमिषारण्य तीर्थ विकास परिषद’ गठन
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यूसर्क द्वारा तीन दिवसीय जल विज्ञान प्रशिक्षण प्रारंभ
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