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वैज्ञानिकों में पर्यावरण संबंधी चिंता इस बात का स्पष्ट इशारा है कि अगर इस विषय पर कोई ठोस उपाय नहीं निकाले गए तो इसके गंभीर परिणाम सामने आ सकते हैं। समय की मांग है कि पर्यावरण पर चिंता करना और उसके उपाय ढ़ूंढ़ना केवल वैज्ञानिकों का ही नहीं बल्कि हम सब का कर्तव्य है।
पिछले वर्ष लद्दाख के लेह में बादल फटने के कारण हुई तबाही अब भी लोगों की जेहन में ताजा है। 5-6 अगस्त 2010 की रात लेह पर जैसे आसमान से कहर टूट पड़ा। बादल फटने के कारण लेह में विभिषिका का जो तांडव हुआ उसका अंदाजा लगाना भी मुश्किल है। अचानक आई बाढ़ के कारण नदी और नाले उफान पर आ गए और पल भर में ही लेह को अपनी चपेट में ले लिया। विकराल धारा ने मीलों लंबी सड़कों, पुलों, खेत बगीचे और घरों को देखते ही देखते लील लिया। तेज बहाव ने नए और पुराने या मिट्टी या कंक्रीट से बने घरों व भवनों में कोई भेदभाव नहीं किया। करीब 257 से ज्यादा लोगों ने अपनी जाने गंवाईं। इनमें 36 गैर लद्दाखी भी शामिल हैं।9 अगस्त 2011 इतिहास में दर्ज हो जाएगा, 9 अगस्त 1942 को गांधी जी ने बम्बई में अंग्रेजों भारत छोड़ो का नारा दिया था। 9 अगस्त 2011 को अब किसानों की जायज मांगों को बेरहमी दमन करने के लिए गोली चलाई गई। किसानों की मांग है कि पावना बांध का पानी पहले उनके खेतों में जाना चाहिए, ना कि शहर में। किसानों का ये आंदोलन तीन साल पुराना है। वो 2008 से ही पावना डैम से पिंपरी चिंचवाड़ तक पाइप लाइन बिछाने का विरोध कर रहे हैं। किसानों को डर है कि पाइप लाइन बन जाने से उन्हें सिंचाई के लिए भरपूर पानी नहीं मिलेगा। यह रपट भास्कर अखबार से ली गई है . . .
पूरे देश ने राखी और आजादी का त्योहार बड़े धूमधाम से मनाया। लेकिन पुणे जिले के मावल क्षेत्र के किसानों के घर मातम छाया हुआ था। अपने हिस्से का पानी पिंपरी चिंचवड़ को दिए जाने के विरोध में प्रदर्शन कर रहे मावल क्षेत्र के किसानों ने बडर गांव के पास जब मुंबई-पुणे एक्सप्रेस-वे पर जाम लगा दिया और उनका आंदोलन हिंसक हो गया तो पुलिस द्वारा की गई फायरिंग में चार लोग मारे गए। मारे गए किसान मोरेश्वर साठे, श्यामराव तुपे की बहनें और शांताबाई ठाकुर के भाई जीवनभर रक्षाबंधन से वंचित रहेंगे।
प्रश्न यह नहीं कि कौन गलत था और कौन सही। असली सवाल तो यह है कि हर बार राज्य की जनता को न्याय पाने के लिए कानून हाथ में क्यों लेना पड़ता है? चाहे वह नागपुर के न्यायालय में माननीय न्यायाधीश के सामने महिलाओं द्वारा की गई एक बलात्कारी की हत्या हो या मावल के लोगों द्वारा किया गया आंदोलन।
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ग्लोबल वार्मिंग की चपेट में गंगोत्री
लेह त्रासदी का एक सालः सुनो पर्यावरण कुछ कहता है!
वैज्ञानिकों में पर्यावरण संबंधी चिंता इस बात का स्पष्ट इशारा है कि अगर इस विषय पर कोई ठोस उपाय नहीं निकाले गए तो इसके गंभीर परिणाम सामने आ सकते हैं। समय की मांग है कि पर्यावरण पर चिंता करना और उसके उपाय ढ़ूंढ़ना केवल वैज्ञानिकों का ही नहीं बल्कि हम सब का कर्तव्य है।
पिछले वर्ष लद्दाख के लेह में बादल फटने के कारण हुई तबाही अब भी लोगों की जेहन में ताजा है। 5-6 अगस्त 2010 की रात लेह पर जैसे आसमान से कहर टूट पड़ा। बादल फटने के कारण लेह में विभिषिका का जो तांडव हुआ उसका अंदाजा लगाना भी मुश्किल है। अचानक आई बाढ़ के कारण नदी और नाले उफान पर आ गए और पल भर में ही लेह को अपनी चपेट में ले लिया। विकराल धारा ने मीलों लंबी सड़कों, पुलों, खेत बगीचे और घरों को देखते ही देखते लील लिया। तेज बहाव ने नए और पुराने या मिट्टी या कंक्रीट से बने घरों व भवनों में कोई भेदभाव नहीं किया। करीब 257 से ज्यादा लोगों ने अपनी जाने गंवाईं। इनमें 36 गैर लद्दाखी भी शामिल हैं।पानी के लिए जहां बहता है खून
9 अगस्त 2011 इतिहास में दर्ज हो जाएगा, 9 अगस्त 1942 को गांधी जी ने बम्बई में अंग्रेजों भारत छोड़ो का नारा दिया था। 9 अगस्त 2011 को अब किसानों की जायज मांगों को बेरहमी दमन करने के लिए गोली चलाई गई। किसानों की मांग है कि पावना बांध का पानी पहले उनके खेतों में जाना चाहिए, ना कि शहर में। किसानों का ये आंदोलन तीन साल पुराना है। वो 2008 से ही पावना डैम से पिंपरी चिंचवाड़ तक पाइप लाइन बिछाने का विरोध कर रहे हैं। किसानों को डर है कि पाइप लाइन बन जाने से उन्हें सिंचाई के लिए भरपूर पानी नहीं मिलेगा। यह रपट भास्कर अखबार से ली गई है . . .
पूरे देश ने राखी और आजादी का त्योहार बड़े धूमधाम से मनाया। लेकिन पुणे जिले के मावल क्षेत्र के किसानों के घर मातम छाया हुआ था। अपने हिस्से का पानी पिंपरी चिंचवड़ को दिए जाने के विरोध में प्रदर्शन कर रहे मावल क्षेत्र के किसानों ने बडर गांव के पास जब मुंबई-पुणे एक्सप्रेस-वे पर जाम लगा दिया और उनका आंदोलन हिंसक हो गया तो पुलिस द्वारा की गई फायरिंग में चार लोग मारे गए। मारे गए किसान मोरेश्वर साठे, श्यामराव तुपे की बहनें और शांताबाई ठाकुर के भाई जीवनभर रक्षाबंधन से वंचित रहेंगे।
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सीतापुर और हरदोई के 36 गांव मिलाकर हो रहा है ‘नैमिषारण्य तीर्थ विकास परिषद’ गठन
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'संजॉय घोष मीडिया अवार्ड्स – 2022
यूसर्क द्वारा तीन दिवसीय जल विज्ञान प्रशिक्षण प्रारंभ
28 जुलाई को यूसर्क द्वारा आयोजित जल शिक्षा व्याख्यान श्रृंखला पर भाग लेने के लिए पंजीकरण करायें
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