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खासम-खास

Submitted by Editorial Team on Tue, 10/04/2022 - 16:13
कूरम में पुनर्निर्मित समथमन मंदिर तालाब। फोटो - indiawaterportal
परम्परागत तालाबों पर अनुपम मिश्र की किताब ‘आज भी खरे हैं तालाब’, पहली बार, वर्ष 1993 में प्रकाशित हुई थी। इस किताब में अनुपम ने समाज से प्राप्त जानकारी के आधार पर भारत के विभिन्न भागों में बने तालाबों के बारे में व्यापक विवरण प्रस्तुत किया है। अर्थात आज भी खरे हैं तालाब में दर्ज विवरण परम्परागत तालाबों पर समाज की राय है। उनका दृष्टिबोध है। उन विवरणों में समाज की भावनायें, आस्था, मान्यतायें, रीति-रिवाज तथा परम्परागत तालाबों के निर्माण से जुड़े कर्मकाण्ड दर्ज हैं। प्रस्तुति और शैली अनुपम की है।

Content

Submitted by Hindi on Thu, 06/23/2011 - 11:17
Source:
नवभारत टाइम्स, 23 जून 2011

‘लो’ वॉटर इकॉनमी का अर्थ है, पानी को कम खर्च करना और उसका दोबारा इस्तेमाल करना। इसके पीछे यह सिद्धांत है कि पर्यावरण में प्राकृतिक अवस्था में जितना भी पानी है, उसे जहां तक संभव है बचाया जाए। पानी की हर बूंद का दोबारा इस्तेमाल किया जाए।

पानी के बिना जीवन की कल्पना मुश्किल है। गर्मियों के मौसम में पानी की सबसे ज्यादा जरूरत महसूस होती है और यही वह समय होता है, जब इसकी सबसे ज्यादा किल्लत होती है। भारतीय उपमहाद्वीप की भीषण गर्मी के बीच हर साल मानसून में हम अच्छी बारिश की कामना करते हैं। हमारे जल स्रोत बहुत हद तक बारिश पर निर्भर करते हैं। वैसे पानी की कमी सिर्फ गर्मियों की समस्या नहीं है। अगर पिछले दशक का सारा संघर्ष तेल को लेकर था, तो बेशक यह दशक पानी के नाम रहने वाला है। धरती पर पानी तेजी से खत्म हो रहा है और जो उपलब्ध है, वह भी अच्छी क्वालिटी का नहीं है।

Submitted by Hindi on Wed, 06/22/2011 - 10:30
Source:
संडे नई दुनिया, 19 जून 2011
उद्योग संस्थानों के लिए महानदी के जल का दोहन कर रहा है कई सवाल खड़े
छत्तीसगढ़ की एक बड़ी आबादी शुद्ध पेयजल और सिंचाई के पानी से महरूम है पर उद्योगों को पानी बेचने का खेल सरेआम चल रहा है। पेयजल और सिंचाई के नाम पर बनाए जा रहे तमाम एनीकट (सिंचाई बांध) और बैराज ऐसी स्थिति में शायद ही आम लोगों को लाभ दे पाएं।
Submitted by Hindi on Tue, 06/21/2011 - 13:43
Source:
संडे नई दुनिया, 19 जून 2011

बुंदेलखंड के किसान बेहाल हैं। उनकी समस्याओं के समाधान के लिए सरकार के पास पर्याप्त धन नहीं है। जो पैसा पैकेज के तौर पर मिला भी है उसे तेजी से जमीन पर उतारा नहीं जा रहा है। विकास योजनाओं के पैसे की लूटखसोट जमकर हो रही है। किसान आत्महत्या कर रहे हैं।

बुंदेले हरबोलों की सरजमीं पानी, पलायन, भुखमरी और कर्ज के दबाव में हो रही मौतों से जूझ रही है। राज्य की मायावती सरकार ने सत्ता की कुर्सी पर विराजमान होते ही केंद्र सरकार से इलाके के लिए 80 हजार करोड़ के पैकेज की मांग तो कर दी लेकिन नवंबर, 2009 में संयुक्त बुंदेलखंड (उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश) के लिए केंद्र सरकार ने जो 7, 622 करोड़ रुपए का पैकेज दिया उसे जमीन पर विकास के रूप में उतारने में कोई तत्परता नहीं दिखाई। नतीजा यह कि जो थोड़ी-बहुत धनराशि केंद्र से बुंदेलखंड पैकेज के नाम पर मिली उसका बड़ा हिस्सा अधिकारियों की जेब में चला गया। पैसों के सही इस्तेमाल के लिए जिला स्तर पर सफल मॉनीटरिंग तो दूर इसके संपूर्ण जानकारी संकलन की व्यवस्था तक नहीं है। बुंदेलखंड पैकेज का एक अरब 33 करोड़ रुपया आज भी विभागों में यूं ही पड़ा है।

प्रयास

Submitted by Editorial Team on Thu, 12/08/2022 - 13:06
सीतापुर का नैमिषारण्य तीर्थ क्षेत्र, फोटो साभार - उप्र सरकार
श्री नैभिषारण्य धाम तीर्थ परिषद के गठन को प्रदेश मंत्रिमएडल ने स्वीकृति प्रदान की, जिसके अध्यक्ष स्वयं मुख्यमंत्री होंगे। इसके अंतर्गत नैमिषारण्य की होली के अवसर पर चौरासी कोसी 5 दिवसीय परिक्रमा पथ और उस पर स्थापित सम्पूर्ण देश की संह्कृति एवं एकात्मता के वह सभी तीर्थ एवं उनके स्थल केंद्रित हैं। इस सम्पूर्ण नैमिशारण्य क्षेत्र में लोक भारती पिछले 10 वर्ष से कार्य कर रही है। नैमिषाराण्य क्षेत्र के भूगर्भ जल स्रोतो का अध्ययन एवं उनके पुनर्नीवन पर लगातार कार्य चल रहा है। वर्षा नल सरक्षण एवं संम्भरण हेतु तालाबें के पुनर्नीवन अनियान के जवर्गत 119 तालाबों का पृनरुद्धार लोक भारती के प्रयासों से सम्पन्न हुआ है।

नोटिस बोर्ड

Submitted by Shivendra on Tue, 09/06/2022 - 14:16
Source:
चरखा फीचर
'संजॉय घोष मीडिया अवार्ड्स – 2022
कार्य अनुभव के विवरण के साथ संक्षिप्त पाठ्यक्रम जीवन लगभग 800-1000 शब्दों का एक प्रस्ताव, जिसमें उस विशेष विषयगत क्षेत्र को रेखांकित किया गया हो, जिसमें आवेदक काम करना चाहता है. प्रस्ताव में अध्ययन की विशिष्ट भौगोलिक स्थिति, कार्यप्रणाली, चयनित विषय की प्रासंगिकता के साथ-साथ इन लेखों से अपेक्षित प्रभाव के बारे में विवरण शामिल होनी चाहिए. साथ ही, इस बात का उल्लेख होनी चाहिए कि देश के विकास से जुड़ी बहस में इसके योगदान किस प्रकार हो सकता है? कृपया आलेख प्रस्तुत करने वाली भाषा भी निर्दिष्ट करें। लेख अंग्रेजी, हिंदी या उर्दू में ही स्वीकार किए जाएंगे
Submitted by Shivendra on Tue, 08/23/2022 - 17:19
Source:
यूसर्क
जल विज्ञान प्रशिक्षण कार्यशाला
उत्तराखंड विज्ञान शिक्षा एवं अनुसंधान केंद्र द्वारा आज दिनांक 23.08.22 को तीन दिवसीय जल विज्ञान प्रशिक्षण प्रारंभ किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए यूसर्क की निदेशक प्रो.(डॉ.) अनीता रावत ने अपने संबोधन में कहा कि यूसर्क द्वारा जल के महत्व को देखते हुए विगत वर्ष 2021 को संयुक्त राष्ट्र की विश्व पर्यावरण दिवस की थीम "ईको सिस्टम रेस्टोरेशन" के अंर्तगत आयोजित कार्यक्रम के निष्कर्षों के क्रम में जल विज्ञान विषयक लेक्चर सीरीज एवं जल विज्ञान प्रशिक्षण कार्यक्रमों को प्रारंभ किया गया
Submitted by Shivendra on Mon, 07/25/2022 - 15:34
Source:
यूसर्क
जल शिक्षा व्याख्यान श्रृंखला
इस दौरान राष्ट्रीय पर्यावरण  इंजीनियरिंग अनुसंधान संस्था के वरिष्ठ वैज्ञानिक और अपशिष्ट जल विभाग विभाग के प्रमुख डॉक्टर रितेश विजय  सस्टेनेबल  वेस्ट वाटर ट्रीटमेंट फॉर लिक्विड वेस्ट मैनेजमेंट (Sustainable Wastewater Treatment for Liquid Waste Management) विषय  पर विशेषज्ञ तौर पर अपनी राय रखेंगे।

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खासम-खास

तालाब ज्ञान-संस्कृति : नींव से शिखर तक

Submitted by Editorial Team on Tue, 10/04/2022 - 16:13
Author
कृष्ण गोपाल 'व्यास’
talab-gyan-sanskriti-:-ninv-se-shikhar-tak
कूरम में पुनर्निर्मित समथमन मंदिर तालाब। फोटो - indiawaterportal
परम्परागत तालाबों पर अनुपम मिश्र की किताब ‘आज भी खरे हैं तालाब’, पहली बार, वर्ष 1993 में प्रकाशित हुई थी। इस किताब में अनुपम ने समाज से प्राप्त जानकारी के आधार पर भारत के विभिन्न भागों में बने तालाबों के बारे में व्यापक विवरण प्रस्तुत किया है। अर्थात आज भी खरे हैं तालाब में दर्ज विवरण परम्परागत तालाबों पर समाज की राय है। उनका दृष्टिबोध है। उन विवरणों में समाज की भावनायें, आस्था, मान्यतायें, रीति-रिवाज तथा परम्परागत तालाबों के निर्माण से जुड़े कर्मकाण्ड दर्ज हैं। प्रस्तुति और शैली अनुपम की है।

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‘लो’ कार्बन के साथ ‘लो’ वॉटर इकॉनमी भी जरूरी

Submitted by Hindi on Thu, 06/23/2011 - 11:17
Author
रोहिणी निलेकणी
Source
नवभारत टाइम्स, 23 जून 2011

‘लो’ वॉटर इकॉनमी का अर्थ है, पानी को कम खर्च करना और उसका दोबारा इस्तेमाल करना। इसके पीछे यह सिद्धांत है कि पर्यावरण में प्राकृतिक अवस्था में जितना भी पानी है, उसे जहां तक संभव है बचाया जाए। पानी की हर बूंद का दोबारा इस्तेमाल किया जाए।

पानी के बिना जीवन की कल्पना मुश्किल है। गर्मियों के मौसम में पानी की सबसे ज्यादा जरूरत महसूस होती है और यही वह समय होता है, जब इसकी सबसे ज्यादा किल्लत होती है। भारतीय उपमहाद्वीप की भीषण गर्मी के बीच हर साल मानसून में हम अच्छी बारिश की कामना करते हैं। हमारे जल स्रोत बहुत हद तक बारिश पर निर्भर करते हैं। वैसे पानी की कमी सिर्फ गर्मियों की समस्या नहीं है। अगर पिछले दशक का सारा संघर्ष तेल को लेकर था, तो बेशक यह दशक पानी के नाम रहने वाला है। धरती पर पानी तेजी से खत्म हो रहा है और जो उपलब्ध है, वह भी अच्छी क्वालिटी का नहीं है।

नदी-नालों की नीलामी!

Submitted by Hindi on Wed, 06/22/2011 - 10:30
Author
भोलाराम सिन्हा
Source
संडे नई दुनिया, 19 जून 2011
उद्योग संस्थानों के लिए महानदी के जल का दोहन कर रहा है कई सवाल खड़ेउद्योग संस्थानों के लिए महानदी के जल का दोहन कर रहा है कई सवाल खड़े
छत्तीसगढ़ की एक बड़ी आबादी शुद्ध पेयजल और सिंचाई के पानी से महरूम है पर उद्योगों को पानी बेचने का खेल सरेआम चल रहा है। पेयजल और सिंचाई के नाम पर बनाए जा रहे तमाम एनीकट (सिंचाई बांध) और बैराज ऐसी स्थिति में शायद ही आम लोगों को लाभ दे पाएं।

हरबोलों की जमीं पर हाहाकार

Submitted by Hindi on Tue, 06/21/2011 - 13:43
Author
योगेश मिश्र
Source
संडे नई दुनिया, 19 जून 2011

बुंदेलखंड के किसान बेहाल हैं। उनकी समस्याओं के समाधान के लिए सरकार के पास पर्याप्त धन नहीं है। जो पैसा पैकेज के तौर पर मिला भी है उसे तेजी से जमीन पर उतारा नहीं जा रहा है। विकास योजनाओं के पैसे की लूटखसोट जमकर हो रही है। किसान आत्महत्या कर रहे हैं।

बुंदेले हरबोलों की सरजमीं पानी, पलायन, भुखमरी और कर्ज के दबाव में हो रही मौतों से जूझ रही है। राज्य की मायावती सरकार ने सत्ता की कुर्सी पर विराजमान होते ही केंद्र सरकार से इलाके के लिए 80 हजार करोड़ के पैकेज की मांग तो कर दी लेकिन नवंबर, 2009 में संयुक्त बुंदेलखंड (उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश) के लिए केंद्र सरकार ने जो 7, 622 करोड़ रुपए का पैकेज दिया उसे जमीन पर विकास के रूप में उतारने में कोई तत्परता नहीं दिखाई। नतीजा यह कि जो थोड़ी-बहुत धनराशि केंद्र से बुंदेलखंड पैकेज के नाम पर मिली उसका बड़ा हिस्सा अधिकारियों की जेब में चला गया। पैसों के सही इस्तेमाल के लिए जिला स्तर पर सफल मॉनीटरिंग तो दूर इसके संपूर्ण जानकारी संकलन की व्यवस्था तक नहीं है। बुंदेलखंड पैकेज का एक अरब 33 करोड़ रुपया आज भी विभागों में यूं ही पड़ा है।

प्रयास

सीतापुर और हरदोई के 36 गांव मिलाकर हो रहा है ‘नैमिषारण्य तीर्थ विकास परिषद’ गठन  

Submitted by Editorial Team on Thu, 12/08/2022 - 13:06
sitapur-aur-hardoi-ke-36-gaon-milaakar-ho-raha-hai-'naimisharany-tirth-vikas-parishad'-gathan
Source
लोकसम्मान पत्रिका, दिसम्बर-2022
सीतापुर का नैमिषारण्य तीर्थ क्षेत्र, फोटो साभार - उप्र सरकार
श्री नैभिषारण्य धाम तीर्थ परिषद के गठन को प्रदेश मंत्रिमएडल ने स्वीकृति प्रदान की, जिसके अध्यक्ष स्वयं मुख्यमंत्री होंगे। इसके अंतर्गत नैमिषारण्य की होली के अवसर पर चौरासी कोसी 5 दिवसीय परिक्रमा पथ और उस पर स्थापित सम्पूर्ण देश की संह्कृति एवं एकात्मता के वह सभी तीर्थ एवं उनके स्थल केंद्रित हैं। इस सम्पूर्ण नैमिशारण्य क्षेत्र में लोक भारती पिछले 10 वर्ष से कार्य कर रही है। नैमिषाराण्य क्षेत्र के भूगर्भ जल स्रोतो का अध्ययन एवं उनके पुनर्नीवन पर लगातार कार्य चल रहा है। वर्षा नल सरक्षण एवं संम्भरण हेतु तालाबें के पुनर्नीवन अनियान के जवर्गत 119 तालाबों का पृनरुद्धार लोक भारती के प्रयासों से सम्पन्न हुआ है।

नोटिस बोर्ड

'संजॉय घोष मीडिया अवार्ड्स – 2022

Submitted by Shivendra on Tue, 09/06/2022 - 14:16
sanjoy-ghosh-media-awards-–-2022
Source
चरखा फीचर
'संजॉय घोष मीडिया अवार्ड्स – 2022
कार्य अनुभव के विवरण के साथ संक्षिप्त पाठ्यक्रम जीवन लगभग 800-1000 शब्दों का एक प्रस्ताव, जिसमें उस विशेष विषयगत क्षेत्र को रेखांकित किया गया हो, जिसमें आवेदक काम करना चाहता है. प्रस्ताव में अध्ययन की विशिष्ट भौगोलिक स्थिति, कार्यप्रणाली, चयनित विषय की प्रासंगिकता के साथ-साथ इन लेखों से अपेक्षित प्रभाव के बारे में विवरण शामिल होनी चाहिए. साथ ही, इस बात का उल्लेख होनी चाहिए कि देश के विकास से जुड़ी बहस में इसके योगदान किस प्रकार हो सकता है? कृपया आलेख प्रस्तुत करने वाली भाषा भी निर्दिष्ट करें। लेख अंग्रेजी, हिंदी या उर्दू में ही स्वीकार किए जाएंगे

​यूसर्क द्वारा तीन दिवसीय जल विज्ञान प्रशिक्षण प्रारंभ

Submitted by Shivendra on Tue, 08/23/2022 - 17:19
USERC-dvara-tin-divasiy-jal-vigyan-prashikshan-prarambh
Source
यूसर्क
जल विज्ञान प्रशिक्षण कार्यशाला
उत्तराखंड विज्ञान शिक्षा एवं अनुसंधान केंद्र द्वारा आज दिनांक 23.08.22 को तीन दिवसीय जल विज्ञान प्रशिक्षण प्रारंभ किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए यूसर्क की निदेशक प्रो.(डॉ.) अनीता रावत ने अपने संबोधन में कहा कि यूसर्क द्वारा जल के महत्व को देखते हुए विगत वर्ष 2021 को संयुक्त राष्ट्र की विश्व पर्यावरण दिवस की थीम "ईको सिस्टम रेस्टोरेशन" के अंर्तगत आयोजित कार्यक्रम के निष्कर्षों के क्रम में जल विज्ञान विषयक लेक्चर सीरीज एवं जल विज्ञान प्रशिक्षण कार्यक्रमों को प्रारंभ किया गया

28 जुलाई को यूसर्क द्वारा आयोजित जल शिक्षा व्याख्यान श्रृंखला पर भाग लेने के लिए पंजीकरण करायें

Submitted by Shivendra on Mon, 07/25/2022 - 15:34
28-july-ko-ayojit-hone-vale-jal-shiksha-vyakhyan-shrinkhala-par-bhag-lene-ke-liye-panjikaran-karayen
Source
यूसर्क
जल शिक्षा व्याख्यान श्रृंखला
इस दौरान राष्ट्रीय पर्यावरण  इंजीनियरिंग अनुसंधान संस्था के वरिष्ठ वैज्ञानिक और अपशिष्ट जल विभाग विभाग के प्रमुख डॉक्टर रितेश विजय  सस्टेनेबल  वेस्ट वाटर ट्रीटमेंट फॉर लिक्विड वेस्ट मैनेजमेंट (Sustainable Wastewater Treatment for Liquid Waste Management) विषय  पर विशेषज्ञ तौर पर अपनी राय रखेंगे।

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