तालाब ज्ञान-संस्कृति : नींव से शिखर तक

गंगा का पानी पीने क्या डुबकी लगाने लायक भी नहीं बचा है। खेती भी नहीं की जा सकती। पवित्रता की मिसाल कहे जाने वाली गंगा नदी गंदगी, कचरे और मल ढोते-ढोते अपनी पवित्रता खोती जा रही है। शोध के अनुसार गंगा नदी में जीवाणु पनप रहे हैं, ई-कोलाई जैसे घातक बैक्टीरिया की मात्रा बढ़ रही है और पानी जहरीला हो चुका है। सीवर के पानी को बिना ट्रीटमेंट के बहाए जाने का सिलसिला अब भी जारी है जिससे हमारी गंगा मैया अब खतरे में हैं।
गंगा में अवैध खननएक ओर गंगा को लेकर सरकार और समाज की चिंताएं सातवें आसमान पर हैं, दूसरी तरफ इसी मुद्दे को लेकर 19 फरवरी से अनशन कर रहे एक युवा संन्यासी की ओर सबका ध्यान तब गया, जब उन्होंने इस संसार को छोड़ कर चले गए। हालत बिगड़ने पर प्रशासन ने उन्हें गिरफ्तार कर जिला अस्पताल में ला पटका। उन्हें राज्य के एक बड़े अस्पताल में करीब 10 दिन पहले तब दाखिल किया गया, जब उनके बच पाने की उम्मीद नहीं थी। हरिद्वार के स्वामी निगमानंद भले ही कोई ग्लैमरस बाबा नहीं थे, लेकिन गंगा को लेकर उन्होंने जो मुद्दे उठाए थे, वे बुनियादी और गंभीर थे। हरिद्वार में गंगा अपनी गति और त्वरा को नियंत्रित कर देती है। पहाड़ों में अठखेलियां करती उसकी चंचल छवि यहां पहुंचकर एक शांत, गंभीर और लोकमंगलकारी सरिता में परिवर्तित हो जाती है।
गंगा का पानी पीने क्या डुबकी लगाने लायक भी नहीं बचा है। खेती भी नहीं की जा सकती। पवित्रता की मिसाल कहे जाने वाली गंगा नदी गंदगी, कचरे और मल ढोते-ढोते अपनी पवित्रता खोती जा रही है। शोध के अनुसार गंगा नदी में जीवाणु पनप रहे हैं, ई-कोलाई जैसे घातक बैक्टीरिया की मात्रा बढ़ रही है और पानी जहरीला हो चुका है। सीवर के पानी को बिना ट्रीटमेंट के बहाए जाने का सिलसिला अब भी जारी है जिससे हमारी गंगा मैया अब खतरे में हैं।
गंगा में अवैध खननएक ओर गंगा को लेकर सरकार और समाज की चिंताएं सातवें आसमान पर हैं, दूसरी तरफ इसी मुद्दे को लेकर 19 फरवरी से अनशन कर रहे एक युवा संन्यासी की ओर सबका ध्यान तब गया, जब उन्होंने इस संसार को छोड़ कर चले गए। हालत बिगड़ने पर प्रशासन ने उन्हें गिरफ्तार कर जिला अस्पताल में ला पटका। उन्हें राज्य के एक बड़े अस्पताल में करीब 10 दिन पहले तब दाखिल किया गया, जब उनके बच पाने की उम्मीद नहीं थी। हरिद्वार के स्वामी निगमानंद भले ही कोई ग्लैमरस बाबा नहीं थे, लेकिन गंगा को लेकर उन्होंने जो मुद्दे उठाए थे, वे बुनियादी और गंभीर थे। हरिद्वार में गंगा अपनी गति और त्वरा को नियंत्रित कर देती है। पहाड़ों में अठखेलियां करती उसकी चंचल छवि यहां पहुंचकर एक शांत, गंभीर और लोकमंगलकारी सरिता में परिवर्तित हो जाती है।
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