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देश में गंगा का अगर कहीं बहुत ही खूबसूरत रूप दिखता है तो वो है वाराणसी, लेकिन, गंगा अब काशी के लोगों को अपना डरावना रूप दिखा रही है। पहली बार वाराणसी के घाटों से गंगा दूर हो गई है और काशी के लोगों को अब ये डर सता रहा है कि कहीं उनसे हमेशा के लिए गंगा रूठ ना जाए।
शिवानंद महाराजसाधारण सा धोती-कुर्ता और खड़ाऊं पहने दुबली-पतली काया वाले एक संत बाकी संतों से कुछ अलग हैं। यह न बड़े पण्डाल में बैठ प्रवचन देते हैं, न ही टेलीविजन चैनलों में, पर गांधी को भूल चुके उनके अनुयायियों के लिए ये एक सीख की तरह हैं। इनके गाँधीवादी तरीके से जारी आंदोलनों ने कई बार शासन को अपनी नीतियाँ बदलने को मजबूर किया। गंगा को खनन माफियाओं से बचाने की इनकी लड़ाई लगातार जारी है। ये संत हैं हरिद्वार के कनखल में गंगा किनारे बने मातृसदन के कुटियानुमा आश्रम में रहने वाले शिवानंद महाराज स्टोन क्रेशर माफिया और शासन-प्रशासन की कैद में खोखली होती गंगा को मुक्त कराने का एक दशक से भी लंबा इनका संघर्ष किसी से छुपा नहीं है।
उत्तरी चीन की पीली नदी, भारत की गंगा नदी, पश्चिम अफ्रीका की नाइजर, संयुक्त राज्य अमेरिका की कोलोराडो घनी आबादी वाले इलाकों की प्रमुख नदियां हैं, जिनके प्रवाह में गिरावट आई है।
देश में पानी की स्थिति कमोबेश ऐसी हो गई है कि हर साल पानी को लेकर कुछ राज्यों में हाहाकार मच जाता है। कुछ राज्यों के शहरी क्षेत्रों में तो स्थिति खतरनाक स्तर तक पहुंच चुकी है। ठंड के एक-दो महीने छोड़ दिए जाएं तो शहरी क्षेत्रों में टैंकरों और सार्वजनिक पानी के नलों के आसपास बर्तनों की भीड़ के बीच अपना नंबर आने की आशा में महिलाओं और बच्चों का मजमा लगना आम हो गया है। पानी को लेकर मारपीट तो आम बात है। लगता है कि वह दिन दूर नहीं जब एक बाल्टी पानी के लिए आंखों से पानी आ जाए तो बड़ी बात नहीं होगी। जिस तरह से साल-दर-साल पानी की समस्या का सामना हम कर रहे हैं, उससे यह बात निश्चित है कि सब को एकजुट होकर प्रयास करने होंगे, नहीं तो हर पानी की बूंद पैसा मांगेगी और स्थिति यह भी हो सकती है कि भले ही हमारी जेब में पैसा तो हो लेकिन पीने के लिए पानी नहीं मिलेगा।Pagination
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वाराणसी के घाटों से दूर हुई गंगा!
गांधी के पथ पर संत
साधारण सा धोती-कुर्ता और खड़ाऊं पहने दुबली-पतली काया वाले एक संत बाकी संतों से कुछ अलग हैं। यह न बड़े पण्डाल में बैठ प्रवचन देते हैं, न ही टेलीविजन चैनलों में, पर गांधी को भूल चुके उनके अनुयायियों के लिए ये एक सीख की तरह हैं। इनके गाँधीवादी तरीके से जारी आंदोलनों ने कई बार शासन को अपनी नीतियाँ बदलने को मजबूर किया। गंगा को खनन माफियाओं से बचाने की इनकी लड़ाई लगातार जारी है। ये संत हैं हरिद्वार के कनखल में गंगा किनारे बने मातृसदन के कुटियानुमा आश्रम में रहने वाले शिवानंद महाराज स्टोन क्रेशर माफिया और शासन-प्रशासन की कैद में खोखली होती गंगा को मुक्त कराने का एक दशक से भी लंबा इनका संघर्ष किसी से छुपा नहीं है।
नदियों पर संकट
उत्तरी चीन की पीली नदी, भारत की गंगा नदी, पश्चिम अफ्रीका की नाइजर, संयुक्त राज्य अमेरिका की कोलोराडो घनी आबादी वाले इलाकों की प्रमुख नदियां हैं, जिनके प्रवाह में गिरावट आई है।
देश में पानी की स्थिति कमोबेश ऐसी हो गई है कि हर साल पानी को लेकर कुछ राज्यों में हाहाकार मच जाता है। कुछ राज्यों के शहरी क्षेत्रों में तो स्थिति खतरनाक स्तर तक पहुंच चुकी है। ठंड के एक-दो महीने छोड़ दिए जाएं तो शहरी क्षेत्रों में टैंकरों और सार्वजनिक पानी के नलों के आसपास बर्तनों की भीड़ के बीच अपना नंबर आने की आशा में महिलाओं और बच्चों का मजमा लगना आम हो गया है। पानी को लेकर मारपीट तो आम बात है। लगता है कि वह दिन दूर नहीं जब एक बाल्टी पानी के लिए आंखों से पानी आ जाए तो बड़ी बात नहीं होगी। जिस तरह से साल-दर-साल पानी की समस्या का सामना हम कर रहे हैं, उससे यह बात निश्चित है कि सब को एकजुट होकर प्रयास करने होंगे, नहीं तो हर पानी की बूंद पैसा मांगेगी और स्थिति यह भी हो सकती है कि भले ही हमारी जेब में पैसा तो हो लेकिन पीने के लिए पानी नहीं मिलेगा।Pagination
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सीतापुर और हरदोई के 36 गांव मिलाकर हो रहा है ‘नैमिषारण्य तीर्थ विकास परिषद’ गठन
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'संजॉय घोष मीडिया अवार्ड्स – 2022
यूसर्क द्वारा तीन दिवसीय जल विज्ञान प्रशिक्षण प्रारंभ
28 जुलाई को यूसर्क द्वारा आयोजित जल शिक्षा व्याख्यान श्रृंखला पर भाग लेने के लिए पंजीकरण करायें
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