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खासम-खास

Submitted by Editorial Team on Tue, 10/04/2022 - 16:13
कूरम में पुनर्निर्मित समथमन मंदिर तालाब। फोटो - indiawaterportal
परम्परागत तालाबों पर अनुपम मिश्र की किताब ‘आज भी खरे हैं तालाब’, पहली बार, वर्ष 1993 में प्रकाशित हुई थी। इस किताब में अनुपम ने समाज से प्राप्त जानकारी के आधार पर भारत के विभिन्न भागों में बने तालाबों के बारे में व्यापक विवरण प्रस्तुत किया है। अर्थात आज भी खरे हैं तालाब में दर्ज विवरण परम्परागत तालाबों पर समाज की राय है। उनका दृष्टिबोध है। उन विवरणों में समाज की भावनायें, आस्था, मान्यतायें, रीति-रिवाज तथा परम्परागत तालाबों के निर्माण से जुड़े कर्मकाण्ड दर्ज हैं। प्रस्तुति और शैली अनुपम की है।

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Submitted by Hindi on Mon, 05/23/2011 - 15:36
Source:
जनसत्ता रविवारी, 22 मई 2011

गोमती नदी की कलकल धारा लोगों की आस्था और विश्वास का संगम थी। उसका साफ और नीला अंजुलियों में भर कर लोग सर-माथे से लगाते थे। लेकिन प्रदूषण ने गोमती के जल को काला कर डाला है। नदी के अतीत और वर्तमान पर निगाह डाल रहे हैं हरिकृष्ण यादव।

दियरा में गोमती के दोनों किनारों को पुल ने मिला डाला था, यह देख कर खुशी हुई। साल में एक बार गोमती के पार जाना ही पड़ता है। पुल नहीं था तो नाव से गोमती पार करने के सिवा कोई चारा न था, लेकिन पुल के निर्माण से हुई खुशी नदी के तट पर पहुंचते ही काफूर भी हो गई। पहले जब भी जाना हुआ नाव पर चढ़ने से पहले साफ नीले जल से हाथ-पैर धोकर एक-दो घूंट पानी जरूर पीता था। पर इस बार पानी इतना गंदा था कि घूंट भरना तो दूर पांव तक धोने की इच्छा न हुई। वैसे तो हर साल जेठ के महीने में दशहरे के दिन लाखों श्रद्धालु पवित्र गोमती में स्नान करते हैं। इस बार दशहरे पर नाले में बदल गई गोमती में श्रद्धालु डुबकी लगाने की आस्था कैसे निभाएंगे।
Submitted by Hindi on Mon, 05/23/2011 - 12:37
Source:
सर्वोदय प्रेस सर्विस

यह समय सिद्ध है कि परमाणु ऊर्जा न तो साफ सुथरी है और न ही सस्ती! इसके अलावा दुर्घटना की स्थिति में होने वाले विनाश का आकलन कर पाना भी कठिन है। इसके विकिरण सैकड़ों-हजारों वर्षों तक पर्यावरण में विद्यमान रहेंगे और मानवता को नुकसान पहुंचाते रहेंगे। भारत के राजनीतिज्ञों ने परमाणु ऊर्जा विकास को अपनी प्रतिष्ठा का प्रश्न बना लिया है और देश की सुरक्षा को दरकिनार कर दिया है।

भारत सरकार परमाणु ऊर्जा के तेज प्रसार का निर्णय ले चुकी है। नए परमाणु ऊर्जा संयंत्रों से अभी तक हम जितनी बिजली पूरे देश में प्राप्त कर सके हैं, उससे कहीं अधिक बिजली निकट भविष्य में मात्र एक परियोजना, महाराष्ट्र के कोंकण क्षेत्र के रत्नागिरी जिले में स्थित जैतापुरा जहां 1650 मेगावाट के छः सयंत्र लगाने से अथवा 9900 मेगावाट बिजली उत्पादन की क्षमता से प्राप्त करने का प्रयास किया जा रहा है। इस विशालकाय परियोजना का विरोध वैसे तो स्थानीय लोग आरंभ से कर रहे हैं, पर जापान के फुकुशिमा हादसे के बाद इस विरोध ने और अधिक जोर पकड़ा है। वैश्विक जन-विरोध को फुकुशिमा के बाद बेहतर समझा जा रहा है और उसे अधिक व्यापक समर्थन मिल रहा है। परंतु महाराष्ट्र सरकार के दृष्टिकोण में बहुत कम परिवर्तन आया है। वह इस परियोजना को हर हालत में आगे ले जाने के लिए तैयार लगती है। भारत सरकार के दृष्टिकोण में बस इतना सा फर्क आया है कि सुरक्षा पक्ष को थोड़ा सा और पक्का कर दिया जाए।
Submitted by Hindi on Mon, 05/16/2011 - 11:19
Source:
संडे नई दुनिया, 15 मई 2011

कभी रायपुर में करीब 181 तालाब थे और इसे तालाबों का शहर कहा जाता था लेकिन आज यहां अंगुलियों पर गिनने लायक तालाब बचे हैं और वे भी बेहद खस्ताहाल हैं।

रायपुर, छत्तीसगढ़ में 'बिन पानी सब सून' को ध्यान में रखते हुए बड़ी संख्या में ताल-तलैये खुदवाए गए, जो गर्मी के दिनों में भी लबालब रहते थे। राजधानी रायपुर तो 'तालाबों का शहर' कहलाता रहा है। लेकिन आज यहां के ताल-तलैयों पर उपेक्षा का ग्रहण लग गया है। आज स्थिति यह है कि जिस बूढ़े तालाब की खूबसूरती और उसके स्वच्छ जल के आमंत्रण को शहर में निजी काम से आए पृथ्वीराज कपूर ठुकरा नहीं सके थे उसमें आज डुबकी लगाने का मतलब त्वचा रोगों को आमंत्रित करना साबित होगा।

कभी बूढ़े तालाब का फैलाव समंदर जैसा लगता था। जब तेज हवा चलती तो इसके स्वच्छ पानी में लहरें उठने लगतीं। तालाब जीवन का अभिन्न हिस्सा थे और इन्हें पूरी योजना के साथ बनाया गया था।

प्रयास

Submitted by Editorial Team on Thu, 12/08/2022 - 13:06
सीतापुर का नैमिषारण्य तीर्थ क्षेत्र, फोटो साभार - उप्र सरकार
श्री नैभिषारण्य धाम तीर्थ परिषद के गठन को प्रदेश मंत्रिमएडल ने स्वीकृति प्रदान की, जिसके अध्यक्ष स्वयं मुख्यमंत्री होंगे। इसके अंतर्गत नैमिषारण्य की होली के अवसर पर चौरासी कोसी 5 दिवसीय परिक्रमा पथ और उस पर स्थापित सम्पूर्ण देश की संह्कृति एवं एकात्मता के वह सभी तीर्थ एवं उनके स्थल केंद्रित हैं। इस सम्पूर्ण नैमिशारण्य क्षेत्र में लोक भारती पिछले 10 वर्ष से कार्य कर रही है। नैमिषाराण्य क्षेत्र के भूगर्भ जल स्रोतो का अध्ययन एवं उनके पुनर्नीवन पर लगातार कार्य चल रहा है। वर्षा नल सरक्षण एवं संम्भरण हेतु तालाबें के पुनर्नीवन अनियान के जवर्गत 119 तालाबों का पृनरुद्धार लोक भारती के प्रयासों से सम्पन्न हुआ है।

नोटिस बोर्ड

Submitted by Shivendra on Tue, 09/06/2022 - 14:16
Source:
चरखा फीचर
'संजॉय घोष मीडिया अवार्ड्स – 2022
कार्य अनुभव के विवरण के साथ संक्षिप्त पाठ्यक्रम जीवन लगभग 800-1000 शब्दों का एक प्रस्ताव, जिसमें उस विशेष विषयगत क्षेत्र को रेखांकित किया गया हो, जिसमें आवेदक काम करना चाहता है. प्रस्ताव में अध्ययन की विशिष्ट भौगोलिक स्थिति, कार्यप्रणाली, चयनित विषय की प्रासंगिकता के साथ-साथ इन लेखों से अपेक्षित प्रभाव के बारे में विवरण शामिल होनी चाहिए. साथ ही, इस बात का उल्लेख होनी चाहिए कि देश के विकास से जुड़ी बहस में इसके योगदान किस प्रकार हो सकता है? कृपया आलेख प्रस्तुत करने वाली भाषा भी निर्दिष्ट करें। लेख अंग्रेजी, हिंदी या उर्दू में ही स्वीकार किए जाएंगे
Submitted by Shivendra on Tue, 08/23/2022 - 17:19
Source:
यूसर्क
जल विज्ञान प्रशिक्षण कार्यशाला
उत्तराखंड विज्ञान शिक्षा एवं अनुसंधान केंद्र द्वारा आज दिनांक 23.08.22 को तीन दिवसीय जल विज्ञान प्रशिक्षण प्रारंभ किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए यूसर्क की निदेशक प्रो.(डॉ.) अनीता रावत ने अपने संबोधन में कहा कि यूसर्क द्वारा जल के महत्व को देखते हुए विगत वर्ष 2021 को संयुक्त राष्ट्र की विश्व पर्यावरण दिवस की थीम "ईको सिस्टम रेस्टोरेशन" के अंर्तगत आयोजित कार्यक्रम के निष्कर्षों के क्रम में जल विज्ञान विषयक लेक्चर सीरीज एवं जल विज्ञान प्रशिक्षण कार्यक्रमों को प्रारंभ किया गया
Submitted by Shivendra on Mon, 07/25/2022 - 15:34
Source:
यूसर्क
जल शिक्षा व्याख्यान श्रृंखला
इस दौरान राष्ट्रीय पर्यावरण  इंजीनियरिंग अनुसंधान संस्था के वरिष्ठ वैज्ञानिक और अपशिष्ट जल विभाग विभाग के प्रमुख डॉक्टर रितेश विजय  सस्टेनेबल  वेस्ट वाटर ट्रीटमेंट फॉर लिक्विड वेस्ट मैनेजमेंट (Sustainable Wastewater Treatment for Liquid Waste Management) विषय  पर विशेषज्ञ तौर पर अपनी राय रखेंगे।

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खासम-खास

तालाब ज्ञान-संस्कृति : नींव से शिखर तक

Submitted by Editorial Team on Tue, 10/04/2022 - 16:13
Author
कृष्ण गोपाल 'व्यास’
talab-gyan-sanskriti-:-ninv-se-shikhar-tak
कूरम में पुनर्निर्मित समथमन मंदिर तालाब। फोटो - indiawaterportal
परम्परागत तालाबों पर अनुपम मिश्र की किताब ‘आज भी खरे हैं तालाब’, पहली बार, वर्ष 1993 में प्रकाशित हुई थी। इस किताब में अनुपम ने समाज से प्राप्त जानकारी के आधार पर भारत के विभिन्न भागों में बने तालाबों के बारे में व्यापक विवरण प्रस्तुत किया है। अर्थात आज भी खरे हैं तालाब में दर्ज विवरण परम्परागत तालाबों पर समाज की राय है। उनका दृष्टिबोध है। उन विवरणों में समाज की भावनायें, आस्था, मान्यतायें, रीति-रिवाज तथा परम्परागत तालाबों के निर्माण से जुड़े कर्मकाण्ड दर्ज हैं। प्रस्तुति और शैली अनुपम की है।

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गोमती जो एक नदी थी

Submitted by Hindi on Mon, 05/23/2011 - 15:36
Author
हरिकृष्ण यादव
Source
जनसत्ता रविवारी, 22 मई 2011

गोमती नदी की कलकल धारा लोगों की आस्था और विश्वास का संगम थी। उसका साफ और नीला अंजुलियों में भर कर लोग सर-माथे से लगाते थे। लेकिन प्रदूषण ने गोमती के जल को काला कर डाला है। नदी के अतीत और वर्तमान पर निगाह डाल रहे हैं हरिकृष्ण यादव।

दियरा में गोमती के दोनों किनारों को पुल ने मिला डाला था, यह देख कर खुशी हुई। साल में एक बार गोमती के पार जाना ही पड़ता है। पुल नहीं था तो नाव से गोमती पार करने के सिवा कोई चारा न था, लेकिन पुल के निर्माण से हुई खुशी नदी के तट पर पहुंचते ही काफूर भी हो गई। पहले जब भी जाना हुआ नाव पर चढ़ने से पहले साफ नीले जल से हाथ-पैर धोकर एक-दो घूंट पानी जरूर पीता था। पर इस बार पानी इतना गंदा था कि घूंट भरना तो दूर पांव तक धोने की इच्छा न हुई। वैसे तो हर साल जेठ के महीने में दशहरे के दिन लाखों श्रद्धालु पवित्र गोमती में स्नान करते हैं। इस बार दशहरे पर नाले में बदल गई गोमती में श्रद्धालु डुबकी लगाने की आस्था कैसे निभाएंगे।

परमाणु ऊर्जा के तेज प्रसार के खतरे

Submitted by Hindi on Mon, 05/23/2011 - 12:37
Author
भारत डोगरा
Source
सर्वोदय प्रेस सर्विस

यह समय सिद्ध है कि परमाणु ऊर्जा न तो साफ सुथरी है और न ही सस्ती! इसके अलावा दुर्घटना की स्थिति में होने वाले विनाश का आकलन कर पाना भी कठिन है। इसके विकिरण सैकड़ों-हजारों वर्षों तक पर्यावरण में विद्यमान रहेंगे और मानवता को नुकसान पहुंचाते रहेंगे। भारत के राजनीतिज्ञों ने परमाणु ऊर्जा विकास को अपनी प्रतिष्ठा का प्रश्न बना लिया है और देश की सुरक्षा को दरकिनार कर दिया है।

भारत सरकार परमाणु ऊर्जा के तेज प्रसार का निर्णय ले चुकी है। नए परमाणु ऊर्जा संयंत्रों से अभी तक हम जितनी बिजली पूरे देश में प्राप्त कर सके हैं, उससे कहीं अधिक बिजली निकट भविष्य में मात्र एक परियोजना, महाराष्ट्र के कोंकण क्षेत्र के रत्नागिरी जिले में स्थित जैतापुरा जहां 1650 मेगावाट के छः सयंत्र लगाने से अथवा 9900 मेगावाट बिजली उत्पादन की क्षमता से प्राप्त करने का प्रयास किया जा रहा है। इस विशालकाय परियोजना का विरोध वैसे तो स्थानीय लोग आरंभ से कर रहे हैं, पर जापान के फुकुशिमा हादसे के बाद इस विरोध ने और अधिक जोर पकड़ा है। वैश्विक जन-विरोध को फुकुशिमा के बाद बेहतर समझा जा रहा है और उसे अधिक व्यापक समर्थन मिल रहा है। परंतु महाराष्ट्र सरकार के दृष्टिकोण में बहुत कम परिवर्तन आया है। वह इस परियोजना को हर हालत में आगे ले जाने के लिए तैयार लगती है। भारत सरकार के दृष्टिकोण में बस इतना सा फर्क आया है कि सुरक्षा पक्ष को थोड़ा सा और पक्का कर दिया जाए।

दफन हुए ताल-तलैये

Submitted by Hindi on Mon, 05/16/2011 - 11:19
Author
देवेंद्र यादव
Source
संडे नई दुनिया, 15 मई 2011

कभी रायपुर में करीब 181 तालाब थे और इसे तालाबों का शहर कहा जाता था लेकिन आज यहां अंगुलियों पर गिनने लायक तालाब बचे हैं और वे भी बेहद खस्ताहाल हैं।

रायपुर, छत्तीसगढ़ में 'बिन पानी सब सून' को ध्यान में रखते हुए बड़ी संख्या में ताल-तलैये खुदवाए गए, जो गर्मी के दिनों में भी लबालब रहते थे। राजधानी रायपुर तो 'तालाबों का शहर' कहलाता रहा है। लेकिन आज यहां के ताल-तलैयों पर उपेक्षा का ग्रहण लग गया है। आज स्थिति यह है कि जिस बूढ़े तालाब की खूबसूरती और उसके स्वच्छ जल के आमंत्रण को शहर में निजी काम से आए पृथ्वीराज कपूर ठुकरा नहीं सके थे उसमें आज डुबकी लगाने का मतलब त्वचा रोगों को आमंत्रित करना साबित होगा।

कभी बूढ़े तालाब का फैलाव समंदर जैसा लगता था। जब तेज हवा चलती तो इसके स्वच्छ पानी में लहरें उठने लगतीं। तालाब जीवन का अभिन्न हिस्सा थे और इन्हें पूरी योजना के साथ बनाया गया था।

प्रयास

सीतापुर और हरदोई के 36 गांव मिलाकर हो रहा है ‘नैमिषारण्य तीर्थ विकास परिषद’ गठन  

Submitted by Editorial Team on Thu, 12/08/2022 - 13:06
sitapur-aur-hardoi-ke-36-gaon-milaakar-ho-raha-hai-'naimisharany-tirth-vikas-parishad'-gathan
Source
लोकसम्मान पत्रिका, दिसम्बर-2022
सीतापुर का नैमिषारण्य तीर्थ क्षेत्र, फोटो साभार - उप्र सरकार
श्री नैभिषारण्य धाम तीर्थ परिषद के गठन को प्रदेश मंत्रिमएडल ने स्वीकृति प्रदान की, जिसके अध्यक्ष स्वयं मुख्यमंत्री होंगे। इसके अंतर्गत नैमिषारण्य की होली के अवसर पर चौरासी कोसी 5 दिवसीय परिक्रमा पथ और उस पर स्थापित सम्पूर्ण देश की संह्कृति एवं एकात्मता के वह सभी तीर्थ एवं उनके स्थल केंद्रित हैं। इस सम्पूर्ण नैमिशारण्य क्षेत्र में लोक भारती पिछले 10 वर्ष से कार्य कर रही है। नैमिषाराण्य क्षेत्र के भूगर्भ जल स्रोतो का अध्ययन एवं उनके पुनर्नीवन पर लगातार कार्य चल रहा है। वर्षा नल सरक्षण एवं संम्भरण हेतु तालाबें के पुनर्नीवन अनियान के जवर्गत 119 तालाबों का पृनरुद्धार लोक भारती के प्रयासों से सम्पन्न हुआ है।

नोटिस बोर्ड

'संजॉय घोष मीडिया अवार्ड्स – 2022

Submitted by Shivendra on Tue, 09/06/2022 - 14:16
sanjoy-ghosh-media-awards-–-2022
Source
चरखा फीचर
'संजॉय घोष मीडिया अवार्ड्स – 2022
कार्य अनुभव के विवरण के साथ संक्षिप्त पाठ्यक्रम जीवन लगभग 800-1000 शब्दों का एक प्रस्ताव, जिसमें उस विशेष विषयगत क्षेत्र को रेखांकित किया गया हो, जिसमें आवेदक काम करना चाहता है. प्रस्ताव में अध्ययन की विशिष्ट भौगोलिक स्थिति, कार्यप्रणाली, चयनित विषय की प्रासंगिकता के साथ-साथ इन लेखों से अपेक्षित प्रभाव के बारे में विवरण शामिल होनी चाहिए. साथ ही, इस बात का उल्लेख होनी चाहिए कि देश के विकास से जुड़ी बहस में इसके योगदान किस प्रकार हो सकता है? कृपया आलेख प्रस्तुत करने वाली भाषा भी निर्दिष्ट करें। लेख अंग्रेजी, हिंदी या उर्दू में ही स्वीकार किए जाएंगे

​यूसर्क द्वारा तीन दिवसीय जल विज्ञान प्रशिक्षण प्रारंभ

Submitted by Shivendra on Tue, 08/23/2022 - 17:19
USERC-dvara-tin-divasiy-jal-vigyan-prashikshan-prarambh
Source
यूसर्क
जल विज्ञान प्रशिक्षण कार्यशाला
उत्तराखंड विज्ञान शिक्षा एवं अनुसंधान केंद्र द्वारा आज दिनांक 23.08.22 को तीन दिवसीय जल विज्ञान प्रशिक्षण प्रारंभ किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए यूसर्क की निदेशक प्रो.(डॉ.) अनीता रावत ने अपने संबोधन में कहा कि यूसर्क द्वारा जल के महत्व को देखते हुए विगत वर्ष 2021 को संयुक्त राष्ट्र की विश्व पर्यावरण दिवस की थीम "ईको सिस्टम रेस्टोरेशन" के अंर्तगत आयोजित कार्यक्रम के निष्कर्षों के क्रम में जल विज्ञान विषयक लेक्चर सीरीज एवं जल विज्ञान प्रशिक्षण कार्यक्रमों को प्रारंभ किया गया

28 जुलाई को यूसर्क द्वारा आयोजित जल शिक्षा व्याख्यान श्रृंखला पर भाग लेने के लिए पंजीकरण करायें

Submitted by Shivendra on Mon, 07/25/2022 - 15:34
28-july-ko-ayojit-hone-vale-jal-shiksha-vyakhyan-shrinkhala-par-bhag-lene-ke-liye-panjikaran-karayen
Source
यूसर्क
जल शिक्षा व्याख्यान श्रृंखला
इस दौरान राष्ट्रीय पर्यावरण  इंजीनियरिंग अनुसंधान संस्था के वरिष्ठ वैज्ञानिक और अपशिष्ट जल विभाग विभाग के प्रमुख डॉक्टर रितेश विजय  सस्टेनेबल  वेस्ट वाटर ट्रीटमेंट फॉर लिक्विड वेस्ट मैनेजमेंट (Sustainable Wastewater Treatment for Liquid Waste Management) विषय  पर विशेषज्ञ तौर पर अपनी राय रखेंगे।

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