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कहा जाता है कि पहले यमुना घग्गर की सहायक नदी थी। इसे वैदिक सरस्वती के नाम से भी जाना जाता था। इसे सप्त सिन्धु सात झरने, स्रोत भी कहते थे एक बड़ी प्राकृतिक घटना (टेक्टोनिक) में यमुना ने रास्ता बदला और यह गंगा की सहायक नदी बन गई। आज गंगा-यमुना का व्यापक विशाल क्षेत्र है।
यमुना को यमी नाम से जाना जाता है। यमुना, जमुना, जुमना, जमना आदि नाम से भी इसी पुकारते हैं। कालिंद पर्वत से निकलने के कारण इसको कालिंदी भी कहा जाता है। इसका पानी नीला, श्यामल है जो काला दिखता है। इसलिए भी इसे कालिंदी कहते हैं। यमुना के पिता तेजस्वी सूर्य भगवान तथा माता विश्वकर्मा की पुत्री ‘संजना’ है। यमुना सूर्यवंशी हैं तथा इसका भाई यम मौत का देवता है। यमुना और यम दोनों भाई बहनों में अगाध, प्रगाढ़ प्रेम रहा है। इसका एक कारण यह भी माना जाता है कि माता संजना अपने पति तेजस्वी सूर्य का तेज बर्दाश्त नहीं कर पा सकीं इसलिए अपनी छाया पैदा करके स्वयं दूर चली गई। ऐसे में दोनों भाई-बहनों ने एक दूसरे का खूब ख्याल रखा तथा परस्पर इनका प्रेम और प्रगाढ़ हो गया। यमुना बहन और यम भाई के परस्पर प्रगाढ़ प्रेम की याद में ही“भैया दूज” का पर्व, त्यौहार, उत्सव मनाया जाता है।फसलों में कीटनाशकों के इस्तेमाल की एक निश्चित मात्रा तय कर देनी चाहिए, जो स्वास्थ्य पर विपरीत असर न डालती हो। मगर सवाल यह भी है कि क्या किसान इस पर अमल करेंगे। 2005 में सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट (सीएसई) ने केंद्रीय प्रदूषण निगरानी प्रयोगशाला के साथ मिलकर एक अध्ययन किया था। इसकी रिपोर्ट के मुताबिक, अमेरिकी स्टैंडर्ड (सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन) के मुकाबले पंजाब में उगाई गई फसलों में कीटनाशकों की मात्रा 15 से लेकर 605 गुना ज्यादा पाई गई।
देश की एक बड़ी आबादी धीमा जहर खाने को मजबूर है, क्योंकि उसके पास इसके अलावा कोई दूसरा चारा नहीं है। हम बात कर रहे हैं भोजन के साथ लिए जा रहे उस धीमे जहर की, जो सिंचाई जल और कीटनाशकों के जरिए अनाज, सब्जियों और फलों में शामिल हो चुका है। देश के उत्तर-पूर्वी राज्यों में आर्सेनिक सिंचाई जल के माध्यम से फसलों को जहरीला बना रहा है। यहां भू-जल से सिंचित खेतों में पैदा होने वाले धान में आर्सेनिक की इतनी मात्रा पाई गई है, जो मानव शरीर को नुकसान पहुंचाने के लिए काफी है। इतना ही नहीं, देश में नदियों के किनारे उगाई जाने वाली फसलों में भी जहरीले रसायन पाए गए हैं। यह किसी से छुपा नहीं है कि हमारे देश की नदियां कितनी प्रदूषित हैं। कारखानों से निकलने वाले कचरे और शहरों की गंदगी को नदियों में बहा दिया जाता है, जिससे इनका पानी अत्यंत प्रदूषित हो गया है।
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यमुना
कहा जाता है कि पहले यमुना घग्गर की सहायक नदी थी। इसे वैदिक सरस्वती के नाम से भी जाना जाता था। इसे सप्त सिन्धु सात झरने, स्रोत भी कहते थे एक बड़ी प्राकृतिक घटना (टेक्टोनिक) में यमुना ने रास्ता बदला और यह गंगा की सहायक नदी बन गई। आज गंगा-यमुना का व्यापक विशाल क्षेत्र है।
यमुना को यमी नाम से जाना जाता है। यमुना, जमुना, जुमना, जमना आदि नाम से भी इसी पुकारते हैं। कालिंद पर्वत से निकलने के कारण इसको कालिंदी भी कहा जाता है। इसका पानी नीला, श्यामल है जो काला दिखता है। इसलिए भी इसे कालिंदी कहते हैं। यमुना के पिता तेजस्वी सूर्य भगवान तथा माता विश्वकर्मा की पुत्री ‘संजना’ है। यमुना सूर्यवंशी हैं तथा इसका भाई यम मौत का देवता है। यमुना और यम दोनों भाई बहनों में अगाध, प्रगाढ़ प्रेम रहा है। इसका एक कारण यह भी माना जाता है कि माता संजना अपने पति तेजस्वी सूर्य का तेज बर्दाश्त नहीं कर पा सकीं इसलिए अपनी छाया पैदा करके स्वयं दूर चली गई। ऐसे में दोनों भाई-बहनों ने एक दूसरे का खूब ख्याल रखा तथा परस्पर इनका प्रेम और प्रगाढ़ हो गया। यमुना बहन और यम भाई के परस्पर प्रगाढ़ प्रेम की याद में ही“भैया दूज” का पर्व, त्यौहार, उत्सव मनाया जाता है।जमीन का टुकड़ा बताकर रोगदा बांध को बेचा!
भोजन में मीठा जहर
फसलों में कीटनाशकों के इस्तेमाल की एक निश्चित मात्रा तय कर देनी चाहिए, जो स्वास्थ्य पर विपरीत असर न डालती हो। मगर सवाल यह भी है कि क्या किसान इस पर अमल करेंगे। 2005 में सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट (सीएसई) ने केंद्रीय प्रदूषण निगरानी प्रयोगशाला के साथ मिलकर एक अध्ययन किया था। इसकी रिपोर्ट के मुताबिक, अमेरिकी स्टैंडर्ड (सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन) के मुकाबले पंजाब में उगाई गई फसलों में कीटनाशकों की मात्रा 15 से लेकर 605 गुना ज्यादा पाई गई।
देश की एक बड़ी आबादी धीमा जहर खाने को मजबूर है, क्योंकि उसके पास इसके अलावा कोई दूसरा चारा नहीं है। हम बात कर रहे हैं भोजन के साथ लिए जा रहे उस धीमे जहर की, जो सिंचाई जल और कीटनाशकों के जरिए अनाज, सब्जियों और फलों में शामिल हो चुका है। देश के उत्तर-पूर्वी राज्यों में आर्सेनिक सिंचाई जल के माध्यम से फसलों को जहरीला बना रहा है। यहां भू-जल से सिंचित खेतों में पैदा होने वाले धान में आर्सेनिक की इतनी मात्रा पाई गई है, जो मानव शरीर को नुकसान पहुंचाने के लिए काफी है। इतना ही नहीं, देश में नदियों के किनारे उगाई जाने वाली फसलों में भी जहरीले रसायन पाए गए हैं। यह किसी से छुपा नहीं है कि हमारे देश की नदियां कितनी प्रदूषित हैं। कारखानों से निकलने वाले कचरे और शहरों की गंदगी को नदियों में बहा दिया जाता है, जिससे इनका पानी अत्यंत प्रदूषित हो गया है।
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सीतापुर और हरदोई के 36 गांव मिलाकर हो रहा है ‘नैमिषारण्य तीर्थ विकास परिषद’ गठन
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