तालाब ज्ञान-संस्कृति : नींव से शिखर तक

प्रस्तुत प्रकरण में सहस्राब्दि विकास लक्ष्यों-7 में पर्यावरणीय स्थिरता पर चर्चा की जा रही है। सहस्राब्दि विकास लक्ष्यों के अनुसार पर्यावरणीय स्थिरता आर्थिक और सामाजिक खुशहाली का एक हिस्सा है।
उम्मीद है कि 2020 तक जल, जंगल और जमीन आदि प्राकृतिक संसाधनों पर निर्भरता बढ़ेगी जिससे गरीब पर सबसे ज्यादा प्रभाव पड़ेगा। लेकिन अगर राजनीतिक इच्छा थोड़ी भी पर्यावरण के पक्ष में होगी तो इससे स्थिति को बदला जा सकता है। आईय़े सुनते है क्या कहना है है हमारे पर्यावरण विशेषज्ञों का-प्रस्तुत है वाटर एड से इंदिरा खुराना और डॉ. रहेश जालान से एक बातचीतः
नर्मदा बचाओ आंदोलन की नेत्री और सुप्रसिद्ध सामाजिक कार्यकर्ता मेधा पाटकर का मानना है कि विकास की अवधारणा को ठीक से समझा नहीं जा रहा है, जिससे सामाजिक संघर्ष लगातार बढ़ता जा रहा है। मेधा पाटकर की राय में सशस्त्र माओवादी आंदोलन के मुद्दे तो सही हैं लेकिन उनका रास्ता सही नहीं है। हालांकि मेधा पाटकर यह मानती हैं कि देश में अहिंसक संघर्ष और संगठन भी अपना काम कर रहे हैं, लेकिन सरकार उनके मुद्दों को नजरअंदाज कर रही है, जिससे इस तरह के आंदोलनों की जगह लगातार कम हो रही है। यहां पेश है, उनसे की गई एक बातचीत।
• देश भर में जब कभी भी विकास की कोई प्रक्रिया शुरू होती है तो चाहे-अनचाहे, जाने-अनजाने उसका विरोध शुरू हो जाता है।
प्रस्तुत प्रकरण में सहस्राब्दि विकास लक्ष्यों-7 में पर्यावरणीय स्थिरता पर चर्चा की जा रही है। सहस्राब्दि विकास लक्ष्यों के अनुसार पर्यावरणीय स्थिरता आर्थिक और सामाजिक खुशहाली का एक हिस्सा है।
उम्मीद है कि 2020 तक जल, जंगल और जमीन आदि प्राकृतिक संसाधनों पर निर्भरता बढ़ेगी जिससे गरीब पर सबसे ज्यादा प्रभाव पड़ेगा। लेकिन अगर राजनीतिक इच्छा थोड़ी भी पर्यावरण के पक्ष में होगी तो इससे स्थिति को बदला जा सकता है। आईय़े सुनते है क्या कहना है है हमारे पर्यावरण विशेषज्ञों का-प्रस्तुत है वाटर एड से इंदिरा खुराना और डॉ. रहेश जालान से एक बातचीतः
नर्मदा बचाओ आंदोलन की नेत्री और सुप्रसिद्ध सामाजिक कार्यकर्ता मेधा पाटकर का मानना है कि विकास की अवधारणा को ठीक से समझा नहीं जा रहा है, जिससे सामाजिक संघर्ष लगातार बढ़ता जा रहा है। मेधा पाटकर की राय में सशस्त्र माओवादी आंदोलन के मुद्दे तो सही हैं लेकिन उनका रास्ता सही नहीं है। हालांकि मेधा पाटकर यह मानती हैं कि देश में अहिंसक संघर्ष और संगठन भी अपना काम कर रहे हैं, लेकिन सरकार उनके मुद्दों को नजरअंदाज कर रही है, जिससे इस तरह के आंदोलनों की जगह लगातार कम हो रही है। यहां पेश है, उनसे की गई एक बातचीत।
• देश भर में जब कभी भी विकास की कोई प्रक्रिया शुरू होती है तो चाहे-अनचाहे, जाने-अनजाने उसका विरोध शुरू हो जाता है।
पसंदीदा आलेख