तालाब ज्ञान-संस्कृति : नींव से शिखर तक

घरों में भी पानी बचाने वाले उपकरणों का इस्तेमाल किया जा सकता है, जैसे शॉवर, डिश वॉशर और क्लॉथ वॉशर इत्यादि। कुछ देशों में पानी की रक्षा के लिए कठोर मानकों पर आधारित घरेलू उपकरण ही बेचने व प्रयोग करने का प्रावधान किया गया है।
शहरों में घरों से निकलने वाली गंदगी हो या फिर कारखानों का कचरा, उसे पानी में बहाकर नष्ट करना हमारी पुरानी आदत और व्यवस्था रही है। हम शहरों में नदियों का पानी लाते हैं और उसे कूड़े-करकट से प्रदूषित कर दोबारा नदियों में छोड़ देते हैं। कारखानों से निकलने वाला विषैला कूड़ा न सिर्फ नदियों व कुओं को प्रदूषित बना रहा है, बल्कि भूगर्भ जल को भी पीने लायक नहीं रहने दे रहा है।
वर्तमान में शहरों में मानव मल को साफ करने के लिए जिस तकनीक का इस्तेमाल हो रहा है, उसमें अत्यधिक मात्रा में पानी का प्रयोग किया जाता है।
हमारे देश में चल रहे वानकीकरण जैसे आयोजनों के माध्यम से इस तथ्य से ग्रामीण जनों को अवगत कराया जा रहा है कि अच्छी वर्षा अच्छे वनों पर निर्भर करती है।
‘रामचरितमानस’ में गोस्वामी तुलसीदास ने कलियुग-वर्णन के अंतर्गत कलियुग में बार-बार अकाल पड़ने की चर्चा की है। ‘कलि बारहिं बार अकाल परै। बिनु अन्न प्रजा बहु लोग मरे।’ अकाल की स्थिति में अन्न का उत्पादन संभव नहीं है। पानी है तो अन्न है। ‘गीता’ में भगवान श्रीकृष्ण ने कहा है, “अन्नाद् भवन्ति भूतानि पर्जन्यादन्न संभवः” अन्न से प्राणियों का पालन होता है, और अन्न बादलों से संभव होता है। जब बादलों से जल नहीं बरसता है- तब अकाल की स्थिति बनती है। अकाल का शाब्दिक अर्थ होता है- समय का निषेध। भारत जैसे कृषि प्रधान देश में समय की धारणा बादलों से ही निर्मित होती है। फसल जब अच्छी होती है, तब काल सुकाल बन जाता है, और फसल तो तभी अच्छी आयेगी, जब बादल खूब बरसेंगे।घरों में भी पानी बचाने वाले उपकरणों का इस्तेमाल किया जा सकता है, जैसे शॉवर, डिश वॉशर और क्लॉथ वॉशर इत्यादि। कुछ देशों में पानी की रक्षा के लिए कठोर मानकों पर आधारित घरेलू उपकरण ही बेचने व प्रयोग करने का प्रावधान किया गया है।
शहरों में घरों से निकलने वाली गंदगी हो या फिर कारखानों का कचरा, उसे पानी में बहाकर नष्ट करना हमारी पुरानी आदत और व्यवस्था रही है। हम शहरों में नदियों का पानी लाते हैं और उसे कूड़े-करकट से प्रदूषित कर दोबारा नदियों में छोड़ देते हैं। कारखानों से निकलने वाला विषैला कूड़ा न सिर्फ नदियों व कुओं को प्रदूषित बना रहा है, बल्कि भूगर्भ जल को भी पीने लायक नहीं रहने दे रहा है।
वर्तमान में शहरों में मानव मल को साफ करने के लिए जिस तकनीक का इस्तेमाल हो रहा है, उसमें अत्यधिक मात्रा में पानी का प्रयोग किया जाता है।
हमारे देश में चल रहे वानकीकरण जैसे आयोजनों के माध्यम से इस तथ्य से ग्रामीण जनों को अवगत कराया जा रहा है कि अच्छी वर्षा अच्छे वनों पर निर्भर करती है।
‘रामचरितमानस’ में गोस्वामी तुलसीदास ने कलियुग-वर्णन के अंतर्गत कलियुग में बार-बार अकाल पड़ने की चर्चा की है। ‘कलि बारहिं बार अकाल परै। बिनु अन्न प्रजा बहु लोग मरे।’ अकाल की स्थिति में अन्न का उत्पादन संभव नहीं है। पानी है तो अन्न है। ‘गीता’ में भगवान श्रीकृष्ण ने कहा है, “अन्नाद् भवन्ति भूतानि पर्जन्यादन्न संभवः” अन्न से प्राणियों का पालन होता है, और अन्न बादलों से संभव होता है। जब बादलों से जल नहीं बरसता है- तब अकाल की स्थिति बनती है। अकाल का शाब्दिक अर्थ होता है- समय का निषेध। भारत जैसे कृषि प्रधान देश में समय की धारणा बादलों से ही निर्मित होती है। फसल जब अच्छी होती है, तब काल सुकाल बन जाता है, और फसल तो तभी अच्छी आयेगी, जब बादल खूब बरसेंगे।
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