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खासम-खास

Submitted by Editorial Team on Tue, 10/04/2022 - 16:13
कूरम में पुनर्निर्मित समथमन मंदिर तालाब। फोटो - indiawaterportal
परम्परागत तालाबों पर अनुपम मिश्र की किताब ‘आज भी खरे हैं तालाब’, पहली बार, वर्ष 1993 में प्रकाशित हुई थी। इस किताब में अनुपम ने समाज से प्राप्त जानकारी के आधार पर भारत के विभिन्न भागों में बने तालाबों के बारे में व्यापक विवरण प्रस्तुत किया है। अर्थात आज भी खरे हैं तालाब में दर्ज विवरण परम्परागत तालाबों पर समाज की राय है। उनका दृष्टिबोध है। उन विवरणों में समाज की भावनायें, आस्था, मान्यतायें, रीति-रिवाज तथा परम्परागत तालाबों के निर्माण से जुड़े कर्मकाण्ड दर्ज हैं। प्रस्तुति और शैली अनुपम की है।

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Submitted by admin on Sat, 11/20/2010 - 07:08
Source:
अमर उजाला कॉम्पैक्ट, 17 नवम्बर 2010

ग्रीन हाउस गैसों और जलवायु परिवर्तन का सबसे ज्यादा बुरा असर हिमालयी क्षेत्र पर पड़ रहा है। वर्ष 1970 की तुलना में 2030 तक हिमालयी क्षेत्र खासतौर पर जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड में औसत तापमान 1.7 से 2.2 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ जाएगा। इस क्षेत्र में बारिश और सूखा दोनों बढ़ेंगे। यहां का प्रमुख फल सेब भी संकट में घिरा होगा। हालांकि इसमें सिर्फ चार क्षेत्रों, हिमालयी क्षेत्र, पूर्वोत्तर, पश्चिमी घाट और तटीय क्षेत्र में जलवायु परिवर्तन से कृषि, जल, जंगल और स्वास्थ्य पर पड़ने वाले असर का अध्ययन किया गया है। इसमें वर्ष 1970 के आंकड़ों को आधार मानकर 2030 तक की स्थिति का आकलन
Submitted by admin on Wed, 11/17/2010 - 07:26
Source:
चौथी दुनिया, अप्रैल 2010
जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए उठाए गए क़दमों की सुस्त चाल से, इससे प्रभावित हो रहे समुदायों में स्वाभाविक रूप से निराशा बढ़ी. परंपरागत राजनैतिक-वैज्ञानिक पद्धतियों पर आधारित उक्त उपाय ज़्यादा प्रभावी साबित नहीं हो रहे थे, पीड़ित लोगों की समस्याओं की अनदेखी हो रही थी और सबसे बड़ी बात यह थी कि मानवीय गतिविधियों के चलते वैश्विक तापमान में हो रही वृद्धि के लिए ज़िम्मेदारी तय करने की कोई व्यवस्था न होने से प्रभावित समुदायों को लगातार मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा था.
Submitted by Hindi on Wed, 11/10/2010 - 09:27
Source:
निरंतर पत्रिका दल, अक्टूबर 2010
सशक्त समुदाय सरकार व कंपनियों आदि की मदद के बिना भी पहल कर सकता है
यदि लोग व समुदाय सूचना स्रोतों से सशक्त हो कर अपने आसपास की स्थिति सुधारने का दायित्व अपने ऊपर लें तो कंपनियों, विकास संस्थाओं और सरकारों के बिना ही बहुत कुछ हासिल हो सकता है।हर्मन हैसे के उपन्यास “सिद्धार्थ” के अनुसार, जब वयोवृद्ध सिद्धार्थ नदी के किनारे बैठ कर ध्यानमग्न हो सुनने लगे, तो उन्हें पानी के प्रवाह में “याचितों के विलाप, ज्ञानियों के हास, घृणा के रुदन और मरते हुओं की आह” के स्वर सुनाई दिए। “यह सब स्वर परस्पर बुने हुए, जकड़े हुए थे, सहस्र रूप में एक दूसरे के साथ लिपटे हुए। सारे स्वर, सारे ध्येय, सारी याचनाएँ, सारे क्षोभ, आनन्द, सारा पुण्य, पाप, सब मिल कर जैसे संसार का निर्माण कर रहे थे। ये सब घटनाओं की धारा की तरह, जीवन के संगीत की तरह थे।” जल धरती की धमनियों में बहते रक्त की तरह है, और नदियाँ, झीलें, वायुमंडल, जलस्तर और महासागर इस ग्रह के परिसंचरण तन्त्र की तरह। जल न होता तो जीवन कहाँ होता।

प्रयास

Submitted by Editorial Team on Thu, 12/08/2022 - 13:06
सीतापुर का नैमिषारण्य तीर्थ क्षेत्र, फोटो साभार - उप्र सरकार
श्री नैभिषारण्य धाम तीर्थ परिषद के गठन को प्रदेश मंत्रिमएडल ने स्वीकृति प्रदान की, जिसके अध्यक्ष स्वयं मुख्यमंत्री होंगे। इसके अंतर्गत नैमिषारण्य की होली के अवसर पर चौरासी कोसी 5 दिवसीय परिक्रमा पथ और उस पर स्थापित सम्पूर्ण देश की संह्कृति एवं एकात्मता के वह सभी तीर्थ एवं उनके स्थल केंद्रित हैं। इस सम्पूर्ण नैमिशारण्य क्षेत्र में लोक भारती पिछले 10 वर्ष से कार्य कर रही है। नैमिषाराण्य क्षेत्र के भूगर्भ जल स्रोतो का अध्ययन एवं उनके पुनर्नीवन पर लगातार कार्य चल रहा है। वर्षा नल सरक्षण एवं संम्भरण हेतु तालाबें के पुनर्नीवन अनियान के जवर्गत 119 तालाबों का पृनरुद्धार लोक भारती के प्रयासों से सम्पन्न हुआ है।

नोटिस बोर्ड

Submitted by Shivendra on Tue, 09/06/2022 - 14:16
Source:
चरखा फीचर
'संजॉय घोष मीडिया अवार्ड्स – 2022
कार्य अनुभव के विवरण के साथ संक्षिप्त पाठ्यक्रम जीवन लगभग 800-1000 शब्दों का एक प्रस्ताव, जिसमें उस विशेष विषयगत क्षेत्र को रेखांकित किया गया हो, जिसमें आवेदक काम करना चाहता है. प्रस्ताव में अध्ययन की विशिष्ट भौगोलिक स्थिति, कार्यप्रणाली, चयनित विषय की प्रासंगिकता के साथ-साथ इन लेखों से अपेक्षित प्रभाव के बारे में विवरण शामिल होनी चाहिए. साथ ही, इस बात का उल्लेख होनी चाहिए कि देश के विकास से जुड़ी बहस में इसके योगदान किस प्रकार हो सकता है? कृपया आलेख प्रस्तुत करने वाली भाषा भी निर्दिष्ट करें। लेख अंग्रेजी, हिंदी या उर्दू में ही स्वीकार किए जाएंगे
Submitted by Shivendra on Tue, 08/23/2022 - 17:19
Source:
यूसर्क
जल विज्ञान प्रशिक्षण कार्यशाला
उत्तराखंड विज्ञान शिक्षा एवं अनुसंधान केंद्र द्वारा आज दिनांक 23.08.22 को तीन दिवसीय जल विज्ञान प्रशिक्षण प्रारंभ किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए यूसर्क की निदेशक प्रो.(डॉ.) अनीता रावत ने अपने संबोधन में कहा कि यूसर्क द्वारा जल के महत्व को देखते हुए विगत वर्ष 2021 को संयुक्त राष्ट्र की विश्व पर्यावरण दिवस की थीम "ईको सिस्टम रेस्टोरेशन" के अंर्तगत आयोजित कार्यक्रम के निष्कर्षों के क्रम में जल विज्ञान विषयक लेक्चर सीरीज एवं जल विज्ञान प्रशिक्षण कार्यक्रमों को प्रारंभ किया गया
Submitted by Shivendra on Mon, 07/25/2022 - 15:34
Source:
यूसर्क
जल शिक्षा व्याख्यान श्रृंखला
इस दौरान राष्ट्रीय पर्यावरण  इंजीनियरिंग अनुसंधान संस्था के वरिष्ठ वैज्ञानिक और अपशिष्ट जल विभाग विभाग के प्रमुख डॉक्टर रितेश विजय  सस्टेनेबल  वेस्ट वाटर ट्रीटमेंट फॉर लिक्विड वेस्ट मैनेजमेंट (Sustainable Wastewater Treatment for Liquid Waste Management) विषय  पर विशेषज्ञ तौर पर अपनी राय रखेंगे।

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खासम-खास

तालाब ज्ञान-संस्कृति : नींव से शिखर तक

Submitted by Editorial Team on Tue, 10/04/2022 - 16:13
Author
कृष्ण गोपाल 'व्यास’
talab-gyan-sanskriti-:-ninv-se-shikhar-tak
कूरम में पुनर्निर्मित समथमन मंदिर तालाब। फोटो - indiawaterportal
परम्परागत तालाबों पर अनुपम मिश्र की किताब ‘आज भी खरे हैं तालाब’, पहली बार, वर्ष 1993 में प्रकाशित हुई थी। इस किताब में अनुपम ने समाज से प्राप्त जानकारी के आधार पर भारत के विभिन्न भागों में बने तालाबों के बारे में व्यापक विवरण प्रस्तुत किया है। अर्थात आज भी खरे हैं तालाब में दर्ज विवरण परम्परागत तालाबों पर समाज की राय है। उनका दृष्टिबोध है। उन विवरणों में समाज की भावनायें, आस्था, मान्यतायें, रीति-रिवाज तथा परम्परागत तालाबों के निर्माण से जुड़े कर्मकाण्ड दर्ज हैं। प्रस्तुति और शैली अनुपम की है।

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हिमालय में भी पड़ेगा सूखा, बीमारियां करेंगी घुसपैठ

Submitted by admin on Sat, 11/20/2010 - 07:08
Author
अमर उजाला कॉम्पैक्ट
Source
अमर उजाला कॉम्पैक्ट, 17 नवम्बर 2010

ग्रीन हाउस गैसों और जलवायु परिवर्तन का सबसे ज्यादा बुरा असर हिमालयी क्षेत्र पर पड़ रहा है। वर्ष 1970 की तुलना में 2030 तक हिमालयी क्षेत्र खासतौर पर जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड में औसत तापमान 1.7 से 2.2 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ जाएगा। इस क्षेत्र में बारिश और सूखा दोनों बढ़ेंगे। यहां का प्रमुख फल सेब भी संकट में घिरा होगा। हालांकि इसमें सिर्फ चार क्षेत्रों, हिमालयी क्षेत्र, पूर्वोत्तर, पश्चिमी घाट और तटीय क्षेत्र में जलवायु परिवर्तन से कृषि, जल, जंगल और स्वास्थ्य पर पड़ने वाले असर का अध्ययन किया गया है। इसमें वर्ष 1970 के आंकड़ों को आधार मानकर 2030 तक की स्थिति का आकलन

ग्‍लोबल वार्मिंग बनाम मानवाधिकार

Submitted by admin on Wed, 11/17/2010 - 07:26
Author
चौथी दुनिया
Source
चौथी दुनिया, अप्रैल 2010
जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए उठाए गए क़दमों की सुस्त चाल से, इससे प्रभावित हो रहे समुदायों में स्वाभाविक रूप से निराशा बढ़ी. परंपरागत राजनैतिक-वैज्ञानिक पद्धतियों पर आधारित उक्त उपाय ज़्यादा प्रभावी साबित नहीं हो रहे थे, पीड़ित लोगों की समस्याओं की अनदेखी हो रही थी और सबसे बड़ी बात यह थी कि मानवीय गतिविधियों के चलते वैश्विक तापमान में हो रही वृद्धि के लिए ज़िम्मेदारी तय करने की कोई व्यवस्था न होने से प्रभावित समुदायों को लगातार मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा था.

जल है धरती की धमनी का रक्त

Submitted by Hindi on Wed, 11/10/2010 - 09:27
Author
निरंतर पत्रिका दल
Source
निरंतर पत्रिका दल, अक्टूबर 2010

सशक्त समुदाय सरकार व कंपनियों आदि की मदद के बिना भी पहल कर सकता है


यदि लोग व समुदाय सूचना स्रोतों से सशक्त हो कर अपने आसपास की स्थिति सुधारने का दायित्व अपने ऊपर लें तो कंपनियों, विकास संस्थाओं और सरकारों के बिना ही बहुत कुछ हासिल हो सकता है।हर्मन हैसे के उपन्यास “सिद्धार्थ” के अनुसार, जब वयोवृद्ध सिद्धार्थ नदी के किनारे बैठ कर ध्यानमग्न हो सुनने लगे, तो उन्हें पानी के प्रवाह में “याचितों के विलाप, ज्ञानियों के हास, घृणा के रुदन और मरते हुओं की आह” के स्वर सुनाई दिए। “यह सब स्वर परस्पर बुने हुए, जकड़े हुए थे, सहस्र रूप में एक दूसरे के साथ लिपटे हुए। सारे स्वर, सारे ध्येय, सारी याचनाएँ, सारे क्षोभ, आनन्द, सारा पुण्य, पाप, सब मिल कर जैसे संसार का निर्माण कर रहे थे। ये सब घटनाओं की धारा की तरह, जीवन के संगीत की तरह थे।” जल धरती की धमनियों में बहते रक्त की तरह है, और नदियाँ, झीलें, वायुमंडल, जलस्तर और महासागर इस ग्रह के परिसंचरण तन्त्र की तरह। जल न होता तो जीवन कहाँ होता।

प्रयास

सीतापुर और हरदोई के 36 गांव मिलाकर हो रहा है ‘नैमिषारण्य तीर्थ विकास परिषद’ गठन  

Submitted by Editorial Team on Thu, 12/08/2022 - 13:06
sitapur-aur-hardoi-ke-36-gaon-milaakar-ho-raha-hai-'naimisharany-tirth-vikas-parishad'-gathan
Source
लोकसम्मान पत्रिका, दिसम्बर-2022
सीतापुर का नैमिषारण्य तीर्थ क्षेत्र, फोटो साभार - उप्र सरकार
श्री नैभिषारण्य धाम तीर्थ परिषद के गठन को प्रदेश मंत्रिमएडल ने स्वीकृति प्रदान की, जिसके अध्यक्ष स्वयं मुख्यमंत्री होंगे। इसके अंतर्गत नैमिषारण्य की होली के अवसर पर चौरासी कोसी 5 दिवसीय परिक्रमा पथ और उस पर स्थापित सम्पूर्ण देश की संह्कृति एवं एकात्मता के वह सभी तीर्थ एवं उनके स्थल केंद्रित हैं। इस सम्पूर्ण नैमिशारण्य क्षेत्र में लोक भारती पिछले 10 वर्ष से कार्य कर रही है। नैमिषाराण्य क्षेत्र के भूगर्भ जल स्रोतो का अध्ययन एवं उनके पुनर्नीवन पर लगातार कार्य चल रहा है। वर्षा नल सरक्षण एवं संम्भरण हेतु तालाबें के पुनर्नीवन अनियान के जवर्गत 119 तालाबों का पृनरुद्धार लोक भारती के प्रयासों से सम्पन्न हुआ है।

नोटिस बोर्ड

'संजॉय घोष मीडिया अवार्ड्स – 2022

Submitted by Shivendra on Tue, 09/06/2022 - 14:16
sanjoy-ghosh-media-awards-–-2022
Source
चरखा फीचर
'संजॉय घोष मीडिया अवार्ड्स – 2022
कार्य अनुभव के विवरण के साथ संक्षिप्त पाठ्यक्रम जीवन लगभग 800-1000 शब्दों का एक प्रस्ताव, जिसमें उस विशेष विषयगत क्षेत्र को रेखांकित किया गया हो, जिसमें आवेदक काम करना चाहता है. प्रस्ताव में अध्ययन की विशिष्ट भौगोलिक स्थिति, कार्यप्रणाली, चयनित विषय की प्रासंगिकता के साथ-साथ इन लेखों से अपेक्षित प्रभाव के बारे में विवरण शामिल होनी चाहिए. साथ ही, इस बात का उल्लेख होनी चाहिए कि देश के विकास से जुड़ी बहस में इसके योगदान किस प्रकार हो सकता है? कृपया आलेख प्रस्तुत करने वाली भाषा भी निर्दिष्ट करें। लेख अंग्रेजी, हिंदी या उर्दू में ही स्वीकार किए जाएंगे

​यूसर्क द्वारा तीन दिवसीय जल विज्ञान प्रशिक्षण प्रारंभ

Submitted by Shivendra on Tue, 08/23/2022 - 17:19
USERC-dvara-tin-divasiy-jal-vigyan-prashikshan-prarambh
Source
यूसर्क
जल विज्ञान प्रशिक्षण कार्यशाला
उत्तराखंड विज्ञान शिक्षा एवं अनुसंधान केंद्र द्वारा आज दिनांक 23.08.22 को तीन दिवसीय जल विज्ञान प्रशिक्षण प्रारंभ किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए यूसर्क की निदेशक प्रो.(डॉ.) अनीता रावत ने अपने संबोधन में कहा कि यूसर्क द्वारा जल के महत्व को देखते हुए विगत वर्ष 2021 को संयुक्त राष्ट्र की विश्व पर्यावरण दिवस की थीम "ईको सिस्टम रेस्टोरेशन" के अंर्तगत आयोजित कार्यक्रम के निष्कर्षों के क्रम में जल विज्ञान विषयक लेक्चर सीरीज एवं जल विज्ञान प्रशिक्षण कार्यक्रमों को प्रारंभ किया गया

28 जुलाई को यूसर्क द्वारा आयोजित जल शिक्षा व्याख्यान श्रृंखला पर भाग लेने के लिए पंजीकरण करायें

Submitted by Shivendra on Mon, 07/25/2022 - 15:34
28-july-ko-ayojit-hone-vale-jal-shiksha-vyakhyan-shrinkhala-par-bhag-lene-ke-liye-panjikaran-karayen
Source
यूसर्क
जल शिक्षा व्याख्यान श्रृंखला
इस दौरान राष्ट्रीय पर्यावरण  इंजीनियरिंग अनुसंधान संस्था के वरिष्ठ वैज्ञानिक और अपशिष्ट जल विभाग विभाग के प्रमुख डॉक्टर रितेश विजय  सस्टेनेबल  वेस्ट वाटर ट्रीटमेंट फॉर लिक्विड वेस्ट मैनेजमेंट (Sustainable Wastewater Treatment for Liquid Waste Management) विषय  पर विशेषज्ञ तौर पर अपनी राय रखेंगे।

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