तालाब ज्ञान-संस्कृति : नींव से शिखर तक

शुष्क शौचालयों की सफाई या सिर पर मैला ढोने की कुप्रथा हालांकि संज्ञेय अपराध है।
इस व्यवस्था को जड़ से खत्म करने के लिए केंद्र व राज्य सरकारें कई वित्तपोषित योजनाऐं चलाती रही हैं, लेकिन यह सामाजिक नासूर यथावत है। इसके निदान हेतु अब तक कम से कम 10 अरब रुपये खर्च हो चुके हैं। इसमें वह धन शामिल नहीं है, जो इन योजनाओं के क्रियान्वयन के लिए पले 'सफेद हाथियों' के मासिक वेतन व सुख-सुविधाओं पर खर्च होता रहा है लेकिन हाथ में झाडू-पंजा व सिर पर टोकरी बरकरार है। मैला ढोने वाले एक तबके की आर्थिक-सामाजिक हैसियत में कोई बदलाव नहीं आया है।
शुष्क शौचालयों की सफाई या सिर पर मैला ढोने की कुप्रथा हालांकि संज्ञेय अपराध है।
इस व्यवस्था को जड़ से खत्म करने के लिए केंद्र व राज्य सरकारें कई वित्तपोषित योजनाऐं चलाती रही हैं, लेकिन यह सामाजिक नासूर यथावत है। इसके निदान हेतु अब तक कम से कम 10 अरब रुपये खर्च हो चुके हैं। इसमें वह धन शामिल नहीं है, जो इन योजनाओं के क्रियान्वयन के लिए पले 'सफेद हाथियों' के मासिक वेतन व सुख-सुविधाओं पर खर्च होता रहा है लेकिन हाथ में झाडू-पंजा व सिर पर टोकरी बरकरार है। मैला ढोने वाले एक तबके की आर्थिक-सामाजिक हैसियत में कोई बदलाव नहीं आया है।
पसंदीदा आलेख