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खासम-खास

Submitted by Editorial Team on Tue, 10/04/2022 - 16:13
कूरम में पुनर्निर्मित समथमन मंदिर तालाब। फोटो - indiawaterportal
परम्परागत तालाबों पर अनुपम मिश्र की किताब ‘आज भी खरे हैं तालाब’, पहली बार, वर्ष 1993 में प्रकाशित हुई थी। इस किताब में अनुपम ने समाज से प्राप्त जानकारी के आधार पर भारत के विभिन्न भागों में बने तालाबों के बारे में व्यापक विवरण प्रस्तुत किया है। अर्थात आज भी खरे हैं तालाब में दर्ज विवरण परम्परागत तालाबों पर समाज की राय है। उनका दृष्टिबोध है। उन विवरणों में समाज की भावनायें, आस्था, मान्यतायें, रीति-रिवाज तथा परम्परागत तालाबों के निर्माण से जुड़े कर्मकाण्ड दर्ज हैं। प्रस्तुति और शैली अनुपम की है।

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Submitted by admin on Thu, 09/02/2010 - 09:38
Source:
विस्फोट.कॉम

उत्तरी बिहार के कुछ इलाकों में आए बाढ़ के बारे में टीवी चैनल पर खबर देखने या फिर किसी सामाचार पत्र में खबर पढ़ कर यह अंदाजा मत लगाइए कि बिहार में इस साल भी खूब बारिश हो रही है। दरअसल बिहार के कुछ इलाकों में आई बाढ़, नेपाल की नदियों से बहकर आया पानी है जिसकी वजह से कुछ क्षेत्र जलमग्न हो गए हैं। लेकिन इस पानी से किसानों का भला नहीं होने वाला है।
Submitted by admin on Tue, 08/31/2010 - 13:29
Source:
गांधी मार्ग, मई-जून 2003
यह कैसी विडम्बना है कि किसी भी राष्ट्र जीवन के स्थूल और नकारात्मक चिह्न दूसरे देश, विशेषकर भारत में जितनी जल्दी दिखाई देने लगते हैं, शायद ही किसी दूसरे देश के जातीय जीवन में उतनी जल्दी दिखाई देते हों? यह बात इसलिए ज्यादा बल देकर रेखांकित करना जरूरी है क्योंकि हमारे राष्ट्रीय जन-जीवन में पर्यावरण के प्रतिगामी और विनाशकारी लक्षण जितनी तेजी से दिखाई पड़ रहे हैं, वैसी प्रवृत्तियां एक समृद्ध पर्यावरणीय चिन्तन वाले देश में पनपना आत्मवंचना का साक्षात प्रमाण है।अपने वर्तमान नगरीय आवास से मात्र 65-70 किलोमीटर दूरी पर स्थित जब-जब अपने गांव सिवान जाता हूं तो पहुंचते ही मुझे वह नाला दिखाई देता है, जिसमें मेरे शैशव और कैशौर्य ने कितने संक्रान्ति कालों में डुबकियां लगाकर देह और मन की तपन शान्त की है। कितनी वर्षा ऋतुओं में तट की वर्जनाओं को तोड़कर मन के उच्छल आवेग को तरंगायित होने का अवसर हाथ लगा है। यह नाला हमारे गांव की जीवन रेखा था।

सुनता रहता था, उस नाले का स्रोत केंद्र कोई अनाम छोटा सा झरना है और देखता रहता था कि उस अनाम झरने से प्रवाहित होने वाली अक्षय और अनन्त जलराशि अपने जनपद के मेरे सबसे बड़े गांव के मनुष्य सहित सभी जीवधारियों और खेतों की प्यास बुझाने वाली संजीवनी धारा है। इस नाले की आद्रता गांव के समूचे कुओं और तालाबों की धमनियों में भी रक्त संचार किए रहती थी। राष्ट्रीय स्वतंत्रता के विकास के पहले चरण अर्थात पांचवें दशक में अचानक गांव में पेयजल टंकी और नलों में उपलब्ध कराया जाने लगा। कुएं अनुपयोगी मानकर कचरों के भण्डार में तब्दील होने लगे और उपेक्षित पड़े तालाब अपना अस्तित्व खोने लगे।

Submitted by admin on Tue, 08/31/2010 - 09:54
Source:
जनसत्ता 29 अगस्त 2010

पानी के हक के लिए चले अभियान में सर्वाधिक चर्चित नाम है। आंदोलनकारी और लेखिका मॉड बार्लो का। कनाडा के सब से बड़े नागरिक संगठन काउंसिल ऑफ कैनेडियंस की अध्यक्ष हैं वे। यह संगठन अहिंसा और सिविल नाफरमानी में विश्वास करता है। दस विश्वविद्यालयों ने उन्हें सामाजिक सक्रियता के लिए मानद डॉक्टरेट से सम्मानित किया है। मुक्त व्यापार विरोधी होने के कारण कैथोलिक बिशप्स कांफ्रेंस से निकाले गए टोनी क्लार्क के साथ ‘वैकल्पिक नोबेल’ कहे जाने वाला ‘राइट लाइवलीहुड’ पुरस्कार भी उन्हें दिया गया है। चाहे बोलीविया के कोचाबांबा शहर की पानी व्यवस्था के खिलाफ चला आंदोलन हो या केरल के प्लाचीमाड़ा के ग्रामीणों का एक

प्रयास

Submitted by Editorial Team on Thu, 12/08/2022 - 13:06
सीतापुर का नैमिषारण्य तीर्थ क्षेत्र, फोटो साभार - उप्र सरकार
श्री नैभिषारण्य धाम तीर्थ परिषद के गठन को प्रदेश मंत्रिमएडल ने स्वीकृति प्रदान की, जिसके अध्यक्ष स्वयं मुख्यमंत्री होंगे। इसके अंतर्गत नैमिषारण्य की होली के अवसर पर चौरासी कोसी 5 दिवसीय परिक्रमा पथ और उस पर स्थापित सम्पूर्ण देश की संह्कृति एवं एकात्मता के वह सभी तीर्थ एवं उनके स्थल केंद्रित हैं। इस सम्पूर्ण नैमिशारण्य क्षेत्र में लोक भारती पिछले 10 वर्ष से कार्य कर रही है। नैमिषाराण्य क्षेत्र के भूगर्भ जल स्रोतो का अध्ययन एवं उनके पुनर्नीवन पर लगातार कार्य चल रहा है। वर्षा नल सरक्षण एवं संम्भरण हेतु तालाबें के पुनर्नीवन अनियान के जवर्गत 119 तालाबों का पृनरुद्धार लोक भारती के प्रयासों से सम्पन्न हुआ है।

नोटिस बोर्ड

Submitted by Shivendra on Tue, 09/06/2022 - 14:16
Source:
चरखा फीचर
'संजॉय घोष मीडिया अवार्ड्स – 2022
कार्य अनुभव के विवरण के साथ संक्षिप्त पाठ्यक्रम जीवन लगभग 800-1000 शब्दों का एक प्रस्ताव, जिसमें उस विशेष विषयगत क्षेत्र को रेखांकित किया गया हो, जिसमें आवेदक काम करना चाहता है. प्रस्ताव में अध्ययन की विशिष्ट भौगोलिक स्थिति, कार्यप्रणाली, चयनित विषय की प्रासंगिकता के साथ-साथ इन लेखों से अपेक्षित प्रभाव के बारे में विवरण शामिल होनी चाहिए. साथ ही, इस बात का उल्लेख होनी चाहिए कि देश के विकास से जुड़ी बहस में इसके योगदान किस प्रकार हो सकता है? कृपया आलेख प्रस्तुत करने वाली भाषा भी निर्दिष्ट करें। लेख अंग्रेजी, हिंदी या उर्दू में ही स्वीकार किए जाएंगे
Submitted by Shivendra on Tue, 08/23/2022 - 17:19
Source:
यूसर्क
जल विज्ञान प्रशिक्षण कार्यशाला
उत्तराखंड विज्ञान शिक्षा एवं अनुसंधान केंद्र द्वारा आज दिनांक 23.08.22 को तीन दिवसीय जल विज्ञान प्रशिक्षण प्रारंभ किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए यूसर्क की निदेशक प्रो.(डॉ.) अनीता रावत ने अपने संबोधन में कहा कि यूसर्क द्वारा जल के महत्व को देखते हुए विगत वर्ष 2021 को संयुक्त राष्ट्र की विश्व पर्यावरण दिवस की थीम "ईको सिस्टम रेस्टोरेशन" के अंर्तगत आयोजित कार्यक्रम के निष्कर्षों के क्रम में जल विज्ञान विषयक लेक्चर सीरीज एवं जल विज्ञान प्रशिक्षण कार्यक्रमों को प्रारंभ किया गया
Submitted by Shivendra on Mon, 07/25/2022 - 15:34
Source:
यूसर्क
जल शिक्षा व्याख्यान श्रृंखला
इस दौरान राष्ट्रीय पर्यावरण  इंजीनियरिंग अनुसंधान संस्था के वरिष्ठ वैज्ञानिक और अपशिष्ट जल विभाग विभाग के प्रमुख डॉक्टर रितेश विजय  सस्टेनेबल  वेस्ट वाटर ट्रीटमेंट फॉर लिक्विड वेस्ट मैनेजमेंट (Sustainable Wastewater Treatment for Liquid Waste Management) विषय  पर विशेषज्ञ तौर पर अपनी राय रखेंगे।

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खासम-खास

तालाब ज्ञान-संस्कृति : नींव से शिखर तक

Submitted by Editorial Team on Tue, 10/04/2022 - 16:13
Author
कृष्ण गोपाल 'व्यास’
talab-gyan-sanskriti-:-ninv-se-shikhar-tak
कूरम में पुनर्निर्मित समथमन मंदिर तालाब। फोटो - indiawaterportal
परम्परागत तालाबों पर अनुपम मिश्र की किताब ‘आज भी खरे हैं तालाब’, पहली बार, वर्ष 1993 में प्रकाशित हुई थी। इस किताब में अनुपम ने समाज से प्राप्त जानकारी के आधार पर भारत के विभिन्न भागों में बने तालाबों के बारे में व्यापक विवरण प्रस्तुत किया है। अर्थात आज भी खरे हैं तालाब में दर्ज विवरण परम्परागत तालाबों पर समाज की राय है। उनका दृष्टिबोध है। उन विवरणों में समाज की भावनायें, आस्था, मान्यतायें, रीति-रिवाज तथा परम्परागत तालाबों के निर्माण से जुड़े कर्मकाण्ड दर्ज हैं। प्रस्तुति और शैली अनुपम की है।

Content

सुखाड़ का शिकार हो गया बिहार

Submitted by admin on Thu, 09/02/2010 - 09:38
Author
पंकज कुमार
Source
विस्फोट.कॉम

उत्तरी बिहार के कुछ इलाकों में आए बाढ़ के बारे में टीवी चैनल पर खबर देखने या फिर किसी सामाचार पत्र में खबर पढ़ कर यह अंदाजा मत लगाइए कि बिहार में इस साल भी खूब बारिश हो रही है। दरअसल बिहार के कुछ इलाकों में आई बाढ़, नेपाल की नदियों से बहकर आया पानी है जिसकी वजह से कुछ क्षेत्र जलमग्न हो गए हैं। लेकिन इस पानी से किसानों का भला नहीं होने वाला है।

मेरा गांव

Submitted by admin on Tue, 08/31/2010 - 13:29
Author
सत्येन्द्र शर्मा
Source
गांधी मार्ग, मई-जून 2003
यह कैसी विडम्बना है कि किसी भी राष्ट्र जीवन के स्थूल और नकारात्मक चिह्न दूसरे देश, विशेषकर भारत में जितनी जल्दी दिखाई देने लगते हैं, शायद ही किसी दूसरे देश के जातीय जीवन में उतनी जल्दी दिखाई देते हों? यह बात इसलिए ज्यादा बल देकर रेखांकित करना जरूरी है क्योंकि हमारे राष्ट्रीय जन-जीवन में पर्यावरण के प्रतिगामी और विनाशकारी लक्षण जितनी तेजी से दिखाई पड़ रहे हैं, वैसी प्रवृत्तियां एक समृद्ध पर्यावरणीय चिन्तन वाले देश में पनपना आत्मवंचना का साक्षात प्रमाण है।अपने वर्तमान नगरीय आवास से मात्र 65-70 किलोमीटर दूरी पर स्थित जब-जब अपने गांव सिवान जाता हूं तो पहुंचते ही मुझे वह नाला दिखाई देता है, जिसमें मेरे शैशव और कैशौर्य ने कितने संक्रान्ति कालों में डुबकियां लगाकर देह और मन की तपन शान्त की है। कितनी वर्षा ऋतुओं में तट की वर्जनाओं को तोड़कर मन के उच्छल आवेग को तरंगायित होने का अवसर हाथ लगा है। यह नाला हमारे गांव की जीवन रेखा था।

सुनता रहता था, उस नाले का स्रोत केंद्र कोई अनाम छोटा सा झरना है और देखता रहता था कि उस अनाम झरने से प्रवाहित होने वाली अक्षय और अनन्त जलराशि अपने जनपद के मेरे सबसे बड़े गांव के मनुष्य सहित सभी जीवधारियों और खेतों की प्यास बुझाने वाली संजीवनी धारा है। इस नाले की आद्रता गांव के समूचे कुओं और तालाबों की धमनियों में भी रक्त संचार किए रहती थी। राष्ट्रीय स्वतंत्रता के विकास के पहले चरण अर्थात पांचवें दशक में अचानक गांव में पेयजल टंकी और नलों में उपलब्ध कराया जाने लगा। कुएं अनुपयोगी मानकर कचरों के भण्डार में तब्दील होने लगे और उपेक्षित पड़े तालाब अपना अस्तित्व खोने लगे।

नाराज हैं कंपनियां : मॉड बार्लो

Submitted by admin on Tue, 08/31/2010 - 09:54
Author
अफलातून
Source
जनसत्ता 29 अगस्त 2010

पानी के हक के लिए चले अभियान में सर्वाधिक चर्चित नाम है। आंदोलनकारी और लेखिका मॉड बार्लो का। कनाडा के सब से बड़े नागरिक संगठन काउंसिल ऑफ कैनेडियंस की अध्यक्ष हैं वे। यह संगठन अहिंसा और सिविल नाफरमानी में विश्वास करता है। दस विश्वविद्यालयों ने उन्हें सामाजिक सक्रियता के लिए मानद डॉक्टरेट से सम्मानित किया है। मुक्त व्यापार विरोधी होने के कारण कैथोलिक बिशप्स कांफ्रेंस से निकाले गए टोनी क्लार्क के साथ ‘वैकल्पिक नोबेल’ कहे जाने वाला ‘राइट लाइवलीहुड’ पुरस्कार भी उन्हें दिया गया है। चाहे बोलीविया के कोचाबांबा शहर की पानी व्यवस्था के खिलाफ चला आंदोलन हो या केरल के प्लाचीमाड़ा के ग्रामीणों का एक

प्रयास

सीतापुर और हरदोई के 36 गांव मिलाकर हो रहा है ‘नैमिषारण्य तीर्थ विकास परिषद’ गठन  

Submitted by Editorial Team on Thu, 12/08/2022 - 13:06
sitapur-aur-hardoi-ke-36-gaon-milaakar-ho-raha-hai-'naimisharany-tirth-vikas-parishad'-gathan
Source
लोकसम्मान पत्रिका, दिसम्बर-2022
सीतापुर का नैमिषारण्य तीर्थ क्षेत्र, फोटो साभार - उप्र सरकार
श्री नैभिषारण्य धाम तीर्थ परिषद के गठन को प्रदेश मंत्रिमएडल ने स्वीकृति प्रदान की, जिसके अध्यक्ष स्वयं मुख्यमंत्री होंगे। इसके अंतर्गत नैमिषारण्य की होली के अवसर पर चौरासी कोसी 5 दिवसीय परिक्रमा पथ और उस पर स्थापित सम्पूर्ण देश की संह्कृति एवं एकात्मता के वह सभी तीर्थ एवं उनके स्थल केंद्रित हैं। इस सम्पूर्ण नैमिशारण्य क्षेत्र में लोक भारती पिछले 10 वर्ष से कार्य कर रही है। नैमिषाराण्य क्षेत्र के भूगर्भ जल स्रोतो का अध्ययन एवं उनके पुनर्नीवन पर लगातार कार्य चल रहा है। वर्षा नल सरक्षण एवं संम्भरण हेतु तालाबें के पुनर्नीवन अनियान के जवर्गत 119 तालाबों का पृनरुद्धार लोक भारती के प्रयासों से सम्पन्न हुआ है।

नोटिस बोर्ड

'संजॉय घोष मीडिया अवार्ड्स – 2022

Submitted by Shivendra on Tue, 09/06/2022 - 14:16
sanjoy-ghosh-media-awards-–-2022
Source
चरखा फीचर
'संजॉय घोष मीडिया अवार्ड्स – 2022
कार्य अनुभव के विवरण के साथ संक्षिप्त पाठ्यक्रम जीवन लगभग 800-1000 शब्दों का एक प्रस्ताव, जिसमें उस विशेष विषयगत क्षेत्र को रेखांकित किया गया हो, जिसमें आवेदक काम करना चाहता है. प्रस्ताव में अध्ययन की विशिष्ट भौगोलिक स्थिति, कार्यप्रणाली, चयनित विषय की प्रासंगिकता के साथ-साथ इन लेखों से अपेक्षित प्रभाव के बारे में विवरण शामिल होनी चाहिए. साथ ही, इस बात का उल्लेख होनी चाहिए कि देश के विकास से जुड़ी बहस में इसके योगदान किस प्रकार हो सकता है? कृपया आलेख प्रस्तुत करने वाली भाषा भी निर्दिष्ट करें। लेख अंग्रेजी, हिंदी या उर्दू में ही स्वीकार किए जाएंगे

​यूसर्क द्वारा तीन दिवसीय जल विज्ञान प्रशिक्षण प्रारंभ

Submitted by Shivendra on Tue, 08/23/2022 - 17:19
USERC-dvara-tin-divasiy-jal-vigyan-prashikshan-prarambh
Source
यूसर्क
जल विज्ञान प्रशिक्षण कार्यशाला
उत्तराखंड विज्ञान शिक्षा एवं अनुसंधान केंद्र द्वारा आज दिनांक 23.08.22 को तीन दिवसीय जल विज्ञान प्रशिक्षण प्रारंभ किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए यूसर्क की निदेशक प्रो.(डॉ.) अनीता रावत ने अपने संबोधन में कहा कि यूसर्क द्वारा जल के महत्व को देखते हुए विगत वर्ष 2021 को संयुक्त राष्ट्र की विश्व पर्यावरण दिवस की थीम "ईको सिस्टम रेस्टोरेशन" के अंर्तगत आयोजित कार्यक्रम के निष्कर्षों के क्रम में जल विज्ञान विषयक लेक्चर सीरीज एवं जल विज्ञान प्रशिक्षण कार्यक्रमों को प्रारंभ किया गया

28 जुलाई को यूसर्क द्वारा आयोजित जल शिक्षा व्याख्यान श्रृंखला पर भाग लेने के लिए पंजीकरण करायें

Submitted by Shivendra on Mon, 07/25/2022 - 15:34
28-july-ko-ayojit-hone-vale-jal-shiksha-vyakhyan-shrinkhala-par-bhag-lene-ke-liye-panjikaran-karayen
Source
यूसर्क
जल शिक्षा व्याख्यान श्रृंखला
इस दौरान राष्ट्रीय पर्यावरण  इंजीनियरिंग अनुसंधान संस्था के वरिष्ठ वैज्ञानिक और अपशिष्ट जल विभाग विभाग के प्रमुख डॉक्टर रितेश विजय  सस्टेनेबल  वेस्ट वाटर ट्रीटमेंट फॉर लिक्विड वेस्ट मैनेजमेंट (Sustainable Wastewater Treatment for Liquid Waste Management) विषय  पर विशेषज्ञ तौर पर अपनी राय रखेंगे।

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