तालाब ज्ञान-संस्कृति : नींव से शिखर तक

आज हर बात की तरह पानी का राजनीति भी चल निकली है। पानी तरल है, इसलिए उसकी राजनीति भी जरूरत से ज्यादा बहने लगी है। देश का ऐसा कोई हिस्सा नहीं है, जिसे प्रकृति उसके लायक पानी न देती हो, लेकिन आज दो घरों, दो गांवों, दो शहरों, दो राज्यों और दो देशों के बीच भी पानी को लेकर एक न एक लड़ाई हर जगह मिलेगी।
तालाबों के पानी के सामान्यतः बहुत साफ न होने के दोष को यदि एक तरफ रख दें तो भी ये कंडी क्षेत्र के गांवों और वहां के पशुओं के लिए पेयजल का प्रमुख स्रोत रहे हैं। अक्सर एक ही तालाब मनुष्यों और पशुओं दोनों के लिए पेयजल के स्रोत का काम करता है।
महाराजा हरि सिंह द्वारा 1931 में स्थापित जम्मू इरोजन कमेटी ने कंडी क्षेत्र की पेयजल समस्या के बारे में अपनी रिपोर्ट में कहा थाः
हिमाचल प्रदेश का स्पीति इलाका ठंडी मरुभूमि है, फिर भी यहां के जीवन का मुख्य आधार खेती है। इसका श्रेय यहां सदियों से चली आ रही सिंचाई की एक सीधी-सादी प्रणाली को है जिससे ग्लेशियरों का पानी खेतों तक लाया जाता है। इस प्रणाली का ही चमत्कार है कि स्पीति की बंजर भूमि में फसलें लहलहाती हैं। लेकिन विकास की अदूरदर्शी नीतियों के कारण सिंचाई की यह अद्भुत प्रणाली और इसे टिकाऊ रखने वाली चेतना विनाश के कगार पर है।
तालाबों के पानी के सामान्यतः बहुत साफ न होने के दोष को यदि एक तरफ रख दें तो भी ये कंडी क्षेत्र के गांवों और वहां के पशुओं के लिए पेयजल का प्रमुख स्रोत रहे हैं। अक्सर एक ही तालाब मनुष्यों और पशुओं दोनों के लिए पेयजल के स्रोत का काम करता है।
महाराजा हरि सिंह द्वारा 1931 में स्थापित जम्मू इरोजन कमेटी ने कंडी क्षेत्र की पेयजल समस्या के बारे में अपनी रिपोर्ट में कहा थाः
हिमाचल प्रदेश का स्पीति इलाका ठंडी मरुभूमि है, फिर भी यहां के जीवन का मुख्य आधार खेती है। इसका श्रेय यहां सदियों से चली आ रही सिंचाई की एक सीधी-सादी प्रणाली को है जिससे ग्लेशियरों का पानी खेतों तक लाया जाता है। इस प्रणाली का ही चमत्कार है कि स्पीति की बंजर भूमि में फसलें लहलहाती हैं। लेकिन विकास की अदूरदर्शी नीतियों के कारण सिंचाई की यह अद्भुत प्रणाली और इसे टिकाऊ रखने वाली चेतना विनाश के कगार पर है।
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