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उत्तर प्रदेश में अच्छे इरादों का बंटाधार कैसे होता है इसकी ताजा मिसाल है महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना। जयप्रकाश त्रिपाठी की रिपोर्ट
सोनभद्र जिले के नगवां ब्लॉक में पड़ने वाले पड़री को सरकारी दस्तावेज नक्सल प्रभावित गांव बताते हैं। लेकिन यहां जाने पर पता चलता है कि गांव पर सरकारी उपेक्षा का प्रभाव भी कम नहीं। जर्जर मकान, कच्ची गलियां और उनमें नंगे बदन दौड़ते बच्चे इसकी गवाही देते हैं। इसी गांव में हमें परमल मिलते हैं। साइकिल पंचर जोड़कर जैसे-तैसे अपना परिवार पालने वाले परमल बताते हैं कि उनके एक बच्चे ने महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) के तहत तब मजदूरी की जब वह पेट में था।
देश के और भी कई
नदी, पहाड़, पर्वत श्रेणी और उसके उत्तुंग शिखरों से तथा इन सबसे ऊपर चमकने वाले तारों से परिचय बढ़ाकर हमें भारत-भक्ति में अपने पूर्वजों के साथ होड़ चलानी चाहिए। हमारे पूर्वजों की साधना के कारण गंगा के समान नदियां, हिमालय के समान पहाड़, जगह-जगह फैले हुए हमारे धर्म क्षेत्र, पीपल या बड़ के समान महावृक्ष, तुलसी के समान पौधे, गाय जैसे जानवर, गरुड़ या मोर के जैसे पक्षी, गोपीचंदन या गेरू के जैसी मिट्टी के प्रकार- सब जिस देश में भक्ति और आदर के विषय बन गये हैं, उस देश में संस्कारों की भावनाओं की समृद्धि को बढ़ाना हमारे जमाने का कर्तव्य है। हम अपने प्रिय-पूज्य देश को साहित्य द्वारा और दूसरे अनेक रचनात्मक कामों से सजाएंगे और नयी पीढ़ी को भारत-भक्ति की दीक्षा देंगे” (काका कालेलकर)
जीवन और मृत्यु दोनों में आर्यों का जीवन नदी के साथ जुड़ा है। उनकी मुख्य नदी तो है गंगा। यह केवल पृथ्वी पर ही नहीं, बल्कि स्वर्ग में भी बहती है और पाताल में भी बहती है। इसीलिए वे गंगा को त्रिपथगा कहते हैं।जो भूमि केवल वर्षा के पानी से ही सींची जाती है
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मनरेगा यानी कुछ भी चलेगा
उत्तर प्रदेश में अच्छे इरादों का बंटाधार कैसे होता है इसकी ताजा मिसाल है महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना। जयप्रकाश त्रिपाठी की रिपोर्ट
सोनभद्र जिले के नगवां ब्लॉक में पड़ने वाले पड़री को सरकारी दस्तावेज नक्सल प्रभावित गांव बताते हैं। लेकिन यहां जाने पर पता चलता है कि गांव पर सरकारी उपेक्षा का प्रभाव भी कम नहीं। जर्जर मकान, कच्ची गलियां और उनमें नंगे बदन दौड़ते बच्चे इसकी गवाही देते हैं। इसी गांव में हमें परमल मिलते हैं। साइकिल पंचर जोड़कर जैसे-तैसे अपना परिवार पालने वाले परमल बताते हैं कि उनके एक बच्चे ने महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) के तहत तब मजदूरी की जब वह पेट में था।
सहज चलना सीखें
देश के और भी कई
गंगे! च यमुने! चैव गोदावरी! सरस्वति! नर्मदे! सिंधु! कावेरि! जलेSस्मिन् सन्निधिं कुरु।।
नदी, पहाड़, पर्वत श्रेणी और उसके उत्तुंग शिखरों से तथा इन सबसे ऊपर चमकने वाले तारों से परिचय बढ़ाकर हमें भारत-भक्ति में अपने पूर्वजों के साथ होड़ चलानी चाहिए। हमारे पूर्वजों की साधना के कारण गंगा के समान नदियां, हिमालय के समान पहाड़, जगह-जगह फैले हुए हमारे धर्म क्षेत्र, पीपल या बड़ के समान महावृक्ष, तुलसी के समान पौधे, गाय जैसे जानवर, गरुड़ या मोर के जैसे पक्षी, गोपीचंदन या गेरू के जैसी मिट्टी के प्रकार- सब जिस देश में भक्ति और आदर के विषय बन गये हैं, उस देश में संस्कारों की भावनाओं की समृद्धि को बढ़ाना हमारे जमाने का कर्तव्य है। हम अपने प्रिय-पूज्य देश को साहित्य द्वारा और दूसरे अनेक रचनात्मक कामों से सजाएंगे और नयी पीढ़ी को भारत-भक्ति की दीक्षा देंगे” (काका कालेलकर)
जीवन और मृत्यु दोनों में आर्यों का जीवन नदी के साथ जुड़ा है। उनकी मुख्य नदी तो है गंगा। यह केवल पृथ्वी पर ही नहीं, बल्कि स्वर्ग में भी बहती है और पाताल में भी बहती है। इसीलिए वे गंगा को त्रिपथगा कहते हैं।जो भूमि केवल वर्षा के पानी से ही सींची जाती है
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सीतापुर और हरदोई के 36 गांव मिलाकर हो रहा है ‘नैमिषारण्य तीर्थ विकास परिषद’ गठन
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'संजॉय घोष मीडिया अवार्ड्स – 2022
यूसर्क द्वारा तीन दिवसीय जल विज्ञान प्रशिक्षण प्रारंभ
28 जुलाई को यूसर्क द्वारा आयोजित जल शिक्षा व्याख्यान श्रृंखला पर भाग लेने के लिए पंजीकरण करायें
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