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- खेजड़ी और ऊंट अगर रेगिस्तान में नहीं होते तो न यहां जानवर रहते, न ही आदमी बसते। दूर-दूर तक सिर्फ बियाबान होता। सूंसाट करती हवाएं चलती।
- आदमी की आंखे दरख्त देखने को तरस जातीं। रेगिस्तान की सरजमी पर खड़े खेजड़ी के पेड़ सचमुच वरदान हैं।
- कभी रेगिस्तान में जाइए तो वहां के खुले मैदानों में तपती लू और प्रचंड ताप में खेजड़ी सीना ताने खड़ी नजर आती है।
दो जून 2010 को भारत का ग्रीन ट्रिब्यूनल क़ानून अस्तित्व में आ गया। 1992 में रियो में हुई ग्लोबल यूनाइटेड नेशंस कॉन्फ्रेंस ऑन एन्वॉयरमेंट एंड डेवलपमेंट के फैसले को स्वीकार करने के बाद से ही देश में इस क़ानून का निर्माण ज़रूरी हो गया था। इसके अलावा योजना आयोग ने भी इसकी संस्तुति की थी। हालांकि ग्रीन ट्रिब्यूनल के गठन को लेकर संसद में कई तरह के सवाल उठाए गए, लेकिन इसकी ज़रूरत के मद्देनज़र आख़िरकार इसे मंजूरी मिल गई। इस क़ानून में नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल नामक एक नए निकाय के गठन का प्रावधान है, जो पर्यावरण से संबंधित सभी मामलों पर नज़र रखेगा। इससे यह स्पष्ट है कि ट्रिब्यूनल के दायरे में देश में लागू पर्यावरण, जल, जंगल, वायु और जैव विविधता के सभी नियम-क़ानून आते हैं। उदाहरण के लिए देखें तो नए क़ानून का एक हिस्सा ऐसा है, जो पूरी तरह जैविक विविधता क़ानून 2002 (बीडी एक्ट, 2002) से संबंधित है। इसके महत्व को समझने की ज़रूरत है। बीडी एक्ट और नवगठित ट्रिब्यूनल पर्यावरण एवं वन मंत्रालय के अंतर्गत काम करेंगे।
मुंबई के समुद्री तट के पास जवाहरलाल नेहरु पोर्ट ट्रस्ट (जेएनपीटी) से करीब 5 (नॉटिकल) समुद्री मील की दूरी पर अरब सागर में 7 अगस्त शनिवार की सुबह 9.30 बजे पनामा के दो मालवाहक जहाज एमएससी चित्रा और एमवी खलिजिया की जोरदार टक्कर हुई इस हादसे में जहाज में सवार 33 क्रू मेंबरों को बचा लिया गया किन्तु इस टक्कर से एमएससी चित्रा के ईंधन टैंक में दरार आ जाने से जहाज (एमएससी चित्रा) डूब रहा है।
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खेजड़ी रेगिस्तान की शान
- खेजड़ी और ऊंट अगर रेगिस्तान में नहीं होते तो न यहां जानवर रहते, न ही आदमी बसते। दूर-दूर तक सिर्फ बियाबान होता। सूंसाट करती हवाएं चलती।
- आदमी की आंखे दरख्त देखने को तरस जातीं। रेगिस्तान की सरजमी पर खड़े खेजड़ी के पेड़ सचमुच वरदान हैं।
- कभी रेगिस्तान में जाइए तो वहां के खुले मैदानों में तपती लू और प्रचंड ताप में खेजड़ी सीना ताने खड़ी नजर आती है।
जैव विविधता क़ानून में बदलाव और ग्रीन ट्रिब्यूनल
दो जून 2010 को भारत का ग्रीन ट्रिब्यूनल क़ानून अस्तित्व में आ गया। 1992 में रियो में हुई ग्लोबल यूनाइटेड नेशंस कॉन्फ्रेंस ऑन एन्वॉयरमेंट एंड डेवलपमेंट के फैसले को स्वीकार करने के बाद से ही देश में इस क़ानून का निर्माण ज़रूरी हो गया था। इसके अलावा योजना आयोग ने भी इसकी संस्तुति की थी। हालांकि ग्रीन ट्रिब्यूनल के गठन को लेकर संसद में कई तरह के सवाल उठाए गए, लेकिन इसकी ज़रूरत के मद्देनज़र आख़िरकार इसे मंजूरी मिल गई। इस क़ानून में नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल नामक एक नए निकाय के गठन का प्रावधान है, जो पर्यावरण से संबंधित सभी मामलों पर नज़र रखेगा। इससे यह स्पष्ट है कि ट्रिब्यूनल के दायरे में देश में लागू पर्यावरण, जल, जंगल, वायु और जैव विविधता के सभी नियम-क़ानून आते हैं। उदाहरण के लिए देखें तो नए क़ानून का एक हिस्सा ऐसा है, जो पूरी तरह जैविक विविधता क़ानून 2002 (बीडी एक्ट, 2002) से संबंधित है। इसके महत्व को समझने की ज़रूरत है। बीडी एक्ट और नवगठित ट्रिब्यूनल पर्यावरण एवं वन मंत्रालय के अंतर्गत काम करेंगे।
मुंबई के पर्यावरण का डूबता जहाज
मुंबई के समुद्री तट के पास जवाहरलाल नेहरु पोर्ट ट्रस्ट (जेएनपीटी) से करीब 5 (नॉटिकल) समुद्री मील की दूरी पर अरब सागर में 7 अगस्त शनिवार की सुबह 9.30 बजे पनामा के दो मालवाहक जहाज एमएससी चित्रा और एमवी खलिजिया की जोरदार टक्कर हुई इस हादसे में जहाज में सवार 33 क्रू मेंबरों को बचा लिया गया किन्तु इस टक्कर से एमएससी चित्रा के ईंधन टैंक में दरार आ जाने से जहाज (एमएससी चित्रा) डूब रहा है।
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सीतापुर और हरदोई के 36 गांव मिलाकर हो रहा है ‘नैमिषारण्य तीर्थ विकास परिषद’ गठन
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'संजॉय घोष मीडिया अवार्ड्स – 2022
यूसर्क द्वारा तीन दिवसीय जल विज्ञान प्रशिक्षण प्रारंभ
28 जुलाई को यूसर्क द्वारा आयोजित जल शिक्षा व्याख्यान श्रृंखला पर भाग लेने के लिए पंजीकरण करायें
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