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जलवायु परिवर्तन के इस दौर में प्रदूषण पर काबू पाकर वापी ने सामूहिक प्रयासों की नई इबारत ही लिख डाली है
जब केन्द्रीय पर्यावरण एवं वन मंत्री जयराम रमेश पिछले महीने दक्षिण गुजरात पहुंचे तो सब हैरत में पड़ गए। इसे दक्षिण एशिया के सर्वाधिक प्रदूषित औद्योगिक शहरों में माना जाता था। उन्होंने रासायनिक और रंगसाजी के कारखानों तथा गुजरात सरकार के प्रदूषण घटाने के बेहतरीन प्रयासों की सराहना कर डाली। और कहा कि इससे दूसरों को भी सीख लेनी चाहिए।
जोबनेर में अंग्रेजी राज के समय ही कृषि की आधुनिक पढ़ाई की शुरूआत हो गई थी। वहां की रियासत के राजा ने, ठिकानेदार ने अपने एक महल को कृषि महाविद्यालय खोलने के लिए दान में दिया था। आजादी के बाद यहां आधुनिक कृषि शिक्षा का विस्तार हुआ। आज इस क्षेत्र से न जाने कितनी तरह के शोध होते हैं। पर किसान के इस कौशल की ओर हमारे नए कृषि पंडितों का अधिकारियों का, किसी का भी ध्यान नहीं जा पाया है।
पिछले साल इन्हीं दिनों की बात है। हम लोग राजस्थान के जोबनेर क्षेत्र से निकल रहे थे। सड़क के दोनों तरफ खेतों में गेहूं कट चुका था। अभी पूले खलियान में नहीं पहुंचे थे। सारा दृश्य वही तो था जो बैसाखी के आसपास गेहूं के खेतों से गुजरते हुए दिखता था।नहीं। सारा दृश्य वैसा नहीं था। यहां खेतों में कुछ नया-सा, कुछ अटपटा-सा दिख रहा था। और जगहों से कुछ ज्यादा व्यवस्थित, कुछ अलग, कुछ विचित्र सुंदरता लिए। हमारी गाड़ी थोड़ी तेज रफ्तार से भाग रही थी। फिर भी जोबनेर के इन खेतों की कोई एक अलग विशेषता हमारी आंखों को ब्रेक-सा लगा रही थी। यहां केवल गेहूं नहीं था। यहां तो कनक यानी सोना बिखरा हुआ था, चारों तरफ। इस सोने के भंडार का आकर्षण, खिंचाव इतना तेज था
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लौट रही महक जिंदगी की
जलवायु परिवर्तन के इस दौर में प्रदूषण पर काबू पाकर वापी ने सामूहिक प्रयासों की नई इबारत ही लिख डाली है
जब केन्द्रीय पर्यावरण एवं वन मंत्री जयराम रमेश पिछले महीने दक्षिण गुजरात पहुंचे तो सब हैरत में पड़ गए। इसे दक्षिण एशिया के सर्वाधिक प्रदूषित औद्योगिक शहरों में माना जाता था। उन्होंने रासायनिक और रंगसाजी के कारखानों तथा गुजरात सरकार के प्रदूषण घटाने के बेहतरीन प्रयासों की सराहना कर डाली। और कहा कि इससे दूसरों को भी सीख लेनी चाहिए।
कटे डंठलों की नमी से जुड़ना
जोबनेर में अंग्रेजी राज के समय ही कृषि की आधुनिक पढ़ाई की शुरूआत हो गई थी। वहां की रियासत के राजा ने, ठिकानेदार ने अपने एक महल को कृषि महाविद्यालय खोलने के लिए दान में दिया था। आजादी के बाद यहां आधुनिक कृषि शिक्षा का विस्तार हुआ। आज इस क्षेत्र से न जाने कितनी तरह के शोध होते हैं। पर किसान के इस कौशल की ओर हमारे नए कृषि पंडितों का अधिकारियों का, किसी का भी ध्यान नहीं जा पाया है।
पिछले साल इन्हीं दिनों की बात है। हम लोग राजस्थान के जोबनेर क्षेत्र से निकल रहे थे। सड़क के दोनों तरफ खेतों में गेहूं कट चुका था। अभी पूले खलियान में नहीं पहुंचे थे। सारा दृश्य वही तो था जो बैसाखी के आसपास गेहूं के खेतों से गुजरते हुए दिखता था।नहीं। सारा दृश्य वैसा नहीं था। यहां खेतों में कुछ नया-सा, कुछ अटपटा-सा दिख रहा था। और जगहों से कुछ ज्यादा व्यवस्थित, कुछ अलग, कुछ विचित्र सुंदरता लिए। हमारी गाड़ी थोड़ी तेज रफ्तार से भाग रही थी। फिर भी जोबनेर के इन खेतों की कोई एक अलग विशेषता हमारी आंखों को ब्रेक-सा लगा रही थी। यहां केवल गेहूं नहीं था। यहां तो कनक यानी सोना बिखरा हुआ था, चारों तरफ। इस सोने के भंडार का आकर्षण, खिंचाव इतना तेज था
प्रकाश में छुपा घुप्प अंधेरा
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सीतापुर और हरदोई के 36 गांव मिलाकर हो रहा है ‘नैमिषारण्य तीर्थ विकास परिषद’ गठन
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नोटिस बोर्ड
'संजॉय घोष मीडिया अवार्ड्स – 2022
यूसर्क द्वारा तीन दिवसीय जल विज्ञान प्रशिक्षण प्रारंभ
28 जुलाई को यूसर्क द्वारा आयोजित जल शिक्षा व्याख्यान श्रृंखला पर भाग लेने के लिए पंजीकरण करायें
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