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छत्तीसगढ़ में जल-संसाधन और प्रबंधन की समृद्ध परम्परा के प्रमाण, तालाबों के साथ विद्यमान हैं। तालाब छत्तीसगढ़ में स्नान, पेयजल और अपासी (आबपाशी या सिंचाई) आवश्यकताओं की प्रत्यक्ष पूर्ति के साथ जन-जीवन और समुदाय के बृहत्तर सांस्कृतिक संबंध के संदर्भयुक्त बिन्दु हैं। अहिमन रानी और रेवा रानी की गाथा तालाब स्नान से आरंभ होती है। नौ लाख ओडिय़ा, नौ लाख ओड़निन के उल्लेख सहित दसमत कइना की गाथा में तालाब खुदता है और फुलबासन की गाथा में मायावी तालाब है। एक लाख मवेशियों का कारवां लेकर चलने वाला लाखा बंजारा और नायकों के स्वामिभक्त कुत्ते का कुकुरदेव मंदिर सहित उनके खुदवाए तालाब, लोक-स्मृति में खपरी, दुर
महाकौशल में पानी के स्रोतों तथा सार्वजनिक हित के निर्माण कार्यों को बनवाने और रख-रखाव करने का अधिकतर काम 12-13वीं से 17-18वीं सदी के बीच वहाँ राज करने वाले गोंड राजाओं के जमाने का है। सन् 1801 के मई महीने में इस इलाके का भ्रमण करने वाले एक यूरोपीय पर्यटक कोलब्रुक ने लिखा है कि ‘इस प्रदेश की समृद्धि के लिए, जिसका पता उसकी राजधानी से चलता है तथा जिसकी पुष्टि उन जिलों से होती है। जिनका हमने भ्रमण किया। मैं इस प्रदेश के राजाओं की सराहना अंतर्राज्यीय वाणिज्य के बिना गोंड राजाओं की छत्रछाया में अनेक व्यक्तियों ने उर्वर भूमि में कृषि व्यवसाय अपनाया तथा उसकी समृद्धि के अमिट चिन्ह आज भी साफ-सुथरे भवनों में,
रीवा जलप्रपातों की मनोरम भूमि है। सच कहा जाए तो समूचा विन्ध्य निर्मल निर्झरणों, सुरम्य जल-प्रपातों और नाना प्रकार की नदियों के बाहु पाशु में आलिंगनबद्ध है। अतीत को अपने मानस पटल में छिपाये धार्मिक, पौराणिक एवं स्वतंत्रता संग्राम के महत्व के यह नयनाभिराम और प्राकृतिक सौन्दर्य के खजाने विन्ध्य की उपत्यकाओं में विद्यमान हैं।
कदाचित देश में रीवा एक ऐसा स्थान है जहाँ एक ही जगह पाँच जलप्रपात हैं। रीवा-पन्ना पठार के उत्तरी छोर पर स्थित चचाई, क्योंटी, पुरवा, बैलोही, बहुती और पाण्डव आदि प्रपातों की स्थिति संयुक्त राष्ट्र अमेरिका की प्रसिद्ध प्रपातपंक्ति नियाग्रा के समान ही महत्वपूर्ण है। उपरोक्त पाँच जलप्रपातों में चार रीवा एवं एक पन्ना जिले में स्थित है। इसके अलावा शहडोल अमरकंटक का ‘कपिल धारा’, छतरपुर केन नदी पर स्थित ‘रनेह जल प्रपात’ टीकमगढ़ में कुण्डेश्वर के निकट जमड़ार नदी पर ‘कुण्डेश्वर जल-प्रपात’ एवं दतिया जिला में स्योढ़ा प्रसिद्ध है।
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धरती की प्यास बुझाते हैं तालाब
छत्तीसगढ़ में जल-संसाधन और प्रबंधन की समृद्ध परम्परा के प्रमाण, तालाबों के साथ विद्यमान हैं। तालाब छत्तीसगढ़ में स्नान, पेयजल और अपासी (आबपाशी या सिंचाई) आवश्यकताओं की प्रत्यक्ष पूर्ति के साथ जन-जीवन और समुदाय के बृहत्तर सांस्कृतिक संबंध के संदर्भयुक्त बिन्दु हैं। अहिमन रानी और रेवा रानी की गाथा तालाब स्नान से आरंभ होती है। नौ लाख ओडिय़ा, नौ लाख ओड़निन के उल्लेख सहित दसमत कइना की गाथा में तालाब खुदता है और फुलबासन की गाथा में मायावी तालाब है। एक लाख मवेशियों का कारवां लेकर चलने वाला लाखा बंजारा और नायकों के स्वामिभक्त कुत्ते का कुकुरदेव मंदिर सहित उनके खुदवाए तालाब, लोक-स्मृति में खपरी, दुर
याद रखें इन जलस्रोतों को
पहले हम कोइतुरों को जानें
महाकौशल में पानी के स्रोतों तथा सार्वजनिक हित के निर्माण कार्यों को बनवाने और रख-रखाव करने का अधिकतर काम 12-13वीं से 17-18वीं सदी के बीच वहाँ राज करने वाले गोंड राजाओं के जमाने का है। सन् 1801 के मई महीने में इस इलाके का भ्रमण करने वाले एक यूरोपीय पर्यटक कोलब्रुक ने लिखा है कि ‘इस प्रदेश की समृद्धि के लिए, जिसका पता उसकी राजधानी से चलता है तथा जिसकी पुष्टि उन जिलों से होती है। जिनका हमने भ्रमण किया। मैं इस प्रदेश के राजाओं की सराहना अंतर्राज्यीय वाणिज्य के बिना गोंड राजाओं की छत्रछाया में अनेक व्यक्तियों ने उर्वर भूमि में कृषि व्यवसाय अपनाया तथा उसकी समृद्धि के अमिट चिन्ह आज भी साफ-सुथरे भवनों में,
विन्ध्य के जल प्रपात
रीवा जलप्रपातों की मनोरम भूमि है। सच कहा जाए तो समूचा विन्ध्य निर्मल निर्झरणों, सुरम्य जल-प्रपातों और नाना प्रकार की नदियों के बाहु पाशु में आलिंगनबद्ध है। अतीत को अपने मानस पटल में छिपाये धार्मिक, पौराणिक एवं स्वतंत्रता संग्राम के महत्व के यह नयनाभिराम और प्राकृतिक सौन्दर्य के खजाने विन्ध्य की उपत्यकाओं में विद्यमान हैं।
कदाचित देश में रीवा एक ऐसा स्थान है जहाँ एक ही जगह पाँच जलप्रपात हैं। रीवा-पन्ना पठार के उत्तरी छोर पर स्थित चचाई, क्योंटी, पुरवा, बैलोही, बहुती और पाण्डव आदि प्रपातों की स्थिति संयुक्त राष्ट्र अमेरिका की प्रसिद्ध प्रपातपंक्ति नियाग्रा के समान ही महत्वपूर्ण है। उपरोक्त पाँच जलप्रपातों में चार रीवा एवं एक पन्ना जिले में स्थित है। इसके अलावा शहडोल अमरकंटक का ‘कपिल धारा’, छतरपुर केन नदी पर स्थित ‘रनेह जल प्रपात’ टीकमगढ़ में कुण्डेश्वर के निकट जमड़ार नदी पर ‘कुण्डेश्वर जल-प्रपात’ एवं दतिया जिला में स्योढ़ा प्रसिद्ध है।
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सीतापुर और हरदोई के 36 गांव मिलाकर हो रहा है ‘नैमिषारण्य तीर्थ विकास परिषद’ गठन
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'संजॉय घोष मीडिया अवार्ड्स – 2022
यूसर्क द्वारा तीन दिवसीय जल विज्ञान प्रशिक्षण प्रारंभ
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