11 दिसम्बर, 2019 को बिहार राज्य के भागलपुर जिले की चम्पा नदी को देखने का अवसर मिला। यह अवसर जुटाया पटना के पत्रकार पंकज मालवीय और जागरण अखबार, भागलपुर के संवाददाता संजय सिंह ने। चम्पा नदी मात्र 28 किलोमीटर लम्बी है। इसका वेदकालीन नाम मालनी है। इसका उदगम एक झरना है। यह नदी गंगा की सहायक है। संजय बताते हैं कि कुछ साल पहले तक चम्पा नदी में मालवाहक जहाज चला करते थे। उन जहाजों के चप्पूओं को चलाने के लिए सामान्यतः 50 मल्लाह लगते थे। मालवाहक जहाज 70 से 80 फुट लम्बे और 30 से 40 फुट चैड़े होते थे। चम्पा के उथले होने से यह सिलसिला खत्म हो गया है।
मेरी चम्पा की यात्रा में अनेक साथी जुटे। उनके पास चम्पा का इतिहास और उसके बदलावों का लेखा-जोखा था। उसके नाले में तब्दील होने की कहानी का दर्द था। वे इसे एक बार फिर अपने मूल रुप में देखना चाहते थे। मेरी चम्पा यात्रा, इस नदी की चिन्ता करने वाले समाज के साथ अपने विचार साझा करने के लिए थी। उनसे बातचीत में मैंने अनुभव किया कि वह समाज चम्पा नदी को बिलकुल ही अलग नजरिए से देखता है। वह उसे लाखों की प्यास बुझाने वाली सदानीरा नदी के रूप में देखता है। उस समाज की मान्यता है कि चम्पा ने सदियों तक उनकी धरती को सिंचित और संस्कृति को समृद्ध किया है। छोटी सी नदी से स्थानीय समाज का यह लगाव मेरे लिए अविस्मरणीय अनुभव था। मैंने संजय से चम्पा नदी को उसके उदगम से लेकर गंगा में मिलने तक के पूरे नदी पथ को दिखाने का आग्रह किया। उद्देश्य था नदी पथ के बदलावों को देखना और समझना। साथ ही उन मानवीय हस्तक्षेपों को समझना जिन्होंने नदी की सेहत और भौतिक स्वरुप को बदला है। इस जानकारी को उपलब्ध कराने के मामले में संजय और आलोक बेहद मददगार सिद्ध हुए।
मैंने चम्पा नदी को उसके उदगम के निकट जाकर देखा। उदगम पर लोग उसे चानन के नाम से जानते हैं। कुछ दूर चलकर बिरमा के पास, वह दो भागों में विभाजित हो जाती है। उन विभाजित धाराओं के नाम हैं मुख्य चानन और अंधरी। मुख्य चानन में प्रवाह है, पर अंधरी लगभग सूख गई है। मुख्य चानन का पानी साफ है। स्वाद अच्छा है। पानी की गुणवत्ता का यह विवरण इंगित करता है कि उदगम पर नदी की काया निरोगी है। स्थानीय समाज और यात्रा के सहभागियों ने बताया कि मुख्य चानन की तली से रेत की निकासी के कारण उसका मार्ग, अंधरी शाखा की तुलना में, गहरा हो गया है। जाहिर है इस कारण मुख्य चानन में प्रवाह है और उसकी अंधरी शाखा, बरसात के बाद, सूख जाती है। अंधरी शाखा का सूखना उन सारे ग्रामों के लिए अभिशाप बन गया है, जो उसके किनारे बसे हैं। समाधान है मुख्य चानन की तली छोटे अवरोध, जो रेत जमाव को बढ़ावा देकर दोनों धाराओं के तल को कुछ एक समान ऊँचाई देकर प्रवाह वितरण को प्रकृति सम्मत बना सकते हैं।
संजय और उनके साथियों ने चानन नदी के अलावा ममोदा, शाहकुण्ड, हाजीपुर, स्किम चेकडेम, वासुदेवपुर, जमुनिया, गोदुआ, टुट्टापुल जैसे अनेक महत्वपूर्ण स्थानों पर ले जाकर मुझे चम्पा नदी के विभिन्न भागों और रुपों का अवलोकन कराया। रेत खनन के परिणाम और नदी मार्ग में हुए बदलावों, खासकर उसके उथले होने पर गंभीर चर्चा की। शाम को जागरण अखबार के कार्यालय में बैठक आयोजित कराई और भागलपुर के प्रबुद्ध समाज से जो बरसों से चम्पा नदी की समस्याओं पर काम कर रहे हैं, से मेरी चर्चा कराई। उन लोगों ने मुझे चम्पा की समस्याओं को वैज्ञानिक नजरिए से समझने में सहायता दी।
चम्पा, गंगा कछार की नदी है। इस नदी ने बहुत कम ढ़ाल वाले इलाके में अपना रास्ता बनाया है। उल्लेखनीय है कि मंद ढ़ाल के कारण उसके प्रवाह की गति बेहद कम है। इस कारण उसके प्रवाह की कटाव क्षमता कम है। इस कारण पानी फैलकर बहता है और पाट चैड़ा है। इन्ही कारणों से उसकी प्रवृत्ति अवरोधों को हटाने के स्थान पर खुद बंटकर आगे बढ़ने की है। इसी प्रवृत्ति के कारण वह अनेक शाखाओं और उप-शाखाओं में विभाजित होकर बहती है। इन्हीं शाखाओं और उप-शाखाओं को समाज ने अलग-अलग जगह अलग- अलग नाम दिए हैं। हकीकत में वह एक ही नदी है। सुझाव है कि उसके सुधार या पुनर्जीवन को टुकड़ों में नहीं अपितु समग्रता में समझकर करना होगा। इसके लिए आवश्यक है कि लोग इस पूरे नदी-तंत्र को एक मानकर उसके अलग-अलग भागों की समस्याओं की पहचान करें और फिर फैसला करें। फैसला कुदरत के नियमों को ध्यान में रखकर उस नदी के चरित्र के अनुरूप होना चाहिए।
चम्पा के कैचमेंट का मौसम चट्टानों के अपक्षय (Weathering) और मिट्टी के निर्माण और उसकी गति के लिए जिम्मेदार है। बरसात की जिम्मेदारी उसे बहाकर लाने की है। उसे गंगा के मार्फत समुद्र में पहुँचाने की है। इसलिए रेत का खनन यदि पर्यावरण और नदी विज्ञान के नियमों की पालना कर किया जाता है तो वह अवांछनीय नहीं है। सुझाव है कि नदी से रेत की केवल सूखी परत ही निकालना चाहिए। गीली परत निकालने से नदी का पानी बाहर आकर जल्दी बह जाता है और नदी की प्रवाहजनित अविरलता घटने लगती है। परिणाम-धीरे-धीरे नदी सूखने लगती है। इसी प्रकार, गीली रेत निकालने से जलीय जीव-जन्तुओं के जीवन पर संकट आता है। उनकी पानी को साफ रखने भूमिका को ग्रहण लगता है। सुझाव है, चम्पा का जाग्रत समाज इन बिन्दुओं की निगरानी करे और चम्पा को जिलाने में अपनी प्रमाणिकता सिद्ध करे।
चम्पा के उथले होने का प्रथम दृष्टया कारण उसकी तली में रेत का जमाव है। यह जमाव पिछले सालों की देन प्रतीत होता है। इसका एक संभावित कारण गंगा के तल की बढ़ती ऊँचाई भी हो सकता है। सभी जानते हैं कि गंगा के तल की बढ़ती ऊँचाई का कारण फरक्का बैराज है। इस बिन्दु पर अध्ययन होना चाहिए ताकि दूध का दूध और पानी का पानी किया जा सके। यदि असली कारण बैराज है, तो उसके रहते चम्पा की गहराई का बहाल होना संभव नहीं है। गंगा कछार में भी भूजल के अतिदोहन का कुप्रभाव नजर आने लगा है। भागलपुर या चम्पा का कछार भी उससे प्रभावित है। इस समस्या का समाधान समूचे एक्वीफर का समानुपातिक भूजल रीचार्ज है। यह स्थानीय नहीं अपितु क्षेत्रीय समस्या है। इसलिए उसका समाधान भी क्षेत्रीय है। उल्लेखनीय है कि गंगा के कछार का निर्माण बालु, सिल्ट और बजरी द्वारा हुआ है जो अलग-अलग गहराई पर विभिन्न मोटाई में उपलब्ध हैं। उन्हें पहचानकर भूजल रीचार्ज का कार्यक्रम चलाया जा सकता है। सौभाग्य से बिहार सरकार भी इस काम के लिए संकल्पित है। अतः उचित तकनीकी इनपुट देकर राज और समाज के सहयोग से उसे हासिल किया जा सकता है। अर्थात चम्पा में कतिपय सुधार संभव हैं।
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