केप टाउन का सन्देश

Submitted by RuralWater on Thu, 03/22/2018 - 14:32


जल संकट की चपेट में केप टाउनजल संकट की चपेट में केप टाउनदक्षिण अफ्रीका का पश्चिमी केप राज्य, सन 2015 से सूखे की चपेट में है। सूखे का सर्वाधिक त्रास लगभग 45 लाख की आबादी वाला नगर केप टाउन भोग रहा है। नगर को पानी की पूर्ति करने वाले निकटस्थ छः बड़े बाँधों में पानी की गम्भीर कमी है।

पानी की कमी को पूरा करने की असमर्थता और विकल्पहीनता के कारण नगर की मेयर पेट्रिका डी लिली (Patricia de Lille) ने 14 अप्रैल 2018 के बाद से नगरवासियों को जल प्रदाय करने में असमर्थता व्यक्त की है। यह सम्भवतः दुनिया का पहला प्रकरण है जिसमें नगर की सरकार, अपने सामाजिक दायित्वों से पीछे हट रही है।

दक्षिण अफ्रीका के केप राज्य की जलवायु भूमध्यसागरीय है। भूमध्यसागरीय जलवायु होने के कारण इस राज्य में ठंड की ऋतु में बरसात होती है। अधिकतम बरसात जून माह में तथा न्यूनतम बरसात फरवरी माह में होती है। गर्मी का मौसम आमतौर पर सूखा तथा गर्म होता है। दक्षिण अफ्रीका की औसत बरसात 464 मिलीमीटर है वहीं केप टाउन की औसत बरसात 788 मिलीमीटर है।

केप टाउन में फरवरी में लगभग 15 मिलीमीटर और जून में औसतन 140 मिलीमीटर पानी बरसता है। केप टाउन को पानी उपलब्ध कराने वाले बाँध मई से अगस्त (शीत ऋतु) में भरते हैं। खेती और नगरीय आवश्यकताओं को पूरा करने के कारण दिसम्बर से फरवरी के बीच बाँधों का जलस्तर घटता है।

सन 1995 में केप टाउन की कुल आबादी 24 लाख थी। यह आबादी सन 2018 में बढ़कर 43 लाख हो गई। पिछले 23 सालों में आबादी में हुई वृद्धि लगभग 79 प्रतिशत है वही नगर की जल क्षमता में की गई वृद्धि मात्र 15 प्रतिशत है। यह वृद्धि समानुपातिक नहीं है। सन 2016-17 के आँकड़ों के अनुसार भवनों, आवासीय कॉलोनियों तथा बहुमंजिला फ्लैटों को 64.5 प्रतिशत तथा अन्य बसाहटों को 3.6 प्रतिशत पानी उपलब्ध कराया जाता था।

उल्लेखनीय है कि 1950 से 1999 के बीच पानी की माँग और आबादी की वृद्धि जो लगभग चार प्रतिशत की दर से बढ़ रही थी, में तालमेल था। सन 1999 में पानी की अधिकतम सालाना माँग 33.5 करोड़ लीटर थी। सन 2000-01 और 2003-04 की शीत ऋतु में कम बरसात हुई। जिसके कारण पानी की सप्लाई में कुछ कटौती की गई। सन 2007 में अगले दस साल के लिये जल प्रबन्ध रणनीति लागू की गई।

सन 2009 में बर्ग नदी बाँध (Berg River Dam) को पूरा कर जल प्रदाय करने वाले बाँधों की सकल जल भण्डारण क्षमता में 17 प्रतिशत की वृद्धि की गई जो 76.8 से बढ़कर 89.8 करोड़ घनमीटर हो गई। पानी की बढ़ती माँग पर नजर रखने वाले विभाग का मानना था कि जल संरक्षण और माँग प्रबन्ध को अपनाने के बावजूद सन 2013 आते-आते पानी की माँग इतनी बढ़ जाएगी कि मौजूदा जल संचय कम पड़ेगा। विभाग का मानना था कि जल संरक्षण और माँग प्रबन्ध के बावजूद सन 2019 में जलापूर्ति के लिये नए जलस्रोतों की आवश्यकता होगी। इस सुझाव की अनदेखी हुई। दूसरे बाँधों को जल प्राप्ति का एकमात्र विकल्प माना गया।

केप टाउन की मेयर ने सबसे पहले, पानी की कमी से निपटने के लिये उपयोग में मितव्ययता लागू की। उस कारण, सबसे पहले लोगों ने 105 लीटर प्रतिदिन में अपनी आवश्यकताओं को पूरा किया। जब कमी बढ़ती दिखी तो माँग को 60 लीटर प्रतिदिन पर सीमित किया। जब हालात काबू के बाहर हुए तो केप टाउन की मेयर ने 12 अप्रैल से 9 जुलाई के बीच पानी की सप्लाई रोकने की घोषणा कर दी।

केप टाउन में पानी की उपलब्धता बढ़ाने के लिये नलकूपों की बोरिंग का सहारा लिया जा रहा है। इकोलॉजिस्टों की माँग है कि बोरिंग और पाइप लाइन का काम करते समय जैवविविधता का ध्यान रखा जाये। इकोलॉजिस्ट याद दिलाते हैं कि केप टाउन का केप - फ्लोरल क्षेत्र, यूनेस्को की वैश्विक हेरीटेज साइट है। यह साइट एक खास पौधे (Erica bakeri) और दलदली जमीन को बचाने के लिये यूनेस्को ने घोषित की है। वे आगे कहते हैं कि केप टाउन की जमीन के नीचे स्थित एक्वीफरों में कम होता पानी अन्ततः केप - फ्लोरल क्षेत्र को नुकसान पहुँचाएगा।

11 फरवरी 2018 की बीबीसी की रिपोर्ट बताती है कि केप टाउन के अलावा दुनिया में 11 और शहर हैं जो आने वाले सालों में पेयजल संकट की अकल्पनीय जद में आएँगे। उन नगरों का संकट केप टाउन जैसा होगा। ये शहर हैं साओ पालो (Sao Paulo), ब्राजील, बंगलुरु (भारत), बीजिंग, कैरो, जकार्ता, मास्को, इस्तांबूल, मेक्सिको नगर, लंदन, टोकियो और मियामी।

भारत का बंगलुरु दूसरे नम्बर पर है। बीबीसी की रिपोर्ट बताती है कि बंगलुरु का 50 प्रतिशत पानी पुरानी पड़ चुकी खस्ताहाल पाइप लाइनों के कारण बर्बाद होता है। नगर की किसी भी झील का पानी पीने योग्य नहीं है। लगभग 85 प्रतिशत झीलों के पानी को केवल सिंचाई या औद्योगिक इकाइयों को ठंडा करने में ही प्रयुक्त किया जा सकता है। कहानी, किसी हद तक, अनदेखी की प्रतीत होती है।

केप टाउन में सन 2013 और 2014 में अच्छी बरसात हुई। सन 2015 में अलनीनों और जलवायु बदलाव के प्रभाव से सूखा पड़ा। केप टाउन नगर को पानी देने वाले जलाशयों का जल स्तर सन 2015 में कम होकर 50.1 प्रतिशत पर आ गया। सन 2017 के मई माह में सूखे को सबसे खराब सूखे के रूप में घोषित किया गया। जून 2017 में लगभग 50 मिलीमीटर पानी बरसा पर उससे सूखा खत्म नहीं हुआ। गौरतलब है कि सन 2017 की बरसात पिछले 94 साल की सबसे कम बरसात थी।

केप टाउन को पेयजल प्रदान करने वाले छः प्रमुख बाँधों का जल भण्डारण घटकर केवल 23 प्रतिशत रह गया है। यह 12 मार्च 2018 की स्थिति है। अक्टूबर 2017 तक हुई बरसात के आधार पर केप टाउन ने आपातकालीन जल व्यवस्था लागू की। खारे पानी को पीने योग्य बनाने वाली कम्पनियों ने उनकी नहीं सुनने के कारण, व्यवस्था की आलोचना की। धन उपलब्ध कराने के लिये राज्य और केन्द्रीय व्यवस्था पर दबाव बढ़ने लगा। मौजूदा स्थिति बताती है कि केप टाउन के 43 लाख नागरिकों को 14 अप्रैल 2018 के बाद पानी नहीं मिलेगा।

केप टाउन की कहानी के अनेक सन्देश हैं। उजागर और कम उजागर। पहला सन्देश है कि व्यवस्था अक्सर गलत नीति, उपलब्ध जल के उचित उपयोग की रणनीति, संकेतों और चेतावनियों की अनदेखी, गलत जल प्रबन्ध, गलत अनुमानों तथा गलत प्राथमिकताओं की शिकार होती है। परिणाम - केप टाउन की स्थिति पनपती है। दूसरा संकेत बेहद गम्भीर है। वह संकेत कहता है कि समुचित कानूनों, कानून बनाने के असीमित अधिकारों और प्रावधानों के बावजूद नगरीय निकाय एक स्थिति में पहुँच कर अपनी संवैधानिक जिम्मेदारी को नकार सकता है।

कुदरत की बेरुखी को अच्छी तरह जानने-समझने के बावजूद, उसे जिम्मेदार ठहरा सकता है। अपनी नाकामी को आसानी से छिपा सकता है। दूसरों पर ढोल मढ़ सकता है। यह दूसरा संकेत है। केप टाउन की यह कहानी यदि अन्य नगरों में दोहराई जाती है तो समाज के पास केवल असहायता बचती है। भविष्य नहीं। असहायता के विरुद्ध कारगर लड़ाई ही असली सन्देश है।

 

 

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