मध्य प्रदेश सरकार ने 22 मई 2017 को अभूतपूर्व फैसला लेते हुए नर्मदा नदी से रेत खनन पर पूरी तरह रोक लगा दी है। इस तरह का कठिन किन्तु नदी हित में सही फैसला लेने वाली यह संभवतः देश की पहली सरकार है। उल्लेखनीय है कि मध्य प्रदेश सरकार ने यह कदम नर्मदा सेवा यात्रा के समापन के मात्र सात दिन के भीतर उठाया है। मध्य प्रदेश की शिवराज सरकार ने अपने आदेश में यह भी स्पष्ट किया है कि नर्मदा से रेत की निकासी में मजदूरों अथवा मशीनों का उपयोग वर्जित होगा। फैसले के दूसरे भाग में कहा है कि प्रदेश की अन्य नदियों यथा चम्बल, सिन्ध, ताप्ती इत्यादि से भी रेत खनन में मशीनों का उपयोग वर्जित होगा। फैसले के प्रति प्रतिबद्धता दर्शाते हुए सरकार ने 22 मई 2017 को ही प्रदेश के सभी कलेक्टरों को खनन प्रतिबन्धों के बारे में आवश्यक निर्देश भेज दिए हैं। उल्लेखनीय है कि मानसून के सीजन को ध्यान में रख भोपाल के रेत के कारोबारियों ने पर्याप्त स्टॉक जमा कर लिया है। इस कारण भोपाल के निर्माण कार्य बन्द नहीं होंगे।
मध्य प्रदेश सरकार की संस्था, माईनिंग कार्पोरेशन ने भी तत्काल कदम उठाते हुए नर्मदा नदी के रेत के 90 ठेकेदारों को इस बारे में आवश्यक नोटिस जारी कर दिया है। उल्लेखनीय है कि नर्मदा नदी के किनारे के 10 जिलों में रेत की 102 खदानें हैं। रेत का सबसे अधिक खनन होशंगाबाद, रायसेन, हरदा, सीहोर और देवास में होता है। इन जिलों की खदानें माईनिंग कार्पोरेशन के पास हैं। इसके अलावा अन्य खदानें मण्डला, शिवनी और अलीराजपुर में भी है। ये खदानें कलेक्टरों के नियंत्रण में हैं। सरकार का कहना है कि जिन खदानों के कारण पर्यावरण को नुकसान होता है, बन्द की जायेगी। सरकार पत्थरों से भी रेत बनाने के विकल्प पर विचार कर रही है।
रेत की बिक्री की व्यवस्था के लिये प्रदेश के खनिज मंत्री श्री राजेन्द्र शुक्ल की अध्यक्षता में कमेटी का गठन किया गया है। इस कमेटी में देश आईआईटी खड़गपुर और रुड़की के वैज्ञानिकों को बतौर सदस्य लिया गया है। यह कमेटी खनन के पर्यावरणी प्रभाव का अध्ययन करेगी और अपना प्रतिवेदन देगी। इस प्रतिवेदन के आधार पर नर्मदा में खनन प्रारंभ हो अथवा नहीं, फैसला लिया जायेगा।
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