मध्यप्रदेश में पानी रोको का क्या हो अगला कदम?

Submitted by admin on Thu, 01/21/2010 - 09:26


जलसंकट और सुखे से निजात पाने के लिए पूरे मध्यप्रदेश में सन् 2001 से पानी रोको अभियान संचालित है। वर्ष 2002 में इस अभियान का दूसरा चरण संचालित किया गया। इस अभियान के दोनों चरणों में बरसाती पानी को रोकने के लिये फार्म पौंड, डबरी, डबरा, पुण्डी, कुइया, मिट्टी के छोटे-छोटे बाँध, कन्टूर ट्रेंच, तालाब या रिसन तालाब इत्यादि बनाये गये हैं। जल संग्रह का यह काम सभी जगह शुरु किया गया और समाज तथा जन प्रतिनिधियों को इससे जोड़ने की पहल की गई। जल संरक्षण के जिस काम के अन्तर्गत ‘खेत के पानी को खेत में और गांव के पानी को गांव में’ रोकने की कोशिश की जाती है। मध्यप्रदेश में संचालित पानी रोको अभियान के द्वितीय चरण में सरकार ने जल संरक्षण के काम को पानी की स्थानीय जरूरत से जोड़ा और जरूरत के मुताबिक पानी संचित करने का प्रयास किया। चूंकि प्रदेश के हर इलाके में प्रर्याप्त पानी बरसता है, इसलिये तकनीकी नजरिये से हर इलाके में पानी की मांग के अनुसार पानी का इन्तजाम किया जा सकता है। जल संकट से स्थायी रूप से निपटने के लिये अपनाई इस रणनीति को मौटे तौर पर सारे देश में इस अभियान की चर्चा हुई। मध्यप्रदेश सरकार ने इस काम की बागडोर जिला प्रशासन के हाथ में रखी है और सरकार के विभिन्न विभागों के अमले तथा गैर सरकारी संस्थाओं को इस काम से जोड़ा गया है। इस कार्यक्रम से जनप्रतिनिधियों और समाज को जोड़ने का प्रयास लगातार जारी हैं।

राज्य स्तर पर पानी रोको अभियान की जिम्मेदारी राजीव गांधी वाटरशेड मिशन को सौंपी गई है। इस मिशन ने काम को आगे बढ़ाने के उद्देश्य से प्रदेश के सभी 51086 गाँवों में पानी रोको समितियों का गठन किया है, और सूखे से निपटने की जिम्मेदारी इन समितियों को सौंपी है। इस व्यवस्था के अनुसार 26 जनवरी 2002 से मध्यप्रदेश के लगभग सभी गाँवों में पानी रोको अभियान के द्वित्तीय चरण से सम्बन्धित काम शुरू किये जा चुके हैं। इसके अलावा नाबार्ड ने किसानों को अपने खेतों में फार्म पौंड, डबरी, डबरा, कुण्डी, कुइआं और ग्राउन्ड वाटर रिचार्ज के लिये एक योजना मंजूर की है। इस योजना के मंजूर होने के कारण सार्वजनिक बैंकों से उपभोक्ता कामों के लिए कर्ज मिलने का रास्ता साफ हो गया है। पिछले दो सालों में सूखा राहत, जलग्रहण विकास कार्यक्रम, इऐएस, जेजीएसवाइ, स्टेट फाइनेन्स कमीशन, दसवें एवं ग्यारवें वित्त अयोग और यूनिसेफ की वित्तीय मदद से इस काम को किया गया है। पानी रोको अभियान पर इन मदों से अब तक लगभग 800 करोड़ रुपये खर्च किये जा चुके हैं। इस काम में जनता की हिस्सेदारी लगभग 150 करोड़ रुपये की है।

प्रदेश के अधिकांश इलाकों विशेषकर मालवा और बुन्देलखण्ड में पानी रोको अभियान के दो चरण पूरा होने के उपरान्त भी जलसंकट बरकरार है। इस लिये पानी रोको अभियान के तीसरे चरण को लागू करने की जरूरत है, और इसके तीसरे चरण में निम्न रणनीति अपनाये जाने की जरूरत है-

(1) मध्यप्रदेश की विभिन्न भूवैज्ञानिक परिस्थितियों में जलग्रहण कार्यक्रम के परम्परागत मॉडल के स्थान पर पानी की मांग और उसकी स्व-स्थानपूर्ति पर आधारित मॉडल कर काम करने की जरूरत है।

(2) जल संकट के टिकाऊ हल के लिये सतही और भूजल के संरक्षण और संवर्धन के लिये एकल प्रयासों के स्थान पर माइक्रो स्तर पर समन्वित प्रयास करने होंगे।

(3) माइक्रो स्तर पर ही पानी की सकल मांग और उसकी सकल पूर्ति के आधार पर वर्षाजल का वांछित मात्रा में जमीन के ऊपर और भूवैज्ञानिक परिस्थितियों के अनुसार जमीन के नीचे स्थित एक्वीफरों में संग्रह करना होगा।

(4) वर्षाजल के संरक्षण के लिये जलग्रहण कार्यक्रम की स्व-स्थान जलसंरक्षण की प्रचलित व्यवस्था के स्थान पर मांग और पूर्ति व्यवस्था को रणनीति का आधार बनाना होगा।

(5) पानी रोको अभियान के पिछले दो चरणों के क्षेत्रवार अनुभवों के आधार पर अभियान के तकनीकी पक्ष को परिमार्जित करने तथा परिणाममूलक बनाने की जरूरत है। अभी भी अनेक इलाकों में स्थानीय परिस्थितियों से मेल खाती उचित परिणाम नहीं मिल पा रहे हैं। कानूनी और सामाजिक मुद्दों को जोड़ने की जरूरत है।

(6) पानी रोको अभियान के तीसरे चरण में आम आदमी की जिन्दगी पर असर डालने वाली सभी समस्याओं को ध्यान में रखकर पानी के बंटवारे की नये सिरे से प्लानिंग करनी होगी। यह प्लानिंग गाँव की जरूरत के आधार पर होगी और हर गाँव टोले में जितना भी पानी बरसता है, उसे पेयजल की मांग पूरी करने के बाद अन्य प्राथमिकताओं के अनुसार अन्य जरूरतों को पूरा करने विषयक फैसले करने होंगे। फैसलों में पेयजल के प्रावधान के बाद मछुआरों और भंडारों से रोजी-रोटी कमाने वाले लोगों के लिए पानी का आवंटन तय करना होगा। इसके बाद कृषि उत्पादन के लिये पानी का इन्तजाम होगा और खेती को टिकाऊ बनाने की दिशा में काम करना होगा। पानी के वर्णित इन्तजाम के बाद ही शेष जरूरतों यथा औद्योगिक उपयोग के लिये पानी, नगद फसलों के लिये पानी, बिजली पैदा करने के लिये पानी, नौकायन और मनोरंजन इत्यादि के क्रम में पानी के आंवटन पर फैसला करना होगा और फैसलों को कानूनी जामा पहनाना होगा।

(7) पानी रोको अभियान के तीसरे चरण में पानी के बंटवारे में सामाजिक न्याय और समानता का तत्व जोड़ना होगा। इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिये पानी के प्रबन्ध में समाज को जरूरी अधिकार सौंपने और उनको सौंपे अधिकारों के सम्बन्ध में जरूरी नियम कायदे बनाने होंगे। इसी के साथ सरकार और समाज के बीच बेहतर समझ बनाने और समन्वय के लिये सोच में जरूरी बदलाव लाने के लिये गंभीर प्रयास करने होंगे।

पानी रोकने अभियान के तीसरे चरण का मकसद हर गाँव टोले में बारह महीने पानी के क्षेत्र में आत्मनिर्भरता होना चाहिये। पहले दो चरणों में पानी के संरक्षण और संवर्धन पर ध्यान केन्द्रित किया गया था। अब समय आ गया है जब इस काम के साथ-साथ उसके बंटवारे और प्रबंध से समाज के अधिकार और सामाजिक न्याय को कानूनी आधार प्रदान किया जावे। जलसंकट से निपटने के लिये जल उपयोग की प्राथमिकतायें तय की जावें। इसके लिये उपयुक्त जल-नीति सही दृष्टिबोध और सरकारी मुहकमों के बीच तालमेल और समन्वित प्रयासों को बेहतर बनाना होगा। यह सारा काम माइक्रो स्तर पर करना होगा तभी पानी रोको अभियान का मकसद पूरा होगा।