एचआईएचटी अस्पताल में जांच पड़ताल शुरू हुई तो विष देने के लक्षण दिखाई देने लगे। इसलिए अस्पताल ने स्वामी जी का ब्लड सैंपल दिल्ली के डॉ लाल पैथ लैब भी भेजा। चार मई को जारी लैब रिपोर्ट में साफ कहा गया कि ऑर्गोनोफास्फेट कीटनाशक उनके शरीर में उपस्थित है।
हरिद्वार के संत निगमानंद की मौत सत्याग्रह और उपवास से हुई या उन्हें जहर दिया गया जो उनकी मौत का कारण बना? अब जबकि गंगा के लिए अनशन करने वाले मातृसदन के संत निगमानंद इहलोक से विदा हो गये हैं, इस बात की गंभीरता से जांच किये जाने की जरूरत है कि निगमानंद की हत्या के पीछे कौन लोग हैं। हरिद्वार में दर्ज एफआईआर को आधार मानें तो उत्तराखंड प्रशासन की मिलीभगत से संत निगमानंद को जहर दिया गया जिसके कारण पहले वे कोमा में चले गये बाद में करीब सवा महीने बाद उनकी मौत हो गयी। संत निगमानंद मातृसदन से जुड़े थे और मातृसदन का आश्रम 1997 में हरिद्वार में बना। जब से कनखल में आश्रम बना है यहां के संत क्रमिक रूप से पिछले 12 सालों से लगातार अनशन कर रहे हैं। संत निगमानंद 19 फरवरी 2011 से अनशन पर थे। उनके अनशन के 68वें दिन 27 अप्रैल 2011 को अचानक आश्रम में पुलिस पहुंचती है और संत निगमानंद को जबरदस्ती जिला अस्पताल में भर्ती करा देती है।
यहां यह याद रखिए कि राज्य में कोई भाजपा की सरकार नहीं है बल्कि राष्ट्रवादी पार्टी भाजपा की सरकार और मुख्यमंत्री कोई और नहीं बल्कि गंगाभक्त निशंक हैं। 68 दिनों के अनशन के कारण संत निगमानंद का स्वास्थ्य बहुत गिर गया था लेकिन जब पुलिस उन्हें पकड़कर ले गयी तो वे चैतन्य थे। उन्हें हरिद्वार के स्थानीय अस्पताल में रखा गया। भाजपाई सरकार ने जबरदस्ती उनका अनशन तुड़वा दिया और अगले दो-तीन दिनों तक इलाज के नाम पर उन्हें फोर्स फीडिंग की जाती रही। लेकिन 30 अप्रैल को दोपहर 2-3 बजे के बीच वहां एक नर्स आती है। जिस वक्त वह नर्स आती है स्वामी जी सो रहे थे और उनका सहयोगी मंगनू झा भी विश्राम कर रहा था। वह नर्स आती है और स्वामी जी को एक इंजेक्शन लगाती है। मंगनू के पूछने पर नर्स बताती है वह दवा दे रही है। लेकिन जब नर्स वापस जाने लगती है तो सिरिंज और 'दवा' की शीशी दोनों साथ ले जाती है। मंगनू को उस वक्त यह शक तो हुआ कि उसने सिरिंज और शीशी डस्टबिन में डालने की बजाय साथ ले गयी, लेकिन वे उस वक्त कुछ नहीं बोलते। बाद में 11 मई 2011 को हरिद्वार कोतवाली में लिखवाई गयी एफआईआर में मातृसदन की ओर लिखवाई गयी उसमें इस बात का जिक्र किया गया है कि वह नर्स पहली और आखिरी बार ही वहां नजर आयी थी।
नर्स द्वारा इंजेक्शन दिये जाने के बाद उसी रात से संत निगमानंद की हालत बिगड़ने लगती है। हरिद्वार में दर्ज किये गये एफआईआर में मातृसदन के संत ब्रह्मचारी दयानंद साफ कहते हैं कि '1 मई तक उनकी छटपटाहट बहुत बढ़ गयी और 2 मई को उनकी चेतना जाती रही।' 2 मई को जब आश्रमवासियों ने संत निगमानंद के स्वास्थ्य के बारे में जिला प्रशासन के सीएमएस से जानकारी मांगी तो सीएमएस पी के भटनागर ने कहा कि स्वामी जी नींद में हैं और सब ठीक है लेकिन उसी दिन रूटीन चेकअप के लिए आई एक नर्स ने जब स्वामी जी का ब्लड प्रेशर चेक किया तो वह आवाक रह गयी। वह इतनी घबरा गयी कि पट्टा हाथ में लगा छोड़कर वह वहां से वापस चली गयी। उसी दिन एक अन्य चिकित्सक ने स्वामी जी के स्वास्थ्य की जांच की तो पाया कि वे तो गहरे कोमा में जा चुके हैं। गहरे कोमा में होने के बावजूद स्थानीय जिला प्रशासन ने बिना किसी जीवन रक्षक उपकरण लगाये गाड़ी में भरकर देहरादून स्थित दून अस्पताल रेफर कर दिया। वहां जब स्वामी जी की जांच की गयी तो शुगर लेवल 560 पहुंच चुका था जो कि प्राण घातक है। उस वक्त तक स्वामी जी के मुंह से झाग भी निकलने लगा था। दून अस्पताल ने विषम परिस्थिति देखते हुए उन्हें जौली ग्रांट के एचआईएचटी अस्पताल रेफर कर दिया।
एचआईएचटी अस्पताल में जांच पड़ताल शुरू हुई तो विष देने के लक्षण दिखाई देने लगे। इसलिए अस्पताल ने स्वामी जी का ब्लड सैंपल दिल्ली के डॉ लाल पैथ लैब भी भेजा। चार मई को जारी लैब रिपोर्ट में साफ कहा गया कि ऑर्गोनोफास्फेट कीटनाशक उनके शरीर में उपस्थित है। इससे ऐसा लगता है कि संत निगमानंद को चिकित्सा के दौरान जहर देकर मारने की कोशिश की गई है। अब सवाल यह था कि आखिर कौन था जो संत निगमानंद की जान का दुश्मन बना हुआ था। जैसा कि हरिद्वार में दर्ज एफआईआर में एक स्टोन क्रेशर मालिक पर शक किया गया है। ब्रह्मचारी दयानंद ने हिमालय स्टोन क्रेशर के मालिक ज्ञानेश कुमार अग्रवाल पर शक जाहिर करते हुए साफ कहा है कि उन्हें सीएमएस के साथ मिलकर मार दिया गया। ज्ञानेश कुमार अग्रवाल हरिद्वार का खनन माफिया है और भाजपा का नजदीकी है। स्थानीय लोग बताते हैं कि उसका एक भाई आरएसएस का बड़ा पदाधिकारी है। जाहिर है ज्ञानेश के पैसे की ताकत और राज्य में भाजपा की सरकार ने उसको इतनी हिम्मत दे दी कि उसने स्वामी निगमानंद की हत्या का षड़यंत्र रच दिया।
अब सवाल यह है कि क्या इस हत्याकाण्ड में राज्य प्रशासन भी मिला हुआ है? अगर हरिद्वार का मुख्य जिला चिकित्सक इस हत्याकाण्ड में शामिल है तो निश्चित तौर पर यह शक बढ़ता है कि राज्य सरकार के स्थानीय मंत्री या मुख्यमंत्री इससे अनभिज्ञ नहीं थे। सोमवार को निगमानंद की मृत्यु के बाद जिस तरह से पिछले दो दिनों से उनके पोस्टमार्टम में भी हीला-हवाली की जा रही है और पोस्टमार्टम की बिसरा रिपोर्ट को सार्वजनिक करने से छिपाया जा रहा है उससे यह शक और बढ़ जाता है कि राष्ट्रभक्त पार्टी की सरकार के गंगाभक्त मुख्यमंत्री के मन पर स्टोन क्रेशरों से निकलने वाले पैसे की दुर्गंध ज्यादा हावी है। ऐसे में कोई निगमानंद मार भी दिया जाए तो इस राष्ट्रवादी पार्टी को कोई फर्क नहीं पड़ता।