केन्द्र की भाजपा सरकार एक तरफ गंगा-यमुना और देश की अन्य नदियों को पुनर्जीवित करने का अभियान चला रही है वहीं पर दूसरी तरफ सरकार की कुछ योजनाओं से नदियों के अस्तित्व और जलीय जन्तुओं के जीवन और नदी के पारिस्थितिकी तन्त्र पर बड़ा खतरा बनने वाला है।
केन्द्र सरकार ने ऐसी ही एक महत्वाकांक्षी योजना देश की 101 नदियों को जलमार्ग में तब्दील करने की बनाई है। औद्योगीकरण और शहरों के प्रदूषण ने तो पहले ही देश की नदियों के अस्तित्व पर ग्रहण बन गए हैं।
अब नदियों को माल ढुलाई के लिये जलमार्ग में तब्दील करने की योजना को अमलीजामा पहनाया जा रहा है। यह सब पर्यावरण और नदियों के साफ-सफाई के लिये नहीं किया जा रहा है। बल्कि नदियों से व्यापार की योजना बनाई जा रही है।
केन्द्रीय सड़क परिवहन, राजमार्ग और जहाज़रानी मन्त्री नितिन गडकरी कहते हैं कि, ''उनके मन्त्रालय की पहली प्राथमिकता जलमार्गों का विकास करना है। हमने देश की 101 नदियों को जलमार्गों के तौर पर विकसित करने का लक्ष्य रखा है। जलमार्ग परिवहन का काफी सस्ता तरीका होते हैं। परिवहन का सस्ता जरिया होने के बावजूद देश में अभी जलमार्ग क्षेत्र की सम्भावनाओं का पर्याप्त दोहन नहीं हो सका है। सड़क और रेल परिवहन की तुलना में इसकी लागत कम होने के कारण यह अर्थव्यवस्था को खासी गति प्रदान कर सकता है।''
नदियों के जरिए माल और यात्रियों के परिवहन को अमलीजामा पहनाने के लिये केन्द्र सरकार ने 101 नदियों को राष्ट्रीय जलमार्ग में तब्दील करने की योजना को हरी झण्डी दे दी है। केन्द्रीय कैबिनेट की बैठक में इस सम्बन्ध में कानून बनाने को मंजूरी दे दी गई है।
अभी तक देश में सिर्फ पाँच राष्ट्रीय जलमार्ग हैं। इनमें गंगा नदी पर इलाहाबाद-हल्दिया जल मार्ग (1,620 किलोमीटर), ब्रह्मपुत्र नदी का धुबरी-साडिया जल मार्ग (891 किलोमीटर), वेस्ट कोस्ट केनाल कोट्टापुरम-कोल्लम (205 किलोमीटर), काकीनाडा-पुड्डुचेरी केनाल्स (1,078 किलोमीटर) ब्राह्मणी व महानदी डेल्टा नदी से जुड़ी इस्ट कोस्ट केनाल (588 किलोमीटर) शामिल हैं।
अब देश की बाकी नदियों को जलमार्ग में बदला जा रहा है। इसी के साथ कैबिनेट ने सागरमाला परियोजना के कंसेप्ट और इंस्टीट्यूशनल फ्रेमवर्क को सैद्धान्तिक मंजूरी दी है। इसका लक्ष्य तटीय राज्यों में बन्दरगाह विकास करना है। केन्द्र सरकार की तरफ से मिली सूचना के मुताबिक सड़क परिवहन मन्त्रालय सड़कों पर दबाव कम करने के लिये जलमार्ग क्षेत्र को बढ़ावा देने के लिये प्रतिबद्ध है।
इस क्षेत्र में ढुलाई की लागत महज 50 पैसे प्रति किमी है, जबकि रेल मार्ग पर यह लागत एक रुपए और सड़क मार्ग पर 1.5 रुपए प्रति किमी है। देश में करीब 14,500 किमी लम्बे जलमार्ग निर्मित किया जाएगा। सरकार नदियों को जलमार्ग के रूप में तब्दील करने के साथ ड्राइ व सेटेलाइट पोर्ट स्थापित करने की परियोजनाएँ और प्रधानमन्त्री जलमार्ग योजना लांच करने का निर्णय ले चुकी है।
पिछले महीने गडकरी ने कहा था कि भारत के आयात-निर्यात सम्बन्धी माल की 90 फीसद ढुलाई जहाजों के जरिए होती है लेकिन इसमें घरेलू कार्गो क्षेत्र की हिस्सेदारी महज 10 फीसद है। जलमार्ग बनाने के लिये देश की 101 नदियों की पहचान की जा चुकी है। देश में इसका विस्तार करीब 14,500 किलोमीटर है।
सरकार का दावा है कि यह परिवहन का बेहद सस्ता माध्यम है। सरकार अब तक पाँच नदियों के कुछ हिस्सों को जलमार्ग के तौर पर घोषित कर चुकी है। इनमें तीन परिचालन में हैं। उन्होंने कहा, इस क्षेत्र को प्रोत्साहित करने के लिये कई पहल की जा रही हैं, क्योंकि सड़क और रेल परिवहन के मुकाबले सस्ता होने के बावजूद देश ने अब तक जलमार्ग की सम्भावनाओं का फायदा नहीं उठाया है। जलमार्ग आर्थिक वृद्धि को प्रोत्साहित करने में उल्लेखनीय भूमिका निभा सकता है। ऐसा केन्द्र सरकार मानती है। लेकिन इसके खतरों से वह या तो अंजान है या जान-बूझकर समझना नहीं चाहती।
नदियों को जलमार्ग में बदलने की योजना से हमारे देश की कुछ आर्थिक प्रगति भले ही हो जाए। लेकिन नदियों की जैव विविधता नष्ट हो जाएगी। जल के प्राकृतिक तन्त्र और जलीय जीव, वनस्पतियों पर इसका दूरगामी प्रभाव पड़ेगा। भारतीय गंगा-यमुना और कई अन्य नदियों में व्याप्त प्रदूषण के कारण जलीय जीव संकट में है।
एक शोध के अनुसार गंगा नदी में गांगेय डाल्फिन एक समय काफी संख्या में पाई जाती थी। लेकिन गंगा में प्रदूषण के कारण अब मछलियाँ, घड़ियाल, कछुए, सीप, घोंघे, साँप और मेंढक की कई प्रजातियाँ खत्म होने के कगार पर है। इसी तरह से हर नदी की अपनी विशेषता होती है। जिसके कारण नदी के कछार आदि में कई तरह की वनस्पतियाँ उगती हैं। नदियों के साथ किसी तरह की छेड़छाड़ से जैव विविधता से छेड़छाड़ होगा।
नदियों में स्टीमर, पानी के जहाज आदि के चलने से प्रतिदिन हजारों लीटर पेट्रोलियम तेल का जल में रिसाव होगा। इससे नदी जल प्रदूषित होगा। नदियों का जलमार्ग के रूप में उपयोग करने की परम्परा प्राचीन काल से रही है। बीसवीं सदी से पहले जल परिवहन के लिये आवश्यक बल की प्राप्ति वायु के प्रवाह से प्राप्त की जाती थी।
इसकी दिशा को मस्तूल और पाल से नियन्त्रित किया जाता था। अब इसके लिये इंजनों का उपयोग होता है। बिहार में 19वीं सदी में सोन नहर का निर्माण हुआ। तब इस क्षेत्र के किसान अपने उत्पाद को बाजार तक लाने के लिये इनका उपयोग करते थे। वे रस्सी से खींचकर नौका का संचालन करते थे। धीरे-धीरे परिवहन के अन्य साधन आने के बाद जल परिवहन का उपयोग कम होता गया।
बेशक जल परिवहन में उर्जा की खपत कम होती है। लेकिन यह पर्यावरण के लिये अब अनुकूल नहीं रह गया है। नौपरिवहन की जगह अब मोटरीकृत वाहनों का परिचालन नदियों की आत्मा को मार देगा।
लेखक