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पिपरिया/ होशंगाबाद। कोरोना कोविड 19 दुनिया पर कहर बनकर टूटा और दुनिया को इससे बचने के लिए लॉक डाउन का सहारा लेना पड़ा। जिससे अर्थव्यवस्था बुरी तरह चरमरा गई। लेकिन इस 1 माह से भी ज्यादा लंबे लॉक डाउन का एक सकारात्मक पहलू प्रकृति पर देखने को मिला प्रदेश की जीवनदायिनी माँ नर्मदा का जल 40 साल पहले जैसा शुद्ध हो गया। नर्मदा जी का पानी मिनरल वाटर जैसा शुद्ध हो गया और इसे सीधे पिया जा सकता है। जल विशेषज्ञों और आम जनमानस से हुई चर्चा में पता चला कि ऐसा शुद्ध जल उन्होंने 40 साल पहले देखा था।
कोरोना वायरस संक्रमण से बचाव के लिए लॉकडाउन से उपजी परिस्थितियों के बाद हजारों की संख्या में प्रवासी लोग उत्तराखंड लौट आए हैं। उत्तराखंड पहले से ही बेरोजगारी की विभीषिका से जूझता रहा है। ऐसे में प्रवासी उत्तराखंडी लोगों का लौटना, यहां काम-धंधे में एक नई चुनौती पैदा कर रहा है। कोरोना वायरस से उपजे संकट काल में जहां बाकी रोजगार धंधों की बंदी लोगों की चिंता को भी बढ़ा रहा है। ऐसे में मनरेगा के माध्यम से उत्तराखंड के गांव में बारिश की बूंदों को सहेजने के काम को बढ़ाया जा रहा है। परंपरागत जल संसाधनों को जिंदा करने के लिए चाल-खाल बनाए जा रहे हैं। ताकि लोगों को काम मिल सके। मनरेगा का इस्तेमाल करने के पीछे मकसद यह है कि ताकि लोगों को काम भी मिल सके और पानी के परंपरागत जल संसाधनों चाल-खाल नौले-धारों को जिंदा भी किया जा सके।
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लॉक डाउन में नर्मदा जल की शुद्धता पर चमत्कारी असर
पिपरिया/ होशंगाबाद। कोरोना कोविड 19 दुनिया पर कहर बनकर टूटा और दुनिया को इससे बचने के लिए लॉक डाउन का सहारा लेना पड़ा। जिससे अर्थव्यवस्था बुरी तरह चरमरा गई। लेकिन इस 1 माह से भी ज्यादा लंबे लॉक डाउन का एक सकारात्मक पहलू प्रकृति पर देखने को मिला प्रदेश की जीवनदायिनी माँ नर्मदा का जल 40 साल पहले जैसा शुद्ध हो गया। नर्मदा जी का पानी मिनरल वाटर जैसा शुद्ध हो गया और इसे सीधे पिया जा सकता है। जल विशेषज्ञों और आम जनमानस से हुई चर्चा में पता चला कि ऐसा शुद्ध जल उन्होंने 40 साल पहले देखा था।
नदी प्रदूषण के आईने में महामारी
उत्तराखंड में लाकडाउन में जल संरक्षण के लिए मनरेगा का इस्तेमाल, बन रहे चाल-खाल
कोरोना वायरस संक्रमण से बचाव के लिए लॉकडाउन से उपजी परिस्थितियों के बाद हजारों की संख्या में प्रवासी लोग उत्तराखंड लौट आए हैं। उत्तराखंड पहले से ही बेरोजगारी की विभीषिका से जूझता रहा है। ऐसे में प्रवासी उत्तराखंडी लोगों का लौटना, यहां काम-धंधे में एक नई चुनौती पैदा कर रहा है। कोरोना वायरस से उपजे संकट काल में जहां बाकी रोजगार धंधों की बंदी लोगों की चिंता को भी बढ़ा रहा है। ऐसे में मनरेगा के माध्यम से उत्तराखंड के गांव में बारिश की बूंदों को सहेजने के काम को बढ़ाया जा रहा है। परंपरागत जल संसाधनों को जिंदा करने के लिए चाल-खाल बनाए जा रहे हैं। ताकि लोगों को काम मिल सके। मनरेगा का इस्तेमाल करने के पीछे मकसद यह है कि ताकि लोगों को काम भी मिल सके और पानी के परंपरागत जल संसाधनों चाल-खाल नौले-धारों को जिंदा भी किया जा सके।
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सीतापुर और हरदोई के 36 गांव मिलाकर हो रहा है ‘नैमिषारण्य तीर्थ विकास परिषद’ गठन
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नोटिस बोर्ड
'संजॉय घोष मीडिया अवार्ड्स – 2022
यूसर्क द्वारा तीन दिवसीय जल विज्ञान प्रशिक्षण प्रारंभ
28 जुलाई को यूसर्क द्वारा आयोजित जल शिक्षा व्याख्यान श्रृंखला पर भाग लेने के लिए पंजीकरण करायें
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