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खासम-खास

Submitted by Editorial Team on Tue, 10/04/2022 - 16:13
कूरम में पुनर्निर्मित समथमन मंदिर तालाब। फोटो - indiawaterportal
परम्परागत तालाबों पर अनुपम मिश्र की किताब ‘आज भी खरे हैं तालाब’, पहली बार, वर्ष 1993 में प्रकाशित हुई थी। इस किताब में अनुपम ने समाज से प्राप्त जानकारी के आधार पर भारत के विभिन्न भागों में बने तालाबों के बारे में व्यापक विवरण प्रस्तुत किया है। अर्थात आज भी खरे हैं तालाब में दर्ज विवरण परम्परागत तालाबों पर समाज की राय है। उनका दृष्टिबोध है। उन विवरणों में समाज की भावनायें, आस्था, मान्यतायें, रीति-रिवाज तथा परम्परागत तालाबों के निर्माण से जुड़े कर्मकाण्ड दर्ज हैं। प्रस्तुति और शैली अनुपम की है।

Content

Submitted by Shivendra on Thu, 07/11/2019 - 12:22
Source:
दैनिक जागरण, 7 जुलाई 2019
need to return to old water tradition for water conservation

परम्पराओं की तरफ लौटना ही है पानी की समस्या का हल।

पहले समय में जहां पानी होता था, लोग वहीं बसते थे, लेकिन अब इसके विपरीत, जहां हम बसते हैं वहां पानी लेने जाना चाहते हैं। बहुमंजिली इमारतें इसका बड़ा उदाहरण हैं। प्रकृति में पानी ने सब की व्यवस्था की थी चाहे वह पहाड़ी हो या मैदानी इलाका। पहाड़ों में धारे गांवों को तर सकते थे, तो तालाब मैदानों को। राजस्थान जहां पानी तलहटी में था, वहां और इस तरह की परिस्थितियों में कुओं की व्यवस्था थी। इतना ही नहीं खेती बाड़ी की फसलें भी प्रकृति द्वारा तय थी। जहां पानी नहीं था, वर्षा पोषित फसलों को साधा गया और जहां सतही पानी उपलब्ध था वहां धान गेहूं ने जगह बनाई। आज इसके विपरीत हम खेतों में पानी के लिए पताल पहुंच गए और इसलिए कुंए भी हाथी से निकल गए हैं। यह सब इसलिए हुआ क्योंकि हमने पानी की नई व्यवस्था कायम की, जिसमें वितरण और उपयोग पर ज्यादा जोर था, न कि संरक्षण में।
Submitted by Editorial Team on Thu, 07/11/2019 - 11:56
Source:
बुंदेलखंड कनेक्ट, जून 2019 
mandakini bundelkhand
संकट में है मंदाकिनी नदी। मंदाकिनी नदी जनपद चित्रकूट के नागरिकों के लिए जीवनदायिनी है। इसी मंदाकिनी नदी पर एशिया की सबसे बड़ी पाठा जलकल योजना बन सकी। इसकी विशेषता थी कि कम से कम पूरे चित्रकूट की प्यास बुझा सकती थी, ऐसा अनुमान तत्कालीन विशेषज्ञों ने लगाया था। किंतु वर्तमान की स्थिति ऐसी है कि मंदाकिनी नदी कहीं कम बह रही है, तो कहीं जल स्तर तलहटी तक सीमित है। एक निश्चित भूभाग रामघाट परिक्षेत्र में गहराई तक खूब जल दिख जाता है। किंतु इसके आगे-पीछे मंदाकिनी की सच्चाई बड़ी भयावह हो चुकी है।
Submitted by Shivendra on Wed, 07/10/2019 - 15:18
Source:
दैनिक जागरण, 7 जुलाई 2019
excess use of water in agriculture

अधिकतम दोहन पर आधारित प्रबंधन नहीं है उचित

भारत के पारम्परिक जल प्रबंधन की सबसे बड़ी खुबी है कि यह स्थानीय समझ, सामग्री और कौशल द्वारा संचालित होता रहा है। शासन की भूमिका सिर्फ उपलब्ध कराने की थी। आज फिर से हमें अपनी जड़ों की ओर लौटना होगा। तभी हम सब पानीदार हो सकेंगे। भारत का वर्तमान जलचित्र एक ऐसे आईने की तरह है, जिसमें अतीत का अक्स देखे बगैर भविष्य का सुधार संभव नहीं है। तस्वीर कहती है कि स्वतंत्र भारत में पानी को लेकर खर्च भी खूब हुआ है और ढांचे भी खूब बने हैं। जल संसाधन, सिंचाई, कृषि, ग्रामीण विकास, शहरी विकास से लेकर पंचायतीराज व नगरपालिकाओं तक। जितने अधिक मंत्रालय, संस्थान पानी प्रबंधन में भागीदार हैं, शायद ही किसी और चीेज के इंतजाम में हों। फिर भी नतीजा यह है कि मर्ज बढ़ता गया, ज्यों-ज्यों दवा की।

प्रयास

Submitted by Editorial Team on Thu, 12/08/2022 - 13:06
सीतापुर का नैमिषारण्य तीर्थ क्षेत्र, फोटो साभार - उप्र सरकार
श्री नैभिषारण्य धाम तीर्थ परिषद के गठन को प्रदेश मंत्रिमएडल ने स्वीकृति प्रदान की, जिसके अध्यक्ष स्वयं मुख्यमंत्री होंगे। इसके अंतर्गत नैमिषारण्य की होली के अवसर पर चौरासी कोसी 5 दिवसीय परिक्रमा पथ और उस पर स्थापित सम्पूर्ण देश की संह्कृति एवं एकात्मता के वह सभी तीर्थ एवं उनके स्थल केंद्रित हैं। इस सम्पूर्ण नैमिशारण्य क्षेत्र में लोक भारती पिछले 10 वर्ष से कार्य कर रही है। नैमिषाराण्य क्षेत्र के भूगर्भ जल स्रोतो का अध्ययन एवं उनके पुनर्नीवन पर लगातार कार्य चल रहा है। वर्षा नल सरक्षण एवं संम्भरण हेतु तालाबें के पुनर्नीवन अनियान के जवर्गत 119 तालाबों का पृनरुद्धार लोक भारती के प्रयासों से सम्पन्न हुआ है।

नोटिस बोर्ड

Submitted by Shivendra on Tue, 09/06/2022 - 14:16
Source:
चरखा फीचर
'संजॉय घोष मीडिया अवार्ड्स – 2022
कार्य अनुभव के विवरण के साथ संक्षिप्त पाठ्यक्रम जीवन लगभग 800-1000 शब्दों का एक प्रस्ताव, जिसमें उस विशेष विषयगत क्षेत्र को रेखांकित किया गया हो, जिसमें आवेदक काम करना चाहता है. प्रस्ताव में अध्ययन की विशिष्ट भौगोलिक स्थिति, कार्यप्रणाली, चयनित विषय की प्रासंगिकता के साथ-साथ इन लेखों से अपेक्षित प्रभाव के बारे में विवरण शामिल होनी चाहिए. साथ ही, इस बात का उल्लेख होनी चाहिए कि देश के विकास से जुड़ी बहस में इसके योगदान किस प्रकार हो सकता है? कृपया आलेख प्रस्तुत करने वाली भाषा भी निर्दिष्ट करें। लेख अंग्रेजी, हिंदी या उर्दू में ही स्वीकार किए जाएंगे
Submitted by Shivendra on Tue, 08/23/2022 - 17:19
Source:
यूसर्क
जल विज्ञान प्रशिक्षण कार्यशाला
उत्तराखंड विज्ञान शिक्षा एवं अनुसंधान केंद्र द्वारा आज दिनांक 23.08.22 को तीन दिवसीय जल विज्ञान प्रशिक्षण प्रारंभ किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए यूसर्क की निदेशक प्रो.(डॉ.) अनीता रावत ने अपने संबोधन में कहा कि यूसर्क द्वारा जल के महत्व को देखते हुए विगत वर्ष 2021 को संयुक्त राष्ट्र की विश्व पर्यावरण दिवस की थीम "ईको सिस्टम रेस्टोरेशन" के अंर्तगत आयोजित कार्यक्रम के निष्कर्षों के क्रम में जल विज्ञान विषयक लेक्चर सीरीज एवं जल विज्ञान प्रशिक्षण कार्यक्रमों को प्रारंभ किया गया
Submitted by Shivendra on Mon, 07/25/2022 - 15:34
Source:
यूसर्क
जल शिक्षा व्याख्यान श्रृंखला
इस दौरान राष्ट्रीय पर्यावरण  इंजीनियरिंग अनुसंधान संस्था के वरिष्ठ वैज्ञानिक और अपशिष्ट जल विभाग विभाग के प्रमुख डॉक्टर रितेश विजय  सस्टेनेबल  वेस्ट वाटर ट्रीटमेंट फॉर लिक्विड वेस्ट मैनेजमेंट (Sustainable Wastewater Treatment for Liquid Waste Management) विषय  पर विशेषज्ञ तौर पर अपनी राय रखेंगे।

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खासम-खास

तालाब ज्ञान-संस्कृति : नींव से शिखर तक

Submitted by Editorial Team on Tue, 10/04/2022 - 16:13
Author
कृष्ण गोपाल 'व्यास’
talab-gyan-sanskriti-:-ninv-se-shikhar-tak
कूरम में पुनर्निर्मित समथमन मंदिर तालाब। फोटो - indiawaterportal
परम्परागत तालाबों पर अनुपम मिश्र की किताब ‘आज भी खरे हैं तालाब’, पहली बार, वर्ष 1993 में प्रकाशित हुई थी। इस किताब में अनुपम ने समाज से प्राप्त जानकारी के आधार पर भारत के विभिन्न भागों में बने तालाबों के बारे में व्यापक विवरण प्रस्तुत किया है। अर्थात आज भी खरे हैं तालाब में दर्ज विवरण परम्परागत तालाबों पर समाज की राय है। उनका दृष्टिबोध है। उन विवरणों में समाज की भावनायें, आस्था, मान्यतायें, रीति-रिवाज तथा परम्परागत तालाबों के निर्माण से जुड़े कर्मकाण्ड दर्ज हैं। प्रस्तुति और शैली अनुपम की है।

Content

परम्पराओं की तरफ लौटना ही है पानी की समस्या का हल

Submitted by Shivendra on Thu, 07/11/2019 - 12:22
Source
दैनिक जागरण, 7 जुलाई 2019
need to return to old water tradition for water conservation

परम्पराओं की तरफ लौटना ही है पानी की समस्या का हल।परम्पराओं की तरफ लौटना ही है पानी की समस्या का हल।

पहले समय में जहां पानी होता था, लोग वहीं बसते थे, लेकिन अब इसके विपरीत, जहां हम बसते हैं वहां पानी लेने जाना चाहते हैं। बहुमंजिली इमारतें इसका बड़ा उदाहरण हैं। प्रकृति में पानी ने सब की व्यवस्था की थी चाहे वह पहाड़ी हो या मैदानी इलाका। पहाड़ों में धारे गांवों को तर सकते थे, तो तालाब मैदानों को। राजस्थान जहां पानी तलहटी में था, वहां और इस तरह की परिस्थितियों में कुओं की व्यवस्था थी। इतना ही नहीं खेती बाड़ी की फसलें भी प्रकृति द्वारा तय थी। जहां पानी नहीं था, वर्षा पोषित फसलों को साधा गया और जहां सतही पानी उपलब्ध था वहां धान गेहूं ने जगह बनाई। आज इसके विपरीत हम खेतों में पानी के लिए पताल पहुंच गए और इसलिए कुंए भी हाथी से निकल गए हैं। यह सब इसलिए हुआ क्योंकि हमने पानी की नई व्यवस्था कायम की, जिसमें वितरण और उपयोग पर ज्यादा जोर था, न कि संरक्षण में।

मंदाकिनी के पुनर्जीवन के लिए नागरिक चेतना आवश्यक है

Submitted by Editorial Team on Thu, 07/11/2019 - 11:56
Source
बुंदेलखंड कनेक्ट, जून 2019 
mandakini bundelkhand
संकट में है मंदाकिनी नदी।संकट में है मंदाकिनी नदी। मंदाकिनी नदी जनपद चित्रकूट के नागरिकों के लिए जीवनदायिनी है। इसी मंदाकिनी नदी पर एशिया की सबसे बड़ी पाठा जलकल योजना बन सकी। इसकी विशेषता थी कि कम से कम पूरे चित्रकूट की प्यास बुझा सकती थी, ऐसा अनुमान तत्कालीन विशेषज्ञों ने लगाया था। किंतु वर्तमान की स्थिति ऐसी है कि मंदाकिनी नदी कहीं कम बह रही है, तो कहीं जल स्तर तलहटी तक सीमित है। एक निश्चित भूभाग रामघाट परिक्षेत्र में गहराई तक खूब जल दिख जाता है। किंतु इसके आगे-पीछे मंदाकिनी की सच्चाई बड़ी भयावह हो चुकी है।

अधिकतम दोहन पर आधारित प्रबंधन नहीं है उचित

Submitted by Shivendra on Wed, 07/10/2019 - 15:18
Source
दैनिक जागरण, 7 जुलाई 2019
excess use of water in agriculture

अधिकतम दोहन पर आधारित प्रबंधन नहीं है उचितअधिकतम दोहन पर आधारित प्रबंधन नहीं है उचित

भारत के पारम्परिक जल प्रबंधन की सबसे बड़ी खुबी है कि यह स्थानीय समझ, सामग्री और कौशल द्वारा संचालित होता रहा है। शासन की भूमिका सिर्फ उपलब्ध कराने की थी। आज फिर से हमें अपनी जड़ों की ओर लौटना होगा। तभी हम सब पानीदार हो सकेंगे। भारत का वर्तमान जलचित्र एक ऐसे आईने की तरह है, जिसमें अतीत का अक्स देखे बगैर भविष्य का सुधार संभव नहीं है। तस्वीर कहती है कि स्वतंत्र भारत में पानी को लेकर खर्च भी खूब हुआ है और ढांचे भी खूब बने हैं। जल संसाधन, सिंचाई, कृषि, ग्रामीण विकास, शहरी विकास से लेकर पंचायतीराज व नगरपालिकाओं तक। जितने अधिक मंत्रालय, संस्थान पानी प्रबंधन में भागीदार हैं, शायद ही किसी और चीेज के इंतजाम में हों। फिर भी नतीजा यह है कि मर्ज बढ़ता गया, ज्यों-ज्यों दवा की।

प्रयास

सीतापुर और हरदोई के 36 गांव मिलाकर हो रहा है ‘नैमिषारण्य तीर्थ विकास परिषद’ गठन  

Submitted by Editorial Team on Thu, 12/08/2022 - 13:06
sitapur-aur-hardoi-ke-36-gaon-milaakar-ho-raha-hai-'naimisharany-tirth-vikas-parishad'-gathan
Source
लोकसम्मान पत्रिका, दिसम्बर-2022
सीतापुर का नैमिषारण्य तीर्थ क्षेत्र, फोटो साभार - उप्र सरकार
श्री नैभिषारण्य धाम तीर्थ परिषद के गठन को प्रदेश मंत्रिमएडल ने स्वीकृति प्रदान की, जिसके अध्यक्ष स्वयं मुख्यमंत्री होंगे। इसके अंतर्गत नैमिषारण्य की होली के अवसर पर चौरासी कोसी 5 दिवसीय परिक्रमा पथ और उस पर स्थापित सम्पूर्ण देश की संह्कृति एवं एकात्मता के वह सभी तीर्थ एवं उनके स्थल केंद्रित हैं। इस सम्पूर्ण नैमिशारण्य क्षेत्र में लोक भारती पिछले 10 वर्ष से कार्य कर रही है। नैमिषाराण्य क्षेत्र के भूगर्भ जल स्रोतो का अध्ययन एवं उनके पुनर्नीवन पर लगातार कार्य चल रहा है। वर्षा नल सरक्षण एवं संम्भरण हेतु तालाबें के पुनर्नीवन अनियान के जवर्गत 119 तालाबों का पृनरुद्धार लोक भारती के प्रयासों से सम्पन्न हुआ है।

नोटिस बोर्ड

'संजॉय घोष मीडिया अवार्ड्स – 2022

Submitted by Shivendra on Tue, 09/06/2022 - 14:16
sanjoy-ghosh-media-awards-–-2022
Source
चरखा फीचर
'संजॉय घोष मीडिया अवार्ड्स – 2022
कार्य अनुभव के विवरण के साथ संक्षिप्त पाठ्यक्रम जीवन लगभग 800-1000 शब्दों का एक प्रस्ताव, जिसमें उस विशेष विषयगत क्षेत्र को रेखांकित किया गया हो, जिसमें आवेदक काम करना चाहता है. प्रस्ताव में अध्ययन की विशिष्ट भौगोलिक स्थिति, कार्यप्रणाली, चयनित विषय की प्रासंगिकता के साथ-साथ इन लेखों से अपेक्षित प्रभाव के बारे में विवरण शामिल होनी चाहिए. साथ ही, इस बात का उल्लेख होनी चाहिए कि देश के विकास से जुड़ी बहस में इसके योगदान किस प्रकार हो सकता है? कृपया आलेख प्रस्तुत करने वाली भाषा भी निर्दिष्ट करें। लेख अंग्रेजी, हिंदी या उर्दू में ही स्वीकार किए जाएंगे

​यूसर्क द्वारा तीन दिवसीय जल विज्ञान प्रशिक्षण प्रारंभ

Submitted by Shivendra on Tue, 08/23/2022 - 17:19
USERC-dvara-tin-divasiy-jal-vigyan-prashikshan-prarambh
Source
यूसर्क
जल विज्ञान प्रशिक्षण कार्यशाला
उत्तराखंड विज्ञान शिक्षा एवं अनुसंधान केंद्र द्वारा आज दिनांक 23.08.22 को तीन दिवसीय जल विज्ञान प्रशिक्षण प्रारंभ किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए यूसर्क की निदेशक प्रो.(डॉ.) अनीता रावत ने अपने संबोधन में कहा कि यूसर्क द्वारा जल के महत्व को देखते हुए विगत वर्ष 2021 को संयुक्त राष्ट्र की विश्व पर्यावरण दिवस की थीम "ईको सिस्टम रेस्टोरेशन" के अंर्तगत आयोजित कार्यक्रम के निष्कर्षों के क्रम में जल विज्ञान विषयक लेक्चर सीरीज एवं जल विज्ञान प्रशिक्षण कार्यक्रमों को प्रारंभ किया गया

28 जुलाई को यूसर्क द्वारा आयोजित जल शिक्षा व्याख्यान श्रृंखला पर भाग लेने के लिए पंजीकरण करायें

Submitted by Shivendra on Mon, 07/25/2022 - 15:34
28-july-ko-ayojit-hone-vale-jal-shiksha-vyakhyan-shrinkhala-par-bhag-lene-ke-liye-panjikaran-karayen
Source
यूसर्क
जल शिक्षा व्याख्यान श्रृंखला
इस दौरान राष्ट्रीय पर्यावरण  इंजीनियरिंग अनुसंधान संस्था के वरिष्ठ वैज्ञानिक और अपशिष्ट जल विभाग विभाग के प्रमुख डॉक्टर रितेश विजय  सस्टेनेबल  वेस्ट वाटर ट्रीटमेंट फॉर लिक्विड वेस्ट मैनेजमेंट (Sustainable Wastewater Treatment for Liquid Waste Management) विषय  पर विशेषज्ञ तौर पर अपनी राय रखेंगे।

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