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खासम-खास

Submitted by Editorial Team on Tue, 10/04/2022 - 16:13
कूरम में पुनर्निर्मित समथमन मंदिर तालाब। फोटो - indiawaterportal
परम्परागत तालाबों पर अनुपम मिश्र की किताब ‘आज भी खरे हैं तालाब’, पहली बार, वर्ष 1993 में प्रकाशित हुई थी। इस किताब में अनुपम ने समाज से प्राप्त जानकारी के आधार पर भारत के विभिन्न भागों में बने तालाबों के बारे में व्यापक विवरण प्रस्तुत किया है। अर्थात आज भी खरे हैं तालाब में दर्ज विवरण परम्परागत तालाबों पर समाज की राय है। उनका दृष्टिबोध है। उन विवरणों में समाज की भावनायें, आस्था, मान्यतायें, रीति-रिवाज तथा परम्परागत तालाबों के निर्माण से जुड़े कर्मकाण्ड दर्ज हैं। प्रस्तुति और शैली अनुपम की है।

Content

Submitted by Shivendra on Tue, 07/09/2019 - 10:12
Source:
विज्ञान प्रगति
air pollution caused by human hairs

जलते मानव बाल बिगड़ती हवा।

‘हाड़ जले ज्यों लकड़ी, केस जले ज्यों घास‘, कबीर दास की उदासी का कारण आज फिर उभर कर सामने आ रहा है। मानव के कटे बाल व्यर्थ माने जाते रहे हैं और उन्हें जला दिया जाता है। मगर इधर वैज्ञानिक विश्लेषण पर आधारित रिपोर्ट स्पष्ट करती है कि इन बालों का जलाया जाना गंभीर वायु प्रदूषण का कारण बन रहा है। कुछ व्यवसाय ऐसे भी हैं जहां मानव बालों को जलाया जा रहा है। वैज्ञानिक विश्लेषण से पता चला है कि मानव बालों का जलाया जाना प्रदूषणकारी है, जो मानव ही नहीं अन्य जीवों के लिए भी जानलेवा है। मानव बालों को प्रयोगशाला में जलाने के बाद किए गए विश्लेषण से पता चला है कि मात्र 100 ग्राम बाल जलने पर आसपास के वातावरण में इतनी जहरीली गैस पैदा करते हैं कि दम घुटने लगता है और त्वचा में जलन की हालत बन जाती है।
Submitted by Shivendra on Mon, 07/08/2019 - 13:37
Source:
forest fire in uttarakhand

धधकते जंगल।

उत्तराखंड में हर साल औसतन ढाई हजार हेक्टेअर जंगल जल रहे हैं, गर्मियां शुरू होते ही पहाड ़पर हाहाकार शुरू हो जाता है। हर ओर धुंध ही धुंध। जलते जंगलों के बीच अक्सर सांस लेना तक मुश्किल हो जाता है। पहाड़ों पर जंगल में आग फैलने के साथ ही शुरू होता है आग के कारणों पर बहस का एक अंतहीन सिलसिला। वन विभाग ‘खलनायक’ की भूमिका में नजर आने लगता है, तो दोष स्थानीय ग्रामीणों के सिर भी जाता है । दुर्भाग्यपूर्ण यह है कि असल कारण हर कोई जानता है, मगर उसका उपाय न सरकार करना चाहती है और न महकमा। दरअसल पहाड़ में आग का असल कारण है चीड, जिसकी सूखी पत्तियों के कारण आज पूरा पहाड़ ‘बारूद’ के ढेर पर है। आश्चर्य यह है कि सरकार इसे खत्म करने या रोकने के बजाय उसकी सूखी पत्तियों से कभी बिजली और ईधन बनाने की योजनाएं बनाकर राज्य की आर्थिकी मजबूत करने और बेरोजगारी दूर करने का दावा करती है, तो कभी चीड़ की सूखी पत्तियों से चेकडैम बनाकर भूकटाव रोकने की बात करती है। न जाने क्यों सरकार और उसके सलाहकार यह भूल जाते हैं कि इन योजनाओं से न तो चीड़ के दुष्प्रभावों में ही कमी आएगी और न उसका मूल स्वभाव ही बदलेगा।
Submitted by Editorial Team on Mon, 07/08/2019 - 12:02
Source:
झंकार, दैनिक जागरण, 7 जुलाई 2019
mansoon india
पर्यावरण संकट से मानसून भी बिगड़ने लगा है। एक भारतीय चीज ऐसी है जो गांव-शहर, गरीब-अमीर में बंटे सभी लोगों के बीच फैली है, वह है मानसून। जिसे हम हर वर्ष देखने के लिए बेसब्री से इंतजार करते हैं। तापमान का चढ़ना और मानसून का दस्तक देना, यह हर वर्ष बिना किसी बाधा के होता है। किसान बहुत ही बेसब्री से इसका इंतजार करते हैं क्योंकि उन्हें नई फसल की बुआई के लिए समय पर बारिश चाहिए। शहर के प्रबंधकों को भी मानसून का इंतजार होता है क्योंकि हर वर्ष मानसून की शुरुआत से पहले उनके जलाशय खाली होते हैं और शहर की जलापूर्ति सामान्य से कम होती है।

प्रयास

Submitted by Editorial Team on Thu, 12/08/2022 - 13:06
सीतापुर का नैमिषारण्य तीर्थ क्षेत्र, फोटो साभार - उप्र सरकार
श्री नैभिषारण्य धाम तीर्थ परिषद के गठन को प्रदेश मंत्रिमएडल ने स्वीकृति प्रदान की, जिसके अध्यक्ष स्वयं मुख्यमंत्री होंगे। इसके अंतर्गत नैमिषारण्य की होली के अवसर पर चौरासी कोसी 5 दिवसीय परिक्रमा पथ और उस पर स्थापित सम्पूर्ण देश की संह्कृति एवं एकात्मता के वह सभी तीर्थ एवं उनके स्थल केंद्रित हैं। इस सम्पूर्ण नैमिशारण्य क्षेत्र में लोक भारती पिछले 10 वर्ष से कार्य कर रही है। नैमिषाराण्य क्षेत्र के भूगर्भ जल स्रोतो का अध्ययन एवं उनके पुनर्नीवन पर लगातार कार्य चल रहा है। वर्षा नल सरक्षण एवं संम्भरण हेतु तालाबें के पुनर्नीवन अनियान के जवर्गत 119 तालाबों का पृनरुद्धार लोक भारती के प्रयासों से सम्पन्न हुआ है।

नोटिस बोर्ड

Submitted by Shivendra on Tue, 09/06/2022 - 14:16
Source:
चरखा फीचर
'संजॉय घोष मीडिया अवार्ड्स – 2022
कार्य अनुभव के विवरण के साथ संक्षिप्त पाठ्यक्रम जीवन लगभग 800-1000 शब्दों का एक प्रस्ताव, जिसमें उस विशेष विषयगत क्षेत्र को रेखांकित किया गया हो, जिसमें आवेदक काम करना चाहता है. प्रस्ताव में अध्ययन की विशिष्ट भौगोलिक स्थिति, कार्यप्रणाली, चयनित विषय की प्रासंगिकता के साथ-साथ इन लेखों से अपेक्षित प्रभाव के बारे में विवरण शामिल होनी चाहिए. साथ ही, इस बात का उल्लेख होनी चाहिए कि देश के विकास से जुड़ी बहस में इसके योगदान किस प्रकार हो सकता है? कृपया आलेख प्रस्तुत करने वाली भाषा भी निर्दिष्ट करें। लेख अंग्रेजी, हिंदी या उर्दू में ही स्वीकार किए जाएंगे
Submitted by Shivendra on Tue, 08/23/2022 - 17:19
Source:
यूसर्क
जल विज्ञान प्रशिक्षण कार्यशाला
उत्तराखंड विज्ञान शिक्षा एवं अनुसंधान केंद्र द्वारा आज दिनांक 23.08.22 को तीन दिवसीय जल विज्ञान प्रशिक्षण प्रारंभ किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए यूसर्क की निदेशक प्रो.(डॉ.) अनीता रावत ने अपने संबोधन में कहा कि यूसर्क द्वारा जल के महत्व को देखते हुए विगत वर्ष 2021 को संयुक्त राष्ट्र की विश्व पर्यावरण दिवस की थीम "ईको सिस्टम रेस्टोरेशन" के अंर्तगत आयोजित कार्यक्रम के निष्कर्षों के क्रम में जल विज्ञान विषयक लेक्चर सीरीज एवं जल विज्ञान प्रशिक्षण कार्यक्रमों को प्रारंभ किया गया
Submitted by Shivendra on Mon, 07/25/2022 - 15:34
Source:
यूसर्क
जल शिक्षा व्याख्यान श्रृंखला
इस दौरान राष्ट्रीय पर्यावरण  इंजीनियरिंग अनुसंधान संस्था के वरिष्ठ वैज्ञानिक और अपशिष्ट जल विभाग विभाग के प्रमुख डॉक्टर रितेश विजय  सस्टेनेबल  वेस्ट वाटर ट्रीटमेंट फॉर लिक्विड वेस्ट मैनेजमेंट (Sustainable Wastewater Treatment for Liquid Waste Management) विषय  पर विशेषज्ञ तौर पर अपनी राय रखेंगे।

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खासम-खास

तालाब ज्ञान-संस्कृति : नींव से शिखर तक

Submitted by Editorial Team on Tue, 10/04/2022 - 16:13
Author
कृष्ण गोपाल 'व्यास’
talab-gyan-sanskriti-:-ninv-se-shikhar-tak
कूरम में पुनर्निर्मित समथमन मंदिर तालाब। फोटो - indiawaterportal
परम्परागत तालाबों पर अनुपम मिश्र की किताब ‘आज भी खरे हैं तालाब’, पहली बार, वर्ष 1993 में प्रकाशित हुई थी। इस किताब में अनुपम ने समाज से प्राप्त जानकारी के आधार पर भारत के विभिन्न भागों में बने तालाबों के बारे में व्यापक विवरण प्रस्तुत किया है। अर्थात आज भी खरे हैं तालाब में दर्ज विवरण परम्परागत तालाबों पर समाज की राय है। उनका दृष्टिबोध है। उन विवरणों में समाज की भावनायें, आस्था, मान्यतायें, रीति-रिवाज तथा परम्परागत तालाबों के निर्माण से जुड़े कर्मकाण्ड दर्ज हैं। प्रस्तुति और शैली अनुपम की है।

Content

जलते मानव बाल बिगड़ती हवा

Submitted by Shivendra on Tue, 07/09/2019 - 10:12
Source
विज्ञान प्रगति
air pollution caused by human hairs

जलते मानव बाल बिगड़ती हवा।जलते मानव बाल बिगड़ती हवा।

‘हाड़ जले ज्यों लकड़ी, केस जले ज्यों घास‘, कबीर दास की उदासी का कारण आज फिर उभर कर सामने आ रहा है। मानव के कटे बाल व्यर्थ माने जाते रहे हैं और उन्हें जला दिया जाता है। मगर इधर वैज्ञानिक विश्लेषण पर आधारित रिपोर्ट स्पष्ट करती है कि इन बालों का जलाया जाना गंभीर वायु प्रदूषण का कारण बन रहा है। कुछ व्यवसाय ऐसे भी हैं जहां मानव बालों को जलाया जा रहा है। वैज्ञानिक विश्लेषण से पता चला है कि मानव बालों का जलाया जाना प्रदूषणकारी है, जो मानव ही नहीं अन्य जीवों के लिए भी जानलेवा है। मानव बालों को प्रयोगशाला में जलाने के बाद किए गए विश्लेषण से पता चला है कि मात्र 100 ग्राम बाल जलने पर आसपास के वातावरण में इतनी जहरीली गैस पैदा करते हैं कि दम घुटने लगता है और त्वचा में जलन की हालत बन जाती है।

चीड़ से ‘मोहब्बत’ में झुलसता पहाड़

Submitted by Shivendra on Mon, 07/08/2019 - 13:37
forest fire in uttarakhand

 धधकते जंगल। धधकते जंगल।

उत्तराखंड में हर साल औसतन ढाई हजार हेक्टेअर जंगल जल रहे हैं, गर्मियां शुरू होते ही पहाड ़पर हाहाकार शुरू हो जाता है। हर ओर धुंध ही धुंध। जलते जंगलों के बीच अक्सर सांस लेना तक मुश्किल हो जाता है। पहाड़ों पर जंगल में आग फैलने के साथ ही शुरू होता है आग के कारणों पर बहस का एक अंतहीन सिलसिला। वन विभाग ‘खलनायक’ की भूमिका में नजर आने लगता है, तो दोष स्थानीय ग्रामीणों के सिर भी जाता है । दुर्भाग्यपूर्ण यह है कि असल कारण हर कोई जानता है, मगर उसका उपाय न सरकार करना चाहती है और न महकमा। दरअसल पहाड़ में आग का असल कारण है चीड, जिसकी सूखी पत्तियों के कारण आज पूरा पहाड़ ‘बारूद’ के ढेर पर है। आश्चर्य यह है कि सरकार इसे खत्म करने या रोकने के बजाय उसकी सूखी पत्तियों से कभी बिजली और ईधन बनाने की योजनाएं बनाकर राज्य की आर्थिकी मजबूत करने और बेरोजगारी दूर करने का दावा करती है, तो कभी चीड़ की सूखी पत्तियों से चेकडैम बनाकर भूकटाव रोकने की बात करती है। न जाने क्यों सरकार और उसके सलाहकार यह भूल जाते हैं कि इन योजनाओं से न तो चीड़ के दुष्प्रभावों में ही कमी आएगी और न उसका मूल स्वभाव ही बदलेगा।

क्या है मानसून का अर्थ?

Submitted by Editorial Team on Mon, 07/08/2019 - 12:02
Author
सुनीता नारायण
Source
झंकार, दैनिक जागरण, 7 जुलाई 2019
mansoon india
पर्यावरण संकट से मानसून भी बिगड़ने लगा है।पर्यावरण संकट से मानसून भी बिगड़ने लगा है। एक भारतीय चीज ऐसी है जो गांव-शहर, गरीब-अमीर में बंटे सभी लोगों के बीच फैली है, वह है मानसून। जिसे हम हर वर्ष देखने के लिए बेसब्री से इंतजार करते हैं। तापमान का चढ़ना और मानसून का दस्तक देना, यह हर वर्ष बिना किसी बाधा के होता है। किसान बहुत ही बेसब्री से इसका इंतजार करते हैं क्योंकि उन्हें नई फसल की बुआई के लिए समय पर बारिश चाहिए। शहर के प्रबंधकों को भी मानसून का इंतजार होता है क्योंकि हर वर्ष मानसून की शुरुआत से पहले उनके जलाशय खाली होते हैं और शहर की जलापूर्ति सामान्य से कम होती है।

प्रयास

सीतापुर और हरदोई के 36 गांव मिलाकर हो रहा है ‘नैमिषारण्य तीर्थ विकास परिषद’ गठन  

Submitted by Editorial Team on Thu, 12/08/2022 - 13:06
sitapur-aur-hardoi-ke-36-gaon-milaakar-ho-raha-hai-'naimisharany-tirth-vikas-parishad'-gathan
Source
लोकसम्मान पत्रिका, दिसम्बर-2022
सीतापुर का नैमिषारण्य तीर्थ क्षेत्र, फोटो साभार - उप्र सरकार
श्री नैभिषारण्य धाम तीर्थ परिषद के गठन को प्रदेश मंत्रिमएडल ने स्वीकृति प्रदान की, जिसके अध्यक्ष स्वयं मुख्यमंत्री होंगे। इसके अंतर्गत नैमिषारण्य की होली के अवसर पर चौरासी कोसी 5 दिवसीय परिक्रमा पथ और उस पर स्थापित सम्पूर्ण देश की संह्कृति एवं एकात्मता के वह सभी तीर्थ एवं उनके स्थल केंद्रित हैं। इस सम्पूर्ण नैमिशारण्य क्षेत्र में लोक भारती पिछले 10 वर्ष से कार्य कर रही है। नैमिषाराण्य क्षेत्र के भूगर्भ जल स्रोतो का अध्ययन एवं उनके पुनर्नीवन पर लगातार कार्य चल रहा है। वर्षा नल सरक्षण एवं संम्भरण हेतु तालाबें के पुनर्नीवन अनियान के जवर्गत 119 तालाबों का पृनरुद्धार लोक भारती के प्रयासों से सम्पन्न हुआ है।

नोटिस बोर्ड

'संजॉय घोष मीडिया अवार्ड्स – 2022

Submitted by Shivendra on Tue, 09/06/2022 - 14:16
sanjoy-ghosh-media-awards-–-2022
Source
चरखा फीचर
'संजॉय घोष मीडिया अवार्ड्स – 2022
कार्य अनुभव के विवरण के साथ संक्षिप्त पाठ्यक्रम जीवन लगभग 800-1000 शब्दों का एक प्रस्ताव, जिसमें उस विशेष विषयगत क्षेत्र को रेखांकित किया गया हो, जिसमें आवेदक काम करना चाहता है. प्रस्ताव में अध्ययन की विशिष्ट भौगोलिक स्थिति, कार्यप्रणाली, चयनित विषय की प्रासंगिकता के साथ-साथ इन लेखों से अपेक्षित प्रभाव के बारे में विवरण शामिल होनी चाहिए. साथ ही, इस बात का उल्लेख होनी चाहिए कि देश के विकास से जुड़ी बहस में इसके योगदान किस प्रकार हो सकता है? कृपया आलेख प्रस्तुत करने वाली भाषा भी निर्दिष्ट करें। लेख अंग्रेजी, हिंदी या उर्दू में ही स्वीकार किए जाएंगे

​यूसर्क द्वारा तीन दिवसीय जल विज्ञान प्रशिक्षण प्रारंभ

Submitted by Shivendra on Tue, 08/23/2022 - 17:19
USERC-dvara-tin-divasiy-jal-vigyan-prashikshan-prarambh
Source
यूसर्क
जल विज्ञान प्रशिक्षण कार्यशाला
उत्तराखंड विज्ञान शिक्षा एवं अनुसंधान केंद्र द्वारा आज दिनांक 23.08.22 को तीन दिवसीय जल विज्ञान प्रशिक्षण प्रारंभ किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए यूसर्क की निदेशक प्रो.(डॉ.) अनीता रावत ने अपने संबोधन में कहा कि यूसर्क द्वारा जल के महत्व को देखते हुए विगत वर्ष 2021 को संयुक्त राष्ट्र की विश्व पर्यावरण दिवस की थीम "ईको सिस्टम रेस्टोरेशन" के अंर्तगत आयोजित कार्यक्रम के निष्कर्षों के क्रम में जल विज्ञान विषयक लेक्चर सीरीज एवं जल विज्ञान प्रशिक्षण कार्यक्रमों को प्रारंभ किया गया

28 जुलाई को यूसर्क द्वारा आयोजित जल शिक्षा व्याख्यान श्रृंखला पर भाग लेने के लिए पंजीकरण करायें

Submitted by Shivendra on Mon, 07/25/2022 - 15:34
28-july-ko-ayojit-hone-vale-jal-shiksha-vyakhyan-shrinkhala-par-bhag-lene-ke-liye-panjikaran-karayen
Source
यूसर्क
जल शिक्षा व्याख्यान श्रृंखला
इस दौरान राष्ट्रीय पर्यावरण  इंजीनियरिंग अनुसंधान संस्था के वरिष्ठ वैज्ञानिक और अपशिष्ट जल विभाग विभाग के प्रमुख डॉक्टर रितेश विजय  सस्टेनेबल  वेस्ट वाटर ट्रीटमेंट फॉर लिक्विड वेस्ट मैनेजमेंट (Sustainable Wastewater Treatment for Liquid Waste Management) विषय  पर विशेषज्ञ तौर पर अपनी राय रखेंगे।

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