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कम बरसात के बावजूद चतर सिंह जाम ने परम्परागत जल व्यवस्थाओं को पुनर्जीवित कर जैसलमेर के कई गाँवों को आत्मनिर्भर बनाया है
चतर सिंह जाम“क्या तुम्हें भी आसमान में सफेद और काली पट्टियाँ दिख रही हैं,” चतर सिंह ने मुझसे पूछा। मेरे हाँ कहने पर वह बोले, “यह मोघ है। अभी जहाँ सूरज छिप रहा है वहाँ बादल है। अगर इस तरफ की हवा चले तो यह रात तक यहाँ पहुँच कर बरस सकते हैं। रेगिस्तान में लोग इन्हीं प्राकृतिक चिन्हों पर निर्भर रहते हैं।”
हम रामगढ़ में थे, जैसलमेर से 60 किमी दूर भारत-पाक सीमा की तरफ। इस क्षेत्र की सालाना औसतन बारिश 100 मिमी है और वह भी हर साल नहीं। दस साल में तीन बार सूखे का सामना करना पड़ता है। पर थार रेगिस्तान के इन गाँवों में पानी है, पलायन नहीं। इस उपलब्धि का बहुत बड़ा श्रेय 55 साल के चतर सिंह जी को जाता है। उन्हें लोग उनकी पारिवारिक पदवी ‘जाम साहब’ से भी बुलाते हैं।
अनुपम अब अनुपस्थिति में उपस्थित हैं अपने अमर शब्दों में, अनुभव, कर्म की इबारतों में, पर्यावरण के सकारात्मक सन्देशों में, लोक के अनुभव आलोक में सृष्टि को बचाते प्रतिबद्ध-प्रतिश्रुत। -भारतीय ज्ञानपीठ की विनम्र श्रद्धांजलि!
अनुपम मिश्र सबसे पहले तो आप सबसे माफी माँगता हूँ कि मैं इतने सरस और तरल आयोजन में उपस्थित नहीं हो पा रहा हूँ। देश भर की छोटी-बड़ी नदियों की चिन्ता में आप सब यहाँ है- इसलिये मेरी कोई कमी नहीं खलेगी।
नदियों पर सरकारों का ध्यान गए अब कोई चालीस बरस पूरे हो रहे हैं। इन चालीस वर्षों में इस काम पर खर्च होने वाली राशि भी लगातार बढ़ती गई है और तरह-तरह के कानून भी बनते गए हैं। और अब यह भी कहा जा सकता है कि राशि के साथ-साथ सरकार का उत्साह भी बढ़ा है। पहले के एक दौर में शोध ज्यादा था, अब शोध भी है और श्रद्धा भी।
बिन माँगे वायु मिली, बिन माँगे ही नीर।
मोल न समझा आदमी, यही प्रकृति की पीर।।
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थार के प्रेरणा स्रोत
कम बरसात के बावजूद चतर सिंह जाम ने परम्परागत जल व्यवस्थाओं को पुनर्जीवित कर जैसलमेर के कई गाँवों को आत्मनिर्भर बनाया है
“क्या तुम्हें भी आसमान में सफेद और काली पट्टियाँ दिख रही हैं,” चतर सिंह ने मुझसे पूछा। मेरे हाँ कहने पर वह बोले, “यह मोघ है। अभी जहाँ सूरज छिप रहा है वहाँ बादल है। अगर इस तरफ की हवा चले तो यह रात तक यहाँ पहुँच कर बरस सकते हैं। रेगिस्तान में लोग इन्हीं प्राकृतिक चिन्हों पर निर्भर रहते हैं।”
हम रामगढ़ में थे, जैसलमेर से 60 किमी दूर भारत-पाक सीमा की तरफ। इस क्षेत्र की सालाना औसतन बारिश 100 मिमी है और वह भी हर साल नहीं। दस साल में तीन बार सूखे का सामना करना पड़ता है। पर थार रेगिस्तान के इन गाँवों में पानी है, पलायन नहीं। इस उपलब्धि का बहुत बड़ा श्रेय 55 साल के चतर सिंह जी को जाता है। उन्हें लोग उनकी पारिवारिक पदवी ‘जाम साहब’ से भी बुलाते हैं।
गंगा की सफाई का अर्थ है अपना पुनरुद्धार
अनुपम अब अनुपस्थिति में उपस्थित हैं अपने अमर शब्दों में, अनुभव, कर्म की इबारतों में, पर्यावरण के सकारात्मक सन्देशों में, लोक के अनुभव आलोक में सृष्टि को बचाते प्रतिबद्ध-प्रतिश्रुत। -भारतीय ज्ञानपीठ की विनम्र श्रद्धांजलि!
सबसे पहले तो आप सबसे माफी माँगता हूँ कि मैं इतने सरस और तरल आयोजन में उपस्थित नहीं हो पा रहा हूँ। देश भर की छोटी-बड़ी नदियों की चिन्ता में आप सब यहाँ है- इसलिये मेरी कोई कमी नहीं खलेगी।
नदियों पर सरकारों का ध्यान गए अब कोई चालीस बरस पूरे हो रहे हैं। इन चालीस वर्षों में इस काम पर खर्च होने वाली राशि भी लगातार बढ़ती गई है और तरह-तरह के कानून भी बनते गए हैं। और अब यह भी कहा जा सकता है कि राशि के साथ-साथ सरकार का उत्साह भी बढ़ा है। पहले के एक दौर में शोध ज्यादा था, अब शोध भी है और श्रद्धा भी।
संकट में सीतासागर तालाब का वजूद
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सीतापुर और हरदोई के 36 गांव मिलाकर हो रहा है ‘नैमिषारण्य तीर्थ विकास परिषद’ गठन
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'संजॉय घोष मीडिया अवार्ड्स – 2022
यूसर्क द्वारा तीन दिवसीय जल विज्ञान प्रशिक्षण प्रारंभ
28 जुलाई को यूसर्क द्वारा आयोजित जल शिक्षा व्याख्यान श्रृंखला पर भाग लेने के लिए पंजीकरण करायें
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