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पौराणिक कथाओं में कहा गया है कि समुद्र मंथन से निकला विष पीने वाले भगवान शिव तरह-तरह के प्राणियों के साथ शान्त वातावरण में रहना पसन्द करते हैं। भोलेनाथ का अगर कैलाश या काशी या काठमांडु में आने वाले भक्तों और पर्यटकों से जी उकता जाये, तो मुदियाली उनके रहने योग्य जगह है।
यह पशुपतिनाथ का सजीव मन्दिर है, भले उनकी मूर्ति यहाँ हो या न हो। - ये हाल ही में प्रकाशित पुस्तक ‘जल-थल-मल’ में लेखक सोपान जोशी के शब्द हैं। विशाल कलेवर की पुस्तक में मुदियाली सहकारी समिति से सम्बन्धित उद्धरण को मामूली जोड़-घटाव के साथ यहाँ दिया जा रहा है। मकसद इसे रेखांकित करना है कि देश भर के लिये समस्या बनी शहरी मलजल और औद्योगिक कचरे को निपटाने में यह कुछ मछुआरों द्वारा प्रस्तुत उदाहरण अनुकरणीय हो सकता है।
वाराणसी। कभी कई बीघे में फैले इस तालाब का रकबा आज सिमटकर लगभग 10 बिस्वा में ही शेष रह गया है। सरकारी दस्तावेजों में कहने को तो यह जगह आज भी जनकल्याण तालाब के नाम से दर्ज है जिसमें इसका रकबा 23 बिस्वा प्रदर्शित होता है। लेकिन वर्तमान में ना तो वहाँ कोई तालाब जैसी जगह दिखलाई पड़ती है और ना ही आसपास कही पानी की एक बूँद।
वे तालाब जो कभी लोगों के पानी की आवश्यकताओं को पूरा करते थे, आज खुद अस्तित्व बचाने की जद्दोजहद करते दिख रहे हैं। वाराणसी में कभी सैकड़ों की संख्या में पोखरे, तालाब, कुण्ड, जलाशय और बावलियाँ हुआ करती थीं लेकिन वर्तमान में ज्यादातर या तो अवैध अतिक्रमण की भेंट चढ़ चुकी हैं या फिर भू-माफियाओं द्वारा पाट दी गई हैं।
‘वसुधैव कुटुंबकम्’ अर्थात विश्व बन्धुत्व की भारतीय अवधारणा प्राकृतिक सम्पदा के सीमित उपभोग के साथ वैष्विक सामुदायिक हितों से जुड़ी थी, लेकिन भूमण्डलीकरण बनाम आर्थिक उदारवाद की धारणा से उपजी ‘विश्व-ग्राम’ की कथित अवधारणा ने इंसान को सहुलियत की जिन्दगी देने से कहीं ज्यादा, प्राकृतिक आपदाओं को बढ़ावा द
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मैले पानी से मछुआरों का ऋषि कर्म
पौराणिक कथाओं में कहा गया है कि समुद्र मंथन से निकला विष पीने वाले भगवान शिव तरह-तरह के प्राणियों के साथ शान्त वातावरण में रहना पसन्द करते हैं। भोलेनाथ का अगर कैलाश या काशी या काठमांडु में आने वाले भक्तों और पर्यटकों से जी उकता जाये, तो मुदियाली उनके रहने योग्य जगह है।
यह पशुपतिनाथ का सजीव मन्दिर है, भले उनकी मूर्ति यहाँ हो या न हो। - ये हाल ही में प्रकाशित पुस्तक ‘जल-थल-मल’ में लेखक सोपान जोशी के शब्द हैं। विशाल कलेवर की पुस्तक में मुदियाली सहकारी समिति से सम्बन्धित उद्धरण को मामूली जोड़-घटाव के साथ यहाँ दिया जा रहा है। मकसद इसे रेखांकित करना है कि देश भर के लिये समस्या बनी शहरी मलजल और औद्योगिक कचरे को निपटाने में यह कुछ मछुआरों द्वारा प्रस्तुत उदाहरण अनुकरणीय हो सकता है।
अस्तित्व बचाने की जंग लड़ता जनकल्याण तालाब
वाराणसी। कभी कई बीघे में फैले इस तालाब का रकबा आज सिमटकर लगभग 10 बिस्वा में ही शेष रह गया है। सरकारी दस्तावेजों में कहने को तो यह जगह आज भी जनकल्याण तालाब के नाम से दर्ज है जिसमें इसका रकबा 23 बिस्वा प्रदर्शित होता है। लेकिन वर्तमान में ना तो वहाँ कोई तालाब जैसी जगह दिखलाई पड़ती है और ना ही आसपास कही पानी की एक बूँद।
वे तालाब जो कभी लोगों के पानी की आवश्यकताओं को पूरा करते थे, आज खुद अस्तित्व बचाने की जद्दोजहद करते दिख रहे हैं। वाराणसी में कभी सैकड़ों की संख्या में पोखरे, तालाब, कुण्ड, जलाशय और बावलियाँ हुआ करती थीं लेकिन वर्तमान में ज्यादातर या तो अवैध अतिक्रमण की भेंट चढ़ चुकी हैं या फिर भू-माफियाओं द्वारा पाट दी गई हैं।
बाढ़ से तबाह चीन
‘वसुधैव कुटुंबकम्’ अर्थात विश्व बन्धुत्व की भारतीय अवधारणा प्राकृतिक सम्पदा के सीमित उपभोग के साथ वैष्विक सामुदायिक हितों से जुड़ी थी, लेकिन भूमण्डलीकरण बनाम आर्थिक उदारवाद की धारणा से उपजी ‘विश्व-ग्राम’ की कथित अवधारणा ने इंसान को सहुलियत की जिन्दगी देने से कहीं ज्यादा, प्राकृतिक आपदाओं को बढ़ावा द
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सीतापुर और हरदोई के 36 गांव मिलाकर हो रहा है ‘नैमिषारण्य तीर्थ विकास परिषद’ गठन
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'संजॉय घोष मीडिया अवार्ड्स – 2022
यूसर्क द्वारा तीन दिवसीय जल विज्ञान प्रशिक्षण प्रारंभ
28 जुलाई को यूसर्क द्वारा आयोजित जल शिक्षा व्याख्यान श्रृंखला पर भाग लेने के लिए पंजीकरण करायें
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