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सवाल अकेले पीपल्याहाना तालाब का भी नहीं है, मध्य प्रदेश की आर्थिक राजधानी माने जाने वाले इन्दौर शहर के हवा और पानी पर ही संकट खड़ा हो गया है। यही हालात रहे तो 2021 के बाद शहर में साफ हवा और शुद्ध पानी के लिये भी लोग तरसने लगेंगे। हालात यहाँ तक बिगड़ सकते हैं कि इन्दौर के लोगों को हवा और पानी के लिये पलायन करना पड़े।
यह दावा प्रकृति के जानकार विशेषज्ञ कर रहे हैं। हम किस तरह के विकास की बातें कर रहे हैं, यह कौन सा विकास है। हम किस दिशा में जा रहे हैं। क्या हम सामूहिक आत्महत्याओं की दिशा में बढ़ रहे हैं।
इन्दौर का परम्परागत जल संरक्षण लोक रुचि का विषय रहा है। कभी यहाँ बीच शहर से दो सुन्दर नदियाँ बहती थीं। यह शहर चारों ओर से तालाबों से घिरा था। यहाँ बावड़ियों की संख्या इतनी ज्यादा थी कि इसे बावड़ियों का शहर कहा जाता था। यहाँ घर-घर में कुण्डियाँ भी थीं। ऐसे शहर में परम्परागत जल प्रबन्धन की एक झलक।
मध्यप्रदेश की औद्योगिक राजधानी और देश में ‘मिनी बाॅम्बे’ के रूप में ख्यात शहर इंदौर की तुलना- यहाँ के बाशिंदे किसी समय खूबसूरत शहर पेरिस से किया करते थे।
वजह थी..... जिस तरह पेरिस के बीचों-बीच शहर से नदी बहती है, उसी तरह यहाँ भी शहर के बीच में ‘नदियाँ’ निकलती थीं...!
......शहर के आस-पास और बीच में भी तालाब आबाद रहते रहे हैं।
.....कल्पना कीजिए- इस शहर के बीच में स्वच्छ पानी से भरी नालियाँ हुआ करती थीं.... जो लालबाग, कागदीपुरा व राजवाड़ा तक आती थीं......! जिसे पानी चाहिए- वह घर के पास से बह रही नाली से ले लें.....!!
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जल समाधि का मन बनाकर गया था : किशोर कोडवानी
सवाल अकेले पीपल्याहाना तालाब का भी नहीं है, मध्य प्रदेश की आर्थिक राजधानी माने जाने वाले इन्दौर शहर के हवा और पानी पर ही संकट खड़ा हो गया है। यही हालात रहे तो 2021 के बाद शहर में साफ हवा और शुद्ध पानी के लिये भी लोग तरसने लगेंगे। हालात यहाँ तक बिगड़ सकते हैं कि इन्दौर के लोगों को हवा और पानी के लिये पलायन करना पड़े।
यह दावा प्रकृति के जानकार विशेषज्ञ कर रहे हैं। हम किस तरह के विकास की बातें कर रहे हैं, यह कौन सा विकास है। हम किस दिशा में जा रहे हैं। क्या हम सामूहिक आत्महत्याओं की दिशा में बढ़ रहे हैं।
बावड़ियों का शहर
इन्दौर का परम्परागत जल संरक्षण लोक रुचि का विषय रहा है। कभी यहाँ बीच शहर से दो सुन्दर नदियाँ बहती थीं। यह शहर चारों ओर से तालाबों से घिरा था। यहाँ बावड़ियों की संख्या इतनी ज्यादा थी कि इसे बावड़ियों का शहर कहा जाता था। यहाँ घर-घर में कुण्डियाँ भी थीं। ऐसे शहर में परम्परागत जल प्रबन्धन की एक झलक।
मध्यप्रदेश की औद्योगिक राजधानी और देश में ‘मिनी बाॅम्बे’ के रूप में ख्यात शहर इंदौर की तुलना- यहाँ के बाशिंदे किसी समय खूबसूरत शहर पेरिस से किया करते थे।
वजह थी..... जिस तरह पेरिस के बीचों-बीच शहर से नदी बहती है, उसी तरह यहाँ भी शहर के बीच में ‘नदियाँ’ निकलती थीं...!
......शहर के आस-पास और बीच में भी तालाब आबाद रहते रहे हैं।
.....कल्पना कीजिए- इस शहर के बीच में स्वच्छ पानी से भरी नालियाँ हुआ करती थीं.... जो लालबाग, कागदीपुरा व राजवाड़ा तक आती थीं......! जिसे पानी चाहिए- वह घर के पास से बह रही नाली से ले लें.....!!
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सीतापुर और हरदोई के 36 गांव मिलाकर हो रहा है ‘नैमिषारण्य तीर्थ विकास परिषद’ गठन
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'संजॉय घोष मीडिया अवार्ड्स – 2022
यूसर्क द्वारा तीन दिवसीय जल विज्ञान प्रशिक्षण प्रारंभ
28 जुलाई को यूसर्क द्वारा आयोजित जल शिक्षा व्याख्यान श्रृंखला पर भाग लेने के लिए पंजीकरण करायें
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