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कृष्ण जब जन्मे तब रात अन्धेरी थी लेकिन आकाश जलभरे बादलों से भरा हुआ था। काले-काले मेघों की पंचायत जुटी थी और काला अन्धेरा उनसे मिल कर कृष्ण का सृजन कर रहा था। राधा उनकी वर्षा बनीं और कृष्ण बरस कर रिक्त हो गए। राधा भी बरस कर रिक्त हो गईं।
काले मेघों की उज्जवल वर्षा ने बरस-बरस कर पृथ्वी को उर्वर बनाकर रस से भर दिया। यही रस भारतीय साहित्य, संस्कृति और जीवन में बार-बार छलका। जब-जब हम अनुर्वर हुए-वे बार-बार बरस कर हमें उर्वर बनाते रहे। राष्ट्रजीवन की पुण्य सलिलाओं का अमृत कुम्भ भरते रहे। मेघों की वर्षा में निसर्ग तो उतरता ही था, पूरा-का-पूरा सर्ग भी उसमें भीग कर पुनर्नवा होता रहता था।
ग्लेशियर पिघले। नदियाँ सिकुड़ी। आब के कटोरे सूखे। भूजल स्तर तल, वितल, सुतल से नीचे गिरकर पाताल तक पहुँच गया। मानसून बरसेगा ही बरसेगा; अब यह गारंटी भी मौसम के हाथ से निकल गई है।
इस बार अधिक वर्षा की सम्भावना बताई गई है; बावजूद इसके हमारे कई इलाके मानसून की पारम्परिक तिथि निकल जाने के बाद भी सूने पड़े आकाश की ओर निहार रहे हैं। हम क्या करें? वैश्विक तापमान वृद्धि को कोसें या सोचें कि दोष हमारे स्थानीय विचार-व्यवहार का भी है ? दृष्टि साफ करने के लिये यह पड़ताल भी जरूरी है कि पानी, हमसे दूर हुआ या फिर पानी से दूरी बनाने के हम खुद दोषी हैं?
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अंजुरी में उतारना बादलों को
कृष्ण जब जन्मे तब रात अन्धेरी थी लेकिन आकाश जलभरे बादलों से भरा हुआ था। काले-काले मेघों की पंचायत जुटी थी और काला अन्धेरा उनसे मिल कर कृष्ण का सृजन कर रहा था। राधा उनकी वर्षा बनीं और कृष्ण बरस कर रिक्त हो गए। राधा भी बरस कर रिक्त हो गईं।
काले मेघों की उज्जवल वर्षा ने बरस-बरस कर पृथ्वी को उर्वर बनाकर रस से भर दिया। यही रस भारतीय साहित्य, संस्कृति और जीवन में बार-बार छलका। जब-जब हम अनुर्वर हुए-वे बार-बार बरस कर हमें उर्वर बनाते रहे। राष्ट्रजीवन की पुण्य सलिलाओं का अमृत कुम्भ भरते रहे। मेघों की वर्षा में निसर्ग तो उतरता ही था, पूरा-का-पूरा सर्ग भी उसमें भीग कर पुनर्नवा होता रहता था।
पानी दूर हुआ या हम
ग्लेशियर पिघले। नदियाँ सिकुड़ी। आब के कटोरे सूखे। भूजल स्तर तल, वितल, सुतल से नीचे गिरकर पाताल तक पहुँच गया। मानसून बरसेगा ही बरसेगा; अब यह गारंटी भी मौसम के हाथ से निकल गई है।
इस बार अधिक वर्षा की सम्भावना बताई गई है; बावजूद इसके हमारे कई इलाके मानसून की पारम्परिक तिथि निकल जाने के बाद भी सूने पड़े आकाश की ओर निहार रहे हैं। हम क्या करें? वैश्विक तापमान वृद्धि को कोसें या सोचें कि दोष हमारे स्थानीय विचार-व्यवहार का भी है ? दृष्टि साफ करने के लिये यह पड़ताल भी जरूरी है कि पानी, हमसे दूर हुआ या फिर पानी से दूरी बनाने के हम खुद दोषी हैं?
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सीतापुर और हरदोई के 36 गांव मिलाकर हो रहा है ‘नैमिषारण्य तीर्थ विकास परिषद’ गठन
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'संजॉय घोष मीडिया अवार्ड्स – 2022
यूसर्क द्वारा तीन दिवसीय जल विज्ञान प्रशिक्षण प्रारंभ
28 जुलाई को यूसर्क द्वारा आयोजित जल शिक्षा व्याख्यान श्रृंखला पर भाग लेने के लिए पंजीकरण करायें
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