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हिंदी प्रस्तुति: अरुण तिवारी
विश्व सांस्कृतिक उत्सव आयोजन के यमुना भूमि पर किए जाने से उपजे विवाद से आप परिचित ही हैं। विवाद को लेकर राष्ट्रीय हरित पंचाट ने दिनांक नौ मार्च, 2016 अपना आदेश जारी कर दिया है। खबर है कि प्रारम्भिक मुआवजा राशि के आदेश से असंतुष्ट श्री श्री रविशंकर जी ने सर्वोच्च न्यायालय में जाने का निर्णय लिया है। मेरा मानना है कि आदेश ने पर्यावरणीय सावधानियों के अलावा प्रशासनिक कर्तव्य निर्वाह के पहलुओं पर भी दिशा दिखाने की कोशिश की है।
मूल आदेश अंग्रेजी में है। पाठकों की सुविधा के लिए आदेश का हिंदी अनुवाद करने की कोशिश की गई है। यह शब्दवार अनुवाद नहीं है, किंतु ध्यान रखा गया है कि कोई तथ्य छूटने न पाये। समझने की दृष्टि से कुछ अतिरिक्त शब्द कोष्ठक के भीतर जोङे गये हैं। अनुरोध है कि कृपया अवलोकन करें, विश्लेषण करें और अपने विश्लेषण/प्रतिक्रिया से हिंदी वाटर पोर्टल को अवगत करायें।
आदेश दस्तावेज की हिंदी प्रस्तुति
जिसने दिया ज्यादा और लिया कम, हम इंसानों ने उसे देवता का दर्जा दिया। जिसने लिया ज्यादा, दिया कम, उसे हमने दानवों की श्रेणी में डाल दिया। स्पष्ट है कि हम इंसानों ने पहले प्रतिमान बनाए; फिर जिन्हें उन प्रतिमानों पर खरा माना, उनकी प्रतिमाएँ बनाईं। यह भी हुआ कि जब भी टूटे, पहले प्रतिमान टूटे और फिर प्रतिमाएँ। प्रतिमाओं के टूटने से देवता तो नहीं मरता, किन्तु प्रतिमा बनाने वालों की आस्था टूट जाती है। अतः आस्था की ऐसी प्रतिमाओं का टूट जाना, देश-काल की समग्र दृष्टि से कभी अच्छा नहीं होता।
सम्भवतः इसीलिये आर्यसमाज ने आस्था को तो अपनाया, किन्तु प्रतिमाओं से परहेज किया। असली तर्क मैं नहीं जानता, किन्तु आर्यसमाज की सन्तान श्री श्री और उनकी प्रतिमा बनाने वाला पॉश समाज.. दोनों यह बात अवश्य जानते होंगे; बावजूद, इसके यदि आज दिल्ली के यमुना किनारे संस्कृतियों को जोड़ने और विविधताओं का सम्मान करने के नाम पर नदी माँ के साथ सद्व्यवहार के अरमान टूट रहे हों
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श्री श्री-यमुना विवाद : राष्ट्रीय हरित पंचाट का आदेश
हिंदी प्रस्तुति: अरुण तिवारी
विश्व सांस्कृतिक उत्सव आयोजन के यमुना भूमि पर किए जाने से उपजे विवाद से आप परिचित ही हैं। विवाद को लेकर राष्ट्रीय हरित पंचाट ने दिनांक नौ मार्च, 2016 अपना आदेश जारी कर दिया है। खबर है कि प्रारम्भिक मुआवजा राशि के आदेश से असंतुष्ट श्री श्री रविशंकर जी ने सर्वोच्च न्यायालय में जाने का निर्णय लिया है। मेरा मानना है कि आदेश ने पर्यावरणीय सावधानियों के अलावा प्रशासनिक कर्तव्य निर्वाह के पहलुओं पर भी दिशा दिखाने की कोशिश की है।
मूल आदेश अंग्रेजी में है। पाठकों की सुविधा के लिए आदेश का हिंदी अनुवाद करने की कोशिश की गई है। यह शब्दवार अनुवाद नहीं है, किंतु ध्यान रखा गया है कि कोई तथ्य छूटने न पाये। समझने की दृष्टि से कुछ अतिरिक्त शब्द कोष्ठक के भीतर जोङे गये हैं। अनुरोध है कि कृपया अवलोकन करें, विश्लेषण करें और अपने विश्लेषण/प्रतिक्रिया से हिंदी वाटर पोर्टल को अवगत करायें।
आदेश दस्तावेज की हिंदी प्रस्तुति
17 सवालों के घेरे में श्रीश्री की श्री
जिसने दिया ज्यादा और लिया कम, हम इंसानों ने उसे देवता का दर्जा दिया। जिसने लिया ज्यादा, दिया कम, उसे हमने दानवों की श्रेणी में डाल दिया। स्पष्ट है कि हम इंसानों ने पहले प्रतिमान बनाए; फिर जिन्हें उन प्रतिमानों पर खरा माना, उनकी प्रतिमाएँ बनाईं। यह भी हुआ कि जब भी टूटे, पहले प्रतिमान टूटे और फिर प्रतिमाएँ। प्रतिमाओं के टूटने से देवता तो नहीं मरता, किन्तु प्रतिमा बनाने वालों की आस्था टूट जाती है। अतः आस्था की ऐसी प्रतिमाओं का टूट जाना, देश-काल की समग्र दृष्टि से कभी अच्छा नहीं होता।
सम्भवतः इसीलिये आर्यसमाज ने आस्था को तो अपनाया, किन्तु प्रतिमाओं से परहेज किया। असली तर्क मैं नहीं जानता, किन्तु आर्यसमाज की सन्तान श्री श्री और उनकी प्रतिमा बनाने वाला पॉश समाज.. दोनों यह बात अवश्य जानते होंगे; बावजूद, इसके यदि आज दिल्ली के यमुना किनारे संस्कृतियों को जोड़ने और विविधताओं का सम्मान करने के नाम पर नदी माँ के साथ सद्व्यवहार के अरमान टूट रहे हों
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सीतापुर और हरदोई के 36 गांव मिलाकर हो रहा है ‘नैमिषारण्य तीर्थ विकास परिषद’ गठन
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यूसर्क द्वारा तीन दिवसीय जल विज्ञान प्रशिक्षण प्रारंभ
28 जुलाई को यूसर्क द्वारा आयोजित जल शिक्षा व्याख्यान श्रृंखला पर भाग लेने के लिए पंजीकरण करायें
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