तालाब ज्ञान-संस्कृति : नींव से शिखर तक

बुन्देलखण्ड के जुड़वा गाँव खिसनी बुजुर्ग और खिसनी खुर्द इस बात का जीता-जागता उदाहरण है कि प्रशासनिक लापरवाही किस तरह मौसम की मार के असर को कई गुना बढ़ा सकती है।
इतिहास की किताबों में जब हम पढ़ते कि अंग्रेजों ने बुन्देलखण्ड क्षेत्र की पूरी आबादी को कहीं और स्थानान्तरित करने की सिफारिश की थी तो हमें उनकी समझ पर रश्क होता है।
अगर कल्पना साथ नहीं दे तो एक बार बुन्देलखण्ड होकर आइए। पहले से ही भीषण जलसंकट का शिकार बुन्देलखण्ड इलाक़ा साल-दर-साल नई त्रासदियों का शिकार होता जा रहा है।
सन्यासी बाना धारण कर प्रो जीडी अग्रवाल जी से स्वामी ज्ञानस्वरूप सानंद जी का नामकरण हासिल गंगापुत्र का संकल्प किसी परिचय के मोहताज नहीं। जानने वाले, गंगापुत्र स्वामी ज्ञानस्वरूप सानंद को ज्ञान, विज्ञान और संकल्प के एक संगम की तरह जानते हैं। माँ गंगा के सम्बन्ध में अपनी माँगों को लेकर स्वामी ज्ञानस्वरूप सानंद द्वारा किये कठिन अनशन को करीब सवा दो वर्ष हो चुके हैं और ‘नमामि गंगे’ की घोषणा हुए करीब डेढ़ बरस, किन्तु माँगों को अभी भी पूर्ति का इन्तजार है। इसी इन्तजार में हम पानी, प्रकृति, ग्रामीण विकास एवं लोकतांत्रिक मसलों पर अत्यन्त संवेदनशील लेखक व पत्रकार श्री अरुण तिवारी जी द्वारा स्वामी ज्ञानस्वरूप सानंद जी से की लम्बी बातचीत को सार्वजनिक करने से हिचकते रहे, किन्तु अब स्वयं बातचीत का धैर्य जवाब दे गया है। अब समय आ गया है कि इस बातचीत को सार्वजनिक करें। इण्डिया वाटर पोर्टल (हिन्दी), प्रत्येक रविवार आपको इस शृंखला का अगला कथन उपलब्ध कराता रहेगा; यह पोर्टल टीम का निश्चय है।
इस बातचीत की शृंखला में पूर्व प्रकाशित संवाद परिचय को पढ़ने के लिये यहाँ क्लिक करें...
पहला कथन आपके समक्ष पठन, पाठन और प्रतिक्रिया के लिये प्रस्तुत है :
तारीख 01 अक्टूबर, 2013: देहरादून का सरकारी अस्पताल। समय सुबह के 10.36 बजे हैं। न्यायिक मजिस्ट्रेट श्री अरविंद पांडे आकर जा चुके हैं। लोक विज्ञान संस्थान से रोज कोई-न-कोई आता है। श्री रवि चोपड़ा भी आये थे। मैं पहुँचा, कमरे में दो ही थे, नर्स और स्वामी सानंद जी। 110 दिन के उपवास के पश्चात भी चेहरे पर वही तेज, वही दृढ़ता!
बुन्देलखण्ड के जुड़वा गाँव खिसनी बुजुर्ग और खिसनी खुर्द इस बात का जीता-जागता उदाहरण है कि प्रशासनिक लापरवाही किस तरह मौसम की मार के असर को कई गुना बढ़ा सकती है।
इतिहास की किताबों में जब हम पढ़ते कि अंग्रेजों ने बुन्देलखण्ड क्षेत्र की पूरी आबादी को कहीं और स्थानान्तरित करने की सिफारिश की थी तो हमें उनकी समझ पर रश्क होता है।
अगर कल्पना साथ नहीं दे तो एक बार बुन्देलखण्ड होकर आइए। पहले से ही भीषण जलसंकट का शिकार बुन्देलखण्ड इलाक़ा साल-दर-साल नई त्रासदियों का शिकार होता जा रहा है।
सन्यासी बाना धारण कर प्रो जीडी अग्रवाल जी से स्वामी ज्ञानस्वरूप सानंद जी का नामकरण हासिल गंगापुत्र का संकल्प किसी परिचय के मोहताज नहीं। जानने वाले, गंगापुत्र स्वामी ज्ञानस्वरूप सानंद को ज्ञान, विज्ञान और संकल्प के एक संगम की तरह जानते हैं। माँ गंगा के सम्बन्ध में अपनी माँगों को लेकर स्वामी ज्ञानस्वरूप सानंद द्वारा किये कठिन अनशन को करीब सवा दो वर्ष हो चुके हैं और ‘नमामि गंगे’ की घोषणा हुए करीब डेढ़ बरस, किन्तु माँगों को अभी भी पूर्ति का इन्तजार है। इसी इन्तजार में हम पानी, प्रकृति, ग्रामीण विकास एवं लोकतांत्रिक मसलों पर अत्यन्त संवेदनशील लेखक व पत्रकार श्री अरुण तिवारी जी द्वारा स्वामी ज्ञानस्वरूप सानंद जी से की लम्बी बातचीत को सार्वजनिक करने से हिचकते रहे, किन्तु अब स्वयं बातचीत का धैर्य जवाब दे गया है। अब समय आ गया है कि इस बातचीत को सार्वजनिक करें। इण्डिया वाटर पोर्टल (हिन्दी), प्रत्येक रविवार आपको इस शृंखला का अगला कथन उपलब्ध कराता रहेगा; यह पोर्टल टीम का निश्चय है।
इस बातचीत की शृंखला में पूर्व प्रकाशित संवाद परिचय को पढ़ने के लिये यहाँ क्लिक करें...
पहला कथन आपके समक्ष पठन, पाठन और प्रतिक्रिया के लिये प्रस्तुत है :तारीख 01 अक्टूबर, 2013: देहरादून का सरकारी अस्पताल। समय सुबह के 10.36 बजे हैं। न्यायिक मजिस्ट्रेट श्री अरविंद पांडे आकर जा चुके हैं। लोक विज्ञान संस्थान से रोज कोई-न-कोई आता है। श्री रवि चोपड़ा भी आये थे। मैं पहुँचा, कमरे में दो ही थे, नर्स और स्वामी सानंद जी। 110 दिन के उपवास के पश्चात भी चेहरे पर वही तेज, वही दृढ़ता!
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